रमज़ान मुबारक की तफसीर और डेफिनिशन
रमज़ान मुबारक इस्लाम का एक मुकद्दस महीना है जो इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक़ नौवां महीना होता है। रमज़ान का लफ़्ज़ "رمضان" अरबी ज़बान से निकला है, जिसका मतलब होता है "जलाने वाला" यानी ये गुनाहों को जलाने और पाक-साफ करने वाला महीना है। इस महीने में मुसलमान भाई-बहनों पर रोज़ा (सौम) फर्ज़ किया गया है और अल्लाह तआला इस महीने में नेकियों के दरवाज़े खोल देते हैं।
क़ुरआन पाक की रोशनी में:
"रमज़ान का महीना वो (मुबारक महीना) है जिसमें कुरआन उतारा गया, जो लोगों के लिए हिदायत है और (जिसमें) हिदायत और (हक़ व बातिल में) फर्क करने वाली रौशन दलीलें हैं। तो तुम में से जो कोई इस महीने को पाए, वो रोज़ा रखे।"
📖 (सूरह अल-बक़रह 2:185, कंजुल ईमान)
रोज़ा क्यों फर्ज़ किया गया?
रोज़ा मुसलमानों पर इसलिए फर्ज़ किया गया ताकि वो तक़वा (परहेज़गारी) इख्तियार करें और अपने नफ्स (ख़्वाहिशात) को कंट्रोल करें। रोज़ा इंसान को सब्र, सहनशीलता और अल्लाह की इबादत में बढ़ावा देता है।
क़ुरआन में अल्लाह फ़रमाते हैं:
"ऐ ईमान वालो! तुम पर रोज़ा फर्ज़ किया गया, जैसा कि तुम से पहले लोगों पर फर्ज़ किया गया था, ताकि तुम परहेज़गार बनो।"
📖 (सूरह अल-बक़रह 2:183, कंजुल ईमान)
रोज़ा इस्लामी तारीख़ के मुताबिक़ 2 हिजरी में फर्ज़ किया गया। यानी जब नबी-ए-पाक ﷺ मदीना तशरीफ लाए और इस्लामी हुकूमत कायम हुई, तो उस वक़्त रोज़े का हुक्म नाज़िल हुआ।
रोज़े से मिलने वाले फायदें
रूहानी पाकीज़गी – गुनाहों से बचाव और तक़वा की आदत
सब्र और इस्तिक़ामत – भूख-प्यास सहकर सब्र का इज़ाफा
ग़रीबों की भूख का एहसास – समाज में हमदर्दी और बराबरी का जज़्बा
सेहत के लिए मुफ़ीद – डिटॉक्सिफिकेशन, इम्यूनिटी बूस्टर
रिज़्क़ में बरकत – कमाने और खर्च करने की सही आदत
रमज़ान में मुसलमान भाई-बहनों को क्या करना चाहिए?
रमज़ान सिर्फ भूखा-प्यासा रहने का नाम नहीं, बल्कि इसका मक़सद अपने आपको गुनाहों से रोकना, अल्लाह की इबादत करना और नेक आमाल बढ़ाना है।
सहरी और इफ़्तार – सहरी में उठकर रोज़े की नियत करें और इफ़्तार के वक़्त दुआ पढ़कर रोज़ा खोलें।
नमाज़ की पाबंदी – पांचों वक़्त की नमाज़ और तरावीह का खास एहतिमाम करें।
क़ुरआन की तिलावत – इस महीने में ज्यादा से ज्यादा क़ुरआन पढ़ें, क्यूंकि इसी महीने में क़ुरआन नाज़िल हुआ।
तौबा और इस्तिग़फार – अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगे और नेकियों में इज़ाफ़ा करें।
ज़कात और सदक़ा – गरीबों और यतीमों की मदद करें, क्योंकि रमज़ान में सदक़े का बहुत सवाब है।
बदगुमानी, गीबत और झूठ से बचें – ग़लत बातों और गुनाहों से बचना ही असल रोज़ा है।
किन चीजों से रोज़ा टूटता है?
