हमारे मुआशरे में सबसे ज़्यादा कौन-सा खतरनाक मर्ज़ फैला हुआ है?
*मेरा जहाँ तक ख़्याल है वो है `'हसद'`।*
हसद एक नापसंदीदा अख़लाक़ी बीमारी है जिसमें इंसान दूसरे की नेअमत, कामयाबी या खुशहाली को देखकर दिल कुढ़ता और जलता है और चाहता है कि वह नेमत उस्से छिन जाए। यह एक मज़मूम सिफ़त है जिसकी मज़म्मत क़ुरआन व हदीस में की गई है।
*`क़ुरआन की रोशनी में:`*
1. *सूरह अल-फलक में हसद से पनाह माँगने की तालीम:*
* "और मैं हसद करने वाले के शर से पनाह माँगता हूँ जब वह हसद करे।"*
> (सूरह अल-फलक: 5)
अल्लाह तआला ने हसद को इतना ख़तरनाक क़रार दिया कि इसके शर से पनाह माँगने की तलकीन की।
*`हदीस की रोशनी में:`*
1. रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
* "हसद न करो, बुग़्ज़ न रखो, और एक-दूसरे से दुश्मनी न करो, और अल्लाह के बंदे भाई-भाई बन जाओ।"*
> (सहीह बुखारी: 6065, सहीह मुस्लिम: 2559)
2. *हसद ईमान को कमज़ोर करता है:*
* "हसद नेकियों को ऐसे खा जाता है जैसे आग लकड़ी को खा जाती है।"*
> (सुनन अबू दाऊद: 4903)
*`हसद किन चीज़ों पर जाइज़ है?`*
* "हसद जाइज़ नहीं सिवाए दो चीज़ों में: एक वह शख़्स जिसे अल्लाह ने माल दिया और वह उसे अल्लाह की राह में ख़र्च करता है, और दूसरा वह जिसे अल्लाह ने हिकमत (इल्म) अता की और वह उसके मुताबिक़ फैसला करता और तालीम देता है।"*
> (सहीह बुखारी: 73)
*`हसद से बचने के तरीक़े:`*
1. अल्लाह की तक़सीम पर राज़ी रहना और शुक्र अदा करना।
2. दूसरों की नेमतों को देखक अल्लाह का शुक्र अदा करना।
3. ज़िक्र व अज़कार और दुआ करना, जैसे कि सूरह अल-फलक की तिलावत।
4. हसद की जगह मोहब्बत और ख़ैरख़्वाही को फ़रोग़ देना।
5. हसद के नुक़सानात को समझना और दिल को पाकीज़ा रखने की कोशिश करना।
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*न्यू ईयर मनाना*
न्यू ईयर मनाना यह नसारा (इसाईयो) का तरीक़ा है,
*हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम* का इरशाद है, *“जिस ने जिस क़ौम की मुशाबिहत (नक़ल) की कल क़यामत मे उसको उन ही के साथ उठाया जायेगा”* यानि उसका शुमार भी उन्ही लोगो मे होगा।
क़ाज़ी सनाउल्लाह पानीपति रहमतुल्लाह ने मसला लिखा है के कोई शख्स दिवाली मे बाहर निकले और दिवाली की (रौशनी/आतिशबाज़ी वगैरह) को देख कर कहे के कितना अच्छा तरीक़ा है तो उसके तमाम नेक आमाल बर्बाद हो जायेंगे। (माला बुद्दा मिन्हु)
इसी तरह *न्यू ईयर* मनाने वालो को देखने जाना भी जाइज़ नही क्यूंकि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का इरशादे मुबारक है के *“जिसने जिस क़ौम की तादाद को बढ़ाया उस का शुमार भी उन्ही मे होगा”* लिहाज़ा इस रात में बाहर रौशनी, आतिशबाज़ी देखने जाना, खाने पीने की पार्टी करना नये साल की मुबारकबादी देना, नये साल की ख़ुशी मनाना, एक दूसरे को गिफ्ट देना वगैरह जितने तरीके है, सब नाजायज़ और ईमान को बर्बाद करने वाले है इब्रत के लिए एक क़िस्सा पेश करता हूँ।
*नसरानियों के तौर ओ तरीके पसंद करने वाले आलिम का इबरतनाक क़िस्सा*
📄 हज़रत इमाम ए रब्बानी मौलाना रशीद अहमद गंगोही साहब रहमतुल्लाह ने इरशाद फ़रमाया के
कानपुर मे कोई नसरानी जो किसी बड़े ओहदे पर था वह मुस्लमान हो गया था, मगर असलियत छुपा रखी थी, इत्तेफ़ाक़ से उसका तबादला (transfer) किसी दूसरी जगह हो गया, उसने उन मौलवी साहब को जिनसे उसने इस्लाम की बाते सीखी थी, अपने तबादले की इत्तीला दी और तमन्ना की के किसी दीनदार शख़्स को मुझे दे जिससे इल्म हासिल करता रहूँ।
चुनाँचे मौलवी साहब ने अपने एक शागिर्द को उनके साथ कर दिया, कुछ अरसे बाद यह शख्स (जो मुस्लमान हो चुका था) वो बीमार हुआ तो मौलवी साहब के शागिर्द को कुछ रुपये दिए और कहा के जब मैं मर जाऊँ और ईसाई मुझे अपने क़ब्रिस्तान मे दफना कर आएं तो रात को जा कर मुझे वहाँ से निकालना और मुसलमानो के क़ब्रिस्तान मे दफन कर देना,
चुनाँचे ऐसा ही हुआ, मौलवी साहब के शागिर्द ने वसीयत के मुताबिक़ जब क़ब्र खोली तो देखा के उसमे वह नसरानी नही बल्कि वही मौलवी साहब पड़े हुए है, तो सख़्त परेशान हुआ के यह क्या माजरा है...? मेरे उस्ताद यहाँ कैसे???
