ऐ मालिक-ए-आलम, ऐ इल्म के खजाने,
हर दुआ की मंज़िल, हर दर्द के मरहम के ठिकाने।
तेरी रहमतों के तले, शकील का दिल झुका है,
तेरी बारगाह में, उसकी दुआ का सफर रुका है।
ऐ रहमान, मुझे इल्म की रोशनी से नवाज़ दे,
दिल में तुझसे मिलने का शौक़ और जुनून साज़ दे।
डॉक्टर बनने का मेरा ये ख़्वाब सच्चा कर दे,
इल्म और हुनर का हर दरवाज़ा मुझ पर खुला कर दे।
मुझे सिखा कि मैं हर ज़ख्म का मरहम बन जाऊं,
हर ग़मगीन दिल का सहारा, हर मरीज़ का सुकून बन जाऊं।
तेरी दी हुई नेमतों से दूसरों की मदद करूं,
तू मेरा हाथ थाम, मैं हर मुश्किल में तेरी तरफ़ मुड़ूं।
ऐ अज़ीज़, मुझे इतना इल्म अता कर,
कि तेरे बंदों की खिदमत में कोई कमी न रह जाए।
ऐ रहमान, मुझे वो सलीका सिखा दे,
कि मेरे हर अमल में तेरा नूर झलक जाए।
मेरा कलम दुआ लिखे, मेरी जुबां तेरी बात करे,
मेरी सोच में तेरा करम, मेरी मेहनत में तेरा हुक्म रहे।
ऐ अल्लाह, मुझे बना एक नेक और ईमानदार डॉक्टर,
तेरे बंदों की खिदमत मेरा मक़सद हो, मेरी पहचान का मंजर।
तेरे करम से ये सफर पूरा हो जाए,
शकील का हर ख्वाब तेरे इश्क़ में पनाह पाए।
तेरी रहमत से हर दर्द का इलाज बनूं,
तेरे बंदों की खुशियों का साज बनूं।
**आमीन।**
### **खुदा की नेमत और एक ख्वाब**
ऐ मेरे मौला, ऐ रहमतों के समंदर,
तेरे करम का हर जर्रा है रोशन।
तेरी नेमतें, तेरे इनाम बेपनाह हैं,
तेरा हर लफ्ज़ मेरी दुआओं की जुबान है।
हज़रत आदम से लेकर युसूफ अली सलाम तक,
तेरी रहमत ने हर नबी को खास मकाम बख़्शा।
हज़रत सुलेमान को जहां का मालिक बनाया,
और नबी करीम को रहमत-उल-आलमीन बताया।
ऐ मालिक, ऐ अर-रहमान, मेरी भी सुन ले,
मेरे ख्वाब को अपनी कुदरत से बुन दे।
डॉक्टर बनना है मुझे, तेरी मर्ज़ी का दीवाना,
तेरी रहमत से भर दूं हर बीमार का ख़जाना।
इल्म ऐसा दे दे, जो रोशनी फैलाए,
इल्म ऐसा दे, जो इंसानियत का दर्द मिटाए।
मेरे हाथों में हो तेरी शिफा का करिश्मा,
हर दिल की धड़कन में सुनूं तेरा ही नज़ारा।
तेरी नेमतों से बने हर ज़ख्म का मरहम,
तेरे नाम से शुरू करूं हर अपना कदम।
जैसे तूने दाऊद को हिकमत अता की,
जैसे सुलेमान को सारी दुनिया की बख्शिश दी।
ऐ अल्लाह, मुझे भी अपने ख्वाब का जरिया बना दे,
तेरे बंदों की खिदमत में मेरा नाम रौशन कर दे।
तेरे करम के हर लम्हे का कर्ज़ उतार सकूं,
तेरे ही दर पर सजदा हर बार कर सकूं।
ऐ अर-रहीम, मेरी यह फरियाद सुन ले,
इस बंदे की दुआ को अपनी रहमत से बुन दे।
मैं बन जाऊं तेरे नाम का डॉक्टर,
हर दर्द का बनूं तेरे करम का मददगार।
तेरी नेमतों का शुक्र, तेरी रहमतों का कर्ज़,
तू जो कर दे, वही है मेरी जिंदगी का फर्ज़।
ऐ रब्ब-उल-आलमीन, तेरी इबादत का यह नजराना,
मेरे ख्वाब को हकीकत का जाम पहना देना।
