Wednesday, 23 April 2025

बहुत ही गहरी और सच्ची बात कही आपने। ये बात सिर्फ घर की नहीं, पूरी समाज और इंसानियत पर लागू होती है।"अगर गोश्त बेकार हो जाए तो नमक बचा लेता है,लेकिन अगर नमक ही बेकार हो जाए तो क्या चीज उसे बचाएगी?"यानी कि अगर समाज में बुराई आ जाए, तो अच्छाई उसे सुधार सकती है। लेकिन अगर अच्छाई की पहचान रखने वाले लोग ही बिगड़ जाएं — जैसे मां-बाप, बड़े भाई, उस्ताद, या रहनुमा — तो फिर किससे उम्मीद की जाए?आपका उदाहरण कि घर में पांच भाई हों और बड़े भाई पर जिम्मेदारी हो — यही तो जिंदगी की हकीकत है। छोटे भाई बहक भी जाएं, तो बड़े की नजर, उसकी समझ और उसकी मेहनत से उन्हें सुधारा जा सकता है। मगर अगर बड़ा खुद ही रास्ता भटक जाए — तो पूरा घर डगमगाने लगता है।कुछ शेर इस बात को और गहराई से समझाते हैं:"चराग़ खुद ही अगर हवा से लड़ना भूल जाए,तो अंधेरे को कौन रोकेगा?""जो नमक की तरह ज़ख़्म पर मरहम रखते थे,आज वही ज़ख़्म बन बैठे हैं…"यह एक संदेश है उन सभी के लिए जो ज़िम्मेदारी के ओहदे पर हैं — घर में हों, समाज में हों, या मुल्क में — कि उनका किरदार सिर्फ उनका नहीं, दूसरों की राह भी तय करता है।अगर आप चाहें तो मैं इस सोच को लेकर एक छोटी सी नैतिक कहानी या नज़्म भी लिख सकता हूँ — बच्चों और बड़ों दोनों को समझ में आने वाली। चाहें तो बताइए।

"अगर गोश्त खराब हो जाए, तो नमक उसे संभाल लेता है, लेकिन अगर नमक ही खराब हो जाए तो उसे कौन ठीक करेगा?"

इसका मतलब है कि अगर समाज में आम लोग बिगड़ जाएं, तो अच्छे लोग उन्हें सुधार सकते हैं। लेकिन अगर वही अच्छे लोग (जो नमक की तरह हैं) खुद बिगड़ जाएं, तो फिर पूरे समाज का हाल कौन सुधारेगा?

इसमें एक बड़ी सीख है — जो लोग समाज में सुधार लाने वाले हैं, उन्हें खुद बहुत सावधान रहना चाहिए। क्योंकि अगर उनका ही किरदार गिर गया, तो समाज की बुनियाद हिल जाती है।

क्या आप इसे किसी स्पीच या नसीहत के लिए इस्तेमाल करना चाह रहे हैं? मैं इसे और भी खूबसूरत अंदाज़ में ढाल सकता हूँ।

मिसाल का मफ़हूम:
गोश्त (मांस) को अगर खराब होने से बचाना हो तो हम नमक लगाते हैं।
लेकिन अगर नमक ही खराब हो जाए, यानी वो चीज़ जो खुद सुधार का ज़रिया है, वही बिगड़ जाए — तो फिर गोश्त को कौन बचाएगा?

इसी तरह:
समाज में अगर आम लोग (छोटे भाई) गलती करें, तो बड़े (रहनुमा) उन्हें समझा सकते हैं।
लेकिन अगर बड़े ही गलत राह पर चलने लगें, तो फिर पूरे समाज का हाल खराब हो जाएगा।



अगर नमक ही खराब हो जाए, यानी जो इस्लाह करने वाला है, जो बड़े हैं, जो रहनुमा हैं, अगर वही बिगड़ जाएँ, तो छोटे कौन सी राह पकड़ेंगे? घर में पाँच भाई हों, और बड़ा भाई जिम्मेदार ना निकले, तो छोटे किससे सीखें? अगर छोटों से गलती हो जाए तो बड़ा समझा सकता है, लेकिन अगर बड़ा ही गुमराह हो जाए, तो फिर पूरे घर का निज़ाम खतरे में पड़ जाता है। ऐसे ही समाज में भी, अगर उलमा, बुजुर्ग, रहबर और बड़े लोग अपने फराइज़ से मुंह मोड़ लें, तो नौजवानों का बिगड़ना यकीनी है। और जब इस्लाह करने वाले ही खामोश हो जाएं, तो फिर अल्लाह का अज़ाब आ सकता है, और फिर दुआ भी कुबूल नहीं होती। 


