Sunday, 26 January 2025

Understand your Constitution of India well.

आइन का दिन (Samvidhan Divas) हर साल 26 नवंबर को हमारे मुल्क में मनाया जाता है। यह दिन आइन-ए-हिंद (भारत का संविधान) को अपनाने की याद में मनाया जाता है। 26 नवंबर 1949 को हिंदुस्तान की संविधान सभा ने संविधान को मंज़ूरी दी थी, जो 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ।
19 नवंबर 2015 को समाजी इन्साफ और ताक़त अफ़ज़ाई की वज़ारत (Ministry of Social Justice and Empowerment) ने यह ऐलान किया कि हर साल 26 नवंबर को आइन का दिन के तौर पर मनाया जाएगा, ताकि शहरीयों में संविधान की अहमियत और उस पर अमल करने की तालीम दी जा सके। हिंदुस्तान का संविधान कैबिनेट मिशन प्लान 1946 के तहत बनाई गई संविधान सभा ने तैयार किया। इस सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई थी। सबसे पहले, इस सभा ने अपने सबसे उम्रदराज़ रुक्न (सदस्य) डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को अस्थाई सदर (प्रोविजनल प्रेसिडेंट) चुना। फिर 11 दिसंबर 1946 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद को हमेशा के लिए सदर (permanent चेयरमैन) चुना गया।संविधान तैयार करने के लिए इस सभा ने 13 कमेटियां बनाई थीं, जिनमें से एक थी ड्राफ्टिंग कमेटी। इसका चेयरमैन डॉ. भीमराव अंबेडकर को बनाया गया। इन कमेटियों की रिपोर्ट्स की बुनियाद पर संविधान का ड्राफ्ट तैयार किया गया, जिसे 7 सदस्यीय ड्राफ्टिंग कमेटी ने अंतिम रूप दिया। हिंदुस्तान का संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखा हुआ संविधान है। इसमें 395 आर्टिकल्स, 22 हिस्से और 12 शेड्यूल्स शामिल हैं।
यह संविधान न तो टाइप किया गया था और न ही प्रिंट किया गया, बल्कि इसे हस्तलिखित (हाथ से लिखा गया) और खुशनवीसी (कैलीग्राफिक) अंदाज़ में हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों ज़बानों में तैयार किया गया। इसे शांतिनिकेतन के फ़नकारों ने आचार्य नंदलाल बोस की रहनुमाई में तैयार किया। इसके टेक्स्ट की खुशनवीसी प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा ने दिल्ली में की। भारत का संविधान असल में संसद की लाइब्रेरी में हीलियम गैस से भरे खास केसों में संभाल कर रखा गया है। इस संविधान के हर हिस्से की शुरुआत में भारत के इतिहास का कोई ना कोई मंज़र दिखाया गया है। नंदलाल बोस ने इस संविधान के हर हिस्से के आगाज़ में भारतीय इतिहास और तजुर्बात के किसी खास मंज़र को पेंट किया। ये आर्टवर्क 22 हैं, जो छोटे और नफीस (miniature) अंदाज में बने हुए हैं। इन तस्वीरों में मोहेंजोदड़ो, वैदिक ज़माना, मौर्य और गुप्ता सल्तनतें, मुग़ल दौर, और आज़ादी की तहरीक की झलकियां शामिल हैं। इन तस्वीरों के ज़रिए नंदलाल बोस ने हमें 4000 साल की तवारीख और तहज़ीब का सफर कराया।
भारत के लोग इस संविधान के असल सरपरस्त हैं। ताकत (sovereignty) उन्हीं के पास है और उन्हीं के नाम पर यह संविधान मंज़ूर किया गया। संविधान आवाम को ताकत देता है, मगर आवाम भी संविधान को ताकत देती है – इसे मानकर, इसकी पाबंदी करके, और इसे बचाकर। संविधान किसी एक का नहीं है, ये सबका और सबके लिए है। 1949 में जब संविधान पास किया गया था, उस वक्त नागरिकों के लिए कोई बुनियादी फराइज़ (Fundamental Duties) नहीं थे। बुनियादी हुकूक (Fundamental Rights) के लिए ज़रूर एक खास हिस्सा (Part III) रखा गया था। बुनियादी फराइज़ को 1976 में 42वें संविधान संशोधन के ज़रिए शामिल किया गया। यह फैसला हुकूमत की तरफ से बनाई गई स्वरन सिंह कमेटी की सिफारिश पर किया गया। कमेटी का कहना था कि यह यकीनी बनाया जाए कि इंसान अपने हुकूक का इस्तेमाल करते वक्त अपने फराइज़ को न भूले। 1976 में 42वें संविधान तरमीमी एक्ट के तहत एक नया बाब (Chapter IV-A) शामिल किया गया, जिसमें सिर्फ़ एक दफा (Article 51-A) मौजूद है। ये दफा शहरीयों के लिए दस बुनियादी फ़र्ज़ों (Fundamental Duties) की फ़ेहरिस्त पेश करती है। इन फ़र्ज़ों का मकसद ये याद दिलाना है कि जैसे संविधान ने शहरीयों को कुछ बुनियादी हुक़ूक़ (Fundamental Rights) दिए हैं, वैसे ही उनसे ये भी तवक़्क़ो है कि वो जम्हूरी रवैय्ये और सुलूक के बुनियादी क़वायद का पास रखें। क्यूंकि हुक़ूक़ और फ़र्ज़ एक दूसरे के साथ वाबस्ता हैं। इन बुनियादी फ़र्ज़ों को शामिल करने से हमारा संविधान, यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स (Universal Declaration of Human Rights) की दफा 29(1) और दुनिया के दीगर मॉडर्न दस्तूरों के क़वायद के मुताबिक़ हो गया। इन फ़र्ज़ों का तसव्वुर सोवियत यूनियन (USSR) से लिया गया है। बुनियादी फ़र्ज़ हिन्दुस्तानी रवायात, मज़हब, तारीख़ और रस्मों से लिया गया है। असल में ये वो फ़र्ज़ हैं जो हिन्दुस्तानी ज़िंदगी के अहम उसूलों का हिस्सा हैं। शुरू में दस बुनियादी फ़र्ज़ शामिल थे, लेकिन बाद में 2002 में 86वें संविधान तरमीम के तहत ग्यारहवां फ़र्ज़ भी शामिल कर दिया गया।
हम, भारत के लोग, यह अज़्म (इरादा) करते हैं कि हम अपने प्यारे वतन को एक ऐसा मुल्क बनाएंगे जो खुद-मुख्तार (sovereign) हो, यानी जहां हमारा अपना फैसला चले और किसी बाहर की ताक़त का दखल न हो।

