हर चीज़, हर रिश्ता हमेशा साथ नहीं रहता,
इसलिए हालात को अपना आदी मत बनने दो।
आज में जीना सीखो,
कल का क्या पता — हम हों या न हों...
ज़िन्दगी न किसी के आने से रुकती है,
न किसी के जाने से —
दुनिया को बस दुनिया ही समझो,
क्योंकि न ये दुनिया रहने वाली है,
न हम यहाँ हमेशा रहने वाले हैं...
ज़िन्दगी में मुश्किलात आती रहती हैं,
क्योंकि ज़िन्दगी का नाम ही इम्तिहान है।
बस सब्र करना सीखो,
छोटी-छोटी खुशियों में खुश रहना सीखो...
हर हाल में अलहमदुलिल्लाह कहो,
क्योंकि जो मिला है,
वो बहुतों से बेहतर मिला है...बेटा… याद रखो,
हर चीज़, हर रिश्ता हमेशा साथ नहीं देता।
कभी वक्त बदल जाता है,
कभी लोग बदल जाते हैं,
और कभी हमारी ज़रूरतें बदल जाती हैं…
इसलिए हालात के इतने आदी मत बनो,
कि जब हालात बदलें तो तुम टूट जाओ।
आज में जीना सीखो —
क्योंकि कल का कोई यक़ीन नहीं,
कौन जाने, कल हम हों या न हों…
ज़िन्दगी न किसी के आने से ठहरती है,
न किसी के जाने से रुकती है।
ये कारवां चलता रहता है —
बस याद रखना,
दुनिया को दुनिया ही समझो।
न ये हमेशा की है,
न हम यहाँ हमेशा रहने वाले हैं।
मुश्किलें आएंगी,
कभी आँखों में आँसू लाएँगी,
कभी दिल में दर्द छोड़ जाएँगी…
मगर यही तो ज़िन्दगी है बेटा —
कभी मुस्कुराहट, कभी इम्तिहान।
सीखो सब्र करना,
सीखो शुक्र करना।
हर हाल में अलहमदुलिल्लाह कहो,
क्योंकि जो मिला है,
वो बहुतों को नसीब भी नहीं हुआ।
और जब कभी दिल उदास हो जाए —
तो याद रखना,
तेरा रब तुझसे बेइंतिहा मोहब्बत करता है…
मगर आँसुओं में भी खुद को झुका नहीं मैं।
हर रंज, हर ग़म तेरी याद में पाया,
मगर तेरे दर से कभी रुका नहीं मैं।
जो वक़्त गुज़र गया, उसे पलट न सका,
जो खो गया, उसे कभी पकड़ न सका।
अब समझा हूँ कि राहत किसी चीज़ में नहीं,
सुकून बस तेरे सज्दे में मिल सका।
लोग कहते हैं कि तौबा के दरवाज़े बंद हैं,
मगर मेरा रब तो “अत-तव्वाब” है – रहमत से भरा है।
वो हर गिरा हुआ उठाता है अपने करम से,
और हर टूटा हुआ जोड़ता है अपनी नज़र से।
मैंने भी बहुत बार खोया है खुद को,
नफ़्स की राहों में, झूठी उम्मीदों में।
अब थक कर आया हूँ तेरी दहलीज़ पर,
कि अब बस तू ही कर दे मेरी ताबीर अमल की नींदों में।
ये दिल अब भी तुझसे ही उम्मीद रखता है,
तेरे फ़ज़ल से ही अपनी राह ढूँढता है।
अगर तू चाहे तो पत्थर भी फूल बन जाएँ,
तेरी नज़र पड़े तो काफ़िर भी अब्द बन जाएँ।
ऐ अल्लाह! तेरी रहमत से बड़ी कोई चीज़ नहीं,
तेरे माफ़ करने से बढ़कर कोई सलीक़ा नहीं।
मैं टूटा हुआ, गुनहगार, मगर उम्मीद वाला बंदा हूँ —
“अब तू ही मसीह बन मेरे दिल का, मैं बस तेरे फ़ैज़ का तलबगार बंदा हूँ।”
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