आखिर दरयाफ्त करने से मालूम हुआ के मौलाना साहब नासरानियो के तौर-तरीक़ो को पसंद करते थे और उसे अच्छा जानते थे।
📘इरशादाते हज़रत गंगोही रहमतुल्लाह (पेज-65)
मेरे भाइयो, यह मौलवी साहब सिर्फ गैरो के तरीको को पसंद करते थे, उसपर चलते नही थे, तो अल्लाह तआला ने दुनिया ही मे जिसका तरीक़ा उनको पसंद था उसके साथ हश्र कर दिया, हम तो गैरो के तरीको पर शौक़ से चलते है बल्कि उस पर नाज़ करते है तो हमारा क्या हश्र होगा सोचो और अपनी औलाद, भाई - बहन, दोस्त अहबाब को गैरो की इस ख़ुशी मे शिरकत से रोके या कम से कम उन्हेणयह मैसेज भेज कर या पढ़ कर सुना कर समझाने की कोशिश करे।
अल्लाह तआला हमे सही अमल की तौफ़ीक़ अता फरमाऐ। आमीन
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> *`अवाम में फैली ग़लतियों की इस्लाह`*
*सिलसिला नंबर 466:*
`शम्सी (ईस्वी या अन्ग्रेजी) नए साल की मुबारकबाद देने का हुक्म:`
शम्सी जिसे ईस्वी या अन्ग्रेजी साल भी कहा जाता है दरहक़ीक़त अल्लाह तआला के निज़ाम-ए-कायनात का एक हिस्सा है कि ज़मीन जब सूरज के चारों ओर अपनी गर्दिश (चक्कर) मुकम्मल कर लेती है तो इससे शम्सी साल वजूद में आता है। शम्सी साल मुकम्मल होने के बाद जब नया साल शुरू होता है तो बहुत से लोगों में इसकी मुबारकबाद देने का रिवाज आम है।
क़ुरआन व सुन्नत से नए शम्सी साल की मुबारकबाद देने का कोई सुबूत नहीं मिलता। अलबत्ता इस हवाले से ज़्यादा से ज़्यादा यही बात कही जा सकती है कि अगर मुबारकबाद दुआ की नीयत से दी जा रही हो कि यह नया साल बरकतों से माला-माल हो और खैर व आफियत से गुज़रे, तो ऐसी सूरत में इसकी गुंजाइश मालूम होती है। अलबत्ता इसके लिए ज़रूरी है कि:
1️⃣ यह मुबारकबादी सिर्फ एक रस्म के तौर पर न हो, जैसा कि आजकल रस्म ही बन गई है।
2️⃣ यह मुबारकबादी ईसाइयों और ग़ैर-मुसलमानों की नकल और पैरवी में न हो और न ही उनके तरीक़े पर हो।
3️⃣ इस मुबारकबादी में कोई ग़ैर-शरई तरीक़ा और अंदाज़ इख़्तियार न किया जाए।
मज़कूरा बातों की रिआयत करते हुए नए साल की मुबारकबादी दरहक़ीक़त एक दुआ की सूरत इख़्तियार कर लेती है, जिसकी गुंजाइश मालूम होती है। लेकिन यह एक हक़ीक़त है कि आजकल जो रिवाज और सूरत-ए-हाल है, उसमें मज़कूरा बातों की रिआयत आम तौर पर नहीं रखी जाती, बल्कि इस से बढ़कर तरह-तरह की ख़ुराफ़ात और नाजायज़ काम इसमें शामिल होती जा रही हैं। इसलिए मुनासिब यही मालूम होता है कि नए शम्सी नए साल की मुबारकबादी देने की मुरव्वजा रस्म से बिलकुल किनारा कर लिया जाए।
*तंबीह:*
जहां तक नए शम्सी साल मनाने की मुरव्वजा रस्म का ताल्लुक़ है, तो मुतअद्दिद ग़ैर-शरई उमूर पर मुश्तमिल होने की वजह से यह वाज़ेह तौर पर `नाजाइज़ और गुनाह` है, जिससे हर मुसलमान को परहेज करना ज़रूरी है।
`शम्सी (ईस्वी या अन्ग्रेजी) नए साल की मुबारकबाद देने का हुक्म:`
