"हर मंज़िल तेरे कदमों की जद में हो सकती,
बस इरादों में तेरे पुख़्तगी होनी चाहिए।
ख़ुदा भी मदद करता है चलने वालों की,
जो साहिल के डर से कश्ती डुबोते नहीं।"
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तर्जुमा और व्याख्या:**
पहला शेर:
हर मंज़िल तेरे कदमों की जद में हो सकती,
*बस इरादों में तेरे पुख़्तगी होनी चाहिए।
इस शेर में इंसान को उसकी काबिलियत और इरादे की ताकत का एहसास दिलाया गया है। इसका मतलब यह है कि कोई भी मंज़िल, चाहे वह कितनी भी मुश्किल क्यों न हो, इंसान की पहुंच के अंदर आ सकती है, बशर्ते उसके इरादे मजबूत और अटल हों। "पुख़्तगी" का मतलब यहाँ मजबूत और ठोस इरादों से है।
दूसरा शेर:
ख़ुदा भी मदद करता है चलने वालों की,
जो साहिल के डर से कश्ती डुबोते नहीं।
यह शेर अल्लाह के तवक्कुल और इंसान की हिम्मत पर जोर देता है। इसका मतलब है कि जो लोग हिम्मत नहीं हारते और अपने डर से समझौता नहीं करते, अल्लाह उनकी मदद करता है। साहिल (किनारा) का डर यहाँ उन मुश्किलों और बाधाओं की तरफ इशारा करता है, जो अक्सर हमें रोक देती हैं।
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लेसन और इंस्पिरेशन:
1. इरादों की अहमियत:
मज़बूत इरादे ही किसी भी मुश्किल को आसान बना सकते हैं। इसीलिए हमेशा अपने इरादे को साफ और मज़बूत रखें।
2. हिम्मत और तवक्कुल (भरोसा):
ज़िंदगी में हर इंसान को कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। मगर जो लोग हिम्मत नहीं हारते और अल्लाह पर यकीन रखते हैं, उन्हें कामयाबी मिलती है।
3. डर पर काबू:
डर को अपनी ताकत पर हावी न होने दें। डर को काबू में करके आगे बढ़ने का जज्बा ही असली जीत है।
नसीहत:
यह शायरी हमें यह सिखाती है कि इंसान के लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं, बशर्ते वह खुद पर यकीन रखे, मेहनत करे और अल्लाह से मदद मांगे। खुदा पर तवक्कुल और अपने इरादों की पुख़्तगी ज़िंदगी की हर मुश्किल को आसान बना सकती है।
इल्म-ओ-हिकमत का दरिया बहाओ,
फ़िक्र-ओ-तदब्बुर से नूर जलाओ।
ज़हानत को अपना साथी बनाओ,
जहालत से खुद को बचाओ।
ख्वाबों की ताबीर ( में रंग भरो,
ज़िंदगी के हर पल को शौक से संवारो।
शब्द और उनका मतलब:
इल्म (अरबी): ज्ञान, शिक्षा।
हिकमत (अरबी): बुद्धिमानी, समझदारी।
फ़िक्र (अरबी): चिंता, सोच।
तदब्बुर (अरबी): चिंतन, गहराई से सोचना।
ज़हानत (अरबी): बुद्धि, मस्तिष्क की क्षमता।
जहालत (अरबी): अज्ञानता, शिक्षा का अभाव।
ताबीर (उर्दू): स्वप्न की व्याख्या, किसी ख्वाब को हकीकत बनाना।
शायरी का विस्तार:
यह शायरी इल्म और तालीम की अहमियत को बयान करती है। इसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि इंसान को अपनी सोच-समझ (फ़िक्र) और चिंतन (तदब्बुर) को निखारना चाहिए। इल्म और हिकमत वह ताकत है, जो इंसान को अज्ञानता (जहालत) के अंधेरों से निकालकर रौशनी (नूर) की तरफ ले जाती है।