हम यह भी तय करते हैं कि हमारा मुल्क समाजी (socialist) होगा, जहां दौलत और वसाइल (resources) का बंटवारा इंसाफ और बराबरी के साथ हो। यहां अमीर-गरीब के बीच फासला कम किया जाएगा, और हर किसी को ज़िंदगी की बुनियादी सहूलतें दी जाएंगी।

हम यह भी वादा करते हैं कि हमारा मुल्क मजहबी आज़ादी (secular) का पैरोकार होगा। यहां हर शख्स को अपने मज़हब पर चलने, इबादत करने और अपने यक़ीनात (beliefs) पर अमल करने की पूरी आज़ादी होगी।

हम यह भी एलान करते हैं कि हमारा मुल्क जम्हूरी (democratic) होगा, यानी यहां आवाम (लोग) की हुकूमत होगी। हर शहरी को वोट देने का हक होगा, और हुकूमत आवाम के मफाद (interest) के लिए काम करेगी।

इसके साथ, हम यह अहद (प्रतिज्ञा) करते हैं कि हम अपने हर शहरी को इंसाफ (justice) देंगे, चाहे वो किसी भी जात, मज़हब या तबक़े (class) से हो।

हम यह भी यक़ीनी बनाएंगे कि हर शख्स को आज़ादी (liberty) मिले, चाहे वो सोचने की हो, बोलने की हो, या अपने ख्वाब पूरे करने की।

हम हर किसी के लिए बराबरी (equality) को नाफ़िज़ करेंगे। कोई भी शहरी छोटे या बड़े का एहसास न करे। हर शख्स को एक जैसा हक और इज्ज़त मिलेगी।

