Sunday, 26 October 2025

तौबा करने की तैयारी के ऊपर नज़्म


अगर ऐलान हो जाए कि कल क़यामत है,
तो सन्नाटा भी सज्दे में गिर जाए, ये हिकायत है।

जो भूल गए थे मस्जिद का रास्ता कभी,
वो आँसुओं में डूब कर अब इबादत करें सभी।

हर ज़ुबां पर तौबा, हर दिल में हया होगी,
हर निगाह में रौशनी-ए-रहमत की दुआ होगी।

वो कुरआन जो बस सजावट था अलमारी का,
अब बनेगा नूर-ए-राह हमारी ज़िंदगी का।

जमा किया हुआ माल सब सदक़ा बन जाएगा,
रूह कहेगी — “काश, पहले समझ आया होता, ऐ खुदा!”

मगर उस वक़्त का अफ़सोस कोई काम ना आएगा,
जब मौत मुस्कुरा कर दरवाज़ा खटखटाएगा।

इससे पहले कि लोग कहें — “फलाँ का इंतिक़ाल हो गया”,
आओ, तौबा कर लें, रूह को हाल-ए-सुकून हो गया।

नमाज़ को अपनाएं, सज्दे को साथी बनाएं,
किसी का दिल दुखाया है तो उससे माफ़ी माँग आएं।

कौन जानता है किस पल क़ब्र का बुलावा आए,
कौन जानता है कब मालिक-ए-मौत हमें अपने पास बुलाए।

वो नींद जो वहाँ होगी, बिना करवट, बिना आवाज़ की,
वो तन्हाई जो मिलेगी, बिना किसी हमराज़ की।

आज का वक्त है, इसे रौशन बनाओ,
अपने दिल में ख़ुदा की यादों का चिराग़ जलाओ।

क्योंकि मौत से पहले जो पल मिल जाए,
वो ही ज़िंदगी का असल इम्तिहान कहलाए।
....
(ऐलान

मतलब: घोषणा, किसी चीज़ का खुलासा करना।

लोकल अंदाज़: “अलान-ए-हकीकत” जैसा, जैसे सबको पता चले कि कोई बड़ी बात होने वाली है।

क़यामत

मतलब: आख़िरी दिन, जब सबको उसके कर्मों का हिसाब देना होगा।

लोकल अंदाज़: “अख़िरी हिसाब-नुक़्ता” या “दुनिया का आख़िरी मुक़ाबला”।

सन्नाटा

मतलब: चुप्पी, खामोशी, कोई आवाज़ ना होना।

लोकल अंदाज़: “खामोशी की वो महफ़िल” जो सब कुछ रोक दे।

सज्दे में गिर जाना

मतलब: ईमानदारी और डर-ए-ख़ुदा में झुकना, अल्लाह के आगे सर झुकाना।

लोकल अंदाज़: “रूह की इबादत में सर झुकाना, दिल से तौबा करना।”

हिकायत

मतलब: कहानी, उदाहरण।

लोकल अंदाज़: “इक किस्सा” जो सबक़ सिखाता है।

पूरा मतलब

इस पंक्ति का मतलब है:
अगर सच में कल क़यामत का ऐलान हो जाए, तो इतनी गहरी खामोशी छा जाएगी कि हवा में भी सज्दा करने की सुकून भरी आवाज़ गूँज उठेगी, और यह सिर्फ़ कहानी या किस्सा-ए-हकीकत है जो हमें चेतावनी देता है।

यानी इंसान की ताक़त और डर दोनों सामने आ जाएँगे, और हर दिल खामोश होकर अल्लाह की रहमत की तरफ़ झुकेगा।)
ये नज़्म सिर्फ़ मौत का डर नहीं, बल्कि ज़िंदगी का पैग़ाम है।
ये हर दिल को जागने और सुधारने की दुआ देती है।

इसमें कहा गया है कि कल क़यामत आए या न आए,
वक़्त का हर पल क़ीमती है, हर लम्हा ईमान की रोशनी में बदलो।

जो ग़लतियाँ हमने कीं, उन्हें सुधारो,
जो लोगों के दिल दुखाए, उनसे माफी मांगो,
जो नमाज़ भूले, अब सज्दों में डूब जाओ।

ये नज़्म दुनिया और आख़िरत की हकीकत से आगाह करती है।
क़ुरआन, नमाज़, इबादत, और सदक़ा — ये सिर्फ़ रिवाज़ नहीं, ज़िंदगी की राह हैं।

हर अल्फ़ाज़ में हिदायत और तौबा की गूँज है,
हर बिम्ब में रूह को चमकाने की रोशनी है।

मूल मक़सद ये है:
कल के इंतजार में न बैठो, आज ही सुधर जाओ।
हर पल में ईमान की खुशबू बिखेरो, हर दिल में दुआ जगा दो।

