Shakil Ansari

Sunday, 1 June 2025

शादी, दहेज और एक नेक बीवी की पहचान

आजकल लोग शादी को एक तिजारत समझने लगे हैं। लड़का वाला पूछता है – “कितना दहेज मिलेगा?”, और लड़की वाला घबराकर सोचता है – “सबसे ज्यादा कौन देगा?”
जिसे ज्यादा दहेज मिल जाता है, वो समझता है कि मेरी तो सबसे शानदार शादी हो गई!
मगर याद रखो, दहेज सिर्फ एक सामान होता है – जो कभी भी बेकार हो सकता है।

🔹 शादी, दहेज के लिए नहीं होती, शादी होती है एक नेक लड़की के साथ जिंदगी बिताने के लिए।

एक असली बीवी वो नहीं होती जो ढेरों सामान, सोने-चांदी के जेवर और कार लेकर आए।
बल्कि एक बेहतर बीवी वो होती है:

🔸 जिसके अंदर अच्छे अख़लाक (आदतें) हों,
🔸 जो दीनी समझ रखती हो,
🔸 जो अपने शौहर के मां-बाप की खिदमत ऐसे करे जैसे अपने खुद के मां-बाप की करती थी।
🔸 जो घर में सब्र और सुकून लाए,
🔸 जो दौलत पर घमंड न करे,
🔸 जो कभी अपने घर की तुलना दूसरे से न करे।

💥 तुलना ही सबसे बड़ी बर्बादी है।
जिस दिन बीवी ने कहना शुरू कर दिया – “वो लोग ऐसे रहते हैं, उनके पास ये है, वो है” — उसी दिन घर में भंडार (फसाद) शुरू हो जाता है।

इसलिए बीवी को चाहिए कि अपने घर के मुताबिक़ चले, घर को इस्लामी उसूलों के मुताबिक़ सजाए, फिजूलखर्ची से बचे और हमेशा शुक्रगुजार रहे।,

शादी से पहले लड़की में क्या खूबियां देखनी चाहिए?
इस्लाम कहता है कि लड़की से चार चीजों की वजह से निकाह किया जाता है:

→उसका माल (दौलत)

→उसका हुस्न (खूबसूरती)

→उसका खानदान (शरीफ घराना)

→उसका दीन (दीनी समझ, नमाजी, परहेजगार वग़ैरह)

हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फर्माया:

"तुम दीनी लड़की से शादी करो, तुम्हारा हाथ भरा रहेगा।"
(बुख़ारी शरीफ़)

🔸 एक दीनी बीवी शौहर की इज़्ज़त करती है,
🔸 घर को जन्नत जैसा बनाती है,
🔸 और औलाद को तालीम और तर्बियत देती है।

आख़िरी बात — शादी तिजारत नहीं, इबादत है
शादी सिर्फ दो लोगों का मेल नहीं, बल्कि दो खानदानों का राब्ता है।
इस्लाम में शादी को सादा और आसान बनाने की तालीम दी गई है।
दहेज की लालच में इंसान अपनी बरकतें खो देता है।

इसलिए मेरी गुज़ारिश है:
👉 शादी में दहेज को ना देखें,
👉 लड़की में अख़लाक, दीनी समझ और सलीका देखें,
👉 और बीवी को हमेशा मोहब्बत और इज़्ज़त दें,
ताकि आपका घर भी जन्नत का एक टुकड़ा बन जाए।

ज्यादा दहेज लाने वालों को बाद में किन-किन चीज़ों का सामना करना पड़ता है?

💥 ज्यादा दहेज लाने वालों को बाद में किन-किन चीज़ों का सामना करना पड़ता है?
1️⃣ घर की इज़्ज़त नहीं बल्कि कीमत लगती है
दहेज लेकर आने वाली लड़की को कुछ घरों में हमेशा यह जताया जाता है कि:

"जो कुछ भी तुम्हारे पास है, वो तुम्हारे बाप के दहेज की वजह से है।"

⛔ इससे लड़की की इज़्ज़त कम, और तौहीन ज्यादा होती है।
शौहर और ससुराल वाले अक़्सर यह एहसान जताते रहते हैं।

2️⃣ मुलायम रिश्ते कारोबार बन जाते हैं
जहां शादी सौदा बन जाती है, वहां प्यार नहीं रहता – सिर्फ लेन-देन की बात होती है।

💔 बीवी को घर में प्यार नहीं, बल्कि "सामान" जैसा ट्रीट किया जाता है।
वो सोचती है कि “मैं तो सब कुछ लेकर आई, फिर भी इज्ज़त नहीं मिली!”

3️⃣ अहम और घमंड घर तोड़ता है
जो लड़की या उसका मायका दहेज और कार पर घमंड करते हैं, वो अक्सर घर को दूसरों से तुलना करना शुरू कर देते हैं:

“मेरे घर में तो AC था, यहां क्यों नहीं?”
“मेरे पापा ने कार दी, तुम क्या करते हो?”

🚫 इस तरह के जुमले मियां-बीवी के रिश्ते को जहर बना देते हैं।

4️⃣ घर के मर्दों पर बुरा असर
कई बार ज्यादा दहेज मिलने के बाद लड़के और उसके घरवालों में लालच और घमंड आ जाता है:

“अगर एक बेटी इतना दहेज लाई, तो दूसरी और ज्यादा लाएगी!”

📉 इससे रिश्ते सिर्फ धंधा बन जाते हैं और घर की बरकत चली जाती है।

5️⃣ असली खुशियां नहीं मिलतीं
दहेज से मिलती हैं चीज़ें – मगर:

ना तो सुकून,
ना मोहब्बत,
ना अल्लाह की रज़ामंदी।

क्योंकि रिश्ता सिर्फ ज़ाहिरी चीज़ों पर बना होता है, दिलों के मेल पर नहीं।

🛑 दहेज से आने वाली 5 बड़ी बुराइयां:
बुराई असर
लालच घर में नेकी खत्म
एहसान जताना रिश्ते में दूरी
घमंड शौहर-बीवी का रिश्ता कमज़ोर
तुलना घर में फसाद
फिजूलखर्ची बरकत खत्म

✅ इस्लामी तरीका क्या कहता है?
🔹 शादी आसान बनाओ, दहेज मत मांगो
🔹 दीनी लड़की को तरजीह दो
🔹 बीवी को इज़्ज़त और मोहब्बत दो
🔹 घर को बरकत और रहमत से भरो

आज की सोच और दहेज से जुड़ी समस्याएं व घटनाएं

1️⃣ शादी को तिजारत समझना
लड़के वाले जब शादी को बिज़नेस डील समझते हैं:

"इतना पढ़ाया है बेटे को, अब तो 10 लाख से कम नहीं लेंगे।"

🔸 इस सोच से रिश्ता मोहब्बत नहीं, सौदा बन जाता है।

2️⃣ दहेज न मिलने पर रिश्ता तोड़ देना
बहुत से लड़के वाले जब दहेज की डिमांड पूरी नहीं होती, तो:

या तो रिश्ता ही तोड़ देते हैं,
या शादी के बाद लड़की को तंग करते हैं।

⛔ ये सीधा-सीधा जुल्म है और इस्लाम, इंसानियत दोनों के खिलाफ है।

3️⃣ दहेज के लिए लड़की को जलाना या मार डालना
हर साल हजारों लड़कियां ससुराल में जलाई जाती हैं, मारी जाती हैं — सिर्फ इसलिए कि उनका बाप दहेज नहीं दे सका।

💔 ये सबसे घिनौनी और अफसोसनाक सच्चाई है हमारे समाज की।

4️⃣ बार-बार नए दहेज की डिमांड
शादी के बाद:

“अब फ्रिज भेज दो”
“कार भी चाहिए”
“भाई की शादी है, कुछ तो भेजो”

🔸 ये लालच कभी खत्म नहीं होता। लड़की पर मानसिक और आर्थिक दबाव बढ़ता जाता है।

5️⃣ लड़की को मायके भेज देना
जब लड़की के मायके वाले दहेज पूरा नहीं कर पाते तो:

“इसे कुछ दिन के लिए अपने घर भेज दो।”
और फिर कभी वापस लेने नहीं आते।

🧨 इससे लड़की की जिंदगी अधर में लटक जाती है – ना तलाक, ना सुकून।

6️⃣ लड़की को बांझ या अपशगुन कह देना
जब लड़की दहेज नहीं लाती, तो उसे:

“मनहूस”, “काली क़िस्मत”
जैसे अल्फ़ाज़ से नवाज़ा जाता है, और हर गलती का इल्ज़ाम उसी पर लगता है।

