सर्द हवाएं जब चलती हैं, ये पैग़ाम लाती हैं,
हर दर्द में शिफा है, ये हिकमत समझाती हैं।
खुदा के हुक्म से हर मर्ज़ में राहत होती है,
उसकी रहमत से ही हर सांस महफूज़ होती है।
सर्दी का ये आलम भी, उसकी मर्ज़ी का करिश्मा है,
जो हमें आज़माए, उसमें भी कोई हिकमत छुपा है।
सूरह अश-शिफा में उसका इरशाद है,
"हर दर्द के साथ शिफा का भी इनाम है।"
गर गला खरोंचता हो, तो ये भी इम्तेहान है,
सब्र करो और उस पर यकीन, यही ईमान है।
तुलसी और मुलेठी में, उसकी शिफा का करम है,
अदरक का रस और शहद, राहत का मरहम है।
गर्म पानी और चाय में भी उसने असर डाला,
उसकी दी हुई नेमतों ने हर दर्द को संभाला।
कुरआन कहता है, "हर बीमारी का इलाज है,"
जो दुआ से मुमकिन हो, वही अल्लाह का रिवाज है।
जो दवाएं हैं, वो भी उसकी रहमत का नतीजा हैं,
क्लोरफेनिरामीन हो या कोडीन, ये सब करिश्मा हैं।
जो इंसान को देता है इलाज, वो भी उसका वकील है,
हर बीमारी में उसके करम का जिक्र ज़ाहिर और दिलजमील है।
ऐ परवरदिगार, तू है रहमतों का दरिया,
तेरी तारीफ में झुकता है हर जबीं का जहानिया।
हर सर्दी, हर दर्द, हर तकलीफ में तेरा सहारा है,
तू है रहमतुल-लिल-आलमीन, और बस तू ही हमारा है।
सर्दी की नज़्में (खुदा की तारीफ में)
खुदा की रहमत की महफिल सजी है
**1.**
सर्दी की सूरत में आई है रहमत,
खुदा की है कुदरत, खुदा की इनायत।
ठंडी ये रातें, ये बर्फीले मंज़र,
हैं गवाहें कि वो है बड़ा बेनज़र।
**तो अपने रब की कौन-कौन सी नेमतों को झुठलाओगे?**
**2.**
ठिठुरती हवाएं हैं पेगाम लाईं,
रहमते इलाही की यादें सजाईं।
शामों की ठंडक, सुबहों का नूर,
हर कोना करता है उसका ज़िक्र ज़रूर।
**तो अपने रब की कौन-कौन सी नेमतों को झुठलाओगे?**
**3.**
बरफीली वादियां करें दुआएं,
हर सांस कहे उसके जलवे बयां।
रोज़े का मौका, इबादत का समय,
सर्दी में मिलती है अल्लाह की रहम।
**तो अपने रब की कौन-कौन सी नेमतों को झुठलाओगे?**
**4.**
जरूरतमंदों की मदद का पैगाम,
सर्दी में छुपा है खुदा का सलाम।
रजाई में गरमी, दिलों में है नूर,
ये सब हैं निशानियां उस ज़ात-ए-ग़फ़ूर।
**तो अपने रब की कौन-कौन सी नेमतों को झुठलाओगे?**
**5.**
हर मौसम की कुदरत है उसके करम से,
सर्दी भी आती है उसके हुक्म से।
जमीं पे हर बर्फ का कतरा कहे,
"खुदा है करीम, उसकी रहमत बहे।"
**तो अपने रब की कौन-कौन सी नेमतों को झुठलाओगे?**
*नतीजा**
हर नज़्म की आखिरी सतर, खुदा की कुदरत और नेमतों का इकरार करती है।
**"तो अपने रब की कौन-कौन सी नेमतों को झुठलाओगे?"**
नज़्म: सर्दी
**सर्द हवा का हर झोंका, है रब की नेमतों का जिक्र,
हर सुबह की ठंडक में, उसका है अज़ीम फिक्र।**
**सफेद बर्फ की चादर में, छुपा है उसका पैगाम,
हर कतरा गिरती बारिश का, करता है उसका सलाम।**
**लंबी रातें इबादत के लिए, उसका खास करम हैं,
दिन के छोटे लम्हों में, रोज़ों का आलम हैं।**
**गरीब की ठंडी सांसों में, है उसकी याद का नूर,
हर मदद का हाथ बढ़ाओ, कि है यही सबका दस्तूर।**
**सर्द हवाएं पुकारती हैं, उसके करम का बयान,
हर दर्द को आसान करता, है उसका ही फरमान।**
**रात की तन्हाई में, वो ही सुनता दुआ,
हर सुबह की ठंडक में, है उसका ही मज़ा।**
