**नज़्म: हवा की बातें**
हवा में उड़ी, जैसे कोई ख्वाब था,
दिल में बसी, जो एक अजीब आंशिक आलम था।
चली थी रात में, एक तूफान सा,
घर की छत पर, टूटते थे हर एक सामान सा।
तेज हवाओं में खो जाने का खौफ था,
लेकिन जिंदगानी में, वो एक ख्वाब सा हौसला भी था।
वो हवा जो कभी हमें ताजगी देती थी,
अब वही हवा, हमें नज़रों में हर बार चुराती थी।
पेड़ों के बगैर ये हवा बस आंधी बन जाती,
मिट्टी के ऊपर से जब ये कटा करती जाती।
आसमां में जब ये बवंडर लाती,
इंसान की तरह यह हवा भी अपने रास्ते बदल जाती।
लेकिन फिर भी, हवा में उम्मीद छुपी है,
इंसान के दिल में भी एक ताजगी रची है।
यह हवा कभी झोंके सी आती है,
तो कभी तूफान बनकर सब कुछ पलट देती है।
हमसे सीख, ये हवा खुद को समेट लेती है,
जो बदल जाए, वही सच्चाई बन जाती है।
हवा से बातें करता है, दिल का हर अफसाना,
ख्यालों में बसती है, जैसे कोई परवाना।
सफर में साथ देती है, ये हर मोड़ पे जाना,
तेज़ रफ्तार चलती है, कभी बन जाए दीवाना।
कभी सुकून देती है, जैसे कोई तराना,
कभी तूफान लाती है, बनकर कोई बयाना।
दरख्तों को हिलाती है, हर क़तरा जो ठिकाना,
फसलों को सहलाती है, ये धरती का नज़राना।
तूही हर खुशी का राज़, तूही हर ग़म पुराना,
तेरी नेमतें हैं लाखों, ऐ हवा, तेरा तराना।
हवा तू है एक जीवन का प्याला,
ऑक्सीजन से भरती है हर तिनका, हर हाला।
तेरे बिना, सासों का सफर अधूरा,
तेरे साथ ही तो मिलता है हर ह्रदय को पूरा।
तेरी बहकती लहरें मौसम को सिखाती हैं,
बारिश की बूंदों को तुझसे ही मिलाती हैं।
तू जब आती है, धरती को सहारा देती है,
पानी से लेकर खेतों को, ताजगी दे जाती है।
No comments:
Post a Comment