7️⃣ लड़कों में लालच की परवरिश
मां-बाप लड़कों को कहते हैं:

“तू कम से कम एक मोटी कमाई वाली शादी करेगा।”
🔸 इस से लड़के भी रिश्ता दिल से नहीं, जेब से देखने लगते हैं।

8️⃣ गरीब बाप की बेटियां कुंवारी रह जाती हैं
जो बाप दहेज नहीं दे सकते, उनकी बेटियां सालों तक कुंवारी रह जाती हैं।

👩‍🦳 इससे समाज में बेचैनी, कुंठा और गुनाह बढ़ता है।

9️⃣ मीडिया और सोशल प्रेशर
टीवी, सोशल मीडिया पर दिखता है:

“इतनी महंगी शादी हुई”,
“10 लाख का दहेज आया”
🔸 इससे बाकी लोगों पर भी दबाव पड़ता है कि हम भी ऐसा करें, भले ही कर्ज़ लेकर क्यों न हो।

🔟 लड़की की खुद्दारी को मार देना
जब दहेज के नाम पर बार-बार ताने दिए जाते हैं, तो:

लड़की खुद को बोझ समझने लगती है।
उसकी इज़्ज़त, आत्मा और हिम्मत टूट जाती है।

🔴 नतीजा क्या होता है?
असर तफसील
रिश्ता टूटता है दहेज की वजह से तलाक या अलगाव
अपराध बढ़ते हैं लड़की पर जुल्म, हत्या या आत्महत्या
समाज टूटता है पैसे और घमंड पर रिश्ते टिकते हैं
बरकत जाती है घर से सुकून और रहमत चली जाती है
अल्लाह की नाराज़गी दहेज लेना-देना इस्लामी उसूलों के खिलाफ है

✅ हल क्या है? (इस्लामी और इंसानी नजरिया)
🔹 शादी को सादा और आसान बनाएँ
🔹 दहेज की नीयत ना रखें
🔹 बेटी को "बोझ" नहीं, "रहमत" समझें
🔹 लड़के की परवरिश में दीनी सोच दें
🔹 रिश्ता "माल" नहीं, "मोहब्बत" पर कायम हो
🔹 लड़की को इज़्ज़त, मोहब्बत और बराबरी दें

💔 बहू को बेटी जैसा न समझने की सोच – एक समाजी बीमारी

🧠 आज की हकीकत:
जब बेटी मायके में कोई गलती कर दे —

“कोई बात नहीं, बच्ची है… समझ जाएगी।”

लेकिन जब वही गलती बहू करे —

“देखा? इसी को लाए थे तुम शादी करके? ना तमीज़ है, ना तहज़ीब!”

⛔ दोहरा मापदंड (Double Standard) ही आज के घरों में नफरत की जड़ बन चुका है।



📌 बहू और बेटी में फर्क करने के नतीजे:
1️⃣ बहू को पराया समझा जाता है
उसे शुरू से कहा जाता है:

"अपने घर जैसी आज़ादी मत समझना।"

📍 नतीजा: घुटन, अकेलापन, और अजनबीपन।


2️⃣ हर गलती पर ताने
बेटी को समझाया जाता है, बहू को सुनाया जाता है:

"तुम्हारी मां ने कुछ सिखाया भी है?"
"हमारी बेटी तो ऐसा कभी नहीं करती।"

🔸 ऐसे जुमले एक औरत को तोड़ कर रख देते हैं।

3️⃣ बहू को हमेशा तुलना का शिकार बनाया जाता है
"देखो फलां की बहू कैसी है…"
"वो तो घर को संभालती है, तुम क्या करती हो?"

📉 इससे इंसान की हिम्मत मर जाती है और दिल में कड़वाहट भर जाती है।

4️⃣ भावनात्मक शोषण (Emotional abuse)
"तुम्हारा यहां कोई नहीं है।"
"इस घर में तुम्हें हमारे हिसाब से ही चलना होगा।"

💔 इस सोच से लड़की गुज़ारा तो कर लेती है, मगर जिंदा नहीं रहती।

🌙 इस्लाम और इंसानियत क्या कहती है?
📖 हदीस-ए-नबवी (ﷺ):

"तुममें सबसे बेहतरीन वो है जो अपने घरवालों के साथ अच्छा है।"

🔹 बहू भी किसी की बेटी है — और तुम्हारे घर की अब इज्ज़तदार मेंबर है।

🔹 अगर बेटी की तरह नहीं समझ सकते, तो कम से कम इंसान की तरह तो बरताव करो।

🔥 याद रखिए:
"जब तक बहू को बेटी नहीं समझोगे,
तब तक तुम्हारा घर कभी बेटी वाला सुकून नहीं देगा!"


बहू को बेटी जैसा न समझने का नतीजा

1️⃣ घर में मोहब्बत नहीं, मनमुटाव बसता है
जब बहू को हर बात पर टोका जाता है,
जब उसे अपनापन नहीं मिलता —
तो वो भी दिल से उस घर को अपना नहीं समझती।

📍 नतीजा: घर का माहौल सर्द, तनावभरा और बेरंग हो जाता है।

2️⃣ शौहर-बीवी के रिश्ते में दूरी आ जाती है
जब शौहर देखता है कि उसकी बीवी को मां-बाप ताने दे रहे हैं,
और अगर वो कुछ ना कहे तो बीवी का दिल टूटता है।
और अगर बीवी का साथ दे, तो मां-बाप का।

📍 नतीजा: शौहर दोनों के बीच में फँसकर मानसिक तनाव में आ जाता है।

3️⃣ बच्चों की परवरिश पर असर पड़ता है
जब घर का माहौल कड़वाहट वाला होता है,
तो उस घर के बच्चे प्यार, तहज़ीब और सुकून से महरूम रह जाते हैं।

📍 नतीजा: बच्चे गुस्सैल, चिड़चिड़े और गुमसुम हो जाते हैं।

4️⃣ बहू का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बिगड़ता है
जब हर वक्त ताने, तुलना, और तिरस्कार झेलना पड़े —
तो बहू अंदर से टूट जाती है।

📍 नतीजा: डिप्रेशन, अकेलापन, आत्मग्लानि — और कई बार आत्महत्या तक।

5️⃣ घर से बरकत उठ जाती है
जहां जुल्म, ताना और नाइंसाफी होती है —
वहां से अल्लाह की रहमत भी हट जाती है।

📍 नतीजा: रोज़गार में रुकावटें, बीमारी, बर्बादी — सब घर में आने लगती हैं।

6️⃣ रिश्तेदार और समाज में बदनामी होती है
जब बहू रोते हुए मायके जाती है,
या बात तलाक तक पहुंचती है —
तो समाज कहता है:

“बहू को नहीं निभा सके? कुछ तो कमी रही होगी…”

📍 नतीजा: इज़्ज़त जाती है, और रिश्ता भी।

7️⃣ बेटी की शादी में मुश्किल आती है
जैसा हम दूसरों की बहू के साथ करते हैं,
वैसा ही कल हमारी बेटी के साथ होता है।

📍 नतीजा: एक बाप-बाप होकर भी बेटी की तकलीफ नहीं रोक सकता।

📿 इस्लामी नजरिया क्या कहता है?
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

“किसी पर ज़ुल्म मत करो, चाहे वो तुम्हारे अधीन ही क्यों न हो।”

🔹 बहू कोई चीज़ नहीं — इंसान है, बेटी है, उम्मत की एक औरत है।

✅ इसलिए…
🔸 बहू को बेटी जैसा मानिए
🔸 दिल से अपनाइए
🔸 और उसका हाथ थामिए, तिरस्कार नहीं

📌 वरना नतीजा यही होगा:
घर में सुकून नहीं रहेगा,
रिश्ते टूटेंगे,
और अल्लाह की रहमत हट जाएगी।

🔥 आजकल के वक्त की हक़ीक़त — जब ग़लती होती है शौहर या ससुराल वालों की, तो क्या होता है?

🧨 1️⃣ छोटी सी बात को बड़का कर देना
अगर शौहर ने गुस्से में एक गलत बात कह दी,
या सास-ससुर ने कुछ ज्यादा बोल दिया —
तो फौरन लड़की मायूस होती है,
और मायके में शिकायत करती है।

📞 उधर से फौरन जवाब आता है:

“तू चुप क्यों रही?”
“हमने तुझे गुलाम बनाकर नहीं भेजा।”
“तेरे हक के लिए आवाज़ उठा!”

