घर की नज़्म
यहाँ की हर खामोशी भी एक भाषा बोलती है,
माँ की हंसी में पूरी कायनात समाती है।
मकान न हो, तो इंसान कहाँ चैन से जी सकता है,
यह वही स्थान है जहाँ इंसान खुद को पा सकता है।
यह घर ही है जो हर सर्दी-गर्मी से बचाता है,
इसी घर में तो हर इंसान अपना सपना सजाता है।
इंसान को हर कदम पर, अपना घर मिलेगा।
ये घर नहीं सिर्फ दीवारों का ढांचा है,
यहाँ जज़्बात, रिश्ते और प्यार का रंग चंछा है।
मकान है वो स्थल, जहां चैन से सोते हैं,
इंसान की मेहनत, यहाँ फलते हैं।
द्वार से बाहर की दुनिया से, यहाँ सुरक्षा मिलती है,
घर की छांव में ही तो सच्ची राहत मिलती है।
हर दीवार में छुपी है, इक नई कहानी,
यहाँ के हर कोने में छुपी है इंसान की निशानी।
ये वही जगह है जहाँ इंसान को पहचान मिले,
मेहनत का फल और सच्ची ख़ुशियाँ यहाँ मिलें।
एक मकान नहीं, ये तो एक जन्नत का रूप है,
जहाँ दिल की शांति और घर का प्यार हो छुपा।
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