Friday, 28 February 2025

जिन के बारे में -- जिन इंसानों से मुख़्तलिफ़ मख़लूक़ हैं, जिन्हें अल्लाह तआला ने आग से पैदा किया। ये भी हमारी तरह अक़ल रखते हैं, मगर इंसानों से छुपे होते हैं। जिन्नात के मुताल्लिक़ क़ुरआन और हदीस में कई तफसीलात मिलती हैं।

जिन्न के आने और हाजिर होने का तरीका – कुरान और हदीस की रौशनी में
जिन्न एक मखलूक़ है जिसे अल्लाह तआला ने नूर या मिट्टी से नहीं बल्कि आग से पैदा किया। ये इंसानों की तरह समझ-बूझ रखने वाले और अच्छे-बुरे दोनों तरह के होते हैं। कुरान और हदीस में जिन्न के आने, हाजिर होने और इनसे बचने के तरीकों का तफसीली ज़िक्र किया गया है।

जिन्न के आने और हाजिर होने का तरीका
नज़र और जादू से मुतास्सिर होना

हदीस में आता है कि जिन्न अकसर उन जगहों पर आते हैं जहां गफलत, गुनाह और नापाकी होती है।
अगर कोई इंसान जादूगर के पास जाता है या ताबीज़ वगैरह का इस्तेमाल करता है, तो जिन्न हाजिर हो सकते हैं।
खराब जगहों पर जिन्न का बसेरा

हदीस में आता है कि गंदे और वीरान जगहों (खासकर टॉयलेट, कब्रिस्तान और जंगल) में जिन्न का ज्यादा रहना होता है।
जो लोग रात के वक्त ऐसे मकामात पर बेपरवाह जाते हैं, उन पर जिन्न का असर हो सकता है।
शैतानी अमल करने से जिन्न का असर

अगर कोई इंसान शरअ के खिलाफ कोई अमल करता है, जैसे हराम काम, गलत और बुरी आदतें, तो जिन्न उसके करीब आ सकते हैं।

जिन्न से बचने के तरीके (कुरान व हदीस के मुताबिक़)
अल्लाह का जिक्र करना

जब भी कोई घर में दाखिल हो, बिस्मिल्लाह कहे।
रात में सोते वक्त आयतुल कुर्सी पढ़ना बेहद असरदार है।
हदीस में आता है कि जो शख्स सूरह बक़रह की तिलावत करता है, उसके घर में जिन्न दाखिल नहीं होता।
अज़ान और इबादत का एहतमाम
जब अज़ान होती है तो शैतानी ताकतें भाग जाती हैं।
हदीस में आता है कि "जहां अज़ान दी जाती है, वहां जिन्न और शैतान नहीं आते।"
सही तरीके से खाना और सोना
जिन्न अक्सर उन लोगों पर असर डालते हैं जो बेपरवाह तरीके से जीते हैं।
खाना खाने से पहले "बिस्मिल्लाह" कहना जरूरी है, क्योंकि बिना अल्लाह का नाम लिए अगर कोई खाता है, तो जिन्न उसमें शरीक हो सकते हैं।
कुरान की तिलावत और मुअव्वज़तैन (सूरतुल फ़लक और सूरतुन्नास) पढ़ना
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया कि जो सुबह और शाम "सूरतुल फ़लक" और "सूरतुन्नास" पढ़े, अल्लाह उसे हर तरह की शर (बुराई) से महफूज़ रखेगा।

बेपर्दगी और हराम से बचना
हदीस में आता है कि जिन्न इंसान की बेपर्दगी और गुनाह से खुश होते हैं, इसलिए शरई पर्दा और पाकदामनी का एहतमाम जरूरी है।

