अहले सुन्नत वल-जमाअत क्या है?
अहले सुन्नत वल-जमाअत वह जमात है जो हज़रत मुहम्मद ﷺ की सुन्नत और सहाबा-ए- किराम के तरीके पर क़ायम है। यह वह गिरोह है जो सही अकीदे पर क़ायम रहते हुए कुरान-ए-पाक और हदीस-ए-मुबारक को अपने जिंदगी का उसूल बनाता है।
इसकी पहचान कुरान और हदीस की रोशनी में
कुरान-ए-पाक में अल्लाह तआला फरमाता है:
وَاعْتَصِمُوا۟ بِحَبْلِ ٱللَّهِ جَمِيعًۭا وَلَا تَفَرَّقُوا۟
"और तुम सब मिलकर अल्लाह की रस्सी (कुरान और सुन्नत) को मज़बूती से थामे रखो और फ़िरक़ों में ना बंटो।"
(सूरह आले इमरान: 103)
रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया:
"अल्लाह की क़सम! मेरी उम्मत 73 फ़िरक़ों में बंट जाएगी, उनमें से सिर्फ एक ही नजात पाएगा।"
सहाबा-ए-किराम ने अर्ज़ किया: "या रसूलुल्लाह ﷺ! वह कौन सा फ़िरक़ा होगा?"
आप ﷺ ने फरमाया:
"वह जमात जो मेरे और मेरे सहाबा के तरीक़े पर होगी।"
(सुनन अबू दाऊद, तिर्मिज़ी)
अहले सुन्नत वल-जमाअत की अलामतें
1. कुरान और सुन्नत की पैरवी– सिर्फ अपनी राय पर नहीं चलते, बल्कि रसूलुल्लाह ﷺ और सहाबा के तरीक़े को अपनाते हैं।
2. सहाबा और अहले बैत की मोहब्बत – रसूलुल्लाह ﷺ के सहाबा और उनके खानदान की इज़्ज़त और मोहब्बत को ईमान का हिस्सा मानते हैं।
3. औलिया अल्लाह की इज़्ज़त – अल्लाह के नेक बंदों, यानी औलिया-ए-किराम की मोहब्बत और इज़्ज़त करते हैं।
4. मौलिदुन्नबी मनाना– रसूलुल्लाह ﷺ की विलादत की खुशी में जश्न-ए-मीलाद का एहतेमाम करना जायज़ समझते हैं।
5. इसाले सवाब – मुर्दों के लिए फातिहा, कुरान ख़्वानी और दुआएं करने को जायज़ मानते हैं।
6. शरीअत और तरीक़त दोनों पर अमल– सिर्फ बाहरी तौर पर शरीअत नहीं अपनाते, बल्कि दिल की सफ़ाई और तसव्वुफ़ को भी ज़रूरी मानते हैं।
7. अहलुल बिदअत से अलग रहना– नवाचार (बिदअत-ए-सय्यिआ) से बचते हैं और रसूलुल्लाह ﷺ की बताई हुई हदों में रहते हैं।
अबू-आमिर होज़नी का बयान है कि हज़रत मुआविया-बिन-अबू-सुफ़ियान (रज़ि०) हम में ख़ुतबा देने के लिये खड़े हुए और कहा : ख़बरदार! तहक़ीक़ रसूलुल्लाह ﷺ हम में खड़े हुए और फ़रमाया : ख़बरदार! तुम से पहले अहले-किताब बेहतर ( 72 ) फ़िरक़ों में तक़सीम हुए थे और ये मिल्लत तिहत्तर ( 73 ) फ़िरक़ों में तक़सीम होगी। बेहतर ( 72 ) आग में जाएँगे और एक फ़िरक़ा जन्नत में जाएगा और यही अल-जमाअत होगा। इब्ने-यहया और उमर ने अपनी रिवायतों में मज़ीद कहा : बेशक मेरी उम्मत में से कुछ क़ौमें निकलेंगी उन में ये अहवा (मन पसन्द नज़रियात और काम को दीन में दाख़िल करना) ऐसे सरायत कर जाएँगी। जैसे कि बावले पन की बीमारी अपने बीमार में सरायत कर जाती है। उमर ने कहा : बावले पन के बीमार की कोई नस और कोई जोड़ बाक़ी नहीं रहता जिस में इस बीमारी का असर न हो। (सुनन अबू दाऊद (हदीस नं. 4597)