__________### नज़्म: "खुदाई नेमतों का शुक्रिया"
*ऐ रब्बे करीम, ऐ मालेक-ए-मुल्को जहान,*
तेरी रहमतों का हरसू है बयान।
जमीं, आसमान, ये दरिया, ये हवा,
तेरी नेमतों का हर जर्रा है गवाह।
*आदम से मुहम्मद तक, हर नबी की है दास्तान,*
तेरे इरादों में छुपा, हर हिदायत का अरमान।
नूह की कश्ती से, मूसा का असा,
तेरे करम का हर मोज़िज़ा है रौशन सदा।
*इब्राहीम की कुर्बानी, ईसा की बात,*
तेरे हर नबी का है मुक़द्दस हालात।
मीराज का मोज़िज़ा, कुरआन की हिदायत,
मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शफाअत।
*ऐ मेरे मालिक, ऐ मेरे रब्बे रहमान,*
शकील करता है तुझसे ये इल्तिज़ा अरमान।
मुझे भी अता कर इल्म का नूर,
डॉक्टर बना, कर दे मेरी तक़दीर का गुरूर।
*मैं भी तेरी बंदगी का मन्सूर बनूं,*
तेरी बनाई दुनिया का दस्तूर बनूं।
बीमारों की मदद करूं, तेरी राह दिखाऊं,
तेरे करम का सच्चा मआनी बताऊं।
*तेरी हर नेमत पे करता हूं शुक्र,*
तेरे करम पे है मेरा हर नज़र।
तेरा करम, तेरी रहमत, है सब पे भारी,
तेरा ज़िक्र, तेरी फज़ीलत, मेरे दिल की सवारी।
*ऐ रब्बे करीम, सुन मेरी दुआ,*
शकील की हसरत को दे तू वजह।
तेरी रहमत से सब कुछ है आसान,
तू है मालेक, तू ही है जहान।
***~शकील***
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**नज़्म:**
खुदाई नेमतों का शुकर अदा करूँ,
रब की रहमतों का मैं एक जश्न सजा करूँ।
क़ुदरत का ये जहाँ, क्या अनमोल हैं तुझसे,
जिन्हें हर नबी ने जिया और सीखा है तू मुझसे।
हज़रत आदम से लेकर मुहम्मद तक,
हर नबी को मिला था कोई ख़ास तोहफ़ा,
आदमी की तरह नहीं, वो खुदा के हबीब थे,
जो राह दिखलाते थे हमें उसी रब के करीब।
हज़रत इब्राहीम, हज़रत मूसा की तरह,
तूफ़ानों का मुकाबला कर, हमें सिखा गए।
हज़रत ईसा की मोज़िज़ा, हर दर्द का इलाज,
क़ुदरत की खूबसूरती से सिखा रहे थे फ़र्ज़।
मुझे भी एक दुआ है ऐ रबूल आलमीन,
मुझे भी बना दे किसी दवा का हकीम।
मेरे दिल में हो वो जोश, वो उम्मीद,
मैं भी बनूँ एक डॉक्टर, तेरे क़दमों की भीड़।
**शकील** की दुआ है तुझसे ए खुदा,
मेरी राहों में रोशनी हो, तेरे ही करम से जुड़ा।
मेरे जज़्बे को सजग कर, न थमने वाली उड़ान दे,
तू ही है वो रब, जो मुझे डॉ. बना दे।
तेरी नेमतें बेमिसाल हैं, हर लम्हा है तुझसे रोशन,
तेरे दिए सब तोहफ़े, जीवन को बना देते हैं कुशान।
मेरे हाथों में हो वो हुनर, जो तुझे पसंद आए,
अल्लाह से यह दुआ, मेरा ज़िंदगी का रास्ता सजाए।
साहिरन की राह पर, हर शख्स अपने रंग में हो,
तू जो चाहे, वही मुझसे, तेरे हुक्म से सही हो।
हमें जज़्बे में वो ताकत दे, जो हर मुश्किल से पार कर जाए,
तू ही है वो रब, जो हमें हिम्मत और साहस दे जाए।