              जिन्नात से मुताल्लिक़ हादीस



हदीस: सहिह मुस्लिम (2236)
इमाम मालिक-बिन-अनस ने, इब्ने-अफ़लह के आज़ाद किये हुए ग़ुलाम सैफ़ी से रिवायत की, कहा : मुझे हिशाम-बिन-ज़ोहरा के आज़ाद किये हुए ग़ुलाम अबू-साइब ने बताया कि वो सैयदना अबू-सईद ख़ुदरी (रज़ि०) के पास उनके घर गए। अबू-साइब ने कहा कि मैंने उनको नमाज़ में पाया तो बैठ गया। मैं नमाज़ पढ़ चुकने के इन्तिज़ार में था कि इतने में उन लकड़ियों में कुछ हरकत की आवाज़ आई जो घर के कोने में रखी थीं। मैं ने इधर देखा तो एक साँप था। मैं उसके मारने को दौड़ा तो सैयदना अबू-सईद (रज़ि०) ने इशारा किया कि बैठ जा। मैं बैठ गया जब नमाज़ से फ़ारिग़ हुए तो मुझे एक कोठरी दिखाते हुए पूछा कि ये कोठरी देखते हो? मैंने कहा कि हाँ, उन्होंने कहा कि इस में हम लोगों में से एक जवान रहता था, जिस की नई-नई शादी हुई थी। हम रसूलुल्लाह (सल्ल०) के साथ ख़न्दक़ की तरफ़ निकले। वो जवान दोपहर को आप (सल्ल०) से इजाज़त लेकर घर आया करता था। एक दिन आप (सल्ल०) से इजाज़त माँगी तो आप (सल्ल०) ने फ़रमाया कि हथियार लेकर जा क्योंकि मुझे बनी-क़ुरैज़ा का डर है। (जिन्होंने दग़ाबाज़ी की थी और मौक़ा देख कर मुशरिकों की तरफ़ हो गए थे)। उस शख़्स ने अपने हथियार ले लिये। जब अपने घर पर पहुँचा तो उसने अपनी बीवी को देखा कि दरवाज़े के दोनों पट्टों के बीच खड़ी है। उसने ग़ैरत से अपना भाला उसे मारने को उठाया तो औरत ने कहा कि अपना भाला सँभाल और अन्दर जा कर देख तो मालूम होगा कि मैं क्यों निकली हूँ। वो जवान अन्दर गया तो देखा कि एक बड़ा साँप कुंडली मारे हुए बिछोने पर बैठा है। जवान ने इस पर भाला उठाया और उसे भाले  में बींध लिया, फिर निकला और भाला घर में गाड़ दिया। वो साँप उस पर लौटा उसके बाद हम नहीं जानते कि साँप पहले मरा या जवान पहले शहीद हुआ। हम रसूलुल्लाह (सल्ल०) के पास आए और आप (सल्ल०) से सारा क़िस्सा बयान किया और कहा कि या रसूल अल्लाह! अल्लाह से दुआ कीजिये कि अल्लाह इस जवान को फिर जिला दे। आप (सल्ल०) ने फ़रमाया कि अपने साथी के लिये बख़्शिश की दुआ करो। फिर फ़रमाया कि मदीना में जिन रहते हैं जो मुसलमान हो गए हैं, फिर अगर तुम साँपों को देखो तो तीन दिन तक उनको ख़बरदार करो, अगर तीन दिन के बाद भी न निकलें तो उनको मार डालो कि वो शैतान हैं (यानी काफ़िर जिन हैं या शरारत करने वाले साँप हैं)। हदीस: सहिह मुस्लिम (2236)
امام مالک بن انس نے ابن افلح کے آزاد کردہ غلام صیفی سے روایت کی ، کہا : مجھے ہشام بن زہرہ کے آزاد کردہ غلام ابوسائب نے بتایا کہ وہ حضرت ابوسعید خدری رضی اللہ عنہ کے پاس ان کے گھر گئے ، کہا : میں نے انہیں نماز پڑھتے ہوئے پایا ، میں بیٹھ کر انتظار کرنے لگا کہ وہ اپنی نماز ختم کر لیں ۔ تو میں نے گھر ( کی چھت ) کے ایک حصے میں کھجور کی شاخوں کے اندر حرکت کی آواز سنی ، میں نے دیکھا تو سانپ تھا ۔ میں اسے مارنے کے لیے اچھل کر کھڑا ہو گیا ، تو انھوں نے میری طرف اشارہ کیا کہ بیٹھ جاؤ ، میں بیٹھ گیا ۔ جب انھوں نے سلام پھیرا تو گھر میں ایک کمرے کی طرف اشارہ کیا اور کہا : اس کمرے کو دیکھ رہے ہو ؟ میں نے کہا : جی ہاں ، انھوں نے کہا : ہمارا ایک نوجوان جس کی نئی نئی شادی ہوئی تھی اس میں ( رہتا ) تھا ۔ ہم رسول اللہ ﷺ کے ساتھ نکل کر خندق کی طرف چلے گئے ۔ وہ نوجوان دوپہر کے وقت رسول اللہ ﷺ سے اجازت لیتا تھا اور اپنے گھر لوٹ آتا تھا ۔ ایک دن اس نے آپ ﷺ سے اجازت لی ، رسول اللہ ﷺ نے اس سے کہا : اپنے ہتھیار لگا کر جاؤ ، مجھے تم پر قریظہ ( والوں کے حملے ) کا خدشہ ہے ۔ اس آدمی نے اپنے ہتھیار لے لیے ، پھر اپنے گھر آیا تو اس کی بیوی دو ( گھروں کے ) دروازوں کے درمیان کھڑی تھی ( اسے شک ہوا کہ وہ دوسرے گھر میں جا رہی تھی ) تو اس نے نیزے کو اس کی طرف حرکت دی کہ اسے اس کا نشانہ بنائے ، اسے غیرت نے آ لیا تھا تو وہ کہنے لگی : اپنا نیزہ اپنی طرف روکو اور گھر میں داخل ہو کر دیکھو کہ مجھے کس چیز نے باہر نکالا ہے ۔ وہ اندر گیا تو وہاں ایک بہت بڑا سانپ تھا جو بستر پر کنڈلی مارے بیٹھا تھا ۔ وہ نیزا لے کر اس کی طرف بڑھا اور اس سانپ کو اس میں پرو دیا ، پھر وہ باہر نکلا اور اس ( نیزے ) کو گھر کے ( صحن کے درمیان ) میں گاڑ دیا ۔ وہ سانپ تڑپ کر اس کے اوپر آ گرا ، پھر پتہ نہ چلا کہ دونوں میں سے جلدی کون مرا ، سانپ یا وہ نوجوان ، کہا : پھر ہم رسول اللہ ﷺ کی خدمت میں پہنچے اور یہ بات آپ کو بتائی ۔ ہم نے آپ سے عرض کی : آپ اللہ سے دعا فرمائیں کہ وہ اسے ہماری خاطر زندہ کر دے ۔ آپ ﷺ نے فرمایا :’’ اپنے ساتھی کے لیے مغفرت کی دعا کرو ۔‘‘ پھر آپ نے فرمایا :’’ مدینہ میں کچھ جن تھے ، وہ اسلام لے آئے تھے ، جب تم ان کی طرف سے کوئی بات دیکھو ( ان میں سے کوئی تمھیں نظر آئے ، تم ڈرو یا پریشان ہو ) تو تین روز تک اسے خبردار کرو ۔ اگر اس کے بعد بھی وہ تمھیں نظر آئے تو اسے مار 
دو ، وہ شیطان ( ایمان نہ لانے والا جن ) ہے ۔‘‘
Abu as-Sa'ib, the freed slaved of Hisham b. Zuhra, said that he visited Abu Sa'id Khudri in his house, (and he further) said:
I found him saying his prayer, so I sat down waiting for him to finish his prayer when I heard a stir in the bundles (of wood) lying in a comer of the house. I looked towards it and found a snake. I jumped up in order to kill it, but he (Abu Sa'id Khudri) made a gesture that I should sit down. So I sat down and as he finished (the prayer) he pointed to a room in the house and said: Do you see this room? I said: Yes. He said: There was a young man amongst us who had been newly wedded. We went with Allah's Messenger ( ‌صلی ‌اللہ ‌علیہ ‌وسلم ‌ ) (to participate in the Battle) of Trench when a young man in the midday used to seek permission from Allah's Messenger ( ‌صلی ‌اللہ ‌علیہ ‌وسلم ‌ ) to return to his family. One day he sought permission from him and Allah's Messenger ( ‌صلی ‌اللہ ‌علیہ ‌وسلم ‌ ) (after granting him the permission) said to him: Carry your weapons with you for I fear the tribe of Quraiza (may harm you). The man carried the weapons and then came back and found his wife standing between the two doors. He bent towards her smitten by jealousy and made a dash towards her with a spear in order to stab her. She said: Keep your spear away and enter the house until you see that which has made me come out. He entered and found a big snake coiled on the bedding. He darted with the spear and pierced it and then went out having fixed it in the house, but the snake quivered and attacked him and no one knew which of them died first, the snake or the young man. We came to Allah's Apostle ( ‌صلی ‌اللہ ‌علیہ ‌وسلم ‌ ) and made a mention to him and said: Supplicate to Allah that that (man) may be brought back to life. Thereupon he said: Ask forgiveness for your companion and then said: There are in Medina jinns who have accepted Islam, so when you see any one of them, pronounce a warning to it for three days, and if they appear before you after that, then kill it for that is a devil. Hadith: Sahih Muslim (2236)