नबी अकरम (सल्ल०) ने फ़रमाया : उस ज़ात की क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है। तुम मअरूफ़ (भलाई) का हुक्म दो और मुनकर (बुरी) (बुराई) से रोको वरना क़रीब है कि अल्लाह तआला तुम पर अपना अज़ाब भेज दे फिर तुम अल्लाह से दुआ करो और तुम्हारी दुआ क़बूल न की जाए। इमाम तिरमिज़ी कहते हैं : ये हदीस हसन है। सुनन तिरमिज़ी: हदीस नंबर 2169



"अगर गोश्त खराब हो जाए, तो नमक उसे संभाल लेता है,
लेकिन अगर नमक ही खराब हो जाए, तो उसे कौन ठीक करेगा?"

सीख (तअलीम):
इस मिसाल से हमें ये समझने को मिलता है कि समाज के कुछ लोग ऐसे होते हैं जो खुद तो अच्छे होते हैं, और दूसरों की भी इस्लाह (सुधार) करते हैं। जैसे नमक गोश्त को बचा लेता है, वैसे ही नेक इंसान बुरे लोगों की इस्लाह कर लेते हैं। लेकिन अगर वही नेक लोग, जो समाज की रहनुमाई कर रहे हैं – अगर वो खुद बिगड़ जाएं, तो फिर पूरे समाज पर बुराई का साया छा जाता है।

समाज के लिए पैग़ाम (मैसेज):
हर इंसान को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए – हमें सिर्फ दूसरों की इस्लाह नहीं करनी चाहिए बल्कि खुद को भी लगातार सुधारते रहना चाहिए।

बुजुर्ग और रहनुमा लोगों को और ज्यादा एहतियात बरतनी चाहिए क्योंकि लोग उनकी तरफ देखते हैं। अगर वो गुमराह हो गए, तो पूरा कारवाँ रास्ता भटक जाएगा।

इल्म, अख़लाक़ और दीनदारी को तरजीह दीजिए – क्योंकि यही चीज़ें इंसान को खराब होने से बचाती हैं।



बड़ों के लिए हिदायत (क्या करना चाहिए):
क़ुदरत की तरफ से दी गई जिम्मेदारी को समझें – घर, स्कूल, मोहल्ला, मस्जिद, हर जगह बड़ों को रोल मॉडल होना चाहिए।

खुद को सुधारते रहें – जब तक नमक साफ़ है, वो गोश्त को बचा सकता है। लेकिन अगर नमक में ही सड़न आ जाए, तो फिर क्या होगा?

छोटों की सही रहनुमाई करें – बच्चों को इल्म और अदब सिखाएं, सिर्फ किताबों से नहीं बल्कि अपने अमल से।

नफ़्स की ख़िलाफ़त करें – अपने अंदर की बुराइयों से जंग करें। हसद, घमंड, लालच से दूर रहें।



छोटों के लिए नसीहत (क्या करना चाहिए):
बड़ों की बात को सुनें और समझें – लेकिन आँख बंद करके नहीं, सोच-समझ कर।

अच्छे बड़ों की संगत में रहें – क्योंकि संगत का असर बहुत गहरा होता है।

"काफ़िला अगर अच्छे क़ाइद का हो तो मंज़िल तक पहुँचता है, वरना भटक जाता है!"

इल्म को हासिल करें और उसपर अमल करें – सिर्फ़ किताब पढ़ना ही इल्म नहीं, उसपर चलना असली इल्म है।

खुद को छोटा ना समझो – अकसर छोटे-छोटे लोग ही बड़े-बड़े तब्दीलियाँ लाते हैं।

"कई बार एक छोटा सा चिराग़ पूरी रात की तन्हाई को रोशन कर देता है।"


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Shakil Ansari