नज़्म की तशरीह
रूह है अमानत, इल्म-ए-रब का नूर,जिस्म है साया, फरमान-ए-खुदा का सरूर।
आख़िरत का है सफर, हर अमल का हिसाब,
नेकियों की खेती कर, यही है ईमान का आदाब।
जिस्म को संभाल, ये है अमानत-ए-इलाही,
हराम से बच, चल राह-ए-हलाली।
फज़ा में घुला है, अरबी का अक्स,
इबादत से सजाओ, तस्बीह का नक्श।
दुनिया तो बस एक कारवां है फानी,
आख़िरत है मक्सद, जहां है रौशनी रब्बानी।
रूह-ए-मोअत्तर, मर्ज़ा-ए-रहमत,
जिस्म-ए-फानी, ताबीर-ए-अमानत।
शकील कर रहा फरियाद, रब की बारगाह में,
रूह पाक कर दे, गुनाहों की सियाह में।
दुआओं में सजी है, तस्बीह की आवाज,
रहम कर, ऐ खुदा, है तेरी ही परवाज़।
शकील फरियाद करता है, रब से ये इल्तिजा,
"रूह को पाक कर दे, दे अमल की रौशनी का सिला।"
शकील फरियाद कर, पाक हो रूह की जमीं,
दुआ में बस यही मांग, रहमतें हों हसीं।
आपके दिए गए शेर का अनुवाद, शब्दावली, और विस्तार से व्याख्या इस प्रकार है:
---
शेर 1:
रूह है अमानत, इल्म-ए-रब का नूर,
जिस्म है साया, फरमान-ए-खुदा का सरूर।
अनुवाद:
रूह (आत्मा) एक अल्लाह की दी हुई अमानत है, जो उसके ज्ञान का प्रकाश है।
शरीर मात्र एक छाया है, जो अल्लाह के आदेशों की खुशी और आनंद का प्रतिबिंब है।
शब्दावली:
-रूह (अरबी):आत्मा
- अमानत (अरबी): अल्लाह द्वारा दी गई ज़िम्मेदारी
- इल्म-ए-रब (अरबी): अल्लाह का ज्ञान
- नूर (अरबी):प्रकाश
- साया (फारसी):छाया
- फरमान (फारसी):आदेश
- सरूर (अरबी):खुशी या आनंद
विस्तार से:
इस लाइन में बताया गया है कि रूह, यानी आत्मा, एक दिव्य तोहफा है, जो हमें अल्लाह से मिली है। यह आत्मा हमारी असली पहचान है, जबकि हमारा शरीर एक अस्थायी वस्तु है, जो अल्लाह के नियमों और आदेशों का पालन करने का माध्यम मात्र है।
---
शेर 2:
आख़िरत का है सफर, हर अमल का हिसाब,
नेकियों की खेती कर, यही है ईमान का आदाब।
अनुवाद:
आख़िरत (परलोक) की यात्रा निश्चित है, जहां हर कर्म का हिसाब होगा।
इसलिए अच्छे कर्मों की खेती करो, यही सच्चे विश्वास (ईमान) का तरीका है।
शब्दावली:
- **आख़िरत (अरबी):** परलोक
- **सफर (अरबी):** यात्रा
- **अमल (अरबी):** कर्म
- **हिसाब (अरबी):** लेखा-जोखा
- **नेकी (फारसी):** अच्छा काम
- **ईमान (अरबी):** विश्वास
- **आदाब (अरबी):** शिष्टाचार या तरीका
**विस्तार से:**
यह शेर बताता है कि हमारी यह जिंदगी आख़िरत की तैयारी के लिए है। हर एक इंसान को अपने कर्मों का हिसाब देना होगा,
---
### **शेर 3:**
**जिस्म को संभाल, ये है अमानत-ए-इलाही,
हराम से बच, चल राह-ए-हलाली।**
**अनुवाद:**
अपने शरीर को संभालो, यह अल्लाह की दी हुई अमानत है।
हराम (निषिद्ध) चीज़ों से बचो और हलाल (वैध) रास्ते पर चलो।
**शब्दावली:**
- **जिस्म (फारसी):** शरीर
- **अमानत-ए-इलाही (अरबी):** अल्लाह की दी हुई ज़िम्मेदारी
- **हराम (अरबी):** निषिद्ध
- **हलाल (अरबी):** वैध
- **राह (फारसी):** रास्ता
**विस्तार से:**
यहां इस बात पर जोर दिया गया है कि हमारा शरीर भी एक अमानत है, जिसे हमें संभाल कर रखना चाहिए। हराम चीज़ें, जैसे अनैतिक आचरण और निषिद्ध भोजन या व्यवहार, हमें नुकसान पहुंचाते हैं।