📜 हदीस: सहिह बुखारी (3280)
"शैतान और जिन्न रात में घरों में दाख़िल होते हैं, इसलिए दरवाजे बंद कर दो और अल्लाह का ज़िक्र कर लो।"
नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया, ''रात का अँधेरा शुरू होने पर या रात शुरू होने पर अपने बच्चों को अपने पास (घर में) रोक लो क्योंकि शैतान उसी वक़्त फैलना शुरू करते हैं। फिर जब इशा के वक़्त में से एक घड़ी गुज़र जाए तो उन्हें छोड़ दो (चलें-फिरें) फिर अल्लाह का नाम ले कर अपना दरवाज़ा बन्द करो अल्लाह का नाम ले कर अपना चराग़ बुझा दो पानी के बर्तन अल्लाह का नाम ले कर ढक दो और दूसरे बर्तन भी अल्लाह का नाम ले कर ढक दो (और अगर ढक्कन न हो) तो बीच में ही कोई चीज़ रख दो।"
The Prophet (ﷺ) said, "When nightfalls, then keep your children close to you, for the devil spread out then. An hour later you can let them free; and close the gates of your house (at night), and mention Allah's Name thereupon, and cover your utensils, and mention Allah's Name thereupon, (and if you don't have something to cover your utensil) you may put across it something (e.g. a piece of wood etc.).
Hadith: Sahih Bukhari (3280)

