वो कैसी औरतें थीं... 🌸
वो कैसी औरतें थीं, जो राख में भी चिंगारी जलाती थीं,
गीली लकड़ियों को फूँक कर तक़दीर बनाती थीं।
सिल पे मिर्चें पीस के सालन में रंग भरती थीं,
थकी-मांदी भी हों तो बच्चों को हँसा देती थीं।
सुबह से शाम तक मशग़ूल, मगर मुस्कुराती थीं,
भरी दोपहर में दुपट्टा सिर पे डाल चली आती थीं।
पंखा हाथ का झल कर, ठंडक मोहब्बत की बाँटती थीं,
और पान की ठंडी मीठी खुशबू से थकान मिटाती थीं।
दरवाज़े पे रुक के रस्में निभाने वाली वो निगाहें,
नर्मी से पलंगों पे दरी चादर बिछाने वाली वो बाहें।
मेहमान आए तो इसरार से सरहाने बिठाती थीं,
और रूह-अफ़ज़ा की मिठास से सबका दिल जीत जाती थीं।
सिलाई की मशीनों पर रोज़े के साथ रोज़ कमाती थीं,
इफ़्तार की सजी प्लेटों में बरकतें बाँटती थीं।
लकड़ी के फ्रेमों में कलमे काढ़ के सजा देती थीं,
और बच्चों को दुआओं में डूबा कर सुला देती थीं।
पड़ोसी दस्तक दे तो खाना ख़ुद बना के खिलाती थीं,
जो माँगे वो चीज़ मुस्कुरा कर दिलाती थीं।
रिश्तों के नाज़ुक धागे को सलीक़े से बरतती थीं,
मोहल्ले के ग़म में भी आँसू बाँटती थीं।
बीमार पड़ोसी को देख कर दुआएँ पढ़ती थीं,
किसी के यहाँ मय्यत हो तो ख़ामोशी से बहती थीं।
तहवार आए तो सबको बुला कर महफ़िल सजाती थीं,
ख़ुशियाँ बाँट कर अपने ग़म छुपा जाती थीं।
🌙 और अब…
मैं जब घर अपने जाती हूँ, फ़ुरसत के ज़मानों में,
उन्हीं की याद ढूँढती फिरती हूँ गलियों और मकानों में।
कभी मीलाद के जलसे में, कभी तस्बीहदानों में,
कभी बरामदे के ताक़ पर, कभी बावर्चीख़ानों में।
मगर अफ़सोस…
वो अपना ज़माना साथ लेकर ग़ायब हो गई हैं,
शायद किसी क़ब्र के सुकून में सो गई हैं…
वो कैसी औरतें थीं
"वो रूहानी औरतें" —
मतलब: वो औरतें जिनमें रूह की गर्मी और मोहब्बत की महक थी।
(Spiritual & poetic tone — soulful and graceful.)
"चूल्हे की रौशनी में वो चेहरे" —
मतलब: वो औरतें जो अपनी मेहनत और मोहब्बत से घर को रोशन करती थीं।
(Beautiful imagery, emotional warmth.)
"सादगी की मिसाल थीं वो" —
मतलब: उनकी ज़िंदगी सादगी और शराफ़त की तस्वीर थी।
(Simple yet touching.)
"बीते ज़माने की औरतें" —
मतलब: वो औरतें जो अब सिर्फ़ यादों में हैं, मगर उनका असर आज भी ज़िंदा है।
(Direct, nostalgic and emotional.)
"दुआओं की खुशबू" —
मतलब: वो औरतें जो हर काम में दुआओं और बरकत की खुशबू छोड़ जाती थीं।
(Soft, symbolic and deeply poetic.)
"सलीक़े की वारिसें" —
मतलब: वो औरतें जो तहज़ीब, अदब और सलीक़े की मिसाल थीं।
(Elegant, cultured tone.)
.....