📍 नतीजा: घर में सुकून नहीं, झगड़े का तूफ़ान उठ जाता है।

💣 2️⃣ मायके वालों का ताना: 'हमने इतना भेजा!'
हर बात पर याद दिलाया जाता है:

“तेरे दहेज में हमने इतना दिया था…”
“तेरे शौहर की हैसियत नहीं थी, हमने शादी कराई।”

📍 नतीजा: लड़की के दिमाग में ये बैठ जाता है कि
“मैं खरीदी गई हूं, मेरे मायके वालों का एहसान है ससुराल पर।”

अब वो हर चीज़ का हिसाब मांगने लगती है — रिश्ते टूटने लगते हैं।

⚠️ 3️⃣ हर गलती का दोष सिर्फ ससुराल वालों पर डालना
बहू के ग़ुस्से, बदअखलाकी या ज़िद को नहीं देखा जाता,
बस यही कहा जाता है:

“कुछ किया होगा सास-ससुर ने!”
“शौहर तेरा साथ क्यों नहीं देता?”

📍 नतीजा: लड़की को ज़िम्मेदारी से नहीं, शिकायत से भर दिया जाता है।

😞 4️⃣ घर में 'फन' करने की आदत — बिना सोचे समझे
आजकल छोटी सी बात पर:

❌ बहू मायके चली जाती है
❌ तलाक की धमकी देती है
❌ सोशल मीडिया पर पोस्ट करती है
❌ पुलिस केस की बात होती है

📍 नतीजा:

ससुराल का पूरा माहौल ज़हर बन जाता है

रिश्ते डर पर टिकते हैं, मोहब्बत पर नहीं

💔 5️⃣ मायके वालों की 'ओवर प्रोटेक्शन' – बहू को बिगाड़ देती है
हर लड़की को ये सिखाया जा रहा है:

“तू झुकेगी तो दबेगी, हमेशा जवाब देना।”
“तू हक की लड़ाई लड़ेगी तो ही इज्ज़त मिलेगी।”

📍 नतीजा:
लड़की लड़ती है… मगर शादी नहीं निभा पाती।
शौहर भी थक जाता है, सास-ससुर भी हार मान लेते हैं।

🕌 इस्लामी नजरिया क्या कहता है?
📖 कुरआन कहता है:

"बीवियों के साथ भलाई और इंसाफ़ से पेश आओ।"
"औरतों को भी कहा गया है कि शौहर के साथ तहज़ीब से पेश आओ।"

✅ ससुराल वालों को चाहिए कि बहू को बेटी समझें
✅ और मायके वालों को चाहिए कि बेटी को समझाएं, भड़काएं नहीं

📌 क्या करना चाहिए इस दौर में?
क्या करें क्यों करें
बेटी को सलीका, सब्र और समझ सिखाएं ताकि वो घर चला सके, लड़ाई नहीं
दहेज को एहसान ना बनाएं वरना रिश्ता लेन-देन बन जाएगा
दोनों घरवाले मिलकर मसले हल करें ताकि बात तलाक तक न पहुंचे
बहू से भी सवाल करें सिर्फ ससुराल पर इल्ज़ाम न लगाएं

🔚 नतीजा क्या होता है अगर ऐसा चलता रहा?
❤️‍🩹 रिश्ते टूटते हैं

🏚️ घर बर्बाद होते हैं

🧠 सब मानसिक तनाव में जीते हैं

👧 और सबसे ज़्यादा असर बच्चों पर पड़ता है

बच्चों पर बर्बाद होती शादीशुदा ज़िंदगी का असर

1️⃣ बच्चा प्यार नहीं, तकरार देखता है
बच्चे को घर में ममता, मोहब्बत, एकता मिलनी चाहिए थी —
मगर रोज़ मां-बाप के झगड़े, सास-बहू के ताने, दादी-नानी की चुग़ली…

📍 नतीजा:
बच्चा डरा-सहमा, गुमसुम, और अंदर से टूटा हुआ हो जाता है।
उसे रिश्तों से डर लगने लगता है।

2️⃣ बच्चा गुस्सैल या डिप्रेस हो जाता है
जब बच्चा रोज़ देखता है कि कोई किसी की इज्ज़त नहीं करता —
तो या तो वो गुस्से वाला बनता है
या चुपचाप, अकेला, डिप्रेस रहने लगता है।

📍 नतीजा:
स्कूल में परफॉर्मेंस गिरता है, दोस्त नहीं बनते,
और धीरे-धीरे mental illness (मानसिक बीमारी) का शिकार हो जाता है।

3️⃣ बच्चे का भरोसा टूटता है — खासकर मां-बाप पर
जब बच्चा देखता है कि उसकी मां रोती है,
और बाप खामोश है, या झगड़ रहा है —
या नानी-नाना मां को भड़काते हैं —

📍 नतीजा:
बच्चा सोचता है, "कोई मेरा नहीं। सब झूठे हैं।"

उसके दिल में तल्खी (कड़वाहट) भर जाती है।

4️⃣ बच्चा खुद रिश्ता निभाने से डरने लगता है
जब बच्चा बड़े होकर शादी लायक होता है —
तो उसे लगता है कि शादी तो एक झगड़े का सौदा है।

📍 नतीजा:

या तो वो कभी शादी नहीं करता

या शादी करता भी है, तो रिश्ते निभाने से भागता है।

5️⃣ बच्चा ज़्यादा ममता दादी-नानी से चाहता है — पर वहां भी जलन मिलती है
जब घर दो खेमों में बंट जाएं —
तो बच्चा कंफ्यूज हो जाता है:

“मेरी मां सही है या दादी?”
“मेरे नाना सही हैं या अब्बू?”

📍 नतीजा:
बच्चा ममता की जगह नफरत सीखता है, और उसे किसी पर भरोसा नहीं रहता।

6️⃣ बच्चे को सबक गलत मिलता है
जब बच्चा देखता है कि झगड़ा करने वाला ही हावी रहता है,
तो वो समझता है:

“जो चिल्लाएगा, उसी की चलेगी।”

📍 नतीजा:
वो संवेदनशील इंसान नहीं, एक जिद्दी, बेरहम इंसान बन जाता है।

7️⃣ बच्चे की परवरिश अधूरी हो जाती है
मां-बाप को चाहिए था कि

मिलकर उसे दुआ सिखाते

अखलाक सिखाते

तहज़ीब सिखाते

रिश्तों का मतलब समझाते

मगर क्या मिला?

ताना

झगड़ा

डर

तकरार

📍 नतीजा:
ऐसे बच्चे या तो अपराधी बनते हैं, या शिकार।

🔚 अंतिम बात:
बच्चा जो देखता है, वही बनता है।
अगर उसने प्यार देखा, तो मोहब्बत सीखेगा।
अगर उसने झगड़ा देखा, तो तकरार को ही हक़ समझेगा।

🕌 इस्लामी नसीहत:
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

“हर एक आदमी अपने घर का ज़िम्मेदार है, और उससे उसकी ज़िम्मेदारी के बारे में पूछा जाएगा।”

🧕 👳‍♂️ मां-बाप की पहली जिम्मेदारी बच्चों की तरबियत है — ना कि अपनी इज्ज़त का झूठा घमंड।


“बच्चा जब बड़ा होकर नाफरमान बन जाता है, बात नहीं मानता, गुस्से वाला हो जाता है, रिश्तों की कद्र नहीं करता — तो मां-बाप कहते हैं: हमारा बच्चा ऐसा कैसे हो गया?”
तो फिर सवाल उठता है: गलती किसकी थी?

🧠 जब बच्चा नाफरमान निकलता है — तो असल ग़लती किसकी थी?

🔹 1️⃣ बच्चों की पहली किताब: मां-बाप का बर्ताव
बच्चा किताब से नहीं, अपने घर से सीखता है।
जो वो बचपन से घर में देखता है —
उसी को "सही" मानने लगता है।

👉 अगर उसने देखा:

मां बाप आपस में इज़्ज़त से बात नहीं करते

घर में हर हफ्ते तकरार है

झूठ, ताना, घमंड, तुलना, गाली…

📍 तो बच्चा यही सोचता है:

“रिश्ते तो ऐसे ही होते हैं। और बात मनवाने के लिए दबाव डालना ज़रूरी है।”


🔹 2️⃣ जब बच्चे ने सीखा "बात काटना", "गुस्सा दिखाना", "धमकाना" — तो दोष किसका?
बच्चा खुद से नाफरमान नहीं बनता।
वो सीखता है — देखकर।

👉 आपने किसी और की बेइज़्ज़ती की,
👉 घर में हमेशा बहू को नीचा दिखाया,
👉 बेटे को ताना दिया "तेरी बीवी वैसी है",
👉 या बेटी को सिखाया "ससुराल वालों से दबना नहीं"...

📍 तो बच्चा सीखेगा क्या?