और आखिर में, हम यह यक़ीन दिलाते हैं कि हम अपने मुल्क में भाईचारे (fraternity) को फरोग़ देंगे। तमाम शहरी एक-दूसरे से मोहब्बत और इत्तेहाद (unity) के साथ रहेंगे, ताकि हमारी क़ौम मजबूत और खुशहाल बने।

इस इरादे के साथ, हमने यह दस्तूर (संविधान) अपनाया, तर्तीब दिया और खुद को दिया, ताकि यह हमारे वतन की तरक़्क़ी (विकास) और आवाम की भलाई के लिए रहे।


Justice" का मतलब है इंसाफ। समाज में अमन और तरतीब बनाए रखने के लिए तीन तरह का इंसाफ बहुत जरूरी है:

सामाजिक इंसाफ (Social Justice): हर शख्स को बराबर का हक मिलना चाहिए, चाहे वह किसी भी जात, मजहब, या तबके से ताल्लुक रखता हो। किसी के साथ ऊंच-नीच या नाइंसाफी न हो।

मआशी इंसाफ (Economic Justice): दौलत और माली वसाइल (resources) का बंटवारा ऐसा हो कि हर शख्स की बुनियादी जरूरतें पूरी हों। गरीब और अमीर के बीच का फासला कम हो और सबको अपनी मेहनत का सही हक मिले।

सियासी इंसाफ (Political Justice): हर शहरी को बराबरी का सियासी हक मिले। वोट देने, अपने नुमाइंदे चुनने और अपनी आवाज उठाने का मौका हो। किसी को उसकी राय या सियासी सोच की वजह से दबाया न जाए।

इन तीनों तरह के इंसाफ के बगैर समाज में अमन और इंसानी हुकूक (human rights) मुमकिन नहीं। यही इंसाफ एक मजबूत और तरक्कीपसंद समाज की बुनियाद है।

Liberty का मतलब है कि हर इंसान को ये आज़ादी हासिल है कि वो अपनी सोच को, अपने खयालात को, और अपने जज़्बात को खुलकर जाहिर कर सके। उसे ये हक़ भी है कि वो जिस मज़हब को चाहे अपनाए, अपने अकीदे और ईमान पर चले, अपनी इबादत खुदा की जिस तरीके से करना चाहे करे। मगर, ये तमाम आज़ादियां एक हद में होती हैं।

कानून की हदें:
इसका मतलब ये है कि हर शख्स की आज़ादी वहीं तक है, जहां तक वो दूसरों के हुक़ूक या समाज के कायदे-कानून को नुक्सान न पहुंचाए। आज़ादी का मतलब ये नहीं कि इंसान अपनी मर्ज़ी से हर काम करे, बल्कि वो ऐसा काम करे जो न खुद उसके लिए नुक्सानदेह हो और न ही समाज या दूसरों के लिए।

आसान मिसाल:
अगर किसी को बोलने की आज़ादी है, तो इसका मतलब ये नहीं कि वो किसी की बेज़ती करे या झूठी बाते फैलाए। इसी तरह, अगर इबादत की आज़ादी है, तो इसका मतलब ये नहीं कि वो दूसरों के मज़हब या उनके तरीके को बुरा कहे।

इस तरह, आज़ादी एक जिम्मेदारी के साथ मिलती है, और ये जिम्मेदारी ये यकीनी बनाती है कि हर इंसान एक दूसरे की इज़्ज़त करे और समाज में मोहब्बत और अमन-कायम रहे।

"भाई, आज़ादी का मतलब बस अपनी मर्ज़ी करना नहीं है, बल्कि अपनी मर्ज़ी और दूसरों की इज़्ज़त में तवाज़ुन रखना है। बोलने का हक़ है, लेकिन किसी का दिल दुखाना हरगिज़ नहीं। इबादत करो, लेकिन दूसरों की राह में रुकावट मत बनो। कानून जो कहता है, उसी दायरे में रहो। तब ही असल में हर किसी की आज़ादी सलामत रहेगी।"



Equality: बराबरी और इंसाफ़ का मतलब है कि हर इंसान को बिना किसी खास रुतबे या दर्जे के, एक जैसे मौक़े और हक़ दिए जाएं।