इस नज़्म की कलम हमें याद दिलाती है कि:
मौत को कोई नहीं रोक सकता, पर ज़िंदगी को खुद बेहतर बना सकते हैं।
इसलिए आज के काम को कल पर मत टालो,
आज का सजदा, आज की तौबा, आज का सदक़ा — कल के लिए फ़रिश्ता बन जाए।

खुलासा:
ये नज़्म सिर्फ़ चेतावनी नहीं, बल्कि प्रेरणा है।
ये कहती है कि इंसान की असली ताक़त उसकी रूहानी तैयारी और अच्छाई में छिपी है।





..                       क़यामत की तैयारी
कल की क़यामत का डर नहीं, आज की ग़फलत का है डर,
कहीं देर ना हो जाए, रब की रहमत से पहले सफ़र।


न जाने कब मौत आ जाए, किस मोड़ पे ज़िंदगी छूट जाए,
हर सज्दा आख़िरी समझ, शायद अब रहमत उतर आए।


जो अलमारी में रखा है क़ुरआन, उसे दिल में उतार लो,
अब भी वक़्त है, अपने सज्दों को दुबारा सँवार लो।


माल औलाद का नशा छूट जाएगा उस ज़मीन के नीचे,
बस अमल ही काम आएंगे, उस तन्हा क़ब्र की सींचे।


आज ही तौबा कर लो, कल का कोई भरोसा नहीं,
रूह के सफ़र में साथ कोई साया नहीं।


ज़िंदगी चंद साँसों की मेहमान है,
हर पल आख़िरत का इम्तिहान है।


जिस दिल में खुदा की याद बस जाए,
वो दिल कभी क़ब्र में भी नहीं घबराए।


जब कफ़न ओढ़ोगे, तब एहसास होगा,
कि दुनिया एक ख्वाब था — जो ख़त्म हुआ।


अब्बा की नसीहत याद रखो — “नमाज़ कभी मत छोड़ना”,
क़यामत में वही नमाज़ तुम्हारा सहारा होगी।


हर सज्दा एक दरवाज़ा है जन्नत का,
बस उसे खोलने की देर है, तौबा का इरादा कर।


मौत भी क्या ख़ूबसूरत चीज़ है,
जब रूह खुदा के करीब होती है।


क़यामत की तैयारी अमल से होती है,
ज़ुबान से नहीं, दिल की सफ़ाई से होती है।


जो तौबा में रोया, वो क़यामत में मुस्कुराएगा,
जो आज झुका, वही कल उठाया जाएगा।


नसीहत वही जो दिल तक जाए,
इबादत वही जो रूह में समाए।


क़ब्र में तन्हा रात होगी,
बस सज्दे की याद साथ होगी।



संदेश (Message / پیغام):

जिंदगी चंद पल की मेहमान है, मौत हर वक्त दस्तक दे सकती है।

इसलिए आज ही तौबा, नमाज़ और इबादत शुरू करो, क्योंकि कल की कोई गारंटी नहीं।

जो चीज़ें अलमारी में सिर्फ़ सजावट थीं, जैसे कुरआन या अच्छाई के काम, उन्हें दिल और रूह में उतारो, ताकि अमल का असर दिखे।

रूहानी रंग (Spiritual Essence / روحانی رنگ):

हर सज्दा और तौबा रूह को नूर दे, और आख़िरत के लिए तैयारी बन जाए।

अफ़सोस और पछतावा केवल आख़िरत में काम आएगा, इसलिए आज का हर पल इबादत और नेक काम में लगाओ।

अमल की अहमियत (Importance of Action / عمل کی اہمیت):

सिर्फ़ सोचने या अफ़सोस करने से कुछ नहीं होगा।

जो माल, समय और उम्र बची है, उसे सदक़ा, मदद और नेक कामों में लगाओ, क्योंकि वही सच्ची पूंजी है।

 शायरी और अलंकार का असर (Poetic & Figurative Charm / شاعری اور الفاظ کا اثر):

मौत मुस्कुरा कर दरवाज़ा खटखटाएगा, क़ब्र की तन्हाई, रूह का नूर-ए-राह — ये सब अलंकार और बिम्ब रचना को ज़िंदगी और आख़िरत के बीच जोड़ते हैं।

उर्दू अल्फ़ाज़ जैसे “हिकायत”, “रौशनी-ए-रहमत”, “नूर-ए-राह”, “सफर”, “साजदा” आदि से भावनाओं की गहराई बढ़ती है और पाकिस्तानी अंदाज़ महसूस होता है।

 कुल असर (Overall Impact / کل اثر):

नज़्म पाठक/सुनने वाले को आज ही तौबा, नमाज़ और नेक कामों की तग़ीद करती है।

यह मौत और क़यामत का डर नहीं, बल्कि अमल और रूहानी सजगता का प्रेरक संदेश है।

शब्द और तुकबंदी दोनों मिलकर मन में दृढ़ प्रभाव छोड़ते हैं, जिससे रूहानी जागरूकता पैदा होती है।
.....

