"अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू,
सफर में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो,
सभी हैं भीड़ में, तुम भी निकल सको तो चलो।
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं,
तुम अपने आप को खुद ही बदल सको तो चलो।
खुशामदीद है आप सभी मेहमानों का,
हमारी महफिल में, आप की तशरीफ से रौशनी हुई।
हर इक फूल खिला है आप की आमद से,
ये दिन आपकी मौजूदगी से हसीन हुई।
जनाब अशरफ अली अंसारी साहब का इस्तकबाल करते हुए सबसे पहले मैं दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूंगा, जिन्होंने इस इलाक़े में तालीम की शम्मा रोशन की। ऐसे वक्त में जब पढ़ाई के नाम पर लोग सिर्फ़ सपने देखते थे, आपने एक हकीकत बना दी। यह आपकी कड़ी मेहनत और बेमिसाल हिम्मत का नतीजा है कि आज ररुआ में तालीम की रौशनी फैल चुकी है। आपका यह एहसान हमारे दिलों में हमेशा रहेगा।
"मुकद्दर के सफर में जमीं को आसमां बना दिया,
अंधेरों को चीर कर आप ने यह चिराग जला दिया।
हर तरफ़ अब नूर ही नूर है,
"जनाब अशरफ अली अंसारी साहब के इस एहसान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। उन्होंने हमारी तालीम के सफर को आसान किया और एक ऐसा स्कूल खोला, जो आज भी तालीम के आसमान में सितारा बनकर चमक रहा है। हम दिल की गहराइयों से आपका इस्तकबाल करते हैं। अल्लाह ताला आपको सेहत और बरकत दे, और आपके इस नेक मकसद को हमेशा बरकरार रखे।”
आपके तालीम के कारवां ने यह शहर बना दिया।”
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आज की इस मुकद्दस महफिल में हमारे साथ तशरीफ़ फरमा हैं जनाब फ़हीम उर रहमान खान साहब, जो ना सिर्फ़ बन्ड़ की सरज़मीं से तशरीफ़ लाए हैं, बल्कि हमारे दिलों की रौशनी भी हैं।
आपका यहाँ आना हमारे लिए एक बड़ी निआमत है। आप एक पीर और मुर्शिद हैं, जिनकी दुआओं से हमारे मुस्तक़बिल के रास्ते रौशन होते हैं।
आज इस महफिल में आप जैसे बुज़ुर्ग का आना हमारे लिए खुदा का खास करम है।
"ख़ुदा के बन्दों में वो रुतबा किसे नसीब,
जिनके दिल में बसती है फ़ैज़ान की तासीर।
क़दम बढ़ाएं, पीर-ओ-मुर्शिद हमारे,
आपकी दुआओं से हर मुश्किल बनेगी आसान।"
हम दुआ करते हैं, आपके साये में हर इक बच्चा कामयाब हो,
आपकी रहनुमाई से ये स्कूल यूँ ही बुलंदियों की तरफ बढ़ता रहे।”
"आपकी दुआओं का सहारा हमें चाहिए,
आपकी निगाह-ए-करम का नूर चाहिए।
रखें कदम, इस महफिल की रौनक बढ़ाएं,
आपका आना हमारे लिए एक तोहफा है, जिसे हमने दिल से अपनाया है।"
जनाब, हमारी इस महफिल में तशरीफ लाने का शुक्रिया। अल्लाह आपकी उम्र में बरकत दे और आपकी दुआओं से हम सबकी ज़िन्दगी में रोशनी आए।”
हम सब मिलकर जनाब फ़हीम उर रहमान खान साहब का खैर मकदम करते हैं। अल्लाह तआला से दुआ है कि आपकी रहनुमाई में हम सब आगे बढ़ें, और तरक़्क़ी के रास्ते पर चलें।
****”
आज की इस ख़ास महफ़िल में, हम आपके दिलों की गहराइयों से स्वागत करते हैं,
जो हमारे मार्गदर्शक, हमारे अदब के दीपक हैं,
जिन्होंने अपने अनुभव और ज्ञान से, हमें रोशनी दिखाई है हर इक मुकाम पर।
जो हमें हौसला देते हैं हर कठिनाई में,
हमारे जनाब प्रिंसिपल सुनील कटियार साहब,
