Wednesday, 11 December 2024

गरीबों कीा कहानी की नज़्म

### नज़्म: **गरीब का हाल**  
ज़िंदगी के हर मोड़ पे, ठोकरों का सिलसिला,  
ना रोटी मुकम्मल, ना कपड़े का हौसला।  
आसमान नीचे गिरा, ज़मीन खिसक गई,  
हर सांस में फाक़ा, हर ख्वाब में मुश्किलें बढ़ गई।  

मिट्टी का घर, बारिशों में टूट गया,  
चूल्हा भी ठंडा, हर सपना छूट गया।  
बच्चे भी भूखे हैं, किताबें कहाँ से लाएँ,  
मज़दूरी में बचपन, खेलों से दूर रह जाएँ।  

हस्पताल की दहलीज़ पर आँसू गिरते हैं,  
दवाएँ महंगी हैं, ज़ख़्म बढ़ते हैं।  
बुखार की तपिश में, उम्मीद जलती है,  
गरीब की हालत, हर दिल को खलती है।  

सड़क किनारे सोता हूँ, ख़्वाब भी वहीं,  
चोरी और ख़तरा, यह जीवन है यहीं।  
न रोशनी, न पानी, अंधेरे की गुफा,  
गरीब की मुश्किलें, है दर्द की दास्तां।  

कहीं भेदभाव, कहीं नफरत का कहर,  
सवाल यह उठता, इंसानियत किधर?  
सरकारी वादे, बस काग़ज़ों में लिखे,  
हक़ीक़त में गरीब, हमेशा अधूरे दिखे।  

ज़िंदगी की कश्ती, तूफानों में उलझ गई,  
हर कोशिश में मंज़िल, और दूर निकल गई।  
पर ये गरीब दिल, फिर भी जीता है,  
हर दर्द को सहकर, ख़्वाब बुनता है।  

**दुआ यही, एक सुबह ऐसी आए,**  
जहाँ गरीब का बच्चा भी मुस्काए।  
हर रोटी मुकम्मल, हर घर रौशन हो,  
खुशियों की हर गली में, गरीब का भी मकान हो।  


ऐ खुदा! अब मेरे हिस्से का उजाला कर,
इन अंधेरों से मेरा मुक़ाबला आसान कर।
मुझे भी जीने का हक़ दे, सुकून का साया दे,
इस गरीब के जीवन को भी, थोड़ा तो सहारा दे।

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