Monday, 9 December 2024

नज़्म: दिन


दिन का उजाला, दीन का सहारा,
हर सुबह का सूरज, तेरा नज़ारा।
दिन जो चमकता, तेरी रहमत से,
दीन जो सम्हलता, तेरी बरकत से।

दिन की रोशनी में, तेरा करम है,
दीन के गरीबों पे तेरा रहम है।
दिन बन जाए इबादत का गुलिस्तां,
दीन संभाले हर टूटे आशियां।
दिन और दीन, दोनों तेरे निशां,
तू है जहां, रोशनी का मकां।
दिन-ए-जहां में तेरा जलवा है,
दीन-ए-गरीब का तू ही दवा है।

दिन के मालिक, दीन के आसरा,
तेरे ही दर पे झुका हर सवेरा।
दिन और दीन, एक जैसे तेरा नाम,
हर राह में तेरा ही सलाम।

जब रोशनी से चमका दिन,
खुदा के नूर का था यह दिन।
हर सिम्त बिखरी थी बरकतें,
करम का आया यह हसीं दिन।

दीन के राह पे जो चला,
गरीब का हाल जिसने समझा।
खुदा ने उसके दिल में रखा,
दुनिया का सबसे ऊंचा दर्जा।

दिन भी उसका, दीन भी उसका,
हर हाल में वही मसीहा।
गरीब का सहारा बनता है,
हर दिन उसकी रहमत बरसता है।

खुदा के नाम से जुड़ा है दिन,
दीन में है वही पाक यकीन।
दिन-ओ-दीन को एक कर दिया,
खुदा ने अपने करम से नवाज़ दिया।



दिन वो था, जब रौशनी बिखेरी,
ख़ुदा की रहमत ने राहें सँवरी।
दीन के गरीबों पर करम हुआ,
हर दिल में ईमान का नूर हुआ।

दिन भी वो, जब साया तेरा,
हर ग़म को मिटाए, हर दर्द का चेरा।
दीन के गरीबों पर रहम दिखा,
रोटी का टुकड़ा भी अमन सिखा।




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