अगर ऐलान हो जाए कि कल क़यामत है,
तो क्या हम तैयार हैं, या ग़फ़लत में बेकरार हैं?

जो मस्जिदें वीरान थीं, वो भर जाएँगी रातों-रात,
हर आँख में आँसू होंगे, हर ज़ुबां करेगी नात।

जो क़ुरआन सजावट था, अब नूर-ए-राह बन जाएगा,
जो भूला था सज्दा, वो फिर से याद आएगा।

मगर उस वक़्त की तौबा का क्या फ़ायदा होगा,
जब मौत सामने खड़ी, और कोई मौक़ा ना होगा।

अब भी वक़्त है, दिल को साफ़ कर लो,
गुनाह की धूल झाड़ो, खुदा को याद कर लो।

हर साँस में तौबा का जिक्र बसाओ,
हर पल में रहमत की खुशबू फैलाओ।

माल औलाद सब यहीं रह जाएगा,
सिर्फ़ अमल साथ सफ़र में आएगा।

ज़िंदगी तो बस कुछ साँसों की मेहमान है,
हर लम्हा आख़िरत का इम्तिहान है।

क़ब्र की तन्हा रात में, कोई आवाज़ नहीं होगी,
बस तेरे सज्दों की याद, तेरी राहत होगी।

जो आज झुक गया, वही कल उठाया जाएगा,
जो रोकर तौबा करेगा, वो हँसकर जन्नत पाएगा।

मौत का बुलावा कब आए, कौन जाने,
हर दिल को अब खुदा से जोड़ने का बहाना बनाएँ।

आओ, आज ही अपने रब को मना लें,
इससे पहले कि कल का सूरज बिना हमें बताए ढल जाए।

क़यामत की तैयारी अमल से होती है,
ज़ुबां से नहीं, दिल की सफ़ाई से होती है।

।।1️⃣ कल का कोई भरोसा नहीं
इंसान चाहे कितना भी दौलत और शोहरत जुटा ले,
मौत कभी भी आ सकती है, और वही असली सच है।

2️⃣ अमल ही असली पूंजी है
जो हमने दिल में तौबा, नमाज़, और इबादत जमा की,
वही हमारे साथ आख़िरत में जाएगी।

3️⃣ माफ़ी और इंसानियत का महत्व
जो दिल दुखाया या ग़लत किया,
आज ही माफ़ी माँग लो — कल अफ़सोस काम नहीं आएगा।

4️⃣ दुनिया का मोह क्षणभंगुर है
धन-दौलत, शोहरत, और सांसारिक लालच सब यहीं रह जाएगा,
सिर्फ़ नेक इरादे और अमल ही साथ जाएंगे।

5️⃣ तैयारी का समय अभी है
कल का खुलासा कोई नहीं जानता,
इसलिए हर दिन खुदा की याद, सज्दे और सदक़े से रोशन करो।

6️⃣ रूहानी जागरूकता ज़रूरी है
इंसान की असली तसल्ली और सुख उसकी रूह की सफ़ाई में है,
ना कि दुनिया की चमक-धमक में।

7️⃣ हर पल का एहसास जरूरी है
मौत का बुलावा और क़यामत का डर हमें यही सिखाते हैं कि,
हर पल तौबा, नमाज़ और नेक इरादों से जीना चाहिए।


शायरी ये बताती है कि मौत कभी भी आ सकती है, और अगर हम अपनी ज़िंदगी में अच्छाई, ईमानदारी, इबादत, और तौबा नहीं अपनाते, तो बाद में अफ़सोस होगा।

“अगर ऐलान हो जाए कि कल क़यामत है…” → ये सिर्फ़ एक तख़्लीफ़ वाली चेतावनी है।

मस्जिदें भर जाएँगी, लोग रो-रो कर सज्दा करेंगे → इंसान अक्सर आख़िरी समय में ही याद करता है।

जमा किया हुआ माल सदक़ा में चला जाएगा → दुनिया की दौलत का कोई स्थायी फायदा नहीं।

कुरआन अलमारी में पड़ा रहा → ईमान की उपेक्षा करने का अफ़सोस।

कुल मिलाकर: ज़िंदगी में अच्छाई, नमाज़, तौबा और दूसरों से माफ़ी मांगना आज ही शुरू करना चाहिए।
“कल का इंतजार मत करो, आज से सुधारो, तौबा करो और अच्छे कर्म अपनाओ, क्योंकि मौत कभी भी आ सकती है।”।

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