जानबूझकर कुछ खाना या पीना – अगर कोई शख्स जानबूझकर कुछ खाए या पिए, तो उसका रोज़ा टूट जाएगा।
शौहर और बीवी का आपस में गलत ताल्लुकात (इंतिहाई क़ुर्बत) – इससे रोज़ा टूट जाएगा और कफ़्फ़ारा भी लाज़िमी होगा।
क़ै (उल्टी) जानबूझकर निकालना – अगर कोई जबरदस्ती उल्टी कर दे, तो रोज़ा टूट जाएगा।
हुक्का, बीड़ी, सिगरेट या कोई नशीली चीज़ इस्तेमाल करना – इससे भी रोज़ा टूट जाता है।
हिजामा (पिछवाना) या खून निकलवाना – अगर इस अमल से कमजोरी महसूस हो, तो रोज़ा टूट जाता है।
इंजेक्शन जो ताक़त पहुंचाए – अगर ऐसा इंजेक्शन लगाया जाए जिससे ताक़त मिले, तो रोज़ा टूट जाएगा।
हायज़ (माहवारी) या निफास (बच्चे की पैदाइश के बाद वाला खून) – औरतों का इस हाल में रोज़ा नहीं होता।
हदीस: बुख़ारी 1933
यहया-बिन-यहया, अबू-बक्र-बिन-अबी-शेबा, ज़ुहैर-बिन-हर्ब, इब्ने-नुमैर, इब्ने-उएना, सुफ़ियान-बिन-उएना, हुमैद-बिन-अब्दुर्रहमान, हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) से रिवायत है कि एक आदमी नबी करीम ﷺ की ख़िदमत में आया और उसने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल! मैं हलाक हो गया। आपने फ़रमाया, " तू कैसे हलाक हो गया?" उसने कहा कि मैंने रमज़ान में अपनी बीवी से हम-बिस्तरी कर ली है। आपने फ़रमाया क्या तू एक ग़ुलाम आज़ाद कर सकता है? उसने कहा कि नहीं, आपने फ़रमाया क्या तू मुसलसल दो महीने के रोज़े रख सकता है? उसने कहा कि नहीं, आप ﷺ ने फ़रमाया, "क्या तू साठ ग़रीब लोगों को खाना खिला सकता है? उसने कहा कि "नहीं" रावी कहते हैं कि फिर वो आदमी बैठ गया। नबी करीम ﷺ की ख़िदमत में एक टोकरा लाया गया। जिस में खजूरें थीं। आप ﷺ ने फ़रमाया उनको मोहताजों में सदक़ा कर दो उसने कहा कि क्या कोई हम से भी ज़्यादा मोहताज है? मदीना के आस-पास के लोगों में कोई ऐसा घर नहीं जो हम से ज़्यादा मोहताज हो। नबी करीम ﷺ हँस पड़े, यहाँ तक कि आप ﷺ की दाढ़ें मुबारक ज़ाहिर हो गईं। फिर आप ﷺ ने उस आदमी से फ़रमाया जा और उसे अपने घर वालों को खिला दे।
(हदीस: मुस्लिम 1111)
किन चीज़ों से रोज़ा नहीं टूटता?
