Tuesday, 4 March 2025

सिद्दीके अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु उम्मत में सबसे आला और अफजल हैं। उन्हें कमतर कहना या समझना कुरआन और सुन्नत के खिलाफ है।अगर कोई गलतफहमी में है, तो उसे नरमी और दलीलों के साथ समझाना चाहिए, और अगर कोई जिद पर है, तो उससे बहस में उलझने की बजाय उसके लिए हिदायत की दुआ करनी चाहिए।

अहल-ए-बैत से मुहब्बत करना इमान की निशानी है, लेकिन अगर कोई सहाबा की शान में गुस्ताखी करता है तो ये गुमराही और नाइंसाफी है। दीन हमें अदल (इंसाफ) और एहतराम (इज्जत) सिखाता है। अहल-ए-बैत की अजमत अपने जगह मुसल्लम (अटल) है और सहाबा की अज़मत भी अपनी जगह बरकरार है।

अगर कोई अहल-ए-बैत की मोहब्बत का दावा करे लेकिन सहाबा की तौहीन करे, तो ये इनसाफ नहीं बल्कि गुमराही का रास्ता है। इस्लाम ने इज्जत और अदल का तालीम दिया है, इसलिए जहां अहल-ए-बैत से मुहब्बत लाज़िमी है, वहीं सहाबा-ए-किराम की तौहीन हरगिज़ जायज़ नहीं। हम वो रास्ता अख्तियार करें जो हमें नबी-ए-करीम ﷺ ने बताया—मुहब्बत, एहतराम और अदल का रास्ता।


सिद्दीके अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु को "कमतर" कहना तो सरासर नाइंसाफी है, बल्कि हकीकत यह है कि वो उम्मत में सब से आला मकाम रखते हैं। उनका दर्जा सिर्फ एक सहाबी के तौर पर नहीं, बल्कि खलीफा-ए-अव्वल और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सबसे अज़ीज़ और सच्चे साथी के तौर पर बे-मिसाल है।अगर कोई उन्हें "आलिम आला" कहे तो भी ये उनका हक अदा करने से कम ही रहेगा, क्योंकि उनका इल्म, तक़वा और अदल-ओ-इंसाफ ऐसी बुलंदियों पर थे जहाँ तक किसी आम इंसान की सोच भी नहीं पहुंच सकती। उन्होंने अपने दौर में जिस तरह हुकूमत चलाई, दीन की खिदमत की, और इंसाफ का निज़ाम कायम किया, वो क़यामत तक मिसाल बना रहेगा। असल में उन्हें सिद्दीके अकबर का लक़ब खुद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दिया, जो ये बताने के लिए काफी है कि वो सच्चाई, ईमान और दीन की राह में सबसे ऊँचे मकाम पर थे। उन्हें किसी भी तरह कमतर समझना या कहना न सिर्फ नादानी है बल्कि तारीख-ए-इस्लाम से ग़ाफिल होने की अलामत भी है।



सिद्दीके अकबर का दर्जा और फज़ीलत: रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने ख़ुतबा दिया और फ़रमाया कि “अल्लाह तआला ने अपने एक बन्दे को दुनिया में और जो कुछ अल्लाह के पास आख़िरत में है उन दोनों में से किसी एक का इख़्तियार दिया तो उस बन्दे ने वो इख़्तियार कर लिया। जो अल्लाह के पास था। उन्होंने बयान किया कि इस पर अबू-बक्र (रज़ि०) रोने लगे। अबू-सईद कहते हैं कि हमको उन के रोने पर ताज्जुब हुआ कि नबी करीम (सल्ल०) तो किसी बन्दे के मुताल्लिक़ ख़बर दे रहे हैं जिसे इख़्तियार दिया गया था लेकिन बात ये थी कि ख़ुद आप (सल्ल०) ही वो बन्दे थे जिन्हें इख़्तियार दिया गया था और (हक़ीक़त में) अबू-बक्र (रज़ि०) हम में सबसे ज़्यादा जानने वाले थे। नबी करीम (सल्ल०) ने एक मर्तबा फ़रमाया कि अपनी सोहबत और माल के ज़रिए मुझ पर अबू-बक्र का सबसे ज़्यादा एहसान है और अगर मैं अपने रब के सिवा किसी को जानी दोस्त बना सकता तो अबू-बक्र को बनाता। लेकिन इस्लाम का भाईचारा और इस्लाम की मुहब्बत उन से काफ़ी है। देखो मस्जिद की तरफ़ तमाम दरवाज़े (जो सहाबा के घरों की तरफ़ खुलते थे) सब बन्द कर दिये जाएँ। सिर्फ़ अबू-बक्र का दरवाज़ा रहने दो। सहीह अल-बुखारी: 3654