**तो अपनी रूह से कह दो, बंदगी के रंग चढ़ाओ,
कि सर्दी का हर लम्हा, रब की याद दिलाओ।**
**"तो अपने रब की कौन-कौन सी नेमतों को झुठलाओगे?"**
_(सूरह अर-रहमान: 13)_
।।।
ठंड का मौसम**
नज़्म)**_
बिस्मिल्लाह से शुरू करें, हर साँस का क़िस्सा,
ख़ुदा की रहमत से रोशन हर लम्हा और हिस्सा।
जिसने बनाया फ़लक़ को, ज़मीं को संजोया,
हर दिल में मोहब्बत का चराग़ है उसने ही बोया।
ठंडी हवाओं का पैग़ाम ये कहता है,
हर शै में रब का जलाल रहता है।
बरफ की सफ़ेदी में नूर-ए-इलाही,
हर कतरा बर्फ़ का है हुस्न-ए-सुबाही।
पेड़ों पर जमीं बर्फ़ की चादरें,
जैसे आसमान से उतरी हों कोई बशारतें।
हवा के झोंके, रूह को छू जाते हैं,
ख़ुदा की कुदरत के रंग दिखा जाते हैं।
सूरज की किरणें, जब बर्फ़ पर पड़ती हैं,
जैसे जन्नत के दरवाज़े खुलते हैं।
हर कतरा पानी, जो बर्फ़ में ढलता है,
ख़ुदा के वजूद का सबूत बनता है।
ऐ रब! तेरा लाख-लाख शुक्र है,
हर मौसम, हर मंजर में तेरा ज़िक्र है।
ये ठंड की सर्द रातें, तेरी याद दिलाती हैं,
हर धड़कन में तेरा नाम गूँज जाती है।
तेरी तारीफ के लफ़्ज़ कम पड़ जाते हैं,
तू वही है जो दिलों के दर्द समझ जाते हैं।
ठंड की इस ख़ूबसूरती में तेरा करम है,
हर शय में झलकता तेरा सनम है।
"शकील की यह नज़्म भी तुझसे कुछ कम नहीं,
तू है वो रौशनी जो अंधेरों में दम नहीं।"
शकील की आवाज़ में बर्फ़ की आवाज़ सुलगती है,
उसकी मिस्रों की सदा में ख़ुदा की रज़ा चमकती है
_“तेरी क़ुदरत को देखकर, हम सजदा करते हैं,
ऐ मालिक, हर साँस में तेरा शुक्र अदा करते हैं।”_
हर कतरा पानी में है उसका अक्स,
जो बर्फ़ में ढलकर दिखाए नक्स।"
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**बिस्मिल्लाह से शुरू करें, हर साँस का क़िस्सा,
ख़ुदा की रहमत से रोशन हर लम्हा और हिस्सा।**
बिस्मिल्लाह से शुरुआत का मतलब है, हर काम में अल्लाह के नाम का बखूबी इस्तेमाल। "बिस्मिल्लाह" का यह जुमला न सिर्फ़ हमारी ज़िन्दगी के हर पहलू में अल्लाह की मदद और मार्गदर्शन की ओर इशारा करता है, बल्कि यह हमें याद दिलाता है कि हमारे हर काम का मकसद केवल अल्लाह की رضا होनी चाहिए। जब हम हर काम को "बिस्मिल्लाह" से शुरू करते हैं, तो हम यह सुनिश्चित करते हैं कि वह काम पाक और सच्चे इरादों के साथ किया जा रहा है। यही वह तरीका है, जिससे हम अपनी ज़िन्दगी को अल्लाह के करीब ला सकते हैं।
अब, जब हम कहते हैं "हर साँस का क़िस्सा," तो यह हमें यह एहसास दिलाता है कि हर पल, हर साँस, एक नई शुरुआत है। जब हम हर साँस को अल्लाह की तौफीक और रहमत समझते हैं, तो हमें एहसास होता है कि यह ज़िन्दगी की अनमोल नेमत है। हम अल्लाह के आशीर्वाद को स्वीकार करते हैं और हर एक लम्हे में उसके शुक्रगुजार रहते हैं।
"ख़ुदा की रहमत से रोशन हर लम्हा और हिस्सा" का मतलब है कि अल्लाह की अनगिनत रहमतों से हमारी ज़िन्दगी को रोशन किया जाता है। हर लम्हा, हर क्षण, हर दिन, अल्लाह की रहमतों से भरा होता है। जब हम किसी भी मुश्किल का सामना करते हैं, तो अल्लाह की रहमत हमें मदद देती है और हमें उससे आगे बढ़ने की ताकत मिलती है।