भूलकर कुछ खा-पी लेना – अगर कोई भूलकर कुछ खा-पी ले, तो रोज़ा नहीं टूटता, बल्कि ये अल्लाह की तरफ से रिज़्क़ होता है।
मिस्वाक करना – रोज़े में मिस्वाक करना जाइज़ है।
इंजेक्शन (जो ताक़त देने वाला ना हो) – मसलन कोई दवा का इंजेक्शन जो ताक़त न दे, तो रोज़ा नहीं टूटता।
काजल, इत्र, तेल या क्रीम लगाना – इस तरह की चीज़ों से रोज़ा पर कोई असर नहीं पड़ता।
नाक या आंख में दवा डालना – अगर इसके ज़ायके का एहसास हलक में न हो, तो रोज़ा नहीं टूटेगा।
ग़ुस्ल करना या पानी में डूबना – अगर पानी हलक में न जाए, तो रोज़ा नहीं टूटता।
सुनन नसाई हदीस नम्बर:5
रमज़ान के आखिरी अशरे की फज़ीलत
रमज़ान के आख़िरी दस दिनों में लैलतुल-क़द्र आती है, जो हज़ार महीनों से बेहतर है।
क़ुरआन में अल्लाह फ़रमाते हैं:
"लैलतुल क़द्र हज़ार महीनों से बेहतर है।"
📖 (सूरह अल-क़द्र 97:3, कंजुल ईमान)
इसलिए इन दिनों में इबादत को और बढ़ाना चाहिए और अल्लाह से मग़फिरत मांगनी चाहिए।
मौजूदा वक्त (2025) में रोज़े से जुड़े अहम सवाल-जवाब
❓ क्या रोज़े की हालत में वैक्सीन या दवा ली जा सकती है?
✅ हाँ, अगर वह नाक या मुँह से नहीं जाती, बल्कि सिर्फ इंजेक्शन के ज़रिये दी जाती है, तो रोज़ा नहीं टूटता।
❓ क्या रोज़े की हालत में ब्रश किया जा सकता है?
✅ जी हाँ, लेकिन बिना टूथपेस्ट के मुँह साफ़ करना बेहतर है, क्योंकि टूथपेस्ट का स्वाद गले से उतर सकता है।
❓ क्या डायलिसिस कराने से रोज़ा टूटेगा?
✅ अगर खून निकाला जाता है और ग्लूकोज दिया जाता है, तो रोज़ा टूट सकता है।
❓ क्या रोज़े में खून दान किया जा सकता है?
✅ हाँ, लेकिन अगर इससे कमजोरी महसूस हो, तो बेहतर है कि इफ्तार के बाद किया जाए।
❓ क्या रोज़े की हालत में कान या आँख में दवा डाल सकते हैं?
✅ जी हाँ, इससे रोज़ा नहीं टूटता, क्योंकि यह पेट तक नहीं पहुँचता।
❓ क्या रोज़े में सुगंधित क्रीम या लोशन लगा सकते हैं?
✅ हाँ, लगा सकते हैं, क्योंकि यह शरीर के अंदर नहीं जाता।
❓ क्या रोज़े के दौरान गर्भवती औरत रोज़ा छोड़ सकती है?
✅ हाँ, अगर उसे या उसके बच्चे को नुकसान हो सकता है, तो वह बाद में इसकी क़ज़ा कर सकती है।
रोज़ा न रखने पर क्या गुनाह है?
अगर कोई मुसलमान बेवजह रोज़ा नहीं रखता तो यह बहुत बड़ा गुनाह है। नबी ﷺ ने फरमाया:
"जो शख्स बिना किसी शरई वजह के रोज़ा तोड़ता है, वह सारी जिंदगी भी रोज़ा रखे तो उस एक दिन की भरपाई नहीं कर सकता।" (अबू दाऊद)
इस मुबारक महीने चन्द बातों का ध्यान रखें
तमाम उम्मते मुस्लिमा को माहे रमज़ान की पुर ख़ुलूस मुबारकबाद।!
अल्लाह तआला इस माह को हमारे लिए सही मअ़नों में रहमत, मग़फिरत और जहन्नम से ख़ुलासी का महीना बना दे। आमीन!