“अगर मेरी बात नहीं मानी जाती — तो तोड़ दो रिश्ता, झगड़ो, चिल्लाओ!”


🔹 3️⃣ मां-बाप ने खुद रिश्तों की कद्र नहीं की — तो बच्चे से उम्मीद कैसे?
अगर मां बाप ने:

किसी की दिल की बात नहीं सुनी

बच्चों के सामने गंदे शब्द बोले

बहू को बेटी जैसा नहीं समझा

या बेटा/बेटी को कभी समझाया नहीं

📍 तो बच्चा सीखेगा क्या?

“रिश्ते सिर्फ काम के होते हैं — इज़्ज़त की कोई अहमियत नहीं।”

4️⃣ घर का माहौल ही जहरीला था — तो फल मीठा कैसे होगा?
आपने बीज बोया "नफरत का",
उगाया पौधा "तकब्बुर का",
सींचा "ताना, झगड़ा और गुस्से से" —
तो अब अगर फल "नाफरमानी" का निकला…
तो पूछिए ख़ुद से:

“मैंने इसमें कौन सी मिठास डाली थी?”


5️⃣ बच्चा आइना है — आप जैसा बर्ताव करेंगे, वो वैसा ही लौटाएगा
अगर आप उसके साथ:

मोहब्बत से पेश आते,

उसे सही गलत समझाते,

दुआ देते, झूठ से बचाते…

📍 तो आज वही बच्चा:

“आपके लिए ढाल बनता, दोस्त बनता, रहमत बनता।”

मगर आपने गुस्से, ज़हर, और दुनिया की झूठी शान को तरजीह दी —
तो आज वही बच्चा आपके लिए बोझ बन गया।

 नतीजा: गलती किसकी?
👉 90% ग़लती घर वालों की होती है।
बच्चा वो बनता है जो आपने उसे "सिखाया नहीं", बल्कि जो उसने आपसे "देखा"।

इस्लामी नसीहत:
रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया:

“अपने बच्चों को तीन चीज़ें सिखाओ —

अल्लाह की मुहब्बत,

मेरे रसूल की मुहब्बत,

और अच्छे अख़लाक़।”

📌 और यही वो तीन चीज़ें हैं
जो एक बच्चे को फरमाबरदार, रहमदिल और नेकी वाला इंसान बनाती हैं।
अब करना क्या है?
बच्चों को सुने, डांटे नहीं।

उनके रोल मॉडल खुद बनें।

गुस्से और तानों से नहीं, मोहब्बत से सही-गलत समझाएं।

जो गलती आपसे हुई हो, कबूल करें — ताकि बच्चा माफ करना सीखे।

घर में कुरान, नबी की सीरत, और इस्लामी तालीम आम करें।


आपने बहुत गहरी और दर्द भरी बात कही —
और यकीन मानिए, यही बात आज लाखों घरों की टूटती बुनियाद है:

"मां-बाप को एहसास ही नहीं होता कि उनके अपने बर्ताव, लफ़्ज़, और रवैय्ये की वजह से बच्चा ऐसा बना है.
🧠 क्यों मां-बाप को एहसास नहीं होता कि बच्चा "उनकी वजह से" बिगड़ा?

🔹 1️⃣ क्योंकि वो ख़ुद को हमेशा सही समझते हैं
मां-बाप कहते हैं:

“हमने तुम्हारे लिए इतना किया, तुम फिर भी ऐसे निकले?”

लेकिन वो कभी नहीं सोचते:

“हमारे प्यार में कमी तो नहीं रह गई?
हमने कभी उसे खुल के सुना भी या नहीं?
हमारे गुस्से, तुलना या बद्दुआओं का उस पर क्या असर पड़ा?”

📍 नतीजा:
वो हमेशा बच्चे की गलती गिनते हैं — अपनी नहीं।

🔹 2️⃣ क्योंकि वो खुद अपने मां-बाप से यही सीखे थे
जिस मां ने अपनी बहू को “दूसरी” समझा,
वो कभी खुद भी किसी की बहू रही होगी —
और उस वक़्त उसे भी ऐसा ही महसूस कराया गया होगा।

📍 अब वही दर्द — जहर बनकर बहू पर उतरता है
और बच्चे उसी माहौल में रंग पकड़ते हैं।

🔹 3️⃣ क्योंकि वो सोचते हैं: "हमने तो सब कुछ दिया"
लेकिन भूल जाते हैं कि:

बच्चा सिर्फ पैसा, कपड़े, मोबाइल नहीं चाहता —
वो चाहता है मोहब्बत, इज़्ज़त और एक सुनने वाला दिल।

📍 जिस घर में:

ताना दिया जाता हो,

तुलना की जाती हो,

बात-बात पे डांट पड़ी हो…

वहां बच्चा भीतर से टूटता है — और धीरे-धीरे बाग़ी हो जाता है।

🔹 4️⃣ क्योंकि वो बच्चों की फीलिंग्स को 'ड्रामा' समझते हैं
बच्चा कहे: "मुझे अकेलापन लगता है"
मां-बाप कहते हैं:

“हमारे टाइम पे कोई अकेलापन नहीं था —
हम खेतों में काम करते थे!”

📍 लेकिन आज का बच्चा दिमागी बोझ,
सोशल प्रेशर, तुलना,
और खामोश तन्हाई से गुजर रहा है —
जो मां-बाप समझ ही नहीं पाते।

🔹 5️⃣ क्योंकि वो समझते हैं — 'सिर्फ बेटा गलत है'
“हमने तो जो किया — सही किया,
ना उसने हमारी सुनना सीखा,
ना वह समझदार निकला!”

📍 मगर हकीकत ये है:

गलतियां दोनों तरफ होती हैं —
मगर मां-बाप को सिर्फ अपने "कुर्बानियों" की आदत होती है,
बच्चों की "तकलीफ़" को कभी महसूस ही नहीं करते।

🪞तो फिर समाधान क्या है?
🌱 1. आईना देखिए — बच्चे में अपना अक्स तलाशिए
जो बात आप उसके मुँह से सुनना पसंद नहीं करते —
कभी वो बात आपने किसी और से कही थी?

जैसे:

ताना देना

गुस्से से बात काटना

रिश्तों में तुलना

📍 बच्चा तो आपका ही आइना है —
जैसा आप पेश आए, वो भी वैसा ही निकला।

🕊️ 2. बच्चे से माफी मांगना सीखिए (इसमें कोई शर्म नहीं)
एक बार प्यार से कहिए:

“बेटा, माफ करना… शायद हमसे भी कुछ गलती हो गई,
चलो मिलकर इसे सुधारते हैं…”

📍 यही लफ़्ज़ बच्चा कभी ज़िंदगी भर नहीं भूलेगा।

🌸 3. रिश्तों की बुनियाद मोहब्बत और सब्र पर रखिए — गुस्से और ऐहसान पर नहीं
बच्चा "हुक्म" से नहीं चलता,
वो "रिश्ते" से चलता है।

📍 अगर आप उसे समझेंगे —
वो आपकी सुनना सीखेगा।

🕌 इस्लामी नसीहत:
हज़रत अली (र.अ.) ने फरमाया:

“अपने बच्चों की परवरिश अपने जैसे मत करो,
क्योंकि वो एक और दौर में पैदा हुए हैं।”

📌 यानी —
दुनिया बदल गई है, बच्चों की तालीम, तर्बियत और समझने का अंदाज़ भी बदलना चाहिए।

✨ आखिर में एक बात:
बच्चा नाफरमान नहीं होता — उसे बनना पड़ता है।
और अगर मां-बाप आंखें खोल लें,
तो शायद वो बच भी सकता है…


🎯 मां-बाप और बच्चे का रिश्ता — कुम्हार और मटके जैसा
"जैसे कुम्हार मटके को अपने हाथों से घुमा कर शक्ल देता है,
वैसे ही मां-बाप अपने बच्चों की आदतों, सोच और किरदार को बनाते हैं।"


मिसाल से समझिए:
🔹 अगर कुम्हार की उंगली गलती से मटके में जोर से लग जाए, तो... क्या होता है?
➡ मटका टेढ़ा बन जाता है या उसमें छेद हो जाता है।

🔹 अगर कुम्हार बहुत नर्मी से, होशियारी से, सब्र से मटका बनाता है...?
➡ तो वही मिट्टी का ढेर एक खूबसूरत मटका बन जाता है —
जिसमें पानी भी ठंडा रहता है, और लोग तारीफ भी करते हैं।

🪔 यही तो बच्चों का हाल है...
बच्चा भी एक कोरा मटका है —
तुम जैसे हाथ फेरोगे, वो वैसे ही बनेगा।

🧩 अगर बचपन में...
बच्चे को गालियाँ दी गईं,

हर बात पे मारा गया,

बार-बार तुलना की गई ("देखो फलां का बच्चा कितना अच्छा है"),

या ताने, तजलील और तवहीन (बेज्जती) की गई,

📍 तो वो बच्चा भी अंदर से "छेद वाला मटका" बन जाएगा —
जो ना खुद को संभाल पाएगा, ना रिश्तों को।

🌿 और अगर...
उसे प्यार से समझाया गया,

उसकी गलतियों पर सब्र किया गया,

उसकी बातें सुनी गईं,

दुआओं में उसका नाम लिया गया,

📍 तो वही बच्चा एक ठंडा, सीधा, नेकदिल इंसान बन जाएगा —
जो घर का नूर, मां-बाप का साया, और किसी का वफ़ादार हमसफ़र बनेगा।
⚖️ तो क्या गलत बर्ताव करने वाला बच्चा खुद से ऐसा बनता है?
नहीं!