🔹 "वो कैसी औरतें थीं, जो राख में भी चिंगारी जलाती थीं,"
👉 मतलब: वो औरतें हालात चाहे सख़्त हों, मगर उम्मीद नहीं छोड़ती थीं। राख यानी मुश्किलें — और चिंगारी यानी हिम्मत।
💫 पैग़ाम: जब हालात राख बन जाएँ, तब भी दिल की चिंगारी बुझने न दो। कोशिश करने वाली औरत कभी हारती नहीं।
🔹 "गीली लकड़ियों को फूँक कर तक़दीर बनाती थीं।"
👉 मतलब: जहाँ काम नामुमकिन लगता था, वहाँ वो अपनी मेहनत और सब्र से नामुमकिन को मुमकिन बनाती थीं।
💫 पैग़ाम: अगर लकड़ियाँ गीली हों — यानी ज़िंदगी में रुकावटें हों — तो भी मेहनत की हवा से आग जलाई जा सकती है।
🔹 "सिल पे मिर्चें पीस के सालन में रंग भरती थीं,"
👉 मतलब: तकलीफ़ में भी वो ज़िंदगी में मज़ा भर देती थीं।
💫 पैग़ाम: दर्द से भी ज़िंदगी का ज़ायक़ा बनाना एक फ़न है — और वो औरतें इस फ़न की उस्ताद थीं।
🔹 "थकी-मांदी भी हों तो बच्चों को हँसा देती थीं।"
👉 मतलब: अपने दर्द को छुपा कर दूसरों के चेहरे पर मुस्कान रखना — यही असली ताक़त है।
💫 पैग़ाम: अपनी थकान से ज़्यादा दूसरों की ख़ुशी को अहमियत देना, यही इंसानियत का असली दरजा है।
🔹 "सुबह से शाम तक मशग़ूल, मगर मुस्कुराती थीं,"
👉 मतलब: पूरी ज़िंदगी मेहनत में गुज़ार देतीं, मगर चेहरा हमेशा ख़ुश।
💫 पैग़ाम: मुस्कान कोई हालात की नहीं — ईमान और सब्र की निशानी होती है।
🔹 "भरी दोपहर में दुपट्टा सिर पे डाल चली आती थीं।"
👉 मतलब: अदब, हया, और तहज़ीब की मिसाल थीं वो। गर्मी में भी शराफ़त नहीं छोड़ी।
💫 पैग़ाम: असल ख़ूबसूरती सादगी में है — जो अपने आदाब नहीं भूलता, वही असली ख़ूबसूरत होता है।
🔹 "पंखा हाथ का झल कर, ठंडक मोहब्बत की बाँटती थीं,"
👉 मतलब: वो सिर्फ हवा नहीं, मोहब्बत की ठंडक बाँटती थीं।
💫 पैग़ाम: दूसरों को सुकून देने वाला दिल, ख़ुदा के सबसे क़रीब होता है।
🔹 "दरवाज़े पे रुक के रस्में निभाने वाली वो निगाहें..."
👉 मतलब: तहज़ीब और अदब उनका गहना था। हर रिश्ते का हक़ समझती थीं।
💫 पैग़ाम: जो छोटे आदाब निभाता है, वही बड़े रिश्ते निभा पाता है।
🔹 "मेहमान आए तो इसरार से सरहाने बिठाती थीं,"
👉 मतलब: वो मेहमान-नवाज़ थीं — दिल से अपनापन देती थीं।
💫 पैग़ाम: मेहमान की इज़्ज़त सिर्फ रिवायत नहीं, रहमत का दरवाज़ा होती है।
🔹 "रूह-अफ़ज़ा की मिठास से सबका दिल जीत जाती थीं।"
👉 मतलब: उनकी मेहरबानी, उनका प्यार — सबके दिलों में उतर जाता था।
💫 पैग़ाम: कभी-कभी छोटी चीज़ें (जैसे एक गिलास शरबत) बड़ी मोहब्बत का इज़हार बन जाती हैं।
🔹 "सिलाई की मशीनों पर रोज़े के साथ रोज़ कमाती थीं,"
👉 मतलब: इबादत और मेहनत दोनों साथ निभाती थीं।
💫 पैग़ाम: रोज़ी हलाल कमाने वाली औरत जन्नत की हक़दार होती है।