**अल्लाह तुझसे दुआ करता हूँ, शकील का ये इरादा,**
मेरे इरादों में तेरी रहमत हो, और हर मंज़िल हो रौशन।
मेरे इरादे को पंख दे, और मेरी मेहनत को नज़रों में सजा,
मेरी दुआ तेरे दर पर है, ऐ रब, यही है शकील की दुआ।
______**नज़्म: खुदाई की नेमतें और दुआ**
अल्लाह की नेमतें अनगिनत, नापा नहीं जा सकतीं,
हर लम्हा ये हम पर बरसतीं, लाजवाब हैं ये सूरतें।
कभी हवाओं में खुशबू, कभी बारिश की बूंदों में,
हर इक नेमत में है सच्ची अल्लाह की दस्तक,
अल्लाह की अज़मत, वो जो करे अपनी मर्जी,
कभी हज़रत आदम को ज़िंदगी का शौंक दिया,
तो कभी हज़रत नूह को एक कश्ती का हुक्म दिया।
कभी हज़रत इब्राहीम को इम्तिहान लिया,
तो कभी हज़रत मूसा को फिरऔन से आज़ादी दिलाई।
ईसा की मोज़िज़ें रहीं, जी उठे मरीज़ों के अंदर,
मुहम्मद (सल्ल.) की उम्मत को बेहतरीन बना दिया,
फिर मीराज का जिक्र आया, हकीकत की तस्वीर सामने आई।
इन तमाम नबियों के कामों की बयाँ,
हमें सिखाते हैं सही राहों का मंज़र।
अल्लाह का रहमाना करम, हर वक्त हम पर है,
इन्हीं नेमतों के सहारे ही चल रहे हैं हम।
कभी हम इन नेमतों को भूल जाते हैं,
ख़ुदा की रहमत से दूर, दुनिया में खो जाते हैं।
लेकिन जब याद आता है तू, हे रब,
तेरी नेमतों की आहट से दिल झूम उठता है।
शकील मांग रहा है तुझसे दुआ,
हे अल्लाह, मुझे भी बना दे एक डॉक्टर, ऐ खालिक, ऐ सैयद!
तू ही है जान और तेरा ही है इंकलाब,
मेरी मेहनत, मेरा इरादा, तेरी रहमत में तब्दील कर दे।
**दुआ:**
"हे अल्लाह, अपनी इन तमाम नेमतों से हम पर और शकील पर अपना करम बरसाना,
हमें अपनी राह पर चलने की तौफीक दे, हमारी मेहनत में तू अपनी मदद डाल दे।
मुझे भी वही इज्जत और शौहरत दे, जो तूने अपने नबियों को दी,
मैं भी उस मंज़िल तक पहुँचूँ, जहाँ हर सख़्स की दुआ पूरी हो।"
**अल्लाह के दीन पर हर शख़्स की जिन्दगी को रौशन कर दे, और हज़रत आदम, हज़रत नूह, हज़रत इब्राहीम, हज़रत मूसा, हज़रत ईसा और हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की राह पर चलने की तौफीक दे।**
_______
खुदाई की नेमतों से तुज़ को फिर क्या चाहिए,
जो खुदा ने तुझे दिया, वह तुझसे न जाए।
हज़रत आदम की हदायत और जन्नत का रंग,
उनकी जोड़ी में हव्वा का प्यार था जो सच्चा संग।
हज़रत नूह की कश्ती में सब ने पाई राहत,
बच गए थे तूफान से, अल्लाह की थी यह दयावत।
मूसा का अता किया गया तौरेत का ज्ञान,
फिरऔन से मुक्ति, यह थी अल्लाह की पहचान।
मूसा के हाथ में था अता किया गया असा,
जिससे समुंदर को दो हिस्सों में किया था वह रसा।
ईसा का मोज़िज़ा, मरीज़ों को देता था सहारा,
अल्लाह की इजाज़त से हुआ था वह चमत्कारा।
अब तू याद कर, शकील तुझे फिर क्या चाहिए,
अल्लाह से तू मांग, तुझे डॉक्टर बनने की राह चाहिए।