तफ़्सीलात में बात करें तो बराबरी का मतलब ये है कि चाहे कोई अमीर हो या ग़रीब, मर्द हो या औरत, छोटा हो या बड़ा, या किसी भी मज़हब, ज़ात, या रंग से ताल्लुक रखता हो, उसको वही हुक़ूक़ मिलें जो दूसरों को मिलते हैं।

मसलन:

तालीम में बराबरी - हर बच्चा, चाहे उसकी माली हालत कैसी भी हो, उसको पढ़ाई का हक़ हो।
रोज़गार में बराबरी - किसी भी इंसान को उसकी ज़ात या मज़हब की बुनियाद पर नौकरी से मुनकिर ना किया जाए।
इंसाफ़ में बराबरी - अदालत में हर शख़्स को बराबर का इंसाफ़ मिले, चाहे वो ग़रीब हो या अमीर।
ररूआ माशरे (समाज) की बात करें तो बराबरी का मतलब ये भी है कि हर शहरी को बुनियादी हुक़ूक़ दिए जाएं, जैसे कि बोलने की आज़ादी, तालीम, और रोज़गार का हक़। अगर माशरे में बराबरी नहीं होगी, तो नाइंसाफी, भेदभाव और तफरक़ा (फूट) पैदा होगी।
आसान अल्फ़ाज़ में: बराबरी वो है जब हम सब को ये महसूस हो कि हम एक जैसे अहमियत रखते हैं। किसी को ज़्यादा ऊँचा या नीचा ना समझा जाए और सब को उनकी काबिलियत और मेहनत के मुताबिक़ इज़्ज़त और मौके दिए जाएं।


Fraternity यानी भाईचारे का मतलब है ऐसा जज़्बा और एहसास जो लोगों के दिलों को एक-दूसरे से जोड़ता है। यह सिर्फ खून के रिश्ते तक महदूद नहीं रहता, बल्कि यह मुल्क और इसकी अवाम के साथ गहरा लगाव और जुड़ाव का एहसास भी है। जब हम भाईचारे की बात करते हैं, तो इसका मतलब है कि हर शख्स दूसरे की भलाई और खुशहाली के लिए फिक्रमंद है।

ररूआ हिंदी/उर्दू तर्जुमा:
भाईचारे का मतलब है कि इंसान अपने मुल्क और अवाम से ऐसा रिश्ता महसूस करे जैसे सब एक ही खानदान का हिस्सा हैं। यह एहसास मज़हब, जात-पात, रंग या ज़ात-पात से ऊपर उठकर सिर्फ इंसानियत और वफादारी पर मबनी है। भाईचारे का मतलब यह है कि हर शख्स दूसरे की मदद करे, उसके दुख में साथ दे और उसकी खुशियों में शरीक हो। यह जज़्बा इंसान को नफरत से बचाकर मोहब्बत और यकजहती का पैग़ाम देता है।
मुल्क और कौम की तरक्की तभी मुमकिन है, जब हर शहरी भाईचारे के जज़्बे को समझे और उसे अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाए। भाईचारा मुल्क की ताकत है, और जब तक यह जज़्बा हमारे दिलों में ज़िंदा रहेगा, कोई हमें तक्सीम नहीं कर सकता।




Sovereign सोवरेन का मतलब ये है कि हिंदुस्तान एक आज़ाद और स्वतंत्र मुल्क है जो किसी भी बाहरी ताकत के कब्जे में नहीं है। इसका ये मतलब हुआ कि हिंदुस्तान अपनी जिंदगी के फैसले खुद करता है, किसी दूसरे मुल्क से दबाव या हुक्म नहीं लेता। हिंदुस्तान के पास अपनी सरकार बनाने, अपनी नीतियाँ तय करने और देश के लिए कानून बनाने का पूरा हक है। वो अपनी आज़ादी पर पूरा यकीन रखता है और किसी भी विदेशी ताकत के कंट्रोल में नहीं आता।"