अब्दुल्लाह-बिन-अम्र (रज़ि०) कहते हैं कि रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया: मेरी उम्मत के साथ बिलकुल वैसी ही सूरते-हाल पेश आएगी जैसी बनी-इसराईल के साथ पेश आ चुकी है, (यानी बराबरी में दोनों बराबर होंगे) यहाँ तक कि उनमें से किसी ने अगर अपनी माँ के साथ ऐलानिया ज़िना किया होगा तो मेरी उम्मत में भी ऐसा शख़्स होगा जो इस बुरे काम का मुजरिम होगा, बनी-इसराईल बहत्तर फ़िरक़ों में बट गए। और मेरी उम्मत तिहत्तर फ़िरक़ों में बट जाएगी और एक फ़िरक़े को छोड़कर बाक़ी सभी जहन्नम में जाएँगे, सहाबा ने पुछा: अल्लाह के रसूल! ये कौन-सी जमाअत होगी? आपने फ़रमाया: ये वो लोग होंगे जो मेरे और मेरे सहाबा के नक़शे-क़दम पर होंगे।इमाम तिरमिज़ी कहते हैं: ये हदीस जिसमें अबू-हुरैरा (रज़ि०) की हदीस के मुक़ाबले में कुछ ज़्यादा वज़ाहत है, हसन ग़रीब है। हम इसे इस तरह सिर्फ़ इसी सनद से जानते हैं।( तिर्मिज़ी (हदीस नं. 2641)
हज़रत औफ़-बिन-मालिक (रज़ि०) से रिवायत है, रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : यहूदी इकहत्तर फ़िरक़ों में तक़सीम हुए। ( उन में से) एक फ़िरक़ा जन्नती था और सत्तर जहन्नमी। ईसाई बेहतर (72) फ़िरक़ों में तक़सीम हुए। (उन में से) इकहत्तर जहन्नमी थे और एक जन्नती। क़सम है उस ज़ात की जिसके हाथ में मुहम्मद ﷺ की जान है! मेरी उम्मत ज़रूर तिहत्तर फ़िरक़ों में बट जाएगी। (उन में से) एक फ़िरक़ा जन्नत में जाएगा और बेहतर जहन्नम में! कहा गया : अल्लाह के रसूल! वो कौन लोग हैं? फ़रमाया : अल-जमाअत। इब्ने माजा (हदीस नं. 3992)
औलिया अल्लाह की इज़्ज़त और मोहब्बत के बारे में बहुत सारी हदीसें मौजूद हैं। खास तौर पर, सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम में इस बाबत हदीस मिलती है।
हदीस:
📖 सहीह बुखारी (हदीस नंबर: 6502)
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया:
"अल्लाह तआला फरमाता है कि जो मेरे किसी वली (औलिया-अल्लाह) से दुश्मनी रखे, मैं उसके खिलाफ जंग का ऐलान कर देता हूं।"
रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया, "अल्लाह तआला फ़रमाता है कि जिसने मेरे किसी वली से दुश्मनी की उसे मेरी तरफ़ से ऐलाने-जंग है और मेरा बन्दा जिन-जिन इबादतों से मेरा क़ुर्ब हासिल करता है और कोई इबादत मुझको इससे ज़्यादा पसन्द नहीं है जो मैंने उसपर फ़र्ज़ की है (यानी फ़रायज़ मुझको बहुत पसन्द हैं जैसे नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात) और मेरा बन्दा फ़र्ज़ अदा करने के बाद नफ़ल इबादतें करके मुझसे इतना नज़दीक हो जाता है कि मैं उससे मुहब्बत करने लग जाता हूँ। फिर जब मैं उससे मुहब्बत करने लग जाता हूँ तो मैं उसका कान बन जाता हूँ जिससे वो सुनता है, उसकी आँख बन जाता हूँ जिससे वो देखता है, उसका हाथ बन जाता हूँ जिससे वो पकड़ता है, उसका पाँव बन जाता हूँ जिससे वो चलता है, और अगर वो मुझसे माँगता है तो मैं उसे देता हूँ, अगर वो किसी दुश्मन या शैतान से मेरी पनाह माँगता है तो मैं उसे महफ़ूज़ रखता हूँ, और मैं जो काम करना चाहता हूँ उसमें मुझे इतना तरद्दुद नहीं होता जितना कि मुझे अपने मोमिन बन्दे की जान निकालने मैं होता है। वो तो मौत को जिस्मानी तकलीफ़ की वजह से पसन्द नहीं करता और मुझको भी उसे तकलीफ़ देना बुरा लगता है।"सहीह बुखारी (हदीस नंबर: 6502)
📖 हदीस की तशरीह (विवरण):
✅ 1. औलिया-अल्लाह की अहमियत:
➤ इस हदीस से पता चलता है कि अल्लाह के औलिया (अल्लाह के नेक बंदे) से दुश्मनी रखना अल्लाह से जंग मोल लेने के बराबर है। यानी जो लोग अल्लाह के नेक बंदों से नफरत करते हैं या उनकी इज़्ज़त नहीं करते, वे अल्लाह के गुस्से के हकदार बनते हैं।
✅ 2. औलिया-अल्लाह कैसे बनते हैं?