बच्चे को नाफ़रमान, ज़िद्दी, या बेरहम समाज और घर बनाते हैं।
बच्चा जैसा देखता है, वैसा सीखता है।


🔥 दुनिया रॉकेट, मिसाइल और मोबाइल बना रही है —
लेकिन...

अगर इंसान अपना किरदार ना बना सका,
तो उसकी पढ़ाई, टेक्नोलॉजी और कामयाबी सब बेकार है।

✨ इस्लामी हदीस से मिसाल:
नबी करीम ﷺ ने फरमाया:

"हर बच्चा फितरत (नेकी और सच्चाई) पर पैदा होता है,
फिर उसके मां-बाप ही उसे यहूदी, ईसाई या मजूसी बनाते हैं।”
📚 (सहीह बुखारी)

यानी बच्चा कुदरतन नेक आता है —
माहौल उसे बदलता है।
📌 नतीजा:
अगर मटके में छेद है —
तो कुम्हार खुद देखे कि छेद कब और कैसे हुआ।

अगर बच्चा गलत है —
तो मां-बाप खुद देखे कि वो कब और क्यों बिगड़ा।

📖 आख़िर में एक सोचने वाली बात:
“तालीम से पहले तर्बियत दो,
अदब से पहले इल्म दो,
और हुकूमत से पहले मोहब्बत दो।”

📍 फिर देखो —
बच्चा तुम्हारा फ़रमाबरदार नहीं,
तुम्हारा साया बनकर जीएगा।

🌾 मिसाल: किसान और उसकी फसल
"जैसी मेहनत करेगा किसान, वैसी फसल पाएगा।
जैसी तर्बियत देगा मां-बाप, वैसा ही बच्चा बनेगा।"

🧑‍🌾 किसान अगर चाहता है कि उसकी फसल:
हरी-भरी हो,

ज़मीन से बरकत निकले,

और सब बाज़ार में कहें: "क्या जबरदस्त फसल है!"

तो उसे क्या करना पड़ेगा?

 अच्छी फसल के लिए किसान क्या करता है?
अच्छा बीज चुनता है – यानी बच्चे की बुनियाद दुरुस्त रखता है।

खाद डालता है समय से – यानी अच्छे अखलाक, तालीम और तहज़ीब देता है।

पानी सही वक़्त पर देता है – यानी प्यार, वक्त, और दुआ देता है।

घास-फूस निकालता है खेत से – यानी गलत संगत, टीवी, मोबाइल, बुरी सोहबत से दूर रखता है।

मौसम देखकर फसल काटता है – यानी बच्चे की समझ, उम्र, और ज़रूरतों के मुताबिक फैसला करता है।

❌ लेकिन अगर...
किसान बीज तो डाल दे लेकिन…

ना खाद दे,

ना पानी दे,

खेत को जंगली बना छोड़े,

और फिर कहे, “मेरी फसल क्यों खराब हो गई?”

📍 तो गलती किसकी है?
👉 किसान की!



 अब यही बात बच्चों पर लागू करें:
“अगर मां-बाप बच्चे को तालीम नहीं देंगे,
अखलाक नहीं सिखाएंगे,
गलत चीज़ों से नहीं बचाएंगे,
और फिर कहेंगे —
‘मेरा बच्चा वफ़ादार निकले’,
तो ये ख्वाब है — हक़ीक़त नहीं।”


🧠 सोचिए:
बच्चा हर चीज़ जल्दी सीखता है।

अगर वो झगड़ा देखेगा — झगड़ालू बनेगा।

अगर वो बाप को मां पर चिल्लाते देखेगा — खुद भी वही करेगा।

अगर मां-बाप फोन पर दिन भर लगे रहें — बच्चा किताबों से दूर भागेगा।

अगर मां-बाप नमाज़ ना पढ़ें — बच्चा मस्जिद से दूर होगा।

अगर मां-बाप मोहब्बत से पेश ना आएं — बच्चा भी बेरहम बनेगा।

 एक नसीहत:
"बच्चा सुनता कम है —
लेकिन देखता बहुत है।
और फिर वही करता है जो वो रोज़ अपने घर में देखता है।"


हदीस का असरदार हवाला:
हज़रत अली र.अ. ने फरमाया: 
"अपने बच्चों की तर्बियत उनके दौर के मुताबिक करो,
क्योंकि वो तुम्हारे दौर से अलग दौर के लिए पैदा हुए हैं।”


📌 तो क्या करें?
बच्चों को सिर्फ खाने-पीने का सामान नहीं, अदब और किरदार भी दें।

तालीम के साथ तरबियत ज़रूरी है।

और अगर वक़्त पर अपने बच्चों के साथ प्यार और सब्र से मेहनत की,
तो वही बच्चे तुम्हारी आँखों की ठंडक और दिल का सुकून बनेंगे।
______________________________________________
🌾 किसान और उसकी फसल (मिसाल)
एक किसान था जो अपनी जमीन में मेहनत से फसल उगाता था।
वो रोज़ सुबह खेत जाता, बीज बोता, वक्त पर पानी देता, खाद डालता, और घास-फूस निकालता।
जब मौसम आया तो उसने फसल काटी — और लोगों ने कहा:
“क्या लाजवाब मेहनत है! अल्लाह ने खूब बरकत दी।”

अब एक दूसरा किसान था।
उसने बस बीज फेंक दिया और खेत को यूँही छोड़ दिया।
ना पानी, ना खाद, ना देखभाल।
जब फसल काटने का वक़्त आया —
तो सिर्फ झाड़-झंखाड़ और बर्बादी मिली।
लोगों ने पूछा:
“फसल क्यों खराब हुई?”
वो बोला: “क़िस्मत खराब थी।”
लेकिन असल में क़िस्मत नहीं — उसकी मेहनत में कमी थी।




❌ गलत स्टोरी: ग़लत तर्बियत का अंजाम
शहर में एक जोड़ा रहता था —
मां-बाप ने अपने बच्चे को बहुत कुछ दिया, मगर समय नहीं दिया।
बच्चा टीवी, मोबाइल, और बाहर की बुरी सोहबत में पड़ा रहा।
मां-बाप सोचते रहे — "अभी बच्चा है, बड़ा होकर संभल जाएगा"।
लेकिन बच्चा बड़ा हुआ और ज़िद्दी, बदअखलाक, और बदतमीज़ बन गया।
न नमाज़, न पढ़ाई, न अदब —
और जब मां-बाप ने उसे रोका, तो वही बच्चा कहता है:
“आपने तो कभी सिखाया ही नहीं, अब क्यों रोकते हो?”
और मां-बाप हैरान:
“हमारा बच्चा ना-फ़रमान कैसे बन गया?”

✅ सही स्टोरी: सही तर्बियत का नतीजा
एक और जोड़ा था —
कम आमदनी थी, लेकिन तहज़ीब और दीनदारी ज़िंदा थी।
मां रोज़ बच्चे को तालीम देती,
बाप उसे मस्जिद ले जाता,
घर का माहौल मोहब्बत और अदब से भरा हुआ था।
बच्चा जो देखता वही सीखता।
वो नमाज़ी बना, दूसरों से अच्छा बर्ताव करने वाला बना।
बड़े होकर मां-बाप की इज़्ज़त, ख़िदमत, और दुआओं का ज़रिया बना।
लोग पूछते: “कैसे ऐसा बेटा बना?”
तो मां मुस्कराकर कहती:
“बचपन में जो बीज डाला था, वही फसल काटी है।”

📌 सीखने वाले पॉइंट्स (क्या सबक़ मिला?):
👨‍👩‍👧‍👦 बच्चा जैसा देखेगा — वैसा ही सीखेगा।

📚 तालीम के साथ तरबियत ज़रूरी है।

🕊️ घर का माहौल मोहब्बत, सब्र और अदब वाला हो।

❌ बच्चों को झगड़े, मोबाइल की लत और गलत संगत से बचाओ।

⏳ बच्चे के साथ वक्त बिताओ — सिर्फ पैसे मत दो, तवज्जो दो।

🕌 दीनदारी, नमाज़, अखलाक बचपन से सिखाओ।

💬 जो बीज बोओगे — वही फसल उगेगी।

💔 अगर बच्चा ना-फ़रमान निकला तो खुद से पूछो — “मैंने उसे क्या सिखाया था?”