इमाम मालिक ने अबू-नज़्र से, उन्होंने उबैद-बिन-हुनैन से, उन्होंने हज़रत अबू-सईद ख़ुदरी (रज़ि०) से रिवायत की कि रसूलुल्लाह (सल्ल०) मेम्बर पर रौनक़ अफ़रोज़ हुए और फ़रमाया : कि अल्लाह का एक बन्दा है, जिस को अल्लाह ने इख़्तियार दिया है कि चाहे दुनिया की दौलत ले और चाहे अल्लाह के पास रहना इख़्तियार करे, फिर उस ने अल्लाह के पास रहना इख़्तियार किया। ये सुन कर सैयदना अबू-बक्र (रज़ि०) रोए ( समझ गए कि आप (सल्ल०) की वफ़ात का वक़्त क़रीब है। ) और बहुत रोए। फिर कहा कि हमारे बाप दादा हमारी माएँ आप (सल्ल०) पर क़ुरबान हों ( फिर मालूम हुआ ) कि इस बन्दे से मुराद ख़ुद रसूलुल्लाह (सल्ल०) थे और सैयदना अबू-बक्र (रज़ि०) हम सबसे ज़्यादा इल्म रखते थे। और रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया कि सब लोगों से ज़्यादा मुझ पर अबू-बक्र का एहसान है। माल का भी और सोहबत का भी और अगर में किसी को ( अल्लाह के सिवा ) दोस्त बनाता तो अबू-बक्र को दोस्त बनाता। ( अब ख़िल्लत तो नहीं है) लेकिन इस्लाम की भाईचारा ( ब्रादरी ) है। मस्जिद में किसी की खिड़की न रहे ( सब बन्द कर दी जाएँ ) लेकिन अबू-बक्र के घर की खिड़की क़ायम रखो।सहीह मुस्लिम: 2382



जब हुज़ूर नबी-ए-पाक (सल्ल.) मिम्बर पर तशरीफ़ लाए और इरशाद फ़रमाया कि अल्लाह ने अपने एक खास बंदे को ये इख्तियार दिया कि चाहे दुनिया की दौलत ले ले या फिर अपने रब के पास जाने का रास्ता इख्तियार करे, तो सैयदना अबू-बक्र सिद्दीक़ (रज़ि.) रो पड़े। वो समझ गए कि ये इशारा हुज़ूर (सल्ल.) की इस दुनिया से रुख्सती का है। उनकी रूह कांप उठी, आँसू बह निकले, और उनकी जबान से ये जज़्बाती अल्फ़ाज़ निकले – हमारे मां-बाप आप (सल्ल.) पर कुर्बान हों!

ये वही अबू-बक्र (रज़ि.) हैं जिनकी सोहबत और माल का एहसान खुद हुज़ूर (सल्ल.) मानते हैं। वो फ़रमाते हैं – अगर मैं किसी को अल्लाह के सिवा दोस्त बनाता, तो अबू-बक्र को बनाता! लेकिन इस्लाम भाईचारे पर क़ायम है, और उनकी बेमिसाल वफादारी का सुबूत ये है कि मस्जिद में हर शख्स की खिड़की बंद कर दी जाए, मगर अबू-बक्र (रज़ि.) की खिड़की खुली रहे!

ये बात सबक़ के तौर पर समझने की है कि अबू-बक्र (रज़ि.) कोई आम शख्सियत नहीं, बल्कि वो हैं जिनकी फज़ीलत का ऐलान खुद नबी-ए-पाक (सल्ल.) ने किया! अगर कोई उनकी अज़मत को कम समझता है, तो वो हक़ीक़त में रसूलुल्लाह (सल्ल.) की गवाही से इंकार कर रहा है।

आज अगर कोई इस्लाम की बुनियाद को समझना चाहता है, तो उसे सिद्दीक़-ए-अकबर (रज़ि.) की जिंदगी से सीखना होगा – उनकी सादगी, उनकी मोहब्बत, उनकी जानिसारी, और उनका ईमान, जो पहाड़ से भी ज्यादा मजबूत था!