---
### **शेर 4:**
**दुनिया तो बस एक कारवां है फानी,
आख़िरत है मक्सद, जहां है रौशनी रब्बानी।**
**अनुवाद:**
यह दुनिया एक अस्थायी यात्रा है।
असली उद्देश्य तो आख़िरत है, जहां अल्लाह का प्रकाश और आनंद है।
**शब्दावली:**
- **कारवां (फारसी):** यात्रा या काफिला
- **फानी (अरबी):** अस्थायी
- **मक्सद (अरबी):** उद्देश्य
- **रौशनी (फारसी):** प्रकाश
- **रब्बानी (अरबी): अल्लाह
**विस्तार से:**
दुनिया एक अस्थायी जगह है, और यहां की चीजें भी अस्थायी हैं। इंसान का असली मक्सद आख़िरत में सफलता पाना है।
---
शेर 5:
**रूह-ए-मोअत्तर, मर्ज़ा-ए-रहमत,
जिस्म-ए-फानी, ताबीर-ए-अमानत।**
**अनुवाद:**
आत्मा महकती हुई, अल्लाह की दया की निशानी है।
जबकि नश्वर शरीर, एक अमानत का प्रतीक है।
**शब्दावली:**
- **रूह-ए-मोअत्तर (अरबी):** सुगंधित आत्मा
- **मर्ज़ा-ए-रहमत (अरबी):** कृपा का प्रतीक
- **जिस्म-ए-फानी (फारसी):** नश्वर शरीर
- **ताबीर (अरबी):** प्रतीक
- **अमानत (अरबी):** ज़िम्मेदारी
शेर 6:
शकील कर रहा फरियाद, रब की बारगाह में,
रूह पाक कर दे, गुनाहों की सियाह में।
दुआओं में सजी है, तस्बीह की आवाज,
रहम कर, ऐ खुदा, है तेरी ही परवाज़।
1. नज़्म: शब्दावली
- **शकील**: अरबी ज़बान से लिया गया है। इसका मतलब है "सुंदर" यह एक व्यक्ति का नाम है।
- **फरियाद**: फारसी ज़बान से लिया गया है। इसका मतलब है "गुहार" या "प्रार्थना।"
- **रब**: अरबी ज़बान से लिया गया है। इसका मतलब है "पालनहार" या "खुदा।"
- **बारगाह**: फारसी ज़बान से लिया गया है। मतलब है "दरबार" या "सर्वोच्च स्थान।"
- **रूह**: अरबी ज़बान से लिया गया है। इसका मतलब है "आत्मा।"
- **पाक**: फारसी ज़बान से लिया गया है। इसका मतलब है "पवित्र।"
- **गुनाहों**: अरबी ज़बान से लिया गया है। इसका मतलब है "पाप।"
- **सियाह**: फारसी ज़बान से लिया गया है। इसका मतलब है "काला" या "अंधकार।"
- **दुआओं**: अरबी ज़बान से लिया गया है। मतलब है "प्रार्थना।"
- **तस्बीह**: अरबी ज़बान से लिया गया है। मतलब है "खुदा का ज़िक्र।"
- **रहम**: अरबी ज़बान से लिया गया है। इसका मतलब है "दया।"
- **परवाज़**: फारसी ज़बान से लिया गया है। मतलब है "उड़ान।"
---
2. नज़्म का अर्थ:
**पहली लाइन:**
_शकील कर रहा फरियाद, रब की बारगाह में।_
इसका मतलब है कि शकील, जो एक गुनाहगार इंसान है, खुदा के दरबार में अपनी गलतियों की माफी मांग रहा है। वह अपने रब से अपनी मजबूरियों और गलतियों को माफ़ करने की प्रार्थना कर रहा है।
**दूसरी लाइन:**
_रूह पाक कर दे, गुनाहों की सियाह में।_
इसका मतलब है कि शकील अल्लाह से दुआ कर रहा है कि उसकी आत्मा, जो गुनाहों की कालिमा से दाग़दार हो चुकी है, उसे साफ़ और पवित्र कर दे।
**तीसरी लाइन:**
_दुआओं में सजी है, तस्बीह की आवाज।_
इसका मतलब है कि शकील की प्रार्थनाओं में खुदा की तस्बीह (महिमा) गूंज रही है। उसकी प्रार्थना में अल्लाह के नाम का ज़िक्र लगातार हो रहा है।