➤ कोई भी इंसान जब फर्ज़ इबादतों को पूरा करता है और नफ्ल इबादतों से अल्लाह का करीब हो जाता है, तो अल्लाह तआला उसे अपना प्यारा बना लेता है। ऐसे लोग फिर दुनिया में अल्लाह के औलिया कहे जाते हैं।
✅ 3. औलिया-अल्लाह की दुआओं की कबूलियत:
➤ जब कोई अल्लाह का वली बन जाता है, तो उसकी दुआएं कबूल होने लगती हैं। अगर वह अल्लाह से कुछ मांगे तो अल्लाह जरूर अता करता है, और अगर वह किसी मुसीबत से पनाह मांगे तो अल्लाह उसे हिफाज़त देता है।
✅ 4. औलिया-अल्लाह की करामात:
➤ अल्लाह तआला फरमाता है कि जब वह अपने किसी बंदे से मोहब्बत करता है, तो उसकी आंख, कान, हाथ और पैर अल्लाह के हुक्म के मुताबिक काम करने लगते हैं। यानी उसे सही हिदायत मिलती है, और वह हमेशा अल्लाह की रज़ा के मुताबिक फैसले करता है।
🔷 हदीस के अहम हिस्सों की गहरी तफसीर
1️⃣ "जो मेरे किसी वली से दुश्मनी रखे, मैं उसके खिलाफ जंग का ऐलान करता हूँ।"
➡️ यह अल्लाह तआला की तरफ से बहुत बड़ी धमकी है।
➤ इसका मतलब यह है कि जो शख्स अल्लाह के नेक बंदों यानी औलिया-अल्लाह का अपमान करता है, उनकी मुखालफत करता है, या उनकी तौहीन करता है, वह दरअसल अल्लाह से दुश्मनी मोल ले रहा है।
➤ अल्लाह किसी के खिलाफ सीधा जंग का ऐलान तब करता है जब वह बहुत बड़ा गुनहगार बन जाता है। रिबा (सूदखोरी) के मामले में भी अल्लाह ने ऐसा ऐलान किया (सूरह बकरा 2:279), और यहाँ औलिया-अल्लाह की मुखालफत करने वालों के लिए भी ऐसा ही कहा गया।
✅ इससे हमें सबक मिलता है कि हमें औलिया-अल्लाह की इज़्ज़त करनी चाहिए और उनके खिलाफ बुरी बात नहीं कहनी चाहिए।
2️⃣ "मेरा बंदा मुझसे सबसे ज्यादा फर्ज़ इबादतों के जरिए करीब होता है।"
➡️ यहां अल्लाह ने यह बता दिया कि औलिया-अल्लाह कौन होते हैं?
➤ वे लोग जो फर्ज़ इबादतों को मुकम्मल करते हैं, यानी नमाज़, रोज़ा, ज़कात, हज, और तमाम इस्लामी फराइज़ पूरी तरह अदा करते हैं।
➤ आजकल कुछ लोग औलिया-अल्लाह को सिर्फ करामात और चमत्कार से पहचानते हैं, जबकि असल औलिया वे हैं जो अल्लाह की फरमांबरदारी में पक्के होते हैं।
✅ इससे हमें यह सीख मिलती है कि औलिया-अल्लाह बनने का सबसे पहला कदम यह है कि हम फर्ज़ इबादतों को पूरे तौर पर अदा करें।
3️⃣ "मेरा बंदा नफ्ल इबादतों के जरिए मुझसे इतना करीब हो जाता है कि मैं उससे मोहब्बत करने लगता हूँ।"
➡️ यह हिस्सा हमें बताता है कि औलिया-अल्लाह बनने के लिए फर्ज़ इबादतों के बाद नफ्ल इबादतें भी करनी पड़ती हैं।
➤ फर्ज़ इबादतें जरूरी हैं, लेकिन अगर कोई शख्स तहज्जुद, इशराक, चाश्त, अव्वाबीन, ज्यादा जिक्र, तिलावत, और नफ्ल रोज़े रखता है, तो वह और ज्यादा करीब हो जाता है।
➤ जब कोई शख्स अल्लाह की मोहब्बत हासिल कर लेता है, तब वह अल्लाह का वली बन जाता है।
✅ सबक यह मिला कि सिर्फ फर्ज़ इबादतों पर नहीं रुकना चाहिए, बल्कि नफ्ल इबादतें भी करनी चाहिए ताकि अल्लाह की खास मोहब्बत हासिल हो।
4️⃣ "जब मैं अपने किसी बंदे से मोहब्बत करता हूँ, तो मैं उसका कान, आंख, हाथ और पैर बन जाता हूँ।"
➡️ इसका क्या मतलब है?