1. सहरी और इफ्तार में मस्जिद के एलान के भरोसे ना रहें। अकसर जगहों पर माइक या तो बिल्कुल बन्द हैं या आवाज़ बहुत कम है
2. अपने पास या मोबाइल में रमज़ान की जन्तरी (रमज़ान टाइम - टेबल) रखें और किसी जानने वाले से उसे अच्छे से समझ लें
3. सहरी और इफ्तार में एह़तियात रखें। सहरी में एक दो मिनट की देरी या इफ्तार में जल्दबाजी आप का रोजा खराब कर सकती है।
4. खूब कुरआन पढने और दुआ मांगने का एहतेमाम करें। अपने लिए, अपने अजीजों, रिश्तेदारों और तमाम उम्मते मुस्लिमा को अपनी दुआओं में याद रखें।
5. रोज़े पूरे रखें और तरावीह पूरे महीने पढें।कोई नहीं जानता कि वो अगले रमज़ान तक बचेगा या नहीं
6. तरावीह सही इमाम के और सही कुरआन पढने वाले के पीछे पढें।
7. जकात हिसाब कर के निकालें
8. जकात सदका और फितरा मुस्तहिक को तलाश कर के दे। यह आप की बडी मेहनत की कमाई है, जो आप अल्लाह के लिये खर्च कर रहे हैं। ऐसे ही किसी को ना पकडा दें।
9. तहज्जुद का एहतेमाम करे। रमज़ान में तहज्जुद पढना आसान है।
10. नमाज़ मुकम्मल रकातो के साथ पढें, सुन्नत, नफिल, इशराक, चाश्त, अव्वाबीन और दूसरे तमाम नवाफिल अदा करने का एहतेमाम करें।
11. हमेशा वुज़ू से रहने की कोशिश करें
12. एतकाफ करने की निय्यत रखें और अल्लाह से असबाब बनाने की दुआ़ करते रहें।
हमें इस महीने में ज़्यादा से ज़्यादा इ़बादात का एहतिमाम करना चाहिए, फ़र्ज़ इ़बादात के साथ-साथ सुन्नतों और नफ़्लों का है एहतिमाम, क़ुरआन मजीद की तिलावत तर्जमा और मोतबर तफ़सीर भी पढ़ना चाहिए, ज़िक्र, दुआ़, गुनाह छोड़ने की आदत डालें इस्तिग़फ़ार का एहतिमाम करें अपने ज़रूरतमंद मुसतह़िक़ रिश्ते दारों और मदरसों का भरपूर तआ़वुन लाज़मी कारें।
अल्लाह तआ़ला पूरे आलमे इस्लाम पर अपना खास कर्म फ़रमाए और हम सबका खा़त्मा ईमान पर फ़रमाए। आमीन।
`दाढी कटवाने वाले के पीछे तरावीह की नमाज़ का हुक्म`
सवाल :अगर एक हाफ़िज़े क़ुरआन दाढ़ी काटता हो तो क्या वो सिर्फ अपने घर के लोगों को तरावीह की नमाज़ पढा सकता है?
जवाब :एक मुश्त दाढ़ी रखना शरअन वाजिब है और इससे कम कराना या मूंडना नाजायज़ और गुनाह है और ऐसा शख़्स फासिक़ है, चाहे वो हाफ़िज़े क़ुरआन हो या ग़ैर हाफ़िज़, दोनों के लिए हुक्म एक जैसा है। लिहाज़ा जो शख़्स दाढ़ी मूंडवाता हो या शरई मिक़दार से कम दाढ़ी रखता हो, ऐसे शख़्स को तरावीह और ग़ैर तरावीह में इमाम बनाना और उसके पीछे नमाज़ पढ़ना मकरूह-ए-तहरीमी है। इसी तरह जो अफ़राद सिर्फ़ रमज़ान के लिए दाढ़ी रख लेते हों और बाक़ी महीनों में दाढ़ी मूंडवाते हों, उनकी इमामत में भी तरावीह पढ़ना दुरुस्त नहीं। अलबत्ता अगर दाढ़ी मूंडने वाला तौबा कर ले तो फिर जब तक दाढ़ी एक मुश्त न हो जाए, उस वक़्त तक वो शख़्स इमामत का अहल नहीं है। दाढ़ी की मस्नून मिक़दार मुकम्मल होने के बाद इमामत कर सकता है। लिहाज़ा दाढ़ी मूंडने वाले या काटकर एक मुश्त से कम करने वाले शख़्स के लिए अपने घर में मौजूद लोगों को भी तरावीह की नमाज़ जमाअत से पढ़ाना दुरुस्त नहीं है।ऐसे शख़्स के लिए बेहतर है कि वो किसी बाशरअ शख़्स की इमामत में तरावीह अदा करे और अपना क़ुरआन पक्का रखने के लिए ख़ुद अकेले नवाफ़िल में क़ुरआन पढ़ ले।