आपकी रहनुमाई में हमने पाया है हर सफलता का एहसास,
कभी थकते नहीं, न रुकते हैं, ये सफर यूँ ही चलता रहे।
आपकी मौजूदगी में ही ये दीवारें संजीदा हैं,
आपके कदमों से ही ये रास्ते रौशन हैं।
आपके इस लंबे सफर के लिए, हम शुक्रगुजार हैं।
हर इक लफ्ज़ में है, हमारी जानिब से मोहब्बत का पैगाम।
"उस्ताद वो रहबर हैं जो रौशनी की तरह,
हर अंधेरे को चीर कर निकलते हैं।
जिनकी निगाहों में वो इल्म का समंदर है,
जो हमें दुनिया की हर राह दिखाते हैं।”
"हमारे उस्तादों की तालीम और तजुर्बे का आज हम सब इस्तकबाल करते हैं। वो उस्ताद जो न सिर्फ किताबों के पन्नों में सिमटी तालीम को हमारे दिलों में उतारते हैं, बल्कि जिंदगी के सफर में सही और गलत का फर्क भी बताते हैं। उनके बिना हम इस दुनिया के हक़ीक़त से अनजान होते।
उनके इरशादात से हमें समझ आती है कि जिंदगी का असल मकसद क्या है। उनके बताए हुए रास्ते पर चलकर हम हर मुश्किल को आसान बना सकते हैं और हर मुश्किलात का सामना कर सकते हैं।
आज, हम उन सभी उस्तादों का शुक्रिया अदा करते हैं, जिनकी तालीम और मेहनत से हम आज इस मकाम पर खड़े हैं। अल्लाह तआला उन्हें सलामत रखे और उनकी रहनुमाई हमेशा हम पर बनी रहे।”
"हिंदुस्तानी शेरो शायरी के अंदाज में, आज हम इन उस्तादों का इस्तकबाल करते हैं, जो हमें जिंदगी के हर मोड़ पर सही रास्ता दिखाते हैं। उनकी तालीम और इल्म का कर्ज़ हम कभी नहीं चुका सकते, मगर उनकी इज्जत और उनके मकाम को हमेशा ऊंचा रखने की दुआ जरूर कर सकते हैं।”
यह प्यारे प्यारे बच्चों के अम्मी और अब्बू का इस्तकबाल हम एक खास अंदाज में करते हैं।
नजरें झुकाए, ये मुहब्बतों का पैगाम,
छोटे-छोटे फरिश्तों के सरपरस्त,
वो माँ-बाप, जो मेहनत की चादर में लपेटे
अपने बच्चों की तकदीरें संवारते हैं।
क्योंकि हर अम्मी और अब्बू की ख्वाहिश होती है,
कि उनके लाडले हमसे बेहतर जिंदगी जीएं।”
"माँ-बाप का ये प्यार अनमोल है,
इन्हीं की दुआओं से हर ख्वाब कबूल है,
"तो आइए, हम सब मिलकर उन माँ-बाप का इस्तकबाल करते हैं,
जो अपने लहू-पसीने की मेहनत से
अपने बच्चों के मुस्तकबिल को रोशन करते हैं।
"आओ, सजदा करूं मैं उन फिजाओं को,
जिनसे आती है मेहमानों की महक,
ये महफिल में आई हुई रौनकें,
दिल से की जाती है उनकी महक।
जो भी आए हैं इस महफिल में,
उनके क़दमों में बिछ जाएं ये फूल,
शुक्रगुज़ार हैं हम आपके आने का,
करते हैं दिल से आपका इस्तकबाल।
कौन कहता है कि चांद में दाग है,
आपकी तासीर ही कुछ और है,
मेहमान बनकर आए हैं आप,
महफिल की रौनक ही कुछ और है।'
तो दिल से करते हैं इस्तकबाल आपका,
आपके आने से महक गई ये महफिल हमारी।”
अब मैं आपको बताना चाह रहा हूं।
"आज का दिन, यौम ए आजादी, वह दिन है जब हमारे बुज़ुर्गों ने अपने खून से आजादी की सरज़मीन को रंगीन किया। ये वो वक़्त था जब हमारी दुआओं ने आसमानों को चीर दिया, और हमारी कुर्बानियों ने ज़मीन को महकाया।”
तारीख और शायरी का जोड़:
"जब ज़ालिम हुकूमत की जंजीरों में हमारा हिंदुस्तान कैद था, तब हमारे मजलूम लेकिन दिलेर शहीदों ने आवाज़ उठाई:
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है।
ये वो शेर है जिसने हर नौजवान को इंकलाब का पैगाम दिया और हर माँ ने अपने लाल को वतन के लिए कुर्बान करने का हौसला दिया।”
खूबसूरती का जिक्र:
"यह मुल्क, हिंदुस्तान, एक ऐसा गुलदस्ता है जिसमें हर फूल की खुशबू है। यहाँ की मिट्टी में वो तासीर है कि उसमें इंसानियत की बेल खड़ी होती है। आइए इस खूबसूरती को अपने अंदाज में बयान करें:
हम वतन के फूल हैं, और यहाँ हर रंग का है गुल,
हमारी आस्तीं में है महक, हर इक बुलबुल की धुन।”
जोश और जुनून भरें:
"आज हम सब यहां एकत्रित हुए हैं इस यौम ए आजादी को यादगार बनाने के लिए। हमारा हर लफ्ज़, हर अंदाज़, इस बात की गवाही देगा कि ये आजादी हम पर कुरबानियों की अमानत है। और इसे बनाए रखने का जिम्मा हम सब पर है।”
समापन:
"तो आइए, इस जश्न-ए-आजादी के मौके पर अपने वतन को सलाम करें, और उन सभी को याद करें जिन्होंने हमें ये खूबसूरत आजादी दी।"
शहीदों की मज़ारों पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशाँ होगा।
"वतन की हिफ़ाज़त करूँगा मैं जब तक जान में जान है, अल्लाह करे ज़िन्दा रहे ये मुल्क जब तक आसमान में जान है”
आज हम 78वां यौम-ए-आज़ादी मना रहे हैं। ये वो दिन है, जब हमें हमारी मेहनत, हमारे बलिदान और हमारे जुनून का इनाम मिला। इस दिन को हम केवल एक तारीख के रूप में नहीं, बल्कि अपने जज़्बात के रूप में याद करते हैं। ये वो तारीख है, जब हम अपने पुरखों की कुर्बानियों को याद करते हुए, उनके अरमानों को पूरा करने का वादा करते हैं।
देश की खूबसूरती का बयान:
आज का ये हिंदुस्तान, एक गुलशन की तरह है, जिसमें हर रंग और हर मिज़ाज का फूल खिलता है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई – सब मिलकर इस वतन की तख़्त पर बैठे हैं। यही वो खूबसूरती है, जो हमारे मुल्क को सबसे अलग और सबसे प्यारा बनाती है। यहाँ के हर शहर में, हर गली में, हर दिल में, बस एक ही धुन सुनाई देती है – "हम हिंदुस्तानी हैं।”
आखिरी दुआ:
"अल्लाह से दुआ है कि हमारा ये मुल्क हमेशा आज़ाद रहे, और इसकी खूबसूरती और इसकी गंगा-जमुनी तहज़ीब को कोई आंच न पहुंचे। आमीन!”
..
आज इस पाक मौके पर जब हम आज़ादी का जश्न मना रहे हैं, तो हमारे दिलों में एक नई उमंग और नया जोश देखने को मिल रहा है।
जब कोई पहली बार कुछ सीखता है, तो गलती करना एक आम बात है। हम सब जानते हैं कि यह बच्चे पहली बार इस मंच पर आ रहे हैं, और शायद उनसे कुछ गलतियां हो जाएं। लेकिन हमें उन्हें हिम्मत देनी चाहिए, उनकी कोशिशों को सराहना चाहिए।
जैसा, मैं शकीलुद्दीन अंसारी हमने बताया , ‘कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।’ हमने अपनी मेहनत और लगन से इन बच्चों को तैयार किया है। जब हम भी पैदा हुए थे, तो बोलना भी हमने वक्त लेकर सीखा था, और यही बच्चे भी अपनी मेहनत से एक दिन उस मुकाम पर पहुंचेंगे, जहां से उन्हें दूर-दूर तक याद रखा जाएगा।
आज अगर ये बच्चे डरते हैं, तो हमें उनके साथ खड़ा होना चाहिए, उनका हौसला बढ़ाना चाहिए। मैं,शकीलुद्दीन , हमने अलीगढ़ से जो चीजें सीखी थीं, वो आज हमारे सामने पेश कर रहे हैं। यही बच्चे भी आज यहां सीखेंगे और कल कहीं बाहर जाकर उन बातों को सिखाएंगे।
आइए, इन बच्चों की मेहनत और लगन को सलाम करते हैं और दुआ करते हैं कि आने वाले समय में यहां से जो भी बच्चे निकलेंगे, वो नाम रोशन करेंगे।
जैसे कि किसी शायर ने कहा है:
‘कदमों के निशां तकदीर बनाते हैं,
रास्तों की धूल से सितारे बनते हैं।
ख्वाबों के सफर में कभी ठहर मत जाना,
हर ठोकर से नए मंजिल के इशारे बनते हैं।’
आइए, इन बच्चों को अपने दिल से दुआएं दें और उनकी हौसला अफजाई करें। आपके प्यार और दुआओं के साथ, ये बच्चे भी एक दिन कामयाबी की बुलंदियों को छूएंगे।"
☘️1.अजमेर बानो,☘️
"बिस्मिल्लाह हिर रहमान निर रहीम।"
"अलहमदुलिल्लाह, आज इस खुशनुमा महफ़िल में एक ऐसी शख्सियत को दावत दी जा रही है, जो अपनी मासूमियत से हर दिल को जीत लेती है। उनकी नज़रों में नूर और लफ्ज़ों में मिठास है।"
"आपके सामने पेश करने जा रहे हैं उस मोतबर हस्ती को, जिनके कलाम में है इबादत की खुशबू और जज्बातों की ताजगी।"
"दिलो में मुहब्बत और अल्फाज़ में शेरो शायरी का जादू लेकर आ रही हैं, हमारी प्यारी बहन, अजमेर बानो।"
"तशरीफ लाएं अजमेर बानो, जो अपने अल्फाजों से हमारे दिलों को रौशन करेंगी।”
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☘️2.सवालिया और आलिया
मंच पर अगली तैयारी के लिए हम बुला रहे हैं उन दो कलियों को, जो अपने सुरों से हिंदुस्तान की खुशबू फैलाने आ रही हैं। आइए, स्वागत करते हैं सवालिया और आलिया का, जिनकी आवाज़ में बसता है देश का प्यार, और जिनके गीतों में झलकता है हर दिल की धड़कन। सुनिए इनकी आवाज़ को और शेरो-शायरी की नज़ाकत के साथ।"
"दिल में है प्यार, ज़ुबां पर हैं नग़में,
आज सवालिया और आलिया, सुरों से रंगेंगे ये सपने।”
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☘️3.शिफा हुसैन☘️
"आपकी तालियों की गूंज में हम दावत दे रहे हैं उस शख्सियत को, जिनके शब्दों में आज़ादी की जंग का जोश और जज़्बा है। वो जो अपने कलाम से हमारे दिलों में मोहब्बत-ए-वतन को और गहरा करने आ रही हैं। शेरों-शायरी की खूबसूरत चादर में लिपटे उनके अल्फ़ाज़ हमें उस दौर में ले जाएंगे, जब हमारी हिंदुस्तान की आज़ादी के लिए हर दिल धड़कता था।
"मोहब्बत वतन की शिद्दत से वो दिल में लिए आती हैं,
शिफा हुसैन अपने लफ्ज़ों से एक नई राह दिखाती हैं।"
आइए, ज़ोरदार तालियों से स्वागत करें, शिफा हुसैन का, जो हमें आज़ादी की लड़ाई के उन रंगीन और जोशीले पहलुओं से रूबरू करवाने आ रही हैं।”
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☘️4.सावेश रजा और हर्ष शर्मा☘️
कमेंट्री:
"मंच पर तशरीफ़ ला रहे हैं वो शख्सियत, जिनकी आवाज़ में है एक अलग ही शान, और जिनके गीतों में है वो मिठास, जो दिलों को छू जाए। मसर्रतों और मोहब्बतों का ये पैगाम, लेकर आ रहे हैं हमारे अपने सावेश रजा और हर्ष शर्मा उनके कुछ दोस्त जो साथ में यह हिंदुस्तानी गीत गाएंगे।
जिनकी शायरी से महफ़िल रोशन हो जाती है, और जिनके गीतों में है वो जादू, जो बरसों याद रहता है। आइए, उनका इस्तकबाल करें, सुनते हैं ये मशहूर नगमा जो हर दिल की धड़कन बन चुका है।
शेर:
"दिलों में उल्फतें सजाकर हम चले हैं,
मोहब्बतों की राह पे, रौशनी जलाकर हम चले हैं।
जहाँ में फैला देंगे पैगाम-ए-इश्क,
सावेश रजा के नगमों में वही नूर लेकर हम चले हैं।"
तशरीफ़ लाते हैं, सावेश रजा!”
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☘️5.इल्मा खान☘️
कमेंट्री:
अर्ज़ है,
वो दिन था वो जमाना था, जब चमन में खून बहाना था,
आज़ादी की जो बात हुई, तो हर दिल में एक चिंगारी थी छुपी।
आज हम उस आज़ादी के गुलशन में, इल्म की सुगंध को ले आए हैं,
जहां अपने मुल्क के वतन परस्तों की कुर्बानियों ने हमें सरफ़राज़ किया।
अब आप सबके सामने तशरीफ ला रही हैं, इल्म की चमकदार सितारा,
जनाब इल्मा खान साहिबा,
जो हमें याद दिलाएंगी उस दौर की बातें, जब आज़ादी का सूरज उग आया था।
[थोड़ा रुक कर, संजीदा अंदाज में]
आज हम उनके क़दमों के निशान पर चलते हुए,
आज़ादी के असली मायने समझने की कोशिश करेंगे।
तो मर्कज़ पर इस्तकबाल कीजिए, हमारी मुल्क की शान, इल्मा खान साहिबा का,
जो आज आपके सामने पेश करेंगी, यौम-ए-आज़ादी पर एक बेहतरीन तकरीर।
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☘️6.ताबिक खान☘️
अब मंच पर तशरीफ ला रहे हैं ताबिक खान, जिनकी जुबां से निकलने वाली शायरी हर दिल को छू लेती है। वो आज हमें हिंदुस्तान की मशहूर शायरी से नवाजेंगे। ताबिक खान का अंदाज ही कुछ ऐसा है कि उनके मुंह से हमेशा शेरो शायरी की खुशबू बिखरती रहती है। आइए, हम सब मिलकर उनका इस्तकबाल करें और उनकी बेहतरीन शायरी का लुत्फ उठाएं,
आज की इस पाक और मुबारक महफिल में हम आपको हिंदुस्तान की मशहूर शायरी से रूबरू करवाने जा रहे हैं। इस महफिल की रौनक बढ़ाने के लिए, मैं दावत देता हूँ जनाब ताबिक खान साहब को। ये वो शख्सियत हैं, जिनकी ज़ुबान से हर वक़्त सिर्फ शेरो शायरी ही निकलती है।
ज़ुबां पर लफ्ज़ हों पाक और दिल में हो वफा,
ये वो लोग हैं जो हर बात में रखते हैं खुदा से दुआ।'
तो आइए, ताबिक खान साहब को सुनते हैं और उनके शेरो शायरी के साथ अपने दिलों को पाकीज़ा करते हैं। जनाब ताबिक खान साहब, आपके मुबारक क़दमों से ये मंच रोशन फरमाएं!”
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☘️7.फिज़ा अंसारी☘️
"आज के इस खास मौके पर, जब हम आज़ादी के दीवानों को याद कर रहे हैं, तो हमारे बीच मौजूद हैं एक ऐसी छात्रा, जो हमें उन अनगिनत बलिदानों की याद दिलाने के लिए तैयार हैं। वो शायरी की मिठास में लिपटी, वो दास्तानें सुनाएंगी जो हमारे दिलों में आज भी ज़िंदा हैं।
शेर:
'हर एक कतरा था जिनका वतन के नाम,
वो शहीद हैं आज भी, वो हैं आज भी फरमान।'
तो आईए, स्वागत करें फिज़ा अंसारी का, जो हमें बताएंगी उन मुसलमानों की कुर्बानियों के बारे में, जिन्होंने खून की नदियां बहाईं, और उन औरतों के बारे में, जिन्होंने अपने खून-पसीने से आजादी की चट्टानें तराशी।
'पाकीज़ा था उनका मकसद, पाकीज़ा है उनका नाम,
हर दिल में बसी है आज़ादी की वो तमाम।'
फिज़ा अंसारी का मंच पर स्वागत है,
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☘️8.अजमेर बानो और जासमीन,☘️
कमेंटेटर:
"ज़िन्दगी में कामयाबी की राहों पर चलने के लिए ज़रूरी है कि हम अपने वक्त का सही इस्तेमाल करें। पर आज की नई पीढ़ी सोशल मीडिया के जाल में फंसकर अपने कीमती वक्त को बर्बाद कर रही है।"
"इस मौजूदा समय में इंस्टाग्राम जैसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बच्चों के लिए पढ़ाई-लिखाई छोड़कर समय बर्बाद करने का एक साधन बनता जा रहा है। क्या है इसका सच, और कैसे इसका सही इस्तेमाल किया जाए? इसी पर रौशनी डालने के लिए आज मंच पर आ रही हैं दो होशियार और समझदार लड़कियां, जो हमें बताएंगी इंस्टाग्राम के फायदे और नुकसान।"
"तो पेश-ए-खिदमत हैं हमारी प्यारी बहनों, अजमेर बानो और जासमीन, जो अपने अल्फ़ाज़ों में, पाकिस्तानी अंदाज़ में हमें जागरूक करेंगी।"
(शायरी अंदाज़ में, अजमेर बानो के लिए):
"कहीं से रोशनी आएगी, कोई तारा टूटेगा,
ज़िन्दगी का हर पहलू अजमेर समझाएगी।
इंस्टाग्राम का सच है बड़ा गहरा,
सही और ग़लत का फर्क वो हम सबको दिखाएगी।"
(शायरी अंदाज़ में, जासमीन के लिए):
"हर गुलाब की खुशबू, जासमीन की बातें हैं,
हर लम्हा सीखने का सबक उसमें समाया है।
इंस्टाग्राम की दुनिया है रंगीन,
पर वो बताएगी कैसे ये राहें ज़िन्दगी की नहीं परछाई हैं।"
कमेंटेटर:
"तो चलिए, दिलों को खोलते हैं और अपनी नज़र से इस सोशल मीडिया के दौर को देखते हैं, जहां से हमें खुद की कामयाबी की तरफ बढ़ना है, न कि भटकना। अजमेर बानो और जासमीन, आपके सामने हैं!"
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9.☘️फैजान और अरबाज☘️
आज की ये रंगीन शाम कुछ खास है, क्योंकि हम बुलाने जा रहे हैं उन नौजवानों को, जिनके हौसले बुलंद हैं, पर रास्ता थोड़ा सा गलत है।
फैजान और अरबाज, दोनों ऐसे सितारे हैं जो बिना पढ़ाई के, बिना मेहनत के, खुद को बड़ा एक्टर समझ बैठे हैं। लेकिन हक़ीक़त ये है कि सिर्फ रील्स बनाने से कोई असली किरदार नहीं बनता।
जमाने को जो दिखाते हैं, खुद को बड़ा एक्टर बताते हैं,
मगर इरादों की कमी, और पढ़ाई से दूरी, न जाने किस मंज़िल तक ये जाते हैं।
इन दोनों से गुज़ारिश है कि अपनी जिंदगी की असली फिल्म में पढ़ाई का भी हिस्सा रखें, क्योंकि बिना पढ़ाई के, बिना मेहनत के कोई भी मंज़िल आसान नहीं होती।
अब मंच पर बुलाते हैं फैजान और अरबाज को, जो अपने अनुभव और विचारों से आज की जनरेशन को एक खास पैग़ाम देंगे।
ताज पहना है तो सिर को झुका कर रखो,
अदब सीख लो, इल्म से रिश्ता बना कर रखो।
'यारो, खुदा के वास्ते पढ़ाई पर ध्यान दो,
बर्बाद ना करो वक्त, जिंदगी को आसान करो।'
अब आप सबकी जोरदार तालियों के साथ, फैजान और अरबाज का स्वागत करते हैं!"*
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☘️ 10. फिजा अंसारी और इल्मा खान ☘️
"ज़माने की रफ्तार से जो कदम मिलाते नहीं,
वो क़िस्मत की राहों में मंज़िल पाते नहीं।
आज की पीढ़ी है, जो पढ़ाई से दूर जाती,
बेरोजगारी के अंधेरों में खुद को पाती।
लेकिन फिज़ा अंसारी और इल्मा खान ने आज ठानी है,
फ्री फायर के नक़्शों में जो खोए हैं, उन्हें राह दिखानी है।
अंदाज़ में करेंगे ये बेमिसाल बयान,
इनका स्वागत है आज, बेमिसाल शेरो-शायरी के संग, फिज़ा अंसारी और इल्मा खान!”
"हमारा वक्त क़ीमती है, ये समझ लो दोस्तों,
फ्री फायर की आग में इसे मत जलाओ दोस्तों।
पढ़ाई की किताबों से बनाओ अपनी पहचान,
तभी मिलेगा जीवन में कामयाबी का मुकाम।
फिज़ा अंसारी और इल्मा खान आज करेंगे ये पैगाम,
सुनकर बदल जाएगा शायद सबका इंतज़ाम।”
आइए, हम फिजा अंसारी और इल्मा खान का तालियों के साथ स्वागत करें, जो हमें फ्री फायर के नुकसान और पढ़ाई-लिखाई की एहमियत के बारे में बताने वाले हैं!”
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☘️11.फराना बानो☘️
‘‘हर दिल में वतन की मोहब्बत का पैगाम है,
1857 और 1947 की कुर्बानियों की ये शाम है।
आज फराना बानो हमारे साथ आईं हैं,
उनके लफ़्ज़ों में बसी हमारे शहीदों की आवाज़ है।
वो बताएंगी हमें उन वीरों के नाम,
जिन्होंने दी थी वतन पर अपनी जान की दुआ।
आइए, स्वागत करें फराना बानो का,
जिनके लफ्ज़ों में छुपा है वतन का पैगाम।
ख़ुदा की रहमत से इस, मंच को सजाते हुए, आइये फराना बानो का इस्तकबाल करें।”
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कमेंट्री:
☘️12.शाहनवाज साहब☘️
"जब अल्फ़ाज़ में जादू हो और दिलों में जज़्बात,
शायरी जब बन जाए अंदाज़े-बयानात,
तो समझिए कि मंच पर आ रहे हैं वो,
जिनके लफ़्ज़ों में बसी है सच्चाई की बात।
दूर से आई है एक आवाज़,
जैसे हिंदुस्तान की हवा में बसी हो कोई साज़,
जो सुनता है, वो हो जाता है बेकरार,
और आज हम सबको करेंगें वो शेरो-शायरी से सरशार।
मंच पर बुलाते हैं, दिल से वेलकम करते हैं,
उन शख्सियत को, जिनके अल्फ़ाज़ों में है पूरा जहां।
तहे दिल से इज़्ज़त के साथ,
शाहनवाज का स्वागत करते हैं इस शायराना मंच पर,
जहां हर शेर में छिपा है एक हसीन सपना।”
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☘️13.☘️
अब्दुल मुत्तलिफ़ साहब से गुजारिश
"हमें मंच पर तशरीफ लाने वाले हैं वो शख्सियत, जिनकी बातों में इमान की रोशनी और लफ़्ज़ों में मोहब्बत का रंग होता है। जिनकी जुबान से निकलते हैं वो अल्फ़ाज़, जो दिलों को छू लेते हैं और यादों में बस जाते हैं। आज की इस पाकीज़ा महफिल में, जब हम अपनी आज़ादी की बात करेंगे, तो उनकी तहरीर में हमें वो हौंसला मिलेगा जो हमारे आबा-ओ-अजदाद ने 1947 में पाया था।
दिलों में बसा हर एक ख़्वाब था,
वो आज़ादी का एक प्यारा सा हिसाब था।
तारीख़ की इबारतों में सुनहरे हरफ से लिखा,
वो हमारे मुल्क का सबसे बड़ा इंसाफ था।
अब बुलाते हैं उस शख्स को,
जिसकी आवाज़ में है आज़ादी का जुनून।
अब्दुल मुत्तलिफ़ साहब से गुजारिश है,
कि अपने लफ़्ज़ों से करें रौशन यह महफिल का सुकून।
"वतन से मोहब्बत का ये जज़्बा दिखाते रहेंगे,
शहीदों की कुर्बानियों को याद दिलाते रहेंगे।
जिन्होंने दिया हमें यह प्यारा वतन आज़ाद,
उनकी राहों पर अब्दुल मुत्तलिफ़ हमें ले जाते रहेंगे।”
ख़्वाबों में रंग भरने आए हैं वो,
आज़ादी की रूह से हमें रूबरू करवाने आए हैं वो।”
तो लीजिए, एक बार ज़ोरदार तालियों के साथ इस्तकबाल कीजिए, जनाब अब्दुल मुत्तलिफ साहब का, जो अपने बेपनाह इल्म और हिन्दुस्तानी शायरी के अंदाज में हमें आजादी की राह दिखाने के लिए तशरीफ ला रहे हैं।”
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☘️Intzaar Khan 14☘️
ज़ुबां पर इबारतें सजाए, दिल में मुल्क का प्यार लिए,
आ रहे हैं इंतजार खान, इंग्लिश में देश का जज़्बा बयां किए।
अहद का वादा, वतन की मिट्टी से किया है इन्होंने,
ख़ुदा से दुआ है, हर कदम पर रहमत हो इनके साथ।”
"Please join me in welcoming our esteemed speaker, Intzaar Khan, who will enlighten us with his insights on [India]. As he graces the stage, let's remember the timeless words of poets who inspire us to love and cherish our homeland.”
It is with great pleasure and immense pride that we welcome Mr. Intezaar Khan to this stage today. As we gather to commemorate the historic occasion of India's Independence Day, there could be no better moment to hear from a person of his caliber, who stands as a beacon of knowledge and patriotism.
Mr. Intezaar Khan has always been a voice of reason and inspiration, embodying the spirit of our nation through his eloquence and profound understanding of our country's journey. Today, as he takes the stage, we are eager to listen to his reflections on the significance of the 15th of August – a day that marks not just our freedom, but the resilience, sacrifice, and unity of millions of Indians.
So, without further ado, please join me in giving a warm and heartfelt welcome to Mr. Intezaar Khan, as he enlightens us with his thoughts on this momentous day."
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"सभी को अस्सलामु अलैकुम! आज हम यहाँ एक ऐतिहासिक पल का जश्न मनाने के लिए इकट्ठा हुए हैं—78वीं आज़ादी की सालगिरह पर। यह दिन हमें हमारे मुल्क की शान और हमारी स्वतंत्रता के संघर्ष की याद दिलाता है। हमारे पूर्वजों ने अपनी जान की क़ुरबानी दी, ताकि हम आज़ादी की सांस ले सकें। इस जश्न के मौके पर, हम सब मिलकर अपने वीरों की शहादत को याद करते हैं और उनके योगदान को आदब करते हैं। आज का दिन हमारे लिए एक नया आशा, एक नया विश्वास लेकर आया है। चलिए, इस खूबसूरत दिन को अपने हौसले और संकल्प के साथ मनाएं।”
ख़ुदा की राह में हर दर्द हमें हज़ार बार गवारा है,
इस ज़मीन पर हुकूमत हमारी आज़ादी की मिसाल है।
नफ़रतों की रात को हम ने जो चाँदनी बनाई,
वो आज़ादी का आलम हम अपने दिल में बसाए।
चाहे सहरा हो या दरिया की लहरें हों,
हमने सबको अपनी आज़ादी से गुलजार किया।
आज के दिन को हर दिल ने हर सांस में महसूस किया,
हमने मुल्क को आज़ादी की ओर बढ़ाया।”
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हमारे प्यारे उस्तादों से दरखास्त है कि बच्चों को ईमानदारी और सच्चाई से पढ़ाएं। जैसे हम हर परिस्थिति में खुद को आगे बढ़ाते हैं, उसी तरह आप भी शिक्षा के क्षेत्र में समय के अनुसार बदलाव लाएं। हमारे स्कूल के मालिक से भी अनुरोध है कि जैसे इंसान समय के साथ बदलता है, वैसे ही पढ़ाई में भी नवीनता लाएं। आज की नई तकनीक और विधियाँ अपनाकर, शिक्षा को और भी प्रभावी और उपयोगी बनाएं। हमें चाहिए कि स्कूल के अंदर चल रही नई चीजों को भी शामिल किया जाए ताकि हमारे बच्चे न केवल आज के समय के अनुरूप पढ़ाई करें, बल्कि भविष्य की चुनौतियों का भी सामना कर सकें।
ईमानदारी से शिक्षा: बच्चों को सच्चाई और ईमानदारी से पढ़ाना।
समय के अनुसार बदलाव: समय के हिसाब से पढ़ाई में बदलाव लाना।
नई तकनीक और नियम : नई तकनीकों और नियम को अपनाना।
भविष्य के लिए तैयारी: बच्चों को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार करना।
स्कूल की नई पहल: स्कूल के अंदर चल रही नई चीजों को शामिल करना।
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सच्चाई की राह पर चलना सब पर फ़र्ज़ है, खासकर शिक्षा के क्षेत्र में। जब उस्ताद क्लास में आकर गप्पें मारते हैं और बच्चों का सिलेबस नहीं पढ़ाते, तो यह उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ होता है। गरीब घर के बच्चे जो उम्मीद लगाए बैठे हैं, उनका समय बर्बाद होता है।
उस्ताद की जिम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए मालिक को चाहिए कि:
खुद निगरानी रखें: हर महीने एक-दो बार क्लास में जाकर बच्चों की कॉपियाँ देखें, ताकि यह पता लग सके कि पढ़ाई सही तरीके से हो रही है या नहीं।
ईमानदारी से शिक्षा: फीस लेने के बाद मालिक की जिम्मेदारी है कि वे सुनिश्चित करें कि उस्ताद ईमानदारी से पढ़ाई करवा रहे हैं।
“किसी के घर में जो पढ़ाई का आलम दिखे,
उस्ताद की गप्पों से बच्चों का भविष्य धुंधला हो जाए।
मालिक की निगरानी से ईमानदारी की राह हो,
वरना ये मासूम बच्चे अपने सपनों को खोते जाएंगे।
मालिक को चाहिए कि शिक्षा की जिम्मेदारी को सही तरीके से निभाएं, ताकि हर बच्चा अपनी पूरी क्षमता के साथ तरक्की कर सके।
"लिखने पढ़ने की शिक्षा हर मुसलमान पर फर्ज है।"
(हदीस: इब्न माजा)
"हज़रत मोहम्मद (स) ने फरमाया है: 'जो अपने बच्चे को अच्छा तालीम दे, वह उसकी बेहतरी के लिए काम करता है।'"
(हदीस: सही मुस्लिम)
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