यह शायरी ज्ञान (इल्म) और समझ (हिकमत) के महत्व को उजागर करती है, और यह हमें बताती है कि हमारे जीवन में सफलता और खुशी पाने के लिए हमें ज्ञान और विचारशीलता की ओर रुख करना चाहिए।
1. इल्म-ओ-हिकमत का दरिया बहाओ
इसका अर्थ है कि हमें अपने जीवन में ज्ञान और समझ की निरंतर धारा बनानी चाहिए। जैसे दरिया का पानी निरंतर बहता है, वैसे ही हमारी सोच और समझ का प्रवाह भी निरंतर बढ़ना चाहिए।
2. फ़िक्र-ओ-तदब्बुर से नूर जलाओ
इस पंक्ति में फ़िक्र (चिंता) और तदब्बुर (गहरे विचार) को नूर (रोशनी) में बदलने की बात की जा रही है। इसका मतलब है कि हमें अपनी सोच को गहरे और सकारात्मक तरीके से विकसित करना चाहिए, ताकि हमारी ज़िन्दगी में रोशनी आए और हम सही रास्ते पर चल सकें।
3. ज़हानत को अपना साथी बनाओ
ज़हानत (चतुराई) को अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए। इसका अर्थ है कि हमें अपने दिमाग और सोच को तेज़ और कुशल बनाना चाहिए, ताकि हम अपने हर काम को सही तरीके से कर सकें।
4. जहालत से खुद को बचाओ
यह पंक्ति हमें यह सिखाती है कि हमें अज्ञानता (जहालत) से बचना चाहिए, क्योंकि यह हमारी प्रगति में रुकावट डालती है। अज्ञानता से दूर रहकर हम अपने जीवन को सही दिशा में मोड़ सकते हैं।
5. ख्वाबों की ताबीर में रंग भरो
हमारे सपनों की ताबीर (अर्थ और उद्देश्य) में रंग भरने की बात की जा रही है, जिसका मतलब है कि हमें अपने ख्वाबों को सच करने के लिए मेहनत करनी चाहिए और उन्हें वास्तविकता में बदलने का प्रयास करना चाहिए।
6. ज़िंदगी के हर पल को शौक से संवारो
इस पंक्ति का संदेश है कि हमें अपनी ज़िंदगी के हर पल को उत्साह और प्यार से जीना चाहिए। जीवन के हर अनुभव को एक अवसर के रूप में देखना चाहिए और उसे अच्छे से बिताना चाहिए।
इस शायरी का मूल संदेश यही है कि हम अपने जीवन में ज्ञान, समझ और सोच को बढ़ाएं, ताकि हम अज्ञानता से बच सकें, अपने सपनों को साकार कर सकें, और जीवन को पूरी तरह से जी सकें।
**रूह:**
_“रूह का नूर है अल्लाह का करम,
यह रब का हुक्म है, इससे चलता है जनम।
इसकी हकीकत को न समझा कोई,
रब का है रहस्य, बस उसकी है रोशनी।”_
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**आखिरत:**
_“कर्मों का हिसाब होगा, हर बात का जवाब होगा,
जन्नत या जहन्नम, वहीं सबका मुकाम होगा।
दुनिया के अमल ही आखिरत को बनाएंगे,
सच्चाई और इबादत से राहें रोशन पाएंगे।”_
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**जिस्म:**
_“यह जिस्म है अमानत, इसे संभालो प्यारे,
हराम से बचो, करो हलाल के सहारे।
इबादत से इसे सजाओ, साफ-सुथरा रखो,
रब के दिए इस तोहफे का हक अदा करो।”_
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**नसीहत:**
_“रूह, जिस्म और आखिरत की बात बड़ी है गहरी,
हर मुसलमान के लिए हैं ये बातें बेहद सुनहरी।
दुनिया को मेहनत से गुजारो और आखिरत को सजाओ,
रब के रास्ते पर चलो, नेकी की राह अपनाओ।”_
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