अगर कोई शख्स सफर के दौरान रोजा रखे और उसे रास्ते में शिद्दत से गर्मी, प्यास या तबियत की गंभीर हालत का सामना हो, तो इस स्थिति में उसे रोजा तोड़ने की इजाजत है। इस्लाम में यह बात साफ तौर पर बताई गई है कि सफर और बीमारी के कारण रोजा तोड़ने की इजाजत है।
कुरान और हदीस की रौशनी में:
कुरान में अल्लाह तआला ने फरमाया है:
"फिर तुम में से जो कोई बीमार हो या सफर में हो, तो वह बाकी दिनों में गिनती पूरी कर ले"
(सूरह अल-बक़रह, आयत 184)
इस आयत से साफ़ तौर पर यह समझ आता है कि यदि किसी को सफर या बीमारी के कारण रोजा रखना कठिन हो, तो वह रोजा तोड़ सकता है और बाद में इनकी गिनती पूरी कर सकता है। सफर में रोजा रखना कठिन होता है, इसलिए उसे छोड़ने की इजाज़त दी गई है।
अब अगर किसी शख्स को सफर में बहुत ज़्यादा प्यास लगने की वजह से कमजोरी महसूस हो, और उसे घबराहट या चक्कर आने लगे, तो वह इस्लामी शरीयत के अनुसार अपने रोजे को तोड़ सकता है। ऐसा करना उस शख्स की मजबूरी है, और उसे सजा नहीं मिलेगी।
हदीस में भी इस बारे में बताया गया है। हज़रत इब्ने अब्बास (रज़ी.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया:
"रमजान में सफर पर होने वाले मुसाफिर को रोजा तोड़ने की इजाजत है, और वह अपनी रोजों की गिनती पूरी कर सकता है जब वह वापस आ जाए।" (सही मुस्लिम)
- सहीह बुखारी (हदीस नंबर 1944)
- सहीह मुस्लिम (हदीस नंबर 1122)
- सहीह मुस्लिम( हदीस नंबर 1121)
अबू-ताहिर, हारून-बिन-सईद, हारून, अबू-ताहिर, इब्ने-वहब, अम्र-बिन-हारिस, अबी असवद, उरवा बिन-ज़ुबैर, अबी-मुराविह, हज़रत हमज़ा-बिन-उमर असलमी (रज़ि०) से रिवायत है। उन्होंने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल! मैं सफ़र में रोज़े रखने की ताक़त रखता हूँ तो मुझ पर कोई गुनाह तो नहीं? तो रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि ये अल्लाह की तरफ़ से एक रुख़सत है, जिसने इस रुख़सत पर अमल किया तो उसने अच्छा किया और जिसने रोज़ा रखना पसन्द किया तो उस पर कोई गुनाह नहीं। हारून ने अपनी हदीस में रुख़सत का लफ़्ज़ कहा है। और "अल्लाह की तरफ़ से" का ज़िक्र नहीं किया।
सहीह मुस्लिम( हदीस नंबर 2629)
इस हदीस में बताया गया है कि अगर कोई मुसाफिर रमजान में यात्रा पर हो, तो उसे रोजा तोड़ने की इजाजत है और वह बाद में अपनी रोजों की गिनती पूरी कर सकता है।