➤ इसका मतलब यह नहीं कि अल्लाह वली के जिस्म में आ जाता है, बल्कि इसका मतलब यह है कि अल्लाह उस शख्स की सोच, समझ, और फैसले को सही कर देता है।
🔹 कान: वह सिर्फ वही सुनता है जो सही है और गुनाह की बातों से नफरत करता है।
🔹 आंख: वह सिर्फ वही देखता है जो हलाल और अच्छा है, हराम चीजों से नफरत करता है।
🔹 हाथ: वह हर अच्छे और नेक काम के लिए इस्तेमाल होता है, किसी पर जुल्म नहीं करता।
🔹 पैर: वह हमेशा सही रास्ते पर चलता है, गलत जगह नहीं जाता।
✅ इससे हमें सीख मिलती है कि जब कोई शख्स औलिया-अल्लाह बन जाता है, तो उसका दिल और दिमाग अल्लाह की तरफ जुड़ जाता है और वह गुनाहों से बच जाता है।
5️⃣ "अगर वह मुझसे कुछ मांगे तो मैं उसे जरूर अता करता हूँ।"
➡️ यह हिस्सा औलिया-अल्लाह की दुआओं की ताकत को बताता है।
➤ अल्लाह अपने खास बंदों की दुआओं को जल्दी कबूल करता है।
➤ बहुत सारी हदीसों से पता चलता है कि जब औलिया-अल्लाह दुआ करते हैं तो अल्लाह उसे जरूर कुबूल करता है। यही वजह है कि लोग बुजुर्गों और नेक लोगों से दुआ करवाते हैं।
✅ इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें नेक लोगों से दुआ करवानी चाहिए और अल्लाह से अपने रिश्ते को मजबूत करना चाहिए।
6️⃣ "अगर वह मुझसे पनाह मांगे तो मैं उसे पनाह देता हूँ।"
➡️ इसका मतलब यह है कि औलिया-अल्लाह मुसीबतों से बचे रहते हैं।
➤ अगर कोई नेक शख्स अल्लाह से किसी परेशानी, बीमारी, या नुकसान से पनाह मांगता है, तो अल्लाह उसे हिफाज़त देता है।
✅ हमें भी चाहिए कि हम अपने लिए और दूसरों के लिए अल्लाह से हिफाज़त की दुआ मांगें।
🌟 नतीजा (सबक)
🔹 औलिया-अल्लाह वे लोग हैं जो फर्ज़ और नफ्ल इबादतों के जरिए अल्लाह के करीब हो जाते हैं।
🔹 औलिया-अल्लाह से दुश्मनी रखना अल्लाह से जंग मोल लेने के बराबर है।
🔹 औलिया-अल्लाह की दुआएं कबूल होती हैं और अल्लाह उनकी हिफाज़त करता है।
🔹 जो शख्स गुनाहों से बचकर इबादत में लग जाए, वह भी अल्लाह का वली बन सकता है।
अमली जिंदगी में इसे कैसे अपनाएं?