हम लोग नबी अकरम (सल्ल०) के पास बैठे हुए थे तो आप ने फ़रमाया : मैं नहीं जानता कि मैं तुम्हारे बीच कब तक रहूँगा इसलिये तुम लोग उन दोनों की पैरवी करो जो मेरे बाद होंगे और आप ने अबू-बक्र और उमर (रज़ि०) की जानिब इशारा किया।तिर्मिज़ी: 3663



उम्मत में सबसे अफजल
✅ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:
"मेरी उम्मत में सबसे अफजल अबू बक्र हैं।" (सुनन इब्ने माजा: 94)

👉 जब खुद नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें सबसे अफजल कहा, तो कोई और उन्हें कमतर कैसे कह सकता है? 
हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) से रिवायत है, रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : मुझे कभी किसी माल से इस क़द्र फ़ायदा हासिल नहीं हुआ जिस क़द्र अबू-बक्र के माल से मुझे फ़ायदा हासिल हुआ है। हज़रत अबू-बक्र (रज़ि०) (ये सुन कर) आब-दीदा हो गए और कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! में भी और मेरा माल भी आप ही के लिये तो है।(सुनन इब्ने माजा: 94)



नतीजा: इंसान को क्यों नहीं कहना चाहिए?
1️⃣ कुरआन गवाही देता है कि हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु अफज़ल हैं।
2️⃣ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें अपनी उम्मत का सबसे बेहतरीन इंसान बताया।
3️⃣ जन्नत की खुशखबरी देने वाले चंद खास लोगों में उनका नाम सबसे ऊपर है।
4️⃣ उनका खिलाफ़ बोलना या उन्हें "कमतर" कहना दरअसल रसूलुल्लाह ﷺ और इस्लामी शिक्षाओं का इनकार करना है।
5️⃣ जो उन्हें कमतर कहेगा, वह रसूलुल्लाह ﷺ की नसीहत के खिलाफ जाएगा और गुमराही में पड़ सकता है।

📌 इसलिए कोई भी समझदार इंसान हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु को "कमतर" नहीं कह सकता, बल्कि उन्हें उम्मत का सबसे आला और अफज़ल इंसान मानना ही ईमानदारी और इंसाफ़ है।

निष्कर्ष (Conclusion):
📌 जो कोई भी सिद्दीके अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु को कमतर समझे या कहे, तो उसे कुरआन, हदीस और सहाबा की गवाही से समझाना चाहिए कि वो इस्लाम में सबसे आला दर्जे पर हैं। अगर फिर भी कोई नहीं मानता, तो वो अपनी नादानी और हठधर्मी की वजह से हक से दूर है।

✅ अगर कोई इनकार करे, तो उससे कहें:
"क्या तुम कुरआन को नहीं मानते? क्या तुम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हदीस को नहीं मानते? अगर मानते हो, तो फिर सिद्दीके अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु को कमतर कहने की हिम्मत कैसे कर सकते हो?"

🔹 सिद्दीके अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु की अज़मत हर शक-ओ-शुबहा से पाक है, और जो उन्हें कमतर कहे, वो अपने ईमान और अक़ीदे को देखे!
कुरान ने सिद्दीके अकबर को रसूलुल्लाह ﷺ का "साथी" कहा, जो उनकी अज़मत की सबसे बड़ी गवाही है।
रसूलुल्लाह ﷺ ने उन्हें उम्मत में सबसे अफ़ज़ल बताया।
सहाबा और बड़े-बड़े उलमा भी इस बात पर इत्तेफाक रखते हैं कि सिद्दीके अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु सबसे ऊँचे मकाम पर हैं।
💡 अगर कोई उन्हें "कमतर" कहता है, तो उसे कुरान और हदीस की इन दलीलों से समझाना चाहिए और इस्लामी तारीख की सही मालूमात देनी चाहिए।

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Shakil Ansari