हदीस: सहिह मुस्लिम (1572)
अबू-ज़ुबैर ने ख़बर दी कि उन्होंने हज़रत जाबिर-बिन-अब्दुल्लाह (रज़ि०) से सुना, वो कह रहे थे : रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने हमें कुत्तों को मार डालने का हुक्म दिया यहाँ तक कि कोई औरत जंगल से अपने कुत्ते के साथ आती तो हम उस कुत्ते को भी मार डालते, फिर नबी (सल्ल०) ने हमें उनको मारने से मना कर दिया और फ़रमाया : आप (आँखों के ऊपर) दो (सफ़ेद) नुक़्तों वाले काले काले कुत्ते को न छोड़ो, बेशक वो शैतान है।
Hadith: Sahih Muslim (1572)
रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने मुझे रमज़ान की ज़कात की हिफ़ाज़त पर मुक़र्रर फ़रमाया। (रात में) एक शख़्स अचानक मेरे पास आया। और ग़ल्ले में से लप भर भर कर उठाने लगा। मैंने उसे पकड़ लिया और कहा कि क़सम अल्लाह की! मैं तुझे रसूलुल्लाह (सल्ल०) की ख़िदमत में ले चलूँगा। इस पर उसने कहा कि अल्लाह की क़सम! मैं बहुत मोहताज हों। मेरे बाल-बच्चे हैं और मैं सख़्त ज़रूरत मन्द हों। अबू-हुरैरा (रज़ि०) ने कहा, (उसके माफ़ी चाहने पर) मैंने उसे छोड़ दिया। सुबह हुई तो रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने मुझसे पूछा ऐ अबू-हुरैरा! पिछले रात तुम्हारे क़ैदी ने कहा था? मैंने कहा या रसूलुल्लाह! उसने सख़्त ज़रूरत और बाल-बच्चों का रोना रोया इसलिये मुझे इस पर रहम आ गया। और मैंने उसे छोड़ दिया। आप (सल्ल०) ने फ़रमाया कि वो तुम से झूट बोल कर गया है। अभी वो फिर आएगा। रसूलुल्लाह (सल्ल०) के इस फ़रमाने की वजह से मुझको यक़ीन था कि वो फिर ज़रूर आएगा। इसलिये मैं उसकी ताक मैं लगा रहा। और जब वो दूसरी रात आ के फिर ग़ल्ला उठाने लगा। तो मैंने उसे फिर पकड़ा और कहा कि तुझे रसूलुल्लाह (सल्ल०) की ख़िदमत में हाज़िर करूँगा लेकिन अब भी उसकी वही गुज़ारिश थी कि मुझे छोड़ दे मैं मोहताज हों। बाल-बच्चों का बोझ मेरे सिर पर है। अब मैं कभी न आऊँगा। मुझे रहम आ गया और मैंने उसे फिर छोड़ दिया। सुबह हुई तो रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया, ऐ अबू-हुरैरा! तुम्हारे क़ैदी ने किया? मैंने कहा या रसूलुल्लाह! उसने फिर उसी सख़्त ज़रूरत और बाल बच्चों का रोना रोया। जिस पर मुझे रहम आ गया। इसलिये मैंने उसे छोड़ दिया। आप (सल्ल०) ने इस मर्तबा भी यही फ़रमाया कि वो तुम से झूट बोल कर गया है और वो फिर आएगा। तीसरी मर्तबा मैं फिर उसके इन्तिज़ार में था कि उसने फिर तीसरी रात आ कर ग़ल्ला उठाना शुरू किया तो मैंने उसे पकड़ लिया और कहा कि तुझे रसूलुल्लाह (सल्ल०) की ख़िदमत में पहुँचना अब ज़रूरी हो गया है। ये तीसरा मौक़ा है। हर मर्तबा तुम यक़ीन दिलाते रहे कि फिर नहीं आओगे। लेकिन तुम बाज़ नहीं आए। उसने कहा कि इस मर्तबा मुझे छोड़ दे तो मैं तुम्हें ऐसे कुछ कलिमात सिखा दूँगा जिससे अल्लाह तआला तुम्हें फ़ायदा पहुँचाएगा। मैंने पूछा वो कलिमात क्या हैं? उसने कहा जब तुम अपने बिस्तर पर लेटने लगो तो आयतल-कुर्सी (الله لا إله إلا هو الحي القيوم) पूरी पढ़ लिया करो। एक निगारां फ़रिश्ता अल्लाह तआला की तरफ़ से बराबर तुम्हारी हिफ़ाज़त करता रहेगा। और सुबह तक शैतान तुम्हारे पास भी नहीं आ सकेगा। इस मर्तबा भी फिर मैंने उसे छोड़ दिया। सुबह हुई तो रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने पूछा पिछले रात तुम्हारे क़ैदी ने तुम से क्या मामला किया? मैंने कहा या रसूलुल्लाह! उसने मुझे कुछ कलिमात सिखाए और यक़ीन दिलाया कि अल्लाह तआला मुझे इससे फ़ायदा पहुँचाएगा। इसलिये मैंने उसे छोड़ दिया। आपने पूछा कि वो कलिमात क्या हैं? मैंने कहा कि उसने बताया था कि जब बिस्तर पर लेटो तो आयतल-कुर्सी पढ़ लो। शुरू (الله لا إله إلا هو الحي القيوم) से आख़िर तक। उसने मुझसे ये भी कहा कि अल्लाह तआला की तरफ़ से तुम पर (उसके पढ़ने से) एक निगारां फ़रिश्ता मुक़र्रर रहेगा। और सुबह तक शैतान तुम्हारे क़रीब भी नहीं आ सकेगा। सहाबा ख़ैर को सबसे आगे बढ़ कर लेने वाले थे। नबी करीम (सल्ल०) ने ( उन की ये बात सुन कर) फ़रमाया कि हालाँकि वो झूटा था। लेकिन तुम से ये बात सच कह गया है। ऐ अबू-हुरैरा ! तुमको ये भी मालूम है कि तीन रातों से तुम्हारा मामला किस से था? उन्होंने कहा, नहीं। नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया कि वो शैतान था।