इसी अदब और पाकीज़गी से हम अपनी ज़िन्दगी को सही दिशा में ले जा सकते हैं। यह नज़रिया हमें न केवल आत्मविश्वास और शांति देता है, बल्कि हर पल को सही मायनों में जीने की प्रेरणा भी देता है।
**"जिसने बनाया फ़लक़ को, ज़मीं को संजोया,
हर दिल में मोहब्बत का चराग़ है उसने ही बोया।
यह शेर इस बात को बयां करता है कि जिसे दुनिया की हर चीज़ का सृजन करने की क़ुदरत मिली, वह सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह तआला है। यहाँ पर फ़लक़ (आसमान) और ज़मीन का ज़िक्र किया गया है, जिनके सृजन में अल्लाह की महानता और शक्ति नज़र आती है। हर वह चीज़ जो हम देख रहे हैं, चाहे वह आकाश हो या पृथ्वी, अल्लाह की मर्जी से ही अस्तित्व में आई है।
"हर दिल में मोहब्बत का चराग़ है उसने ही बोया," इस मिसरे में यह बताया गया है कि इंसान के दिल में जो मोहब्बत, प्यार और हमदर्दी की रौशनी है, वह भी उसी ने दी है। अल्लाह ने अपनी मेहरबानी से इंसान के दिल में यह नफ़ीस और अज़ीम सभावनाएँ डाली हैं, ताकि इंसान एक-दूसरे से मोहब्बत और सहानुभूति का इज़हार कर सके। यह रौशनी उसी के द्वारा बोई गई है जो समस्त ब्रह्मांड का स्रष्टा है।
यह शेर हमें यह समझाता है कि अल्लाह तआला की हर रचना, चाहे वह क़ुदरत के रूप में हो या दिलों की सफ़ाई में, एक परम शक्ति और रहमत है। इसमें हमसे यह भी कहा जा रहा है कि हमें इस प्रेम, मोहब्बत और भाईचारे को समझने और फैलाने की कोशिश करनी चाहिए, जो हमें अल्लाह से प्राप्त हुई है।
**हिंदुस्तानी अदाज में:**
"जो खुदा ने आसमान और ज़मीन बनाई, वही हमारी दिलों में मोहब्बत का रौशन चराग़ भी बिठा रहा है। यह सब उसी की मर्जी से हो रहा है, और यही है उसकी बेशुमार रहमत जो हर इंसान के दिल में उमंग और प्यार भरती है।"
**ठंडी हवाओं का पैग़ाम ये कहता है,
हर शै में रब का जलाल रहता है। **
ये अशعار (आर )बहुत गहरे और आत्मिक एहसासात से भरपूर हैं। अगर हम इनका विस्तार से जायज़ा लें, तो यह इस बात का इज़हार करते हैं कि इस कायनात की हर चीज़ में अल्लाह की तारीफ़ और उसकी कुदरत का अक्स दिखाई देता है।
**"ठंडी हवाओं का पैग़ाम ये कहता है"**
यह वाक़िया एक प्रतीक के तौर पर लिया गया है, जो इस बात की ओर इशारा करता है कि ठंडी हवाएं, जो हमारे तन-मन को सुकून पहुंचाती हैं, ये भी अल्लाह की एक नियामत हैं। जब हम हवाओं में बसी ठंडक महसूस करते हैं, तो यह महसूस होता है कि अल्लाह के हुक्म से ही ये सुख-शांति का अहसास हमारे दिलों तक पहुंचता है। हवाएं सिर्फ एक प्राकृतिक घटना नहीं हैं, बल्कि इन में भी रब का जलाल (महिमा) छिपा है।
**"हर शै में रब का जलाल रहता है"**
यहां पर 'शै' से मतलब है चीज़ या तत्व, और रब का जलाल से तात्पर्य है उसकी महानता और ताकत। यह जुमला बताता है कि इस कायनात में जो भी चीज़ मौजूद है, हर एक में अल्लाह का असर और उसकी ताकत नज़र आती है। चाहे वह सूरज की गर्मी हो, चाँद की रौशनी, या फिर धरती के हरे-भरे मैदान — हर चीज़ में अल्लाह की महिमा का कोई न कोई अक्स दिखाई देता है। यह हमें यह एहसास दिलाता है कि पूरी सृष्टि, हर कण में अल्लाह का वजूद है और उसका जलाल नज़र आता है।