उसने कभी न छोड़ा अपनी नेमतों का साया,
तेरे लिए भी है, बस तुझमें इيمان का नूर आया।
खुदा की नेमतें हैं अनगिनत, बेमिसाल,
हम सब पर उसकी रहमतें हैं, कितनी निहाल।
शकील, तू दुआ कर, खुदा से अपना हक़ ले,
तेरे लिए भी वो राहें हैं, बस तू खुदा से जुड़ ले।
खुदा की नेमतों का हम क्या बयान करें,
हर साँस में बसी हैं, कहाँ ये गुमान करें।
आदम को इल्म दिया, हव्वा का साथ दिया,
नूह को तूफान से बचने का नाव दिया।
ऐ रब्बुल इज्ज़त, तुझसे ये दुआ मांगता हूँ,
तेरी राहों में चलूँ, तेरा हर हुक्म मानता हूँ।
मुझे भी इल्म का नूर, अता कर दे रहमदिल,
डॉक्टर बना के मुझे, कर दे मेरा मुकद्दर दिल।
नूह को तूने कश्ती का हुनर बख़्श दिया,
तूफानों से लड़ने का सबक सिखा दिया।
इब्राहीम को तूने खलील का दर्जा दिया,
तेरी राह में कुर्बानी का जज्बा दिया।
मूसा को तूने कलाम का शرف बख़्श दिया,
लाठी से दरिया को दो हिस्सों में बांट दिया।
ईसा को तूने मोज़िज़ा-ए-शिफा बख़्श दिया,
मरीज़ों को राहत, मुर्दों को ज़िंदगी दे दिया।
### नज़्म: **खुदा की नेमतें और दुआएं**
ए रब्बुल इज्जत, तेरी अज़मत का क्या बयान करूं,
हर नेमत का शुक्र, तुझसे कैसे अरमान करूं।
आदम को इल्म का तोहफा मिल जाए,
जन्नत का हर दर खुल जाए।
नूह को तूने कश्ती का सहारा दिया,
हर तूफान में तूने उन्हें किनारा दिया।
इब्राहीम को दोस्ती का मक़ाम मिल जाए,
हर कुर्बानी का बेहतरीन इनाम मिल जाए।
मूसा को तूने कलाम का शरफ दिया,
फिरऔन के जुल्म से उनकी कौम को हक़ दिया।
तौरेत का हर हर्फ़ मिल जाए,
समुद्र के दो हिस्सों में खुदा का जलवा मिल जाए।
ईसा को तूने मोज़िज़ों का अता दिया,
मरीज़ों को शिफ़ा, मर्दों को ज़िंदगी का पता दिया।
बिना पिता के पैदाइश का मुकाम मिल जाए,
हर दर्द का मरहम और सलाम मिल जाए।
मुहम्मद, रहमतुल्लिल आलमीन तेरा करम,
कुरआन का हुक्म, हर अमल का भरम।
मीराज की रात का वो मुकाम मिल जाए,
जन्नत और जहन्नम का दीदार मिल जाए।
तेरे ख्वाजा, तेरे चिश्ती के नाम से,
रूह को मिले सुकून इस मुकाम से।
हर आंसू में एक अमल मिल जाए,
हर गुनाह में तेरा रहम मिल जाए।
शकील की ये दुआ, रब्बे करीम सुन ले,
डॉक्टर बनने का ख्वाब उसे हकीकत मिल जाए।
तेरी नेमतों का हर पन्ना पढ़ने का हक़ मिल जाए,
तेरी रहमतों का हर दर बंद न हो, सब कुछ मिल जाए।
खुदाई की राह में हर मुश्किल हल हो,
तेरी इबादत में हर सवाल का जलवा मिल जाए।
आज़म और ख्वाजा के सदके से रब्ब,
हर बंदे को तेरी रहमत का भरम मिल जाए।
___
जब ज़ुल्म की हदें पार होती हैं,
खुदा की नज़रें सब देखती हैं।
वो जो मस्जिदें गिराते हैं,
अपनी तबाही खुद लाते हैं।
खुदा पाक सब देख रहा है,
हर जालिम पर हुक्म चल रहा है।
वो जलाल जब आएगा,