🔹 "लकड़ी के फ्रेमों में कलमे काढ़ के सजा देती थीं,"
👉 मतलब: उनके हाथों में हुनर था, दिल में ईमान था।
💫 पैग़ाम: जब हाथ मेहनत करें और दिल में ख़ुदा हो, तो हर काम इबादत बन जाता है।
🔹 "पड़ोसी दस्तक दे तो खाना ख़ुद बना के खिलाती थीं,"
👉 मतलब: दूसरों की ज़रूरतों का ख़याल रखती थीं।
💫 पैग़ाम: जो अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए जीता है — वही इंसान कहलाने का हक़दार है।
🔹 "जो माँगे वो चीज़ मुस्कुरा कर दिलाती थीं,"
👉 मतलब: देने में ख़ुशी, बाँटने में बरकत।
💫 पैग़ाम: जब दिल बड़ा हो, तो घर में बरकत अपने आप उतर आती है।
🔹 "मोहल्ले के ग़म में भी आँसू बाँटती थीं,"
👉 मतलब: दूसरों के दुख में शामिल होना भी इबादत है।
💫 पैग़ाम: मोहब्बत का असली मतलब — किसी और के ग़म को महसूस करना है।
🔹 "मगर अफ़सोस… वो अपना ज़माना साथ लेकर ग़ायब हो गई हैं,"
👉 मतलब: वो लोग अब कम हैं — मगर उनकी याद, उनका असर अब भी ज़िंदा है।
💫 पैग़ाम: पुराने लोग चले गए, लेकिन हमें उनकी राह, उनका सब्र और उनका तहज़ीब जिंदा रखना है।
खुलासा कलम (Summary / Gist):
यह शायरी उन पुरानी औरतों की याद में है —
जो सादगी, सब्र, मोहब्बत और तहज़ीब की मिसाल थीं।
वो औरतें ज़माने की हर मुश्किल को मुस्कुराकर झेलती थीं,
हर दर्द में बरकत ढूँढती थीं,
हर काम को इबादत बना देती थीं।
उनके पास न दौलत थी, न आराम —
मगर दिलों की दौलत बहुत थी।
वो मेहनत करतीं, मगर शिकायत नहीं करतीं।
थक जातीं, मगर चेहरे पर मुस्कान रखतीं।
ख़ुद भूखी रहकर मेहमान को खिलातीं।
और हर रिश्ते को मोहब्बत से निभातीं।
अब जब वक्त बदल गया है,
तो ऐसी औरतें कम दिखती हैं,
मगर उनके अख़लाक़ और सब्र की खुशबू
आज भी हमारे दिलों में बसती है।
मोरल (सीख):
सब्र और मेहनत में बरकत है —
जिसने सब्र सीखा, उसने ज़िंदगी जीत ली।
सादगी में सच्ची ख़ूबसूरती है —
सजावट से नहीं, इंसान अपने किरदार से ख़ूबसूरत बनता है।
दूसरों की मदद करना इबादत है —
जब कोई भूखा आए, तो मुस्कुरा कर खिलाना — यही असली इंसानियत है।
मोहब्बत बाँटो, नफ़रत नहीं —
वो औरतें मोहल्ले की रूह थीं — सबको जोड़ने वाली, किसी को तोड़ने वाली नहीं।
असली अमीरी दिल की होती है —
जिनके पास पैसा नहीं था, मगर दिल इतना बड़ा था कि पूरी दुनिया समा जाए।
रिश्तों की क़द्र करो —
रिश्ते सिर्फ़ ख़ून से नहीं, एहसास से बनते हैं।
अपनी तहज़ीब ज़िंदा रखो —
वक्त बदल गया, मगर अदब, हया, और इज़्ज़त कभी पुराने नहीं होते।।
माँ और दादी जैसी औरतें सिर्फ़ घर नहीं चलाती थीं, वो ज़माने की रूह थीं।
उन्होंने हमें दिखाया कि ख़ुशी दौलत से नहीं, दिल की पाकीज़गी से मिलती है।
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