हदीस के मुताबिक जिन्नात से हिफ़ाज़त के तरीके
✅ बिस्मिल्लाह पढ़कर खाना और पानी पिएं –
📜 हदीस में आता है कि अगर खाना खाते वक़्त "बिस्मिल्लाह" न पढ़ी जाए, तो शैतान उसमें शरीक हो जाता है। (सहिह मुस्लिम 2017)
अबू-मुआविया ने आमश से, उन्होंने ख़ैसमा से, उन्होंने अबू-हुज़ैफ़ा से, उन्होंने हज़रत हुज़ैफ़ा (रज़ि०) से रिवायत की, कहा कि जब हम रसूलुल्लाह (सल्ल०) के साथ खाना खाते तो अपने हाथ न डालते जब तक आप (सल्ल०) शुरू न करते और हाथ न डालते। एक बार हम आप (सल्ल०) के साथ खाने पर मौजूद थे और एक लड़की दौड़ती हुई आई जैसे कोई उसको हाँक रहा है। और उसने अपना हाथ खाने में डालना चाहा तो आप (सल्ल०) ने उसका हाथ पकड़ लिया। फिर एक देहाती दौड़ता हुआ आया तो आप (सल्ल०) ने उसका हाथ थाम लिया। फिर फ़रमाया कि शैतान उस खाने पर क़ुदरत पा लेता है। जिस पर अल्लाह का नाम न लिया जाए और वो एक लड़की को उस खाने पर क़ुदरत हासिल करने को लाया तो मैंने उस का हाथ पकड़ लिया, फिर इस देहाती को उसी ग़रज़ से लाया तो मैंने उसका भी हाथ पकड़ लिया, क़सम उसकी जिसके हाथ में मेरी जान है! उस (शैतान) का हाथ उस लड़की के हाथ के साथ मेरे हाथ में है।


हदीस और क़ुरआन में जिन्नात की मौजूदगी और उनके असरात के तज़किरा
(1) जिन्नात का वजूद – क़ुरआन से दलील
क़ुरआन में कई जगह जिन्नात का तज़किरा आया है।

📖 सूरह अज़-ज़ारियात (51:56)
"मैंने जिन्नात और इंसानों को सिर्फ़ अपनी इबादत के लिए पैदा किया।"

📖 सूरह अल-हिज्र (15:27)
"और जिन्नात को हमने इससे पहले आग की लपटों से पैदा किया।"

📖 सूरह अल-जिन (72:1-2)
"कहो कि मुझ पर वही की गई कि जिन्नात की एक जमात ने सुना, तो कहने लगे: हमने एक अजीब क़ुरआन सुना, जो सीधा रास्ता दिखाता है, इसलिए हम उस पर ईमान लाए।"

📖 सूरह अल-बक़रह (2:275)
"जो लोग सूद (ब्याज) खाते हैं, वे क़यामत के दिन ऐसे उठेंगे जैसे जिसे जिन ने छू कर पागल बना दिया हो।"

📖 सूरह अन-नास (114:4-6)
"जो वसवसे डालता है इंसानों के सीने में, चाहे वह जिन्नात में से हो या इंसानों में से।"
नतीजा
जिन्नात हकीकत हैं, मगर उनसे डरने की बजाय अल्लाह पर भरोसा रखना चाहिए। क़ुरआन और हदीस में दिए गए तरीकों से हम जिन्नात के असर से बच सकते हैं। हमेशा अल्लाह का ज़िक्र करें, नमाज़ की पाबंदी करें और पाक-साफ रहें, यही सबसे बेहतरीन हिफ़ाज़त है।

📢 अगर आपको जिन्नात या शैतान के असरात महसूस हों, तो आयतुल कुर्सी, सूरह फलक, सूरह नास और सूरह अल-बक़रह की तिलावत करें। अल्लाह की रहमत से हर तकलीफ़ दूर हो जाएगी।

No comments:

parents

https://www.facebook.com/share/v/152gy7gHeC/ important video for parents

Shakil Ansari