ज़िंदगी चंद रोज़ की मेहमानी है,
कर लो सहेरे में तियारी, ये इम्तिहानी है।
क़यामत का दिन आने वाला है,
इंसान, अपने कर्मों का हिसाब देने वाला है।
ऐ इंसान, सुन हमारी फ़रियाद,
ख़ुदा ने दी थी हमें बड़ी नेमतों की सौगात।
मगर तुमने किया हमारा ऐसा हाल,
कि अब हमसे नहीं होता तुम्हारा सवाल।
**आग बोल उठी:**
"मैं थी रोशनी का ज़रिया,
तुम्हारे घरों की चिराग़ों की जिया।
मगर अब मैं बन गई जलती हुई बला,
तुम्हारे लापरवाहियों से हर ओर फैली है सज़ा।
अगर मैं इंसान से बदला लेना चाहूँ,
तो हर चिंगारी से तुम्हारी दुनिया को जलाऊँ।
हर जंगल, हर बस्ती राख में बदल दूँ,
तुम्हारी सोच और लालच का अंत कर दूँ।"
**पानी ने रोते हुए कहा:**
"मैं थी तुम्हारी प्यास बुझाने का जरिया,
नदी, दरिया, समंदर का था मेरा ज़रिया।
मगर तुमने मुझे ज़हर बना दिया,
हर बूँद को गंदगी से भर दिया।
अगर मैं बदला लेना चाहूँ,
तो हर बूँद को तुमसे दूर कर दूँ।
सैलाब से तुम्हारी बस्तियाँ बहा दूँ,
तुम्हारे खेतों को बंजर बना दूँ।"
**ज़मीन ने गहरी सांस ली:**
"मैं थी तुम्हारे रहने का आसरा,
तुम्हारे हर कदम की थी गवाह।
मगर तुमने मेरी छाती चीर डाली,
अपने फायदे के लिए हर हरियाली काट डाली।
अगर मैं बदला लेना चाहूँ,
तो तुम्हें बेघर कर दूँ।
तुम्हारे मकानों को खंडहर बना दूँ,
तुम्हारी हर फसल को रेगिस्तान बना दूँ।"
फिर तीनों ने एक साथ पुकारा,
"ऐ इंसान, संभल जा अभी भी वक़्त है।
हम बदला नहीं लेना चाहते,
मगर हमारी सहनशीलता की हद है।
ख़ुदा ने हमें तुम्हारे लिए भेजा था,
हम पर रहम कर, ये ही ख्वाहिश है।"
**पुकार खत्म हुई, खामोशी छा गई,
क्या इंसान ने सुनी यह आवाज़?
या फिर अपनी ज़िद और लालच में,
अपने ही अंत की लिख दी इबारत?
______**नज़्म: आग, पानी और ज़मीन का इंसान से हिसाब**
*आग की पुकार:*
मैं वो आग हूँ, जो जलाती नहीं थी,
तुम्हारे घरों को रोशन कराती थी।
मगर इंसान, तूने जलाया मुझे,
जंग का शोला बनाया मुझे।
अब क़यामत के दिन, मैं अंगार बनूंगी,
तेरे हर गुनाह को राख कर दूंगी।
*पानी की चीख:*
मैं वो पानी हूँ, जो प्यास बुझाता था,
तुझे ज़िंदा रखने का हक़ अदा करता था।
मगर तूने मुझे ज़हर बना दिया,
नदियों को कूड़े से भर दिया।
अब मैं सैलाब बनकर आऊंगा,
तेरी बस्तियों को बहा ले जाऊंगा।
*ज़मीन की फरियाद:*
मैं वो ज़मीन हूँ, जो तेरी माँ थी,
तुझे अनाज देती थी, हरियाली की गवाही थी।
मगर तूने मेरी छाती चीर दी,
मुझ पर जख्मों की बारिश कर दी।
अब क़यामत के दिन, मैं फट जाऊंगी,
तेरे हर जुल्म का हिसाब लाऊंगी।
*तीनों का एकसाथ ऐलान:*
आग कहेगी, जलाकर सिखा दूंगी,
पानी कहेगा, बहाकर दिखा दूंगा।
ज़मीन बोलेगी, दफ्न करके सुला दूंगी,
खुदा का हुक्म होगा, इंसाफ दिखा दूंगी।
*खुदा की आवाज़:*
"इंसान, ये वो दिन है जब हिसाब होगा,
तेरे हर गुनाह का जवाब होगा।
आग, पानी, और ज़मीन मेरे गवाह हैं,
आज से तेरा हर रास्ता सज़ा है।"
यह नज़्म याद दिलाती है कि इंसान को कुदरत की कद्र करनी चाहिए, वरना क़यामत का दिन दूर नहीं।
समुद्र
समुद्र की गहरी नज़रें, दिलों को छू जाती हैं,
हर लहर में राज़, एक नई राह दिखाती हैं।
समुंदर की लहरों में एक ख़ास बात है,
हर लहर में छिपी एक नई रात है।
तूफ़ान भी आए तो, फिर सुकून आता है,
समुंदर की गहराई, इंसान की तरह सच्चाई छुपाता है।
समुद्र में लहरों की तरह इंसान भी बदलता है,
हर चुनौती के बाद, नया रूप ढालता है।
समुद्र का आकर्षण, जैसे दिल को बांध लेना,
इंसान की रुहानी राह में नई रोशनी का देना।
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Hii
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