हर सितमगर मिट जाएगा।"
खुदा का नाम लेकर ये पैग़ाम देते हैं,
मोहब्बत के दिए हर अंधेरे में जलाते हैं।
ख्वाजा का दर वो मील है, जहां सुकून मिलता है,
हर मज़हब का बंदा यहाँ रहमत से मिलता है।
"तेरे दर की मिट्टी भी करामात दिखाती है,
हर ज़ख्म, हर ग़म की दवा ये बनाती है।"
लेकिन देखो, आज ज़माना कैसा बन गया,
मस्जिदें, दरगाहें नफ़रत का निशाना बन गया।
ये जालिम जो आज मज़हब को बेचते हैं,
नफ़रत की आग से सियासत को सेचते हैं।
खुदा के घर को गिराकर सोचते हैं ये,
कि इंसानियत का मक़सद बदल देंगे ये।
"जो ख्वाजा का दर गिराने चले थे,
वो खुद अपनी जड़ें जलाने चले थे।"
"ख्वाजा का पैग़ाम कभी मिट न सकेगा,
नफ़रत का हर ज़हर कभी टिक न सकेगा।"
**ख़ुदा का जलाल**
*बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
***"सदियों से जो गुलशन महक रहा था,
क्यों आज उसकी शराफ़त पे वार हुआ?
ख्वाजा के दर पे जो रौशनी थी,
क्यों उस पर भी अंधेरों का ख़ुमार हुआ?"***
**माज़ी का आईना:**
वो दौर था जब दिलों में मोहब्बत का असर था,
हर शख़्स के लब पर सुकून का सफ़र था।
मस्जिदें, मंदिर, गिरजा और दरगाहें,
सबके लिए था इंसानियत का पैग़ाम।
न मज़हब की दीवारें, न नफ़रत के अलार्म।
**मौजूदा हालात:**
आज जलती हैं मस्जिदें, मिटते हैं निशाँ,
ख़ुदा के घरों पर क्यों ज़ुल्म का समाँ?
अयोध्या की मिट्टी से उठती सदा,
"खुदा देख रहा है, करेगा इंसाफ़ सदा।"
संभल की गूंज, बदायूं का हाल,
हुक्मरानों की चालें अब बेनक़ाब।
***"जो ख्वाजा के दर पर झुका ना कभी,
वो समझेगा क्या मोहब्बत की जुबां?
जो तोड़ता मस्जिद, जो बांटता इंसां,
वो जानेगा क्या खुदा का इम्तिहां?"***
**इंसान की तबाही:**
पहले इंसान था इंसानियत का गुलाम,
आज है वो नफ़रत का एक सस्ता सामान।
जिस दिल में बसी थी मोहब्बत की बातें,
आज वहीं छिपती हैं नफ़रत की रातें।
सियासत के रंग में रंगे हुए सब,
मज़हब के नाम पर बंट गए अब।
**ख़ुदा का जलाल:**
खुदा देख रहा है, सब करतूतें उनकी,
हर दरगाह, हर मस्जिद की हालत वो सुनती।
जब जलाल उठेगा, मिट्टी कांपेगी,
ज़ालिम के इरादे रेत से बह जाएँगे।
***"ख्वाजा का करम है, जो बचाएगा हमें,
उनका दर है रोशनी, जो राह दिखाएगा हमें।
हर पत्थर के पीछे है उसकी निगाह,
हर आह में छुपा है उसका वजूद का गवाह।"***
**हमारा फर्ज़:**
अब वक़्त है कि मोहब्बत का परचम उठाएँ,
ख्वाजा की राह पर हर दिल को चलाएँ।
मस्जिद हो, मंदिर, हो हर दरगाह,
सबसे पहले बने इंसानियत का वाह।
***"अय खुदा, हमें ऐसा सवेरा दिखा,
जहाँ हर मज़हब एक हो, हर दिल साफ़ हो।
जहाँ न मस्जिद गिरे, न मंदिर टूटे,
बस मोहब्बत के दर पर हर इंसान झुके।"***
**आमीन।**
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