ररूआ हिंदी (लोकल शैली में अनुवाद):
"सॉवरन (स्वतंत्र) का मतलब है कि भारत एक ऐसा देश है, जो पूरी तरह से खुद अपने फैसले लेने में सक्षम है। इसका मतलब ये है कि भारत किसी दूसरे देश या बाहरी ताकत के हुक्म या आदेश के नीचे नहीं है। भारत के पास अपनी सरकार है, जो अपने नागरिकों के लिए सारे फैसले लेती है। दुनिया में किसी भी देश का अधिकार नहीं है कि भारत को किसी तरह से कंट्रोल करे या उस पर अपनी सत्ता थोपे। भारत का संविधान, कानून, और सत्ता सब कुछ भारतीय जनता के चुने हुए नेताओं के हाथों में है।" यहाँ पर यह बात समझनी जरूरी है कि जब हम कहते हैं "भारत सॉवरन है", तो इसका मतलब यह है कि भारत को किसी बाहरी देश से किसी भी तरह की दखलअंदाजी या दबाव का सामना नहीं करना पड़ता। भारत अपनी आंतरिक और बाहरी नीतियाँ पूरी तरह से अपने देशवासियों के हित में तय करता है।


"Democratic" का मतलब है एक ऐसा शासन, जो लोगों के द्वारा और लोगों के लिए हो। इसका मतलब है कि शासन का अधिकार आम जनता को होता है और वो खुद ही अपने नेताओं का चुनाव करती है। इसमें हर नागरिक को अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार होता है, और सरकार जनता की भलाई के लिए काम करती है। 

ररूआ हिंदी में तर्जुमा:

"डेमोक्रेटिक" का मतलब है, एक ऐसा तरीका जहां हुकूमत जनता के हाथों में होती है और ये उनके ही लिए काम करती है। यानि लोग अपने हुक्मरानों को चुनते हैं और वही उनकी ख़ुशहाली और हुकूमत के फैसले करते हैं। इसमें हर इंसान को अपनी आवाज़ उठाने का पूरा हक़ होता है और सरकार अपने लोगों की भलाई के लिए काम करती है। "लोकतंत्र एक ऐसी सरकार होती है, जो जनता द्वारा चलायी जाती है और लोगों के फायदों के लिए काम करती है। इसमें सबसे अहम बात ये है कि जनता की इच्छा का सम्मान किया जाता है। लोकतंत्र में हर नागरिक को यह अधिकार होता है कि वो अपनी पसंद के नेताओं को चुनें, जो उनकी तरफ से सरकार चलाएंगे। इसे 'सामान्य चुनाव' कहा जाता है, जिसमें हर व्यक्ति वोट देकर अपनी पसंद का नेता चुन सकता है। लोकतंत्र का मतलब ये भी है कि हर नागरिक को अपनी बात रखने का पूरा अधिकार होता है, चाहे वो किसी भी जाति, धर्म, रंग या नस्ल से हो। अगर किसी को लगता है कि सरकार कोई गलत कदम उठा रही है, तो उसे विरोध करने और अपनी आवाज उठाने का हक होता है। लोकतंत्र में, हर व्यक्ति को न्याय, शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं मिलनी चाहिए। सरकार का मुख्य काम ये होता है कि वो इन अधिकारों का पालन करें और हर नागरिक को समान अवसर दें। इसमें सभी को ये अधिकार मिलते हैं कि वो अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सुधार के लिए काम कर सकें। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में, सरकार सिर्फ एक पार्टी या एक व्यक्ति के हाथों में नहीं होती। बल्कि इसमें कई राजनीतिक पार्टियां होती हैं, जो चुनावों के माध्यम से जनता का समर्थन प्राप्त करती हैं। जनता इन पार्टियों को चुनकर अपने प्रतिनिधि चुनती है। इसका सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि इसमें जनता की आवाज सुनी जाती है, और यह सुनिश्चित किया जाता है कि सरकार सिर्फ अपने फायदे के लिए काम न करे, बल्कि पूरे समाज के लिए काम करे। लोकतंत्र में हर नागरिक का अधिकार होता है कि वो अपनी सरकार से जवाब मांगे और उसकी नीतियों के बारे में सवाल उठाए।"इससे हमें यह समझ में आता है कि लोकतंत्र में जनता का पूरा हक होता है, और सरकार उनके सेवा में होती है। यह व्यवस्था समाज में समानता और इंसाफ सुनिश्चित करती है।


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आइन का दिन (Samvidhan Divas) हर साल 26 नवंबर को हमारे मुल्क में मनाया जाता है। यह दिन आइन-ए-हिंद (भारत का संविधान) को अपनाने की याद में मनाय...

Shakil Ansari