आख़िरी बात (नसीहत):
“बच्चा मटके जैसा होता है,
जैसे कुमार हाथ दे — वैसा शेप बनता है।
अगर मटके में बचपन में छेद कर दिया —
तो बाद में वो पानी नहीं रखेगा,
बल्कि सब बर्बाद करेगा।”

______________________________________________
📘 1. कहानी: “दहेज की दौलत या बेटी की कीमत?”
रईस अली ने अपनी बेटी की शादी बहुत धूमधाम से की। दहेज में कार, गहने, सोफा, फ्रिज सब कुछ दिया।
शादी के कुछ ही महीनों बाद दामाद की मां ने ताना देना शुरू किया —
"तेरी बेटी कुछ नहीं जानती, ना खाना बनाना आता है, ना सलीका है!"

रईस अली ने जब बेटी से पूछा — वो चुप रही।
क्योंकि उसे बचपन से यही सिखाया गया था: "बेटी को सहना चाहिए।"

कुछ साल बाद जब रईस अली का सब कुछ लुट गया और बेटी तलाक लेकर लौटी —
तो समाज ने कहा: "दहेज तो बहुत दिया था, फिर भी रिश्ता क्यों टूटा?"

🔹 नसीहत:

"दहेज देकर रिश्ते नहीं टिकते —
अख़लाक, समझदारी और इंसानियत से रिश्ते चलते हैं।
बेटी कोई सामान नहीं — अमानत होती है।"

📘 2. कहानी: “जब बहू को बेटी नहीं समझा गया”
नसीरुद्दीन की बहू ने अपने ससुराल को अपना घर समझा,
मगर सास ने उसे कभी बेटी का दर्जा नहीं दिया।
हर काम में कमी निकाली, हर बात में तुलना की —
"मेरी बेटी होती तो ऐसा नहीं करती।"

जब बहू मायके जाती — तो सास कहती:
"बहाने बना रही है, आराम करने जाती है।"

धीरे-धीरे बहू खामोश हो गई, हंसना छोड़ दिया।
बच्चों पर असर पड़ा — घर में टेंशन, तकरार, और मायूसी बढ़ने लगी।

🔹 नसीहत:

"अगर बहू को बेटी बना लो —
तो घर जन्नत बन जाता है।
मगर अगर बहू को नौकर समझो —
तो घर कब्र बन जाता है।"

📘 3. कहानी: “मां-बाप ने बच्चा बिगाड़ा, मगर इल्ज़ाम जमाने पर लगा”
आरिफ़ और उसकी बीवी सारा अपने बेटे को मोबाइल देकर चुप कराते थे।
ना तालीम पर ध्यान, ना अच्छी सोहबत का ख्याल।
जब बेटा जुर्म में पकड़ा गया — तो बोले:
"ज़माना बहुत खराब हो गया है।"

मगर असलियत ये थी कि बच्चे को वक्त दिया ही नहीं।
जो कुछ देखा — टीवी, मोबाइल, और गली की गंदी सोहबत से सीखा।
और आज वही बच्चा मां-बाप की बात नहीं मानता।

🔹 नसीहत:

"जैसा बोओगे, वैसा काटोगे।
बच्चों को समझाना, सिखाना, और वक्त देना —
ये मां-बाप की जिम्मेदारी है, समाज की नहीं।"

📘 4. कहानी: “तुलना ने घर बर्बाद कर दिया”
रुबिना ने शादी के बाद देखा कि उसका ससुराल उसके मायके जितना रईस नहीं।
हर चीज़ में तुलना करने लगी:
"वहां ये था, यहां ये नहीं!"
"मेरी सहेली के घर में नौकर हैं, यहां मैं खुद काम करती हूं!"

धीरे-धीरे शौहर भी परेशान रहने लगा।
मां-बाप के बीच झगड़े बढ़े, बच्चे डरने लगे।
घर की रूह मर गई — सिर्फ दीवारें बचीं।

🔹 नसीहत:

"जिस दिन तुलना शुरू होती है —
उस दिन से मोहब्बत खत्म हो जाती है।
शादी समझदारी, सब्र और शुक्र का नाम है — मुक़ाबलेबाज़ी का नहीं।"

📜 अंतिम दर्शनात्मक बात:
"घर वो होता है जहाँ मोहब्बत सांस ले,
ना कि वो जहां हर बात में तौल-मोल हो।
बच्चा जैसा माहौल देखता है —
वैसा ही इन्सान बनता है।"



______________________________________________


🌿 कहानी का नाम: “जैसी खेती, वैसी फसल”
(एक नैतिक दर्शन कथा - बच्चों, बड़ों और हर घर के लिए)

🪔 कहानी शुरू होती है…
किसी गांव में दो दोस्त रहते थे — हाशिम और सलमान।

दोनों किसान थे और दोनों के यहां बच्चे भी थे।
मगर दोनों की सोच, परवरिश और मेहनत में फर्क था।

🌾 हाशिम की कहानी (समझदारी और मेहनत की मिसाल):
हाशिम अपनी जमीन को सुबह-सुबह सींचता,
खाद डालता, समय पर घास साफ करता।
उसी तरह अपने बच्चे को भी समय देता।
उसे नमाज़, तालीम, तहज़ीब और इंसानियत सिखाता।
वो जानता था — "बच्चा हो या फसल, दोनों को वक्त चाहिए, निगरानी चाहिए, मोहब्बत और मेहनत चाहिए।”

फसल आई तो खुशबूदार गेहूं लहलहाया — और बेटा बड़ा हुआ तो मां-बाप का फ़ख्र बना।

🥀 सलमान की कहानी (लापरवाही और ग़फ़लत की मिसाल):
सलमान ने बस बीज फेंक दिए।
ना खेत देखा, ना पानी दिया।
जब फसल काटने का वक्त आया — खेत बंजर निकला।

वैसे ही बच्चे को मोबाइल पकड़ा दिया, ना देखा कहां जा रहा, किससे मिल रहा।
बच्चा धीरे-धीरे बिगड़ता गया।
न नमाज़, न पढ़ाई, न अदब —
और जब बड़ा हुआ, तो मां-बाप से ही बदतमीज़ी करने लगा।

सलमान ने अफ़सोस से कहा:
"मैंने तो सब कुछ दिया..."
मगर असल सवाल था:
“क्या दिया? कब दिया? और किस नियत से दिया?”

📖 फिलॉसॉफिकल मोड़ (दर्शन):
“मिट्टी एक जैसी होती है,
मगर हाथ किसके लगते हैं — उस पर निर्भर करता है कि वह मिट्टी का दीपक बनती है या ईंट।”

“बच्चा उस मटके जैसा है,
जिसे कुम्हार जैसे चाहे वैसे आकार दे देता है।
अगर छेद बचपन में कर दिया गया —
तो वो मटका कभी पानी नहीं रख सकेगा।”

✅ सीख / नसीहत (Moral Lessons):
👀 बच्चों को नजरअंदाज मत करो — वो तुम्हारे भविष्य का आईना हैं।

🕰️ वक्त दो, वक्त पर दो — वरना वक्त तुम्हें पछताने पर मजबूर करेगा।

📿 दौलत से ज़्यादा अदब, अखलाक और दीन सिखाओ।

🚫 घर के झगड़े, गंदी सोहबत और टीवी-मोबाइल की लत से बच्चे को बचाओ।

👨‍🏫 बच्चा तुम्हारी परछाईं है — पहले खुद सही बनो, फिर बच्चे को सही बनाओ।

🌟 अंतिम पंक्तियाँ:
“जैसे किसान खेत में मेहनत करता है,
वैसे ही मां-बाप को अपनी औलाद में मेहनत करनी चाहिए।
तभी वो फसल आएगी जो सिर्फ पेट नहीं — दिल को भी भर देगी।”



______________________________________________
 ये कहानियां बच्चों की परवरिश, घर का माहौल, दहेज और माता-पिता की जिम्मेदारी से जुड़ी हैं। हर कहानी में मजबूत नसीहत और आज की हकीकत का आईना है।


📘 कहानी 1: “थोड़ा-थोड़ा करके बिगड़ा बचपन”
✍️ कहानी:
आदिल एक सीधा-सादा बच्चा था। मगर घर में मां-बाप की रोज की लड़ाई, ताने, और एक-दूसरे की बेइज्जती ने आदिल के दिल को धीरे-धीरे जहर से भर दिया।
ना किसी ने प्यार से बात की, ना सही-गलत समझाया।
धीरे-धीरे वो गुस्सैल हो गया, फिर बदतमीज़, फिर चोरी करने लगा।

मां कहती: “पता नहीं ये किसके साथ घूमने लगा है!”
बाप कहता: “बच्चा तो मेरा शरीफ था!”

