Friday, 21 March 2025

इस्लाम में औरतों के लिए काम करने की इजाजत तो है, लेकिन कुछ शर्तों और हालात के साथ। इस्लामिक तालीमात के मुताबिक, औरत का असल मकसद घर को सँभालना, बच्चों की तरबियत करना और एक अच्छा मुस्लिम खानदान तैयार करना है। लेकिन अगर जरूरत हो, या ऐसी सिचुएशन आ जाए जहाँ औरत को बाहर निकलकर काम करना पड़े, तो इस्लाम इसकी इजाजत देता है, मगर कुछ शराइ (शरीयत के मुताबिक) शर्तों के साथ।

इस्लाम में औरतों की ज़िम्मेदारियों और उनके काम-काज के बारे में जो बातें मिलती हैं, वो बहुत ही नफ़ीस और हिकमत भरी हैं। अगर कोई औरत घर से रईस है और उसे पैसों की कोई जरूरत नहीं, तो इस्लाम में उस पर जॉब करना कोई फ़र्ज़ नहीं है। असल में, इस्लाम औरतों को ज़रूरत से ज़्यादा मेहनत-मशक्कत में डालने की बजाय उन्हें सुकून और इज़्ज़त भरी ज़िंदगी देने पर ज़ोर देता है।
हदीस:
"औरत पर्दा है, जब वह बाहर निकलती है तो शैतान उसे घूरने लगता है।" (तिर्मिज़ी: 1173)
– इसका मतलब यह नहीं कि औरत कभी बाहर नहीं जा सकती, बल्कि यह कि जब भी जाए तो हिजाब और शरीयत के मुताबिक निकले।

हदीस में औरतों की ज़िम्मेदारी:
नबी-ए-करीम ﷺ ने फरमाया:
"औरत अपने शौहर के घर की निगहबान (रखवाली करने वाली) है और उससे उसके घर और औलाद के बारे में सवाल किया जाएगा।"
📖 (सहीह बुखारी, हदीस 893)
अगर कोई औरत मजबूरी में काम करना चाहती है या उसे शौक है किसी फील्ड में जाने का, तो उसे चाहिए कि वो ऐसे माहौल में काम करे जहाँ मर्दों के साथ गैर-जरूरी इंटरेक्शन ना हो और इस्लामी तहज़ीब की पाबंदी रहे।
अगर औरत नौकरी करना चाहती है, तो उसे इस्लामी उसूलों का ख्याल रखना होगा:
✅ हया और पर्दे का एहतमाम: उसकी लिबास इस्लामी होना चाहिए और गैर-महरम से बेवजह मेल-जोल नहीं होना चाहिए।
✅ घर और औलाद की जिम्मेदारी: अगर नौकरी घर की जिम्मेदारियों को नुकसान पहुंचा रही हो, तो इस पर गौर करना चाहिए।
✅ हलाल और शरीअत के मुताबिक जॉब: ऐसी नौकरी होनी चाहिए जो हराम चीज़ों से पाक हो (जैसे सूद, शराब, जुए आदि से ताल्लुक न रखती हो)।
✅ मर्दों के साथ फ्री मिक्सिंग न हो: ऐसा माहौल होना चाहिए जहां इस्लामी पर्दे की पाबंदी हो।

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