**"अल्लाह के लिए बयान की गई"**
यह वाक़िया इस बात की ओर इशारा करता है कि जो कुछ भी हम अपने दिलों और ज़बान से बयान करते हैं, वह सिर्फ और सिर्फ अल्लाह की तारीफ़ के लिए होना चाहिए। यह वाक्य हमें यह सिखाता है कि हमारे शब्द, हमारे कर्म, हमारे विचार — सब कुछ अल्लाह की رضا और उसकी महिमा के लिए होना चाहिए।
कुल मिलाकर, यह शेर इस बात को बयान करता है कि इस दुनिया की हर चीज़, हर हवा, हर क़दम — अल्लाह की कुदरत और जलाल का एक अक्स है। हमारी ज़िंदगी का मकसद यही होना चाहिए कि हम हर वक्त उसकी कुदरत को महसूस करें और उसे धन्यवाद अदा करें, ताकि हम उसकी रहमत और बरकत से नवाज़े जाएं।
**हिंदुस्तानी अंदाज में**
"ठंडी हवाओं में जब हमें राहत मिलती है, तो यह एहसास दिलाती है कि हर अता की शुरुआत सिर्फ अल्लाह से ही होती है। हर चीज़, चाहे वह क़ुदरत का कोई रूमानी पहलू हो या हमारी ज़िंदगी का कोई भी हिस्सा, उसमें अल्लाह का जलाल और उसकी असीम शक्ति का समावेश होता है। हमें चाहिए कि हम अपनी ज़िंदगी के हर पहलू को अल्लाह की رضا रज़ा के लिए समर्पित करें और उसकी असीम महिमा का एहसास करते हुए हर एक कदम उठाएं।"
यह शेर हमारे दिलों में अल्लाह के साथ एक गहरे रिश्ते को और मजबूती से स्थापित करने की तलब पैदा करता है।
**"पेड़ों पर जमीं बर्फ़ की चादरें,
जैसे आसमान से उतरी हों कोई बशारतें।"**
यह शेर एक अद्भुत दृश्य का वर्णन करता है, जो न केवल आंखों को सुकून देता है, बल्कि दिल में एक गहरी सुकून की लहर भी उत्पन्न करता है। बर्फ़ की चादरें पेड़ों पर बिछी हुई हैं, जैसे कि आसमान से कोई अलौकिक बशारत (खुशखबरी) उतरकर दुनिया को रोशन करने के लिए आई हो। यह शेर इंसान के जीवन में आने वाली ख़ुशियों और खुशखबरी की ओर इशारा करता है।
यह काव्य शेर इस बात को व्यक्त करता है कि जैसे बर्फ़ की सफ़ेदी और ठंडक पूरी दुनिया में एक नया रूप लेकर आती है, ठीक उसी तरह जब अल्लाह का आशीर्वाद किसी पर बरसता है, तो उसकी ज़िन्दगी में नई उम्मीदें और नए अवसर जन्म लेते हैं।
**हिन्दुस्तानी अंदाज में इसका व्याख्यान इस तरह किया जा सकता है:**
"यह शेर हमें यह सिखाता है कि जैसा कि सर्दियों में बर्फ़ की चादरें पेड़ों पर बिछी होती हैं, वैसे ही हमारी ज़िन्दगी में अल्लाह की रहमत और बशारत कभी न कभी अपने समय पर आकर हमें नये सिरे से राहत और खुशियाँ देती है। जैसे आसमान से बर्फ़ की हल्की बर्फ़ उतरी हो, वैसे ही अल्लाह की तरफ से हमारी ज़िन्दगी में कोई सौगात आए, जो हमारी मुश्किलों को हल्का कर दे, और हमारी दिलों में उम्मीद की लौ जला दे।"
यह शेर हिंदुस्तानी संस्कृति और उर्दू शायरी में गहरे इमोशन और ज़िन्दगी के अनकहे पहलुओं को उजागर करता है। अल्लाह की बशारत का यह संदेश सर्दी की चादरों के समान दिल में गहरी राहत और ठंडक पैदा करता है, जो एक आंतरिक शांति की ओर इशारा करता है।
**बरफ की सफ़ेदी में नूर-ए-इलाही,
हर कतरा बर्फ़ का है हुस्न-ए-सुबाही।**