शम्सी जिसे ईस्वी या अन्ग्रेजी साल भी कहा जाता है दरहक़ीक़त अल्लाह तआला के निज़ाम-ए-कायनात का एक हिस्सा है कि ज़मीन जब सूरज के चारों ओर अपनी गर्दिश (चक्कर) मुकम्मल कर लेती है तो इससे शम्सी साल वजूद में आता है। शम्सी साल मुकम्मल होने के बाद जब नया साल शुरू होता है तो बहुत से लोगों में इसकी मुबारकबाद देने का रिवाज आम है।
क़ुरआन व सुन्नत से नए शम्सी साल की मुबारकबाद देने का कोई सुबूत नहीं मिलता। अलबत्ता इस हवाले से ज़्यादा से ज़्यादा यही बात कही जा सकती है कि अगर मुबारकबाद दुआ की नीयत से दी जा रही हो कि यह नया साल बरकतों से माला-माल हो और खैर व आफियत से गुज़रे, तो ऐसी सूरत में इसकी गुंजाइश मालूम होती है। अलबत्ता इसके लिए ज़रूरी है कि:
1️⃣ यह मुबारकबादी सिर्फ एक रस्म के तौर पर न हो, जैसा कि आजकल रस्म ही बन गई है।
2️⃣ यह मुबारकबादी ईसाइयों और ग़ैर-मुसलमानों की नकल और पैरवी में न हो और न ही उनके तरीक़े पर हो।
3️⃣ इस मुबारकबादी में कोई ग़ैर-शरई तरीक़ा और अंदाज़ इख़्तियार न किया जाए।
मज़कूरा बातों की रिआयत करते हुए नए साल की मुबारकबादी दरहक़ीक़त एक दुआ की सूरत इख़्तियार कर लेती है, जिसकी गुंजाइश मालूम होती है। लेकिन यह एक हक़ीक़त है कि आजकल जो रिवाज और सूरत-ए-हाल है, उसमें मज़कूरा बातों की रिआयत आम तौर पर नहीं रखी जाती, बल्कि इस से बढ़कर तरह-तरह की ख़ुराफ़ात और नाजायज़ काम इसमें शामिल होती जा रही हैं। इसलिए मुनासिब यही मालूम होता है कि नए शम्सी नए साल की मुबारकबादी देने की मुरव्वजा रस्म से बिलकुल किनारा कर लिया जाए।
*तंबीह:*
जहां तक नए शम्सी साल मनाने की मुरव्वजा रस्म का ताल्लुक़ है, तो मुतअद्दिद ग़ैर-शरई उमूर पर मुश्तमिल होने की वजह से यह वाज़ेह तौर पर `नाजाइज़ और गुनाह` है, जिससे हर मुसलमान को परहेज करना ज़रूरी है।
✍🏻... मुफ़्ती मुबीन-उर-रहमान साहिब
हिन्दी ट्रांसलेशन : शकीलउद्दीन अंसारी
*रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फ़रमाया:*
मुसलमान के मुसलमान पर 5 ह़क़ हैं:
1. सलाम का जवाब देना,
2. मरीज़ का मिज़ाज मालूम करना,
3. जनाज़े के साथ चलना,
4. दावत क़बूल करना,
5. छींक पर (उसके अल्ह़मदुलिल्लाह के जवाब में) यर्ह़मुकल्लाह कहना।
> 📚 बुख़ारी शरीफ़: 1240
- हज़रत ईसा अ०स० 25 दिसंबर को पैदा नहीं हुए थे। (इस्लामियात)
- हज़रत ईसा अ०स० का कोई बाप नहीं है आप बग़ैर बाप के पैदा हुए थे। (क़ुरआन)
- हज़रत ईसा अ०स० की माँ हज़रत मरयम हैं, अल्लाह ने अपनी क़ुदरत से हज़रत मरयम के बतन से बगैर बाप के पैदा किया था। (क़ुरआन)
- हज़रत ईसा अ०स० के अलावा हज़रत मरयम के बतन से कोई और औलाद नहीं हुई। (हदीस)
- हज़रत मरयम ने सारी ज़िन्दगी कोई निकाह नहीं किया था। (क़ुरआन)
- हज़रत ईसा अ०स० की कुल उम्र 33 साल हुई। (हदीस)