मगर किसी ने सोचा ही नहीं — बच्चा बिगड़ा नहीं, बिगाड़ा गया है।

📌 नसीहत:
बच्चों को बिगड़ने में सालों लगते हैं, सेकंड्स में नहीं।

घर का ज़हरीला माहौल सबसे पहला जहर बच्चों की रगों में घोलता है।

उनकी बदतमीज़ी की जड़ें अक्सर मां-बाप की बेअदबी में छुपी होती हैं।

📗 कहानी 2: “दहेज की कीमत”
✍️ कहानी:
नजमा की शादी बड़े दहेज के साथ हुई। फ्रिज, AC, बाइक, सोना… सब कुछ गया।
शादी के बाद ससुरालवालों ने हर बार ताना दिया:
“तुम्हारे बाप ने ये नहीं दिया… वो नहीं दिया।”
पति ने कहा: “हमने तुम्हें खरीदा है।”

नजमा रोती रही। मायके में मां कहती: “इतना दहेज दिया है, अब सह ले।”

कुछ सालों बाद नजमा की बेटी हुई।
और उसने कसम खाई: "मैं अपनी बेटी को बोझ बना कर किसी को नहीं दूंगी।"

📌 नसीहत:
दहेज देकर बेटी को खुश नहीं किया जाता, उसे बेच दिया जाता है।

औरत इंसान होती है, सौदा नहीं।

जो ज्यादा मांगता है, वो बाद में इज़्ज़त नहीं करता।

📙 कहानी 3: “बेटी या बोझ?”
✍️ कहानी:
रुखसाना एक बहु बनकर ससुराल आई।
सास हर वक्त कहती: “तुम मेरी बेटी जैसी हो…”
मगर दिन-रात ताने, काम का बोझ, और बात-बात पर शक।

एक दिन रुखसाना ने कहा:
“अगर मैं आपकी बेटी होती तो क्या मुझसे ऐसे पेश आतीं?”
सास चुप रह गई।
उसके दिल में कहीं दर्द तो था, मगर अहंकार ने उसे अंधा बना दिया।

रुखसाना रोती रही — “मैं बहु हूं, इंसान नहीं?”

📌 नसीहत:
बहु को बेटी कहना आसान है, बेटी जैसा समझना मुश्किल।

घर की बहु पर ज़ुल्म कर के खुदा से रहमत की उम्मीद करना बेवकूफी है।

बहु एक मेहमान नहीं, आने वाली नस्लों की परवरिश करने वाली है।

📕 कहानी 4: “बोया पेड़ बबूल का…”
✍️ कहानी:
शाकिब मोबाइल में उलझा रहता, स्कूल बंक करता, गुस्सा करता।
मां-बाप कहते: “अभी बच्चा है… समझ जाएगा।”

जब वही बच्चा 17 की उम्र में मां-बाप को गालियाँ देने लगा,
तो मां-बाप बोले: “हमारा बच्चा नाफरमान हो गया।”

पड़ोसी ने कहा:
“जो पेड़ तुमने खुद सींचा है, अब उसकी छाया में रहो — या कांटे झेलो।”

📌 नसीहत:
परवरिश का फल वक्त आने पर ही मिलता है — चाहे मीठा हो या कड़वा।

बच्चों को जब कुछ सिखाया नहीं, रोका नहीं — तो अब शिकायत क्यों?

नसीहत और निगरानी वक्त पर हो, वरना पछतावा बहुत भारी पड़ता है।

📌 सभी कहानियों की सामूहिक सीख:
🪔 “बच्चा बिगड़ता नहीं है — धीरे-धीरे घर, समाज और लापरवाही से बिगड़ाया जाता है।”
🏡 “घर की तालीम स्कूल से पहले शुरू होती है।”
🕊️ “दहेज, ताना, बेइज्जती — ये सब नई नस्लों के दिल को कच्चा और ज़हरीला बना देती हैं।”
🌱 “जैसा बीज बोओगे, वैसा ही फल मिलेगा। और जो जैसा देखेगा, वैसा ही सीखेगा।”





______________________________________________

 मैं आपको आज के मौजूदा वक्त के हालातों पर आधारित चार गहरी असरदार नैतिक कहानियाँ दे रहा हूँ। ये कहानियाँ बच्चों की परवरिश, संगत, मां-बाप की ज़िम्मेदारी, और समाज की हक़ीक़त को दर्शाती हैं।

🌿 1. कहानी: “दोस्ती की आग”
रज़ा एक होनहार बच्चा था। पढ़ाई में तेज़, नमाज़ी, और अदबी।
मगर जब वो आठवीं में गया, उसकी क्लास में कुछ बिगड़े हुए लड़के मिले — मोबाइल, गेम, गालियाँ और फिल्मी बातें।
धीरे-धीरे रज़ा ने पढ़ाई छोड़कर उनके साथ बैठना शुरू कर दिया।
घरवालों को लगा — "बच्चा बड़ा हो रहा है, थोड़ा बदलना तो लाज़मी है।"

मगर ये "थोड़ा थोड़ा" कब "पूरी तबाही" बन गया — पता ही न चला।
न नमाज़, न तालीम, न घर की इज़्ज़त।

👉 नसीहत:

“बच्चा एक फूल है, संगत उसकी हवा है। अगर हवा सड़ी होगी तो फूल मुरझा जाएगा।”
“मां-बाप की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है — ये देखना कि बच्चा किसके साथ बैठता है और किसके साथ सीखता है।”

🏠 2. कहानी: “ख़ाली घर की आवाज़”
आरिफ का अब्बू रोज़ाना काम पर जाते, अम्मी घर के काम में मशगूल।
बच्चा दिन भर अकेला, खाली वक्त में टीवी, मोबाइल, फिर यूट्यूब शॉर्ट्स और गंदी सोच का शिकार।
कोई न था जो समझाए, कोई न था जो पूछे — "क्या देख रहा है बेटा?"
धीरे-धीरे वो वैसा ही बन गया जैसा वो कंटेंट था।
जब बिगड़ गया तब घरवालों ने कहा — "हमने तो सब कुछ दिया!"

👉 नसीहत:

“बच्चों को तन्हा मत छोड़ो,
वरना वो किसी ऐसे से सीखेंगे जो तुम्हारा घर उजाड़ देगा।”
“तालीम सिर्फ़ स्कूल की नहीं होती, घर की तालीम सबसे पहली होती है।”

💔 3. कहानी: “मायूस लड़की की चुप्पी”
सारा की शादी एक पैसेवाले घर में हुई — दहेज खूब दिया गया।
मगर सास-ससुर, शौहर — सबने उससे उम्मीद की, कि वो "दहेज की कीमत" चुकाए।
हर रोज़ ताना, हर बात पे गुस्सा, कभी बर्तन फेंके जाते, कभी अल्फ़ाज़।
मायके फोन करती तो मां कहती: "सह लो बेटी, इज्जत की बात है…"

धीरे-धीरे सारा अंदर से मरती गई, मगर बोल नहीं पाई।

👉 नसीहत:

“दहेज देकर बेटी नहीं बचती, उसे समझ-बूझ से बचाना होता है।”
“ससुराल में लड़की की इज़्ज़त, उसकी अच्छाई से तय होनी चाहिए — न कि उसकी जेब से।”

🔥 4. कहानी: “शीशे सा बच्चा”
इब्राहीम का बेटा शब्बीर पढ़ने में तेज़ था, मगर अब्बू हर रोज़ घर में गालियाँ, चिल्लाना, मारपीट करते थे।
बच्चा हर रोज़ वही सुनता, वही देखता।
धीरे-धीरे उसके अंदर वही गुस्सा, वही लफ्ज़ बैठ गए।
अब जब शब्बीर किसी से झगड़ता, मां-बाप कहते — "बच्चा बदतमीज़ हो गया!"

