Friday, 27 September 2024

The Messenger of Allah صلی ‌اللہ ‌علیہ ‌وسلم would say:

इस हदीस को सही तरीके से समझने और इस्तेमाल करने का मतलब है कि हमें उन परिस्थितियों को समझना होगा जहां इस्लाम में सच्चाई को सामान्य तौर पर प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन कुछ खास मौकों पर सुलह और भलाई के लिए नरमी से काम लेने की इजाजत दी गई है। आइए विस्तार से समझते हैं:
हदीस का मकसद:

इस हदीस में हज़रत उम्मे-कुलसूम-बिन्ते-अक़बा (रज़ि०) बताती हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने आमतौर पर झूठ बोलने की सख्ती से मुमानियत की है। मगर तीन मौकों पर झूठ की इजाजत दी है, ताकि भलाई हो सके:
1. लोगों के बीच सुलह कराने में:: जब दो लोग आपस में झगड़ रहे हों, और सुलह करवाने की नीयत से एक ऐसा बयान देना पड़े जो पूरी सच्चाई न हो, लेकिन उससे झगड़ा खत्म हो जाए।
   - इसका मतलब है कि अगर दो लोग आपस में लड़ रहे हों, और आप किसी ऐसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कह दें, जिससे दोनों के दिल में नर्मी आए और वे सुलह कर लें, तो इस मौके पर यह जायज है।
   
2. लड़ाई (जंग) में: जंग के हालात में दुश्मन को धोखा देने के लिए, जब झूठ बोलने की जरूरत हो। 
   - इसमें यह बात शामिल है कि जंग में दुश्मन को गलत जानकारी देना, ताकि मुसलमानों की हिफाजत हो सके, इसे बुरा नहीं माना गया है।

3. पति-पत्नी के बीच रिश्ते सुधारने के लिए : जब पति या पत्नी एक-दूसरे से कोई ऐसी बात कहें जिससे उनके रिश्ते में नर्मी आए और उनकी आपसी समझ बेहतर हो जाए।
   - इसका मतलब यह है कि अगर पति या पत्नी अपने पार्टनर को खुश करने या रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए कोई बात कह दें, जो पूरी तरह से सही न हो, लेकिन उससे रिश्ते में सुधार हो, तो इसे झूठ नहीं समझा गया है।

हदीस के इस्तेमाल का तरीका:
1. सुलह और इस्लाह (सुधार) के लिए झूठ का इस्तेमाल करना सिर्फ उसी वक्त जायज है, जब इसका मकसद लोगों के बीच झगड़े को खत्म करना हो और नतीजा भलाई हो।
   
2. जंग में अगर झूठ बोलकर मुसलमानों की जान-माल की हिफाजत की जा सकती हो, तो उस हालात में ये झूठ जायज है।

3. पति-पत्नी के रिश्ते में नर्मी लाने के लिएअगर कोई छोटी बात घुमा-फिराकर कही जाए, जिससे रिश्ते में दरार न आए और प्यार व मोहब्बत बनी रहे, तो इस तरह का झूठ बोलना जायज है।

इस हदीस का सही तरीका से इस्तेमाल:
 नियत: हर हाल में, यह याद रखना जरूरी है कि आपकी नीयत सिर्फ भलाई और सुलह की होनी चाहिए। अगर मकसद किसी को नुकसान पहुंचाना या अपने फायदे के लिए हो, तो यह हराम माना जाएगा।
- हद से न गुजरना: इस्लाम में झूठ सिर्फ इन तीन मौकों पर ही जायज है, और सिर्फ उतना ही बोला जाना चाहिए जितना जरूरी हो। इसे आदत बना लेना या गैर-जरूरी बातों में इस्तेमाल करना हराम होगा।
   
 हदीस नंबर 4921 अबू दाऊद की तफ़सीर:
इस हदीस का नंबर अबू दाऊद 4921 है और यह हमें सिखाता है कि सच्चाई इस्लाम का बुनियादी सिद्धांत है, लेकिन सुलह और भलाई के लिए झूठ का बहुत ही एहतियात से इस्तेमाल किया जा सकता है।
इस हदीस का इस्तेमाल ज़िम्मेदारी और समझदारी के साथ किया जाना चाहिए, ताकि इसका असली मकसद, जो सुलह और इस्लाह है, पूरा हो सके।

Umm Kulthum, daughter of Uqbah, said: I did not hear the Messenger of Allah صلی ‌اللہ ‌علیہ ‌وسلم giving licence for anything people say falsely except in three matters. The Messenger of Allah صلی ‌اللہ ‌علیہ ‌وسلم would say: I do not count liar a man who puts things right between people, saying a word by which he intends only putting things right, and a man who says something in war, and a man who says something to his wife says something to his husband.





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