- हज़रत ईसा अ०स० को क़त्ल नहीं किया गया। (क़ुरआन)
- हज़रत ईसा अ०स० को सूली पर नहीं लटकाया गया। (क़ुरआन)
- हज़रत ईसा अ०स० के बारे में यहूदी शक व शुबा में पड़ गए थे। (क़ुरआन)
- हज़रत ईसा अ०स० को ज़िंदा आसमान पर उठा लिया गया है। (क़ुरआन)
- हज़रत ईसा अ०स० आज भी आसमान पर ज़िंदा हैं। (क़ुरआन)
- हज़रत ईसा अ०स० कयामत से पहले हज़रत महदी रज़ि० के ज़माने में आसमान से उतरेंगे। (हदीस)
- हज़रत ईसा अ०स० दमिश्क़ की जामा मस्जिद के मीनारे पर फज्र की नमाज़ के वक़्त उतरेंगे।
- हज़रत ईसा अ०स० मक़ाम ए लुद पर दज्जाल को क़त्ल करेंगे। (हदीस)
- हज़रत ईसा अ०स० दुनिया में आने के बाद चालीस साल ज़िंदा रहेंगे उसके बाद तब’ई मौत इंतिक़ाल करेंगे। (हदीस)
- हज़रत ईसा अ०स० को मदीना मुनव्वराह में रौज़ा ए रसूल में दफन किया जाएगा। (हदीस)
- मुसलमानों ने लिए सलीब गले में लटकाना जाइज़ नहीं है। (इस्लामियात)
- 25 दिसंबर को (Merry Christmas/Happy Christmas) मैरी क्रिस्मस/हैप्पी क्रिस्मस बोलना जाइज़ नहीं है ना मुसलमानों को और ना दूसरों को मख़सूस क़िस्म की टोपी 25 दिसंबर को पहनना या पहनाना जाइज़ नहीं। (इस्लामियात)
- 25 दिसंबर को क्रिस्मस या मख़सूस दरख़्त स्टैटस रखना भी इस्लामी तालीमात के खिलाफ है। (इस्लामियात)
*पानी के सदक़े की फ़जी़लत!*
सय्यिदना उ़बादा रज़ियल्लाहु ने रसूलुल्लाह ﷺ से अ़र्ज़ किया अल्लाह के रसूल! मेरी वाल्दा वफात पा गई हैं उनकी तरफ से *कौनसा सदका़ अफ़ज़ल रहेगा? अल्लाह के रसूल ﷺ ने इरशाद फरमाया : "पानी का सदका़"* चुनांचे उन्होंने एक कुआं खुदवा कर वक़्फ़ कर दिया और कहा: यह सअ़द की वाल्दा की तरफ़ से है।
(अबू दाऊद शरीफ़: 1683)
*यह चार बातें हैं जो नौजवानों में आम हो रही हैं:*
*1. दीन और नमाज़ से दूरी*
*2. आंखों का गलत इस्तेमाल (बदनज़री वगैरह)*
*3. कानों का गलत इस्तेमाल (गाना)*
*4. वालिदेन की नाफरमानी (और दोस्तों से ज्यादा मोहब्बत और वफ़ादारी)*
ये चार बातें जो नौजवानों में आम हो रही हैं, उनकी शख्सियत और रूहानी जिंदगी पर बहुत गलत असर डाल सकती हैं:
*1. दीन और नमाज़ से दूरी:* नमाज़ और दीन से दूरी नौजवानों को गलत रास्तों पर ले जाती है और उनकी रूहानी जिंदगी को कमजोर करती है।
*2. आंखों का गलत इस्तेमाल:*
बदनज़री, गलत तरीके से देखना वगैरह नौजवानों की अखलाकी और रूहानी जिंदगी को खराब कर देता है।
*3. कानों का गलत इस्तेमाल:* गाने वगैरह सुनना नौजवानों की अखलाकी और रूहानी जिंदगी पर नकरात्मक असर डालता है।
*4. वालिदेन की नाफरमानी:* वालिदेन की नाफरमानी और दोस्तों से ज्यादा मोहब्बत और वफ़ादारी नौजवानों की जिंदगी को खराब कर सकती है।
ये बातें नौजवानों के लिए खतरनाक हैं और उन्हें इनसे बचने की कोशिश करनी चाहिए।
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