Shakil Ansari

Tuesday, 28 January 2025

कंज़ुल अरफान:
सूरह इसरा (17:1)
पाक है वह ज़ात जिसने अपने ख़ास बंदे को रात के कुछ हिस्से में मस्जिद-ए-हराम से मस्जिद-ए-अक्सा तक सैर कराई, जिसके इर्द-गिर्द हमने बरकतें रखी हैं, ताकि हम उसे अपनी अज़ीम निशानियां दिखाएं। बेशक वही सुनने वाला और देखने वाला है।"


कंज़ुल इमान:
पाकी है उसे जो रातों-रात अपने बंदे को मस्जिद-ए-हराम से मस्जिद-ए-अक्सा तक ले गया, जिसके चारों तरफ हमने बरकत रखी, ताकि हम उसे अपनी अज़ीम निशानियां दिखाएं। बेशक वही सुनता और देखता है।

हदीस से दलील:
सहीह अल-बुखारी (3207

حَدَّثَنَا هُدْبَةُ بْنُ خَالِدٍ ، حَدَّثَنَا هَمَّامٌ ، عَنْ قَتَادَةَ ، وقَالَ لِي خَلِيفَةُ ، حَدَّثَنَا يَزِيدُ بْنُ زُرَيْعٍ ، حَدَّثَنَا سَعِيدٌ وَهِشَامٌ ، قَالَا : حَدَّثَنَا قَتَادَةُ ، حَدَّثَنَا أَنَسُ بْنُ مَالِكٍ ، عَنْ مَالِكِ بْنِ صَعْصَعَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا ، قَالَ : قَالَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ : بَيْنَا أَنَا عِنْدَ الْبَيْتِ بَيْنَ النَّائِمِ وَالْيَقْظَانِ ، وَذَكَرَ بَيْنَ الرَّجُلَيْنِ فَأُتِيتُ بِطَسْتٍ مِنْ ذَهَبٍ مُلِئَ حِكْمَةً وَإِيمَانًا فَشُقَّ مِنَ النَّحْرِ إِلَى مَرَاقِّ الْبَطْنِ ، ثُمَّ غُسِلَ الْبَطْنُ بِمَاءِ زَمْزَمَ ، ثُمَّ مُلِئَ حِكْمَةً وَإِيمَانًا وَأُتِيتُ بِدَابَّةٍ أَبْيَضَ دُونَ الْبَغْلِ ، وَفَوْقَ الْحِمَارِ الْبُرَاقُ فَانْطَلَقْتُ مَعَ جِبْرِيلَ حَتَّى أَتَيْنَا السَّمَاءَ الدُّنْيَا ، قِيلَ : مَنْ هَذَا ؟ ، قَالَ : جِبْرِيلُ ، قِيلَ : مَنْ مَعَكَ ؟ ، قِيلَ : مُحَمَّدٌ ، قِيلَ : وَقَدْ أُرْسِلَ إِلَيْهِ ، قَالَ : نَعَمْ ، قِيلَ : مَرْحَبًا بِهِ وَلَنِعْمَ الْمَجِيءُ جَاءَ ، فَأَتَيْتُ عَلَى آدَمَ فَسَلَّمْتُ عَلَيْهِ ، فَقَالَ : مَرْحَبًا بِكَ مِنَ ابْنٍ وَنَبِيٍّ ، فَأَتَيْنَا السَّمَاءَ الثَّانِيَةَ ، قِيلَ : مَنْ هَذَا ؟ ، قَالَ : جِبْرِيلُ ، قِيلَ : مَنْ مَعَكَ ؟ ، قَالَ : مُحَمَّدٌ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، قِيلَ : أُرْسِلَ إِلَيْهِ ، قَالَ : نَعَمْ ، قِيلَ : مَرْحَبًا بِهِ وَلَنِعْمَ الْمَجِيءُ جَاءَ ، فَأَتَيْتُ عَلَى عِيسَى وَيَحْيَى ، فَقَالَا : مَرْحَبًا بِكَ مِنْ أَخٍ وَنَبِيٍّ ، فَأَتَيْنَا السَّمَاءَ الثَّالِثَةَ ، قِيلَ : مَنْ هَذَا ؟ ، قِيلَ : جِبْرِيلُ ، قِيلَ : مَنْ مَعَكَ ؟ ، قِيلَ : مُحَمَّدٌ ، قِيلَ : وَقَدْ أُرْسِلَ إِلَيْهِ ، قَالَ : نَعَمْ ، قِيلَ مَرْحَبًا بِهِ وَلَنِعْمَ الْمَجِيءُ جَاءَ ، فَأَتَيْتُ يُوسُفَ فَسَلَّمْتُ عَلَيْهِ ، قَالَ : مَرْحَبًا بِكَ مِنْ أَخٍ وَنَبِيٍّ ، فَأَتَيْنَا السَّمَاءَ الرَّابِعَةَ ، قِيلَ : مَنْ هَذَا ؟ ، قَالَ : جِبْرِيلُ ، قِيلَ : مَنْ مَعَكَ ؟ ، قِيلَ : مُحَمَّدٌ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، قِيلَ : وَقَدْ أُرْسِلَ إِلَيْهِ ، قِيلَ : نَعَمْ ، قِيلَ : مَرْحَبًا بِهِ وَلَنِعْمَ الْمَجِيءُ جَاءَ ، فَأَتَيْتُ عَلَى إِدْرِيسَ فَسَلَّمْتُ عَلَيْهِ ، فَقَالَ : مَرْحَبًا بِكَ مِنْ أَخٍ وَنَبِيٍّ ، فَأَتَيْنَا السَّمَاءَ الْخَامِسَةَ ، قِيلَ : مَنْ هَذَا ؟ ، قَالَ : جِبْرِيلُ ، قِيلَ : وَمَنْ مَعَكَ ؟ ، قِيلَ : مُحَمَّدٌ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، قِيلَ : وَقَدْ أُرْسِلَ إِلَيْهِ ، قَالَ : نَعَمْ ، قِيلَ : مَرْحَبًا بِهِ وَلَنِعْمَ الْمَجِيءُ جَاءَ ، فَأَتَيْنَا عَلَى هَارُونَ فَسَلَّمْتُ عَلَيْهِ ، فَقَالَ : مَرْحَبًا بِكَ مِنْ أَخٍ وَنَبِيٍّ ، فَأَتَيْنَا عَلَى السَّمَاءِ السَّادِسَةِ ، قِيلَ : مَنْ هَذَا ؟ ، قِيلَ : جِبْرِيلُ ، قِيلَ : مَنْ مَعَكَ ؟ ، قِيلَ : مُحَمَّدٌ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، قِيلَ : وَقَدْ أُرْسِلَ إِلَيْهِ مَرْحَبًا بِهِ وَلَنِعْمَ الْمَجِيءُ جَاءَ ، فَأَتَيْتُ عَلَى مُوسَى فَسَلَّمْتُ عَلَيْهِ ، فَقَالَ : مَرْحَبًا بِكَ مِنْ أَخٍ وَنَبِيٍّ فَلَمَّا جَاوَزْتُ بَكَى ، فَقِيلَ : مَا أَبْكَاكَ ؟ ، قَالَ : يَا رَبِّ هَذَا الْغُلَامُ الَّذِي بُعِثَ بَعْدِي يَدْخُلُ الْجَنَّةَ مِنْ أُمَّتِهِ أَفْضَلُ مِمَّا يَدْخُلُ مِنْ أُمَّتِي ، فَأَتَيْنَا السَّمَاءَ السَّابِعَةَ ، قِيلَ : مَنْ هَذَا ؟ ، قِيلَ : جِبْرِيلُ ، قِيلَ : مَنْ مَعَكَ ؟ ، قِيلَ : مُحَمَّدٌ ، قِيلَ : وَقَدْ أُرْسِلَ إِلَيْهِ مَرْحَبًا بِهِ وَلَنِعْمَ الْمَجِيءُ جَاءَ ، فَأَتَيْتُ عَلَى إِبْرَاهِيمَ فَسَلَّمْتُ عَلَيْهِ ، فَقَالَ : مَرْحَبًا بِكَ مِنَ ابْنٍ وَنَبِيٍّ فَرُفِعَ لِي الْبَيْتُ الْمَعْمُورُ ، فَسَأَلْتُ جِبْرِيلَ ، فَقَالَ : هَذَا الْبَيْتُ الْمَعْمُورُ يُصَلِّي فِيهِ كُلَّ يَوْمٍ سَبْعُونَ أَلْفَ مَلَكٍ إِذَا خَرَجُوا لَمْ يَعُودُوا إِلَيْهِ آخِرَ مَا عَلَيْهِمْ وَرُفِعَتْ لِي سِدْرَةُ الْمُنْتَهَى ، فَإِذَا نَبِقُهَا كَأَنَّهُ قِلَالُ هَجَرَ وَوَرَقُهَا كَأَنَّهُ آذَانُ الْفُيُولِ فِي أَصْلِهَا أَرْبَعَةُ أَنْهَارٍ نَهْرَانِ بَاطِنَانِ وَنَهْرَانِ ظَاهِرَانِ ، فَسَأَلْتُ جِبْرِيلَ ، فَقَالَ : أَمَّا الْبَاطِنَانِ فَفِي الْجَنَّةِ وَأَمَّا الظَّاهِرَانِ النِّيلُ وَالْفُرَاتُ ، ثُمَّ فُرِضَتْ عَلَيَّ خَمْسُونَ صَلَاةً فَأَقْبَلْتُ حَتَّى جِئْتُ مُوسَى ، فَقَالَ : مَا صَنَعْتَ ، قُلْتُ : فُرِضَتْ عَلَيَّ خَمْسُونَ صَلَاةً ، قَالَ : أَنَا أَعْلَمُ بِالنَّاسِ مِنْكَ عَالَجْتُ بَنِي إِسْرَائِيلَ أَشَدَّ الْمُعَالَجَةِ ، وَإِنَّ أُمَّتَكَ لَا تُطِيقُ فَارْجِعْ إِلَى رَبِّكَ فَسَلْهُ فَرَجَعْتُ فَسَأَلْتُهُ فَجَعَلَهَا أَرْبَعِينَ ، ثُمَّ مِثْلَهُ ، ثُمَّ ثَلَاثِينَ ، ثُمَّ مِثْلَهُ فَجَعَلَ عِشْرِينَ ، ثُمَّ مِثْلَهُ فَجَعَلَ عَشْرًا فَأَتَيْتُ مُوسَى ، فَقَالَ : مِثْلَهُ فَجَعَلَهَا خَمْسًا فَأَتَيْتُ مُوسَى ، فَقَالَ : مَا صَنَعْتَ ، قُلْتُ : جَعَلَهَا خَمْسًا ، فَقَالَ : مِثْلَهُ ، قُلْتُ : سَلَّمْتُ بِخَيْرٍ فَنُودِيَ إِنِّي قَدْ أَمْضَيْتُ فَرِيضَتِي وَخَفَّفْتُ ، عَنْ عِبَادِي وَأَجْزِي الْحَسَنَةَ عَشْرًا ، وَقَالَ هَمَّامٌ ، عَنْ قَتