Friday, 24 January 2025

यह जानकारी शकीलउद्दीन अंसारी द्वारा इकट्ठी की गई है, जिसमें भारत की स्वतंत्रता संग्राम में मुस्लिम व्यक्तित्वों और उनके नारों की विस्तार से चर्चा की गई है। ये नारे और शख्सियतें हिंदुस्तान की आज़ादी की लड़ाई का अहम हिस्सा हैं, और उनकी कोशिशें व कुर्बानियां हमें आज़ादी की सच्ची कीमत का एहसास कराती हैं।

26 जनवरी का दिन हिंदुस्तान के इतिहास में एक अहम दिन है, जिसे हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। यह दिन 1950 में हिंदुस्तान के संविधान को लागू करने के लिए चुना गया था। इस दिन हिंदुस्तान में एक नया युग शुरू हुआ, जिसमें जनता को खुद के हक और स्वतंत्रता का एहसास हुआ।26 जनवरी 1950 को हिंदुस्तान में संविधान लागू हुआ था, और हमारे देश को गणराज्य की स्थिति मिली। यानि कि अब हमारा देश पूरी तरह से स्वतंत्र था, और हमारा संविधान ही सर्वोच्च था। इस दिन के साथ ही हिंदुस्तान ने अपने लोकतंत्र के जश्न का आगाज़ किया। ये वो दिन था जब हमारे देश को सच्ची स्वतंत्रता मिली, जिसमें लोगों को बराबरी का अधिकार मिला, और यह संविधान भारतीय संस्कृति और समाज के मूल्यों को बखूबी दर्शाता है।26 जनवरी 1950 के दिन, दिल्ली में एक भव्य समारोह आयोजित किया गया था, जिसमें भारतीय सशस्त्र सेनाओं की परेड हुई और हम ने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। यह दिन भारत की एकता और अखंडता का प्रतीक बन गया। इस दिन को मनाने का मकसद सिर्फ़ संविधान की महत्ता को दर्शाना नहीं, बल्कि भारत की स्वतंत्रता संग्राम की क़ीमत को याद करना भी था।हमारे संविधान निर्माता, डॉ. भीमराव अंबेडकर और उनके साथी, जिन्होंने इस संविधान को तैयार किया, उनका योगदान आज भी हमें याद रहता है। उनका उद्देश्य समाज में समानता, बंधुत्व, और न्याय स्थापित करना था।
इस दिन को उर्दू हिंदी में इस अंदाज में भी समझा जा सकता है:
"26 जनवरी का दिन हिंदुस्तान के लिए बड़ा अहम है। 1950 में इस दिन हिंदुस्तान का संविधान लागू हुआ था, और यही दिन था जब हिंदुस्तान एक गणराज्य बना। इसका मतलब था कि अब हिंदुस्तान में हर इंसान को बराबरी का हक मिलेगा। संविधान के आने के बाद, हिंदुस्तान में कानून के सामने सब बराबर हो गए थे, और हर नागरिक को अपने अधिकारों का पूरा सम्मान मिलना शुरू हुआ। यही वजह है कि हम इस दिन को 'गणतंत्र दिवस' के तौर पर मनाते हैं और ये दिन हमारे लिए एक नई शुरुआत की तरह होता है, जो हमारे लोकतंत्र की ताकत को साबित करता है।"
इस दिन का मनाना हिंदुस्तान के हक और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वालों को श्रद्धांजलि देने जैसा है, और यह पूरे देश में हर नागरिक को उनके अधिकारों का एहसास कराता है।

"26 जनवरी हम सब के लिए एक अहम दिन है, ये दिन हमें याद दिलाता है कि हिंदुस्तान ने अपने संविधान को अपनाया था। और इसी दिन से हमारे मुल्क ने एक लोकतांत्रिक सिस्टम की शुरुआत की थी। चाहे हम हिंदू हों या मुसलमान, सिख हों या ईसाई, हर मजहब और बिरादरी के लोग इस दिन का हिस्सा हैं। हम सब को एकता और भाईचारे का रास्ता अपनाना चाहिए, क्योंकि यही हमारे मुल्क की असल ताकत है। गणतंत्र दिवस हमें सिखाता है कि हम सब एक हैं, चाहे हमारी पहचान अलग हो, हमारी जड़ें एक ही मुल्क में हैं।"
इस दिन को मनाने का असल मकसद यही है कि हम हर धर्म, जाति, और समुदाय के बीच एकता और सद्भाव बढ़ाएं, और भारत को एक ऐसे देश के रूप में देखें, जो हर व्यक्ति को समान अधिकार और अवसर देता है।

युसुफ़ मेहर अली
युसुफ़ मेहर अली एक बड़े इंक़लाबी लीडर थे। उन्होंने 'भारत छोड़ो' का नारा दिया था, जो 1942 की भारत छोड़ो तहरीक का सबसे अहम नारा बना। ये नारा अंग्रेज़ हुकूमत के खिलाफ़ खुली बगावत का ऐलान था। युसुफ़ मेहर अली, कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के बानी (संस्थापक) में से थे और उनकी जिंदगी का मकसद गरीबों के हक के लिए लड़ना था।

आबिद हसन सफरानी
आबिद हसन सफरानी ने 'जय हिंद' का नारा दिया। ये नारा आज हिंदुस्तान की मिल्ली पहचान बन चुका है। आबिद हसन, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के करीबी साथी थे और आज़ाद हिंद फौज का हिस्सा थे। सफरानी साहब का ये नारा हिंदुस्तान के हर बच्चे की जुबान पर है।

अल्लामा इक़बाल
अल्लामा इक़बाल को कौन नहीं जानता। उन्होंने 'तराना-ए-हिंद' यानी 'सारे जहाँ से अच्छा, हिंदोस्तां हमारा' लिखा। ये तराना 1904 में लिखा गया और आज भी हर हिंदुस्तानी के दिल को छूता है। अल्लामा इक़बाल एक बड़े शायर और फलसफ़ी (दर्शनशास्त्री) थे।अल्लामा इक़बाल ने 'इंक़लाब ज़िंदाबाद' नारा दिया था. इसका मतलब है, 'क्रांति अमर रहे'. भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों ने दिल्ली की असेंबली में 8 अप्रैल, 1929 को आवाज़ी बम फोड़ते समय इस नारे को बुलंद किया था

हसरत मोहानी
हसरत मोहानी ने 'इंक़लाब ज़िंदाबाद' का नारा दिया। ये नारा अंग्रेजों के खिलाफ़ आज़ादी के जज्बे की पहचान बन गया। हसरत मोहानी एक आज़ादी के सिपाही होने के साथ-साथ एक बेहतरीन शायर भी थे। उनकी ग़ज़लें और शायरी हर किसी को इंसाफ़ और इंक़लाब की तरफ़ बुलाती हैं।

सुरैया तैयब जी
सुरैया तैयब जी ने हमारे तिरंगे को वो शक्ल दी जो हम आज देखते हैं। उन्होंने तिरंगे का डिजाइन ऐसा बनाया जो हर मज़हब, तबके और इलाक़े को एक साथ जोड़ता है। उनका ये योगदान वतन की तारीख़ में सुनहरे अक्षरों से लिखा गया है।

अज़ीम उल्लाह ख़ान
अज़ीम उल्लाह ख़ान वो शख्स हैं जिन्होंने 1857 के ग़दर में 'मादरे-वतन भारत की जय' का नारा दिया। ये नारा उस वक्त अंग्रेजों के खिलाफ़ जंग का ऐलान था। अज़ीम उल्लाह ख़ान का मकसद हिंदुस्तान को अंग्रेजों से आज़ाद कराना था।

बिस्मिल अज़ीमाबादी
बिस्मिल अज़ीमाबादी ने 1921 में 'सरफ़रोशी की तमन्ना' लिखी। ये नज़्म क्रांतिकारियों के जोश को बढ़ाने और आज़ादी की राह में जान देने वालों को खिराज-ए-अकीदत पेश करने का जरिया बनी। उनकी शायरी में जज्बा, जुनून और इंसाफ की गूंज थी।

खान अब्दुल ग़फ्फ़ार ख़ान (सरहदी गांधी)
नारा: “अहिंसा हमारा रास्ता है”
साल: 1930
तफ्सील: पेशावर से ताल्लुक रखने वाले खान अब्दुल गफ्फार खान ने अहिंसा के मार्ग को अपनाते हुए स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। उनका यह नारा बंटवारे के वक्त भी अमन और भाईचारे का संदेश देता रहा।

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद
नारा: “हम हिंदुस्तानी हैं और हिंदुस्तान हमारा है”
साल: 1920 के दशक में कांग्रेस के अधिवेशनों में अक्सर इस्तेमाल किया।
तफ्सील: मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, भारत के पहले शिक्षा मंत्री, ने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के लिए यह नारा दिया। उनका उद्देश्य था कि सभी धर्मों के लोग एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ें।

सैयद अहमद खान
नारा: “तालीम ही तरक्की का रास्ता है”
साल: 1875 (अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना के समय)
तफ्सील: सर सैयद अहमद खान ने शिक्षा को मुसलमानों की तरक्की के लिए सबसे अहम जरिया बताया। उन्होंने यह नारा देते हुए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना की।

मोहम्मद अली और शौकत अली (अली ब्रदर्स)
नारा: “हमें खुदा पर यकीन है, अंग्रेजों पर नहीं”
साल: 1920 (खिलाफत आंदोलन के दौरान)
तफ्सील: खिलाफत आंदोलन में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोहम्मद अली और शौकत अली का योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने यह नारा देकर भारतीय मुसलमानों को अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट किया।


अशफाक़ उल्ला ख़ान
नारा: “सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है”
साल: 1925
तफ्सील: अशफाक़ उल्ला ख़ान ने काकोरी कांड में भाग लेकर अपनी जान कुर्बान कर दी। यह नारा उनकी शहादत और बलिदान को दर्शाता है।



ये सब शख्सियतें और उनके नारे हिंदुस्तान की आज़ादी की लड़ाई का एक अहम हिस्सा हैं। उनकी कोशिशें और कुर्बानियां हमें याद दिलाती हैं कि आज़ादी की कीमत कितनी बड़ी होती है।

तआरुफ़

शाकिलुद्दीन अंसारी ने इन तमाम शख्सियतों और उनके नारों से जुड़ी जानकारी को इकट्ठा किया है और इस दस्तावेज़ के जरिए आपके सामने पेश किया है। इन शख्सियतों की कोशिशें और कुर्बानियां हमें याद दिलाती हैं कि आज़ादी की कीमत कितनी बड़ी होती है।


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