✅ फर्ज़ इबादतों को मुकम्मल करें (नमाज़, रोज़ा, ज़कात, हज, हलाल कमाई, अच्छे अख़लाक)
✅ नफ्ल इबादतों को बढ़ाएं (तहज्जुद, चाश्त, तिलावत, जिक्र, सदक़ा, रोज़े)
✅ औलिया-अल्लाह की इज़्ज़त करें और उनसे नफरत न करें
✅ अल्लाह से सच्ची मोहब्बत करें और उसकी राह में मेहनत करें
यह हदीस औलिया-अल्लाह की अजमत और उनकी इज़्ज़त करने की अहमियत को वाज़ेह करती है। औलिया-अल्लाह वो नेक और अल्लाह के खास बंदे होते हैं, जिनकी मोहब्बत और इज़्ज़त करना खुद अल्लाह की मोहब्बत का ज़रिया बनता है।
इस हदीस का मतलब:
यह हदीस बताती है कि जो लोग अल्लाह के वली (औलिया-अल्लाह) बन जाते हैं, अल्लाह उनसे मोहब्बत करता है और फिर पूरी मखलूकत (फरिश्ते और इंसान) भी उनसे मोहब्बत करने लगती है। यही वजह है कि औलिया-अल्लाह की इज़्ज़त और मोहब्बत करना दरअसल अल्लाह की मोहब्बत पाने का जरिया है।
जरीर ने सुहैल से, उन्होंने अपने वालिद (अबू-सालेह) से, उन्होंने हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) से रिवायत की, कहा: रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया: जब अल्लाह किसी बन्दे से मुहब्बत करता है तो जिब्रील (अलैहि०) को बुलाता है और फ़रमाता है: मैं फ़ुलाँ से मुहब्बत करता हूँ तुम भी उससे मुहब्बत करो, कहा: तो जिब्रील (अलैहि०) उससे मुहब्बत करते हैं, फिर वो आसमान में आवाज़ देते हैं, कहते हैं: अल्लाह फ़ुलाँ शख़्स से मुहब्बत करता है, तुम भी उससे मुहब्बत करो, चुनांचे आसमानवाले उससे मुहब्बत करते हैं, कहा: फिर उसके लिये ज़मीन में मक़बूलियत रख दी जाती है, और जब अल्लाह किसी बन्दे से बुग़्ज़ रखता है तो जिब्रील (अलैहि०) को बुलाकर फ़रमाता है: मैं फ़ुलाँ शख़्स से बुग़्ज़ रखता हूँ, तुम भी उससे बुग़्ज़ रखो, तो जिब्रील (अलैहि०) उससे बुग़्ज़ रखते हैं, फिर वो आसमानवालों में ऐलान करते हैं कि अल्लाह फ़ुलाँ से बुग़्ज़ रखता है, तुम भी उससे बुग़्ज़ रखो, कहा: तो वो (सब) उससे बुग़्ज़ रखते हैं, फिर उसके लिये ज़मीन में भी बुग़्ज़ रख दिया जाता है। सहीह मुस्लिम (हदीस नंबर: 2637)
अबू-हुरैरा (रज़ि०) ने कहा, नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया। और इस रिवायत की पैरवी अबू-आसिम ने इब्ने-जुरैज से की है कि मुझे मूसा-बिन-अक़बा ने ख़बर दी उन्हें नाफ़ेअ ने और उन से अबू-हुरैरा (रज़ि०) ने बयान किया कि नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया कि जब अल्लाह तआला किसी बन्दे से मुहब्बत करता है तो जिब्राईल (अलैहि०) से फ़रमाता है कि अल्लाह तआला फ़ुलाँ शख़्स से मुहब्बत करता है। तुम भी उस से मुहब्बत रखो चुनांचे जिब्राईल (अलैहि०) भी उस से मुहब्बत रखने लगते हैं। फिर जिब्राईल (अलैहि०) तमाम आसमान वालों को पुकार देते हैं कि अल्लाह तआला फ़ुलाँ शख़्स से मुहब्बत रखता है। इसलिये तुम सब लोग उससे मुहब्बत रखो चुनांचे तमाम आसमान वाले उस से मुहब्बत रखने लगते हैं। उसके बाद रूए ज़मीन वाले भी उसको मक़बूल समझते हैं। सहीह बुखारी (हदीस नंबर: 3209
नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया, जब अल्लाह किसी बन्दा से मुहब्बत करता है तो जिब्राईल (अलैहि०) को आवाज़ देता है कि अल्लाह फ़ुलाँ बन्दे से मुहब्बत करता है तुम भी उस से मुहब्बत करो। जिब्राईल (अलैहि०) भी उस से मुहब्बत करने लगते हैं फिर वो तमाम आसमान वालों में आवाज़ देते हैं कि अल्लाह फ़ुलाँ बन्दे से मुहब्बत करता है। तुम भी उस से मुहब्बत करो। फिर तमाम आसमान वाले उस से मुहब्बत करने लगते हैं। उसके बाद वो ज़मीन में भी (अल्लाह के बन्दों का) मक़बूल और महबूब बन जाता है। सहीह बुखारी (हदीस नंबर: 6040)