मगर असल में वो "शीशा" तो आपने ही तोड़ा था…

👉 नसीहत:

“बच्चा आईना होता है — जो देखेगा, वही सीखेगा।”
“अगर घर में मोहब्बत, सब्र और तालीम नहीं है — तो बाहर से फरिश्ता भी लाओ, बच्चा नहीं बदलेगा।”

📚 अंतिम संदेश (Summary Message):
बच्चों को किताबें दो, वक्त दो, प्यार दो, नसीहत दो —
वरना उन्हें वक्त देगा कोई और, प्यार देगा कोई और, और रास्ता दिखाएगा कोई और।
फिर तुम सिर्फ पछता सकते हो — सुधार नहीं।

______________________________________________





❌ पहली कहानी: गलत परवरिश का अंजाम (ग़लत स्टोरी)
👩‍👦 रुखसाना और उनका बेटा आसिफ
रुखसाना एक घरेलू औरत थीं। वो अपने बेटे आसिफ से बहुत मोहब्बत करती थीं, लेकिन तालीम की अहमियत को कभी नहीं समझा।
बचपन में ही आसिफ को मोबाइल पकड़ा दिया — ताकि वो परेशान ना करे।
ना नमाज़ सिखाई, ना अख़लाक, ना “जी” “आप” कहना सिखाया।
जब वो स्कूल से झगड़ के आता, तो उल्टा टीचर की बुराई करतीं — “तू सही है बेटा, वो लोग तुझे नहीं समझते।”
धीरे-धीरे आसिफ ना घर वालों की सुनता, ना बाहर वालों की इज्जत करता।
मां-बाप बूढ़े हुए, मगर आसिफ टीवी, मोबाइल और अपनी दुनिया में मस्त रहा।
ना दवाखाने ले जाता, ना दुआ करता।

🥀 एक दिन रुखसाना रोते हुए कहती हैं:
"पता नहीं मेरा बेटा इतना बदल क्यों गया… ये पहले जैसा क्यों नहीं रहा?"
📌 इस कहानी से क्या सीख मिलती है?
बच्चों को सिर्फ प्यार देना काफी नहीं — तरबियत और तालीम ज़रूरी है।

बच्चे वही बनते हैं जैसा माहौल उन्हें मिलता है।

गलतियों पर पर्दा डालना, बच्चे को बिगाड़ देता है।

बचपन में जो चीज़ें सिखाई जाएंगी, वही बुढ़ापे में लौट कर आएंगी।

अगर शुरुआत में बच्चे को सिर्फ मज़ा सिखाया, तो आख़िर में तकलीफ़ ही मिलेगी।


✅ दूसरी कहानी: सही परवरिश का इनाम (सही स्टोरी)

👨‍👩‍👧 शबाना और उनका बेटा हाशिम
शबाना एक आम औरत थीं, लेकिन सोच बहुत बुलंद थी।
बेटे को प्यार भी देती थीं, मगर साथ में तर्बियत भी।
घर में झगड़े नहीं, दुआओं का माहौल, नमाज़ और हया सिखाई।
जब हाशिम कोई गलती करता — तो चुपचाप नहीं रहतीं — मोहब्बत से समझातीं।
हाशिम को किताबों से दोस्ती करवाई, अच्छे दोस्तों की सोहबत में रखा।
शबाना खुद भी पढ़ती थीं — ताकि बच्चे को सही जवाब दे सकें।
आज हाशिम एक वफादार, दिनदार और शरीफ नौजवान है।
मां की एक नज़र से बात समझ जाता है।
हर ईद, हर खुशी, हर ग़म में मां-बाप के साथ — और हर नमाज़ में उनके लिए दुआ करता है।

🌹 एक दिन शबाना कहती हैं:
"मुझे अल्लाह ने बेटा नहीं, साया दिया है… जो हर वक्त मेरी रहनुमाई करता है।"

 अंत में नतीजा:
“बच्चे कच्चे घड़े की तरह होते हैं,
जैसे गढ़ोगे — वैसा बन जाएगा।
गलत ढालोगे तो टूटेगा,
सही ढालोगे तो ज़िन्दगी भर पानी संभालेगा।”
______________________________________________

🌟 मूल बात (Core Message):
“बच्चे जैसे माहौल में पलते हैं, वैसे ही बनते हैं।
और परिवार की नींव जितनी मजबूत होगी, समाज उतना ही सच्चा और सुलझा हुआ होगा।”


1️⃣ बच्चा बिगड़ता नहीं, बिगाड़ा जाता है
बच्चा कोई खराब चीज लेकर पैदा नहीं होता।

वह जैसे माहौल में, जैसे बोल-चाल में, जैसे संगत में, जैसे तालीम में पलता है, वैसा बनता है।

जैसे कुम्हार के हाथ में मिट्टी, जैसे किसान के हाथ में फसल — वैसा ही बच्चा मां-बाप की परवरिश से बनता है।

📌 सीख:

गलती पहले मां-बाप, घरवालों और समाज की होती है, जो समय रहते नहीं सोचते कि बच्चा कहाँ जा रहा है।

2️⃣ दहेज से न रिश्ते टिकते हैं, न इज्जत मिलती है
जो लोग दहेज लेकर शादी करते हैं, उनकी नज़र सिर्फ दौलत पर होती है, इंसानियत पर नहीं।

ऐसे घरों में ना सुकून होता है, ना मोहब्बत।

बेटी को दहेज नहीं, समझदारी और तहज़ीब के साथ भेजना चाहिए।

📌 सीख:

लड़की की कद्र उसके दहेज से नहीं, उसके अख़लाक और किरदार से होनी चाहिए।

3️⃣ बच्चों की संगत ही उनका भविष्य तय करती है
स्कूल में दोस्त कैसे हैं, वह किससे बातें कर रहा है, क्या देख रहा है — यह सब मां-बाप को देखना चाहिए।

"छोटा सा असर" धीरे-धीरे उसकी सोच और चाल-ढाल पर छा जाता है।

📌 सीख:

बच्चों की परवरिश सिर्फ स्कूल की नहीं होती — घर, दोस्त और मोबाइल की दुनिया भी उन्हें गढ़ती है।

4️⃣ मां-बाप की आपसी लड़ाई का असर बच्चों पर सीधा होता है
अगर घर में शोर-गाली-मारपीट होगी, तो बच्चा वहीं से सीखेगा।

बच्चा बोलता नहीं, लेकिन सब महसूस करता है। और बड़ा होकर वही दोहराता है।

📌 सीख:

बच्चे को आदर्श नहीं चाहिए, बस अच्छा माहौल चाहिए।

5️⃣ मायके-ससुराल में लड़की की हैसियत समझी नहीं जाती
बहु को कभी बेटी नहीं समझा जाता — वो हमेशा "बाहरी" मानी जाती है।

ससुराल से उम्मीद होती है कि वो सब करे, सब सहन करे, और कुछ मांगे भी नहीं।

📌 सीख:

एक बहु सिर्फ दहेज की चीज़ नहीं, वो भी किसी की बेटी है — उसे भी इज्ज़त, मोहब्बत और अपनापन चाहिए।

6️⃣ मां-बाप की उम्मीदें, लेकिन मेहनत नहीं
मां-बाप बच्चे से फरिश्ता बनने की उम्मीद करते हैं,
लेकिन तालीम, निगरानी, दोस्त की जांच — कुछ नहीं करते।

जब बिगड़ जाता है, तब अफसोस करते हैं — "हमें समझ नहीं आया कब वो बदल गया।"

📌 सीख:

बच्चा रोज़-ब-रोज़ बनता है, वक़्त दो, निगरानी करो, मोहब्बत दो — वरना बाद में पछताना पड़ेगा।

✅ सारांश (Final Summary):
पहलू ग़लती समाधान
बच्चों की परवरिश निगरानी की कमी वक्त देना, सही संगत दिलाना
बहु-बेटी का भेद इज़्ज़त की कमी बेटी जैसी मोहब्बत देना
दहेज लालच और घमंड किरदार को अहमियत देना
घर का माहौल लड़ाई-झगड़े सब्र और समझ
मां-बाप की सोच तालीम से ज्यादा उम्मीदें पहले खुद सीखें, फिर बच्चों को सिखाएं।

📜 आख़िरी पैग़ाम (Closing Thought):
“एक बच्चा आइना होता है,
वो वही दिखाएगा जो आप उसे दिखाएंगे।
अच्छा देखाओगे, अच्छा बनेगा।
और अगर लापरवाह हो गए,
तो फिर ताज्जुब मत करना कि आईना टूटा क्यों।”
  

Upcomming process 
Shakiluddin Ansari 


2 comments:

  1. It is a very motivational story And all the philosophies that are wrong in the present times In a very wonderful way.🫡

    ReplyDelete