नबी करीम (सल्ल०) (फ़तह मक्का के मौक़े पर) मक्का की तरफ़ रमज़ान में चले तो आप (सल्ल०) रोज़े से थे लेकिन जब कदीद पहुँचे, तो रोज़ा रखना छोड़ दिया और सहाबा किराम ने भी आप को देख कर रोज़ा छोड़ दिया। अबू-अब्दुल्लाह इमाम बुख़ारी (रज़ि०) (अलैहि०) ने कहा कि असफ़ान और क़ुदैद के बीच कदीद एक तालाब है।
सहीह बुखारी (हदीस नंबर 1944)
अगर किसी शख्स को सफ़र के दौरान बहुत मुश्किल हो रही हो, जैसे कि बहुत गर्मी, प्यास, कमजोरी, या चक्कर आ रहे हों, तो वो अपना रोजा तोड़ सकता है। इस्लाम ने यह रियायत दी है कि सफ़र और बीमारी की हालत में रोजा तोड़ा जा सकता है। बाद में उन दिनों का क़ज़ा करके पूरा किया जा सकता है।
समझने वाली बात: इस्लाम ने इंसान की जान और सेहत को बेहद अहमियत दी है। जब शख्स सफर पर हो और उसे कोई शारीरिक परेशानी हो, तो उसकी मदद के लिए इस्लाम में लचीलापन दिया गया है। उसे चाहिए कि वह इस्लामी हुक्म के तहत अपनी सेहत का ध्यान रखे और जब भी हालत सुधरें, तो उन दिनों का क़ज़ा कर ले।
हक़ीक़त…
* एक शख़्स ने अपने बेटे से वसीयत करते हुए कहा: बेटा! मेरे मरने के बाद मेरे पैरों में यह फटे पुराने मोज़े पहना देना, मेरी ख़्वाहिश है मुझे क़ब्र में इसी तरह उतरा जाए,
* बाप का मरना था के ग़ुसल व कफ़न की तैयारी होने लगी, चुनाँचे हस्बे वादा बेटे ने आ़लिमे दीन से वसीयत का इज़हार किया, मगर आ़लिमे दीन ने इजाज़त न देते हुए फ़रमाया: हमारे दीन में मय्यित को सिर्फ कफ़न पहनने की इजाज़त है मगर लड़के ने काफ़ी इसरार किया जिसकी वजह से उ़लमा ए शहर एक जगह जमा हुए ताकि कोई नतीजा निकल सके, मागर होना क्या था लफ़्ज़ी तकरार बढ़ती गई, इसी दौरान एक शख़्स मजलिस में आया और बेटे को बाप का एक और ख़त दिया जिसमें बाप की वसीयत यूँ तह़रीर थी
`“मेरे प्यारे बेटे, देख रहे हो? कसीर माल व दौलत, जाह व ह़शम, बाग़ात, गाड़ी कारख़ाना और तमाम इमकानात होने के बावजूद इस बात की भी इजाज़त नहीं के मैं एक बोसीदा मोज़ा अपने साथ ले जा सकूँ, एक रोज़ तुम्हें भी मौत आएगी आगाह हो जाओ के तुम्हें भी एक कफ़न ही ले कर जाना पड़ेगा, लिह़ाज़ा कोशिश करना के जो माल व दौलत मैंने वरसे (मीरास) में छोडी है उस से इस्तीफ़ादा करना, नेक राह में ख़र्च करना बे सहारों का सहारा बनना, क्यूंकि जो वाहिद चीज़ क़ब्र में तुम्हारे साथ जाएगी वह तुम्हारे आ़माल होंगे।”`
नतीजा
रोज़ा सिर्फ भूखा-प्यासा रहने का नाम नहीं, बल्कि अपने नफ्स को कंट्रोल करने और अल्लाह तआला के हुक्म को पूरा करने का नाम है। रमज़ान रहमत, मग़फ़िरत और जहन्नम से निजात का महीना है। हमें चाहिए कि इस पाक महीने में ज्यादा से ज्यादा इबादत करें, कुरआन पढ़ें, गरीबों की मदद करें और तौबा करें।
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