यह हदीस सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम दोनों में मौजूद है।
हदीस का हवाला:
📖 सहीह बुखारी (हदीस नंबर: 3209, 6040)
📖 सहीह मुस्लिम (हदीस नंबर: 2637)
हदीस का मुतुन (अर्थ):
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया:
"जब अल्लाह किसी बंदे से मोहब्बत करता है, तो जब्राईल (अलैहिस्सलाम) को फरमाता है: 'अल्लाह फलां शख्स से मोहब्बत करता है, तुम भी उससे मोहब्बत करो।' तो जब्राईल (अलैहिस्सलाम) उससे मोहब्बत करते हैं और फिर आसमानों में ऐलान करते हैं कि 'अल्लाह फलां शख्स से मोहब्बत करता है, तुम सब भी उससे मोहब्बत करो।' फिर जमीन (दुनिया) में भी उसके लिए कबूलियत रख दी जाती है।"
हदीस का मकसद:
यह हदीस औलिया-अल्लाह और नेक लोगों की अजमत को बयान करती है। जब अल्लाह अपने किसी नेक बंदे से खुश होता है, तो उसकी मोहब्बत फरिश्तों और इंसानों के दिलों में डाल देता है। यही वजह है कि औलिया-अल्लाह की इज़्ज़त और मोहब्बत करना, दरअसल, अल्लाह की मोहब्बत पाने का जरिया बन जाता है।
सुनन अबू दाऊद
📖 सुनन अबू दाऊद (हदीस नंबर: 3527)
➤ रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया:
"बेशक अल्लाह के कुछ खास बंदे होते हैं, जिन्हें दुनिया में भी लोग पसंद करते हैं और आखिरत में भी वे अल्लाह के करीब होंगे।"
हज़रत उमर-बिन-ख़त्ताब (रज़ि०) ने बयान किया, नबी ﷺ ने फ़रमाया : अल्लाह के बन्दों में कुछ लोग ऐसे भी होंगे जो नबी होंगे न शहीद मगर क़ियामत के दिन अल्लाह के यहाँ (बुलन्द) मर्तबे की वजह से नबी और शहीद भी उन पर रश्क करेंगे। सहाबा ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! हमें बताएँ वो कौन लोग होंगे? आप ने फ़रमाया : ये वो लोग होंगे जो आपस में अल्लाह की किताब (या अल्लाह के साथ मुहब्बत) की बिना पर मुहब्बत करते थे। हालाँकि उनका आपस में कोई रिश्ता नाता या माली लेन-दैन न था। अल्लाह की क़सम! उनके चेहरे नूर होंगे और वो लोग नूर पर होंगे। जब लोग ख़ौफ़ज़दा हो रहे होंगे तो उन्हें कोई ख़ौफ़ न होगा। जब लोग ग़मगीन और परेशान हो रहे होंगे तो उन्हें कोई ग़म और परेशानी न होगी। आप ﷺ ने ये आयत करीमा तिलावत फ़रमाई : ألا إن أولياء الله لا خوف ۔ ۔ "आगाह रहो ! अल्लाह के वलियों को कोई ख़ौफ़ होगा न वो ग़म खाएँगे।" सुनन अबू दाऊद (हदीस नंबर: 3527)
इन तमाम हदीसों से यह साबित होता है कि औलिया-अल्लाह (अल्लाह के खास बंदे) से मोहब्बत करना और उनकी इज़्ज़त करना बहुत अहम है। जो लोग अल्लाह के वली होते हैं, अल्लाह उनसे मोहब्बत करता है, और फिर फरिश्ते और लोग भी उनसे मोहब्बत करने लगते हैं।
नतीजा
अहले सुन्नत वल-जमाअत ही वह जमात है जो सही राह पर है, जो रसूलुल्लाह ﷺ और सहाबा-ए-किराम के तरीक़े को अपनाने वाली है। इस जमात की तालीमात कुरान और सुन्नत के मुताबिक़ हैं और यह उम्मत के सबसे बड़े और सही फिरके के तौर पर क़ायम है।
📖 *अल्लाह तआला हम सबको अहले सुन्नत वल-जमाअत के सही अक़ीदे पर क़ायम रखे और दुनिया व आख़िरत में कामयाबी अता फरमाए।* آمین 🤲
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