ज़िंदगी का सफ़र अगर लंबा भी हो,
रास्ते अगर मुश्किल भी लगें,
तो इंसान को अपने इरादों से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।
इस नज़्म का असल पैग़ाम ये है कि —
"हारने वाला वो नहीं होता जो गिरता है,
बल्कि वो होता है जो गिरकर उठता नहीं।"
जब इंसान अपने अंदर की ख़ुदी (self-belief) को पहचान लेता है,
तो वो अपने अंदर अल्लाह की क़ुदरत (power) को महसूस करने लगता है।
फिर हर मुश्किल उसे एक इम्तिहान (test) लगती है,
ना कि कोई रोक।
“जो ठोकरें मिलीं, वो राह का हुस्न हैं…” —
इस मिसरे में सिखाया गया है कि
हर दर्द, हर तकलीफ़, हर नाकामी —
असल में एक सबक (lesson) है जो इंसान को मज़बूत बनाती है।
“लरज़ती राहों में सब्र का दीया जलाए रख…” —
मतलब ये कि जब हालात डगमगाने लगें,
जब लोग साथ छोड़ दें,
तो सब्र और यक़ीन (faith) को बुझने मत दो।
वो ही दीया है जो अंधेरे में भी रौशनी बनता है।
“तेरी मेहनत में ही इम्तियाज़ तेरी है…” —
इस मिसरे से नज़्म का निचोड़ निकलता है —
इंसान की असली पहचान (identity) उसकी मेहनत और लगन है,
न कि उसका नाम या दौलत।
“हर जंग में जीत — सरताज तेरी है।”
यानी अगर इरादे सच्चे हों,
मेहनत दुआ बन जाए,
तो ज़िंदगी की हर जंग में क़ामयाबी तेरे कदम चूमेगी।