**चौथी लाइन:**
_रहम कर, ऐ खुदा, है तेरी ही परवाज़।_
इसका मतलब है कि शकील अल्लाह से रहमत की भीख मांग रहा है, क्योंकि हर रहमत और बरकत अल्लाह की ओर से आती है।
---
यह नज़्म अपने अंदाज़ में इतनी पुर-असर है कि इंसान को अपने गुनाहों पर तौबा का एहसास दिलाती है। शकील ने खुदा की बारगाह में जिस तरह फरियाद की है, वह हर इंसान के दिल की पुकार हो सकती है। अल्लाह की रहमत और माफी का दरवाजा हर वक्त खुला रहता है।
*"ऐ खुदा, तेरी रहमत से ही हमें कामिल जिंदगी मिलती है। हमें तौबा की तौफीक दे और गुनाहों से निजात बख्श।"*
शेर 7:
शकील फरियाद करता है, रब से ये इल्तिजा,
"रूह को पाक कर दे, दे अमल की रौशनी का सिला।"
शकील फरियाद कर, पाक हो रूह की जमीं,
दुआ में बस यही मांग, रहमतें हों हसीं।
नज़्म की तशरीह:
**पहली लाइन**
*"शकील फरियाद करता है, रब से ये इल्तिजा,"*
- **शकील**: एक शख्स का नाम है, जिसका मतलब है "नर्म दिल इंसान" (अरबी लफ़्ज़)।
- **फरियाद**: अरबी जबान का लफ़्ज़ है, जिसका मतलब है "दुआ, इल्तिजा या गिड़गिड़ाना।"
- **इल्तिजा**: अरबी लफ़्ज़, जिसका मतलब है "गुज़ारिश, मांग।"
मआनी (मतलब):
शकील नाम का एक इंसान रब से रो-रोकर इल्तिजा कर रहा है कि उसकी रूह को पाक (पवित्र) कर दे।
---
**दूसरी लाइन**
*"रूह को पाक कर दे, दे अमल की रौशनी का सिला।"*
- **रूह**: अरबी लफ़्ज़, जिसका मतलब है "सांस, आत्मा।"
- **पाक**: फ़ारसी लफ़्ज़, जिसका मतलब है "पवित्र।"
- **अमल**: अरबी जबान का लफ़्ज़, मतलब "कर्म, अच्छा काम।"
- **रौशनी**: फ़ारसी लफ़्ज़, जिसका मतलब है "प्रकाश।"
- **सिला**: अरबी लफ़्ज़, मतलब "इनाम या फल।"
**मआनी:**
शकील रब से दुआ करता है कि उसकी आत्मा को पवित्र बना दे और जो अच्छे कर्म उसने किए हैं, उनका फल (इनाम) दे दे।
---
**तीसरी लाइन**
*"शकील फरियाद कर, पाक हो रूह की जमीं,"*
- **जमीं**: फ़ारसी लफ़्ज़, मतलब "धरती या जमीन।"
**मआनी:**
शकील अल्लाह से इल्तिजा करता है कि उसकी आत्मा की जमीन यानी उसका वजूद पवित्र हो जाए।
---
**चौथी लाइन**
*"दुआ में बस यही मांग, रहमतें हों हसीं।"*
- **रहमतें**: अरबी लफ़्ज़, मतलब "अल्लाह की मेहरबानी, करम।"
- **हसीं**: फ़ारसी लफ़्ज़, जिसका मतलब है "खूबसूरत।"
**मआनी:**
शकील रब से मांगता है कि उसकी जिंदगी पर ऐसी रहमतें बरसें जो खूबसूरत और बरकतों से भरपूर हों।
---
शकील अपने रब के दर पर फरियादी है, इल्तिजा करता है कि उसके दिल और रूह को पाक कर दिया जाए। ये नज़्म अल्लाह से की गई एक मोहब्बत भरी दुआ का नमूना है। ये बताती है कि इंसान की कामयाबी उसके अच्छे अमल और अल्लाह की रहमत के मेल से मुकम्मल होती है।
*"रब से इल्तिजा करो, वो तुम्हारी रूह को पाक कर दे और अपने करम की बारिश से तुम्हारी जिंदगी को हसीं बना दे।"*
विस्तार से:
यह शेर इंसान की आत्मा और शरीर के महत्व को समझाता है। आत्मा, जो अल्लाह की कृपा का प्रतीक है, हमेशा शुद्ध और अमर रहती है। वहीं शरीर अस्थायी है और इसे सही तरीके से संभालना हमारी ज़िम्मेदारी है।
---
No comments:
Post a Comment