यह शेर एक गहरे और आत्मिक संदेश को बयान करता है, जो सच्चे विश्वास और ईमान की ओर इशारा करता है। 'बरफ की सफ़ेदी' का मतलब है उस पवित्रता और शुद्धता से, जो एक सच्चे दिल से जुड़ी होती है। बरफ की सफ़ेदी खुद में एक मिसाल है, जैसे किसी पाक-साफ़ और बेगुनाह इंसान की आत्मा, जो अल्लाह की तरफ से मिली हुई नूर से रोशन होती है।
"नूर-ए-इलाही" का मतलब है अल्लाह का प्रकाश, जो हर चीज़ में मौजूद होता है, जैसे बरफ की सफ़ेदी में छिपा हुआ नूर। यहां लेखक यह बयान करता है कि जैसे बर्फ़ में हर क़तरा अपनी सफ़ेदी और खूबसूरती के साथ एक विशेष गुण रखता है, वैसे ही अल्लाह का नूर हर चीज़ में अद्वितीय और असाधारण होता है।
"हर कतरा बर्फ़ का है हुस्न-ए-सुबाही" में बर्फ़ के हर क़तरे का हुस्न (ख़ूबसूरती) और 'सुबाही' (सुबह की तरह ताजगी) का जिक्र किया गया है। यह इशारा करता है कि जैसा अल्लाह के हुस्न से ज़िंदगी में हर क़तरा ताजगी और सुंदरता पैदा होती है, वैसे ही हर एक पल में सच्चाई, प्यार और शांति का अहसास होता है।
यह शेर हमें यह समझाता है कि जिस तरह बर्फ़ की सफ़ेदी में अल्लाह का नूर मौजूद है, उसी तरह हमारी ज़िंदगी में भी अल्लाह का मार्गदर्शन और उसका प्रकाश होना चाहिए, ताकि हम अपनी ज़िंदगी को शुद्धता, ख़ूबसूरती और सच्चाई के रास्ते पर चला सकें।
इसे हिंदुस्तानी के शेर-ओ-शायरी अंदाज में पेश किया जाए तो इस शेर का मक्सद यही है कि हर इंसान को अपनी ज़िंदगी में ताजगी, शुद्धता और अल्लाह के नूर को महसूस करना चाहिए।
हर कतरा पानी, जो बर्फ़ में ढलता है,
ख़ुदा के वजूद का सबूत बनता है।"
यहाँ हर वो क़तरा पानी, जो सख़्त बर्फ़ में तब्दील होता है, ख़ुदा के वजूद और उसकी क़ुदरत का सबूत पेश करता है। पानी से बर्फ़ बनने की यह कुदरती प्रक्रिया इंसान के लिए अल्लाह की ताकत और तदबीर का इशारा है। यह एक निशानी है कि अल्लाह हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।
हर कतरा पानी, जो बर्फ़ में ढलता है, ये एक गहरी बात है जो ख़ुदा की क़ुदरत और उसके वजूद की गवाही देती है। अगर हम इसे हिंदुस्तानी अंदाज और उर्दू के शायराना लहजे में समझें, तो बात और गहरी हो जाती है।
**तफ़्सील:**
पानी एक ऐसी नियामत है जो अपनी हालत को बदल सकता है। जब ये ठंडक महसूस करता है, तो बर्फ़ की सूरत में ढल जाता है। ये एक मामूली तब्दील नहीं है, बल्कि एक ऐसा चमत्कार है जो हमें इस कायनात के बनाने वाले की कुदरत और हिकमत का एहसास दिलाता है।
**इस का मतलब:**
जब पानी बर्फ़ बनता है, तो ये दिखाता है कि किस तरह अल्लाह ने इस कायनात को एक तंज़ीम के साथ बनाया है। पानी की हर बूंद में उसकी मर्जी और हिकमत छुपी हुई है। ये इंसान को याद दिलाता है कि वो खुदा के वजूद को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता, क्योंकि उसकी हर चीज़ में उसकी मौजूदगी का सबूत है।
**उर्दू का रंग:**
"जरा देख, उस साज़िश को जो कुदरत में छुपी है,
हर बूंद में वो ताक़त जो बर्फ़ की सूरत बनी है।
ये कायनात की हर सूरत में उसका निशां है,
जो बेज़ुबान को भी जुबां देता है, ये उसका बयान है।"
इस मिसाल से हमें ये समझ में आता है कि अल्लाह ने हर चीज़ को सोच-समझकर बनाया है, और हर छोटी-बड़ी चीज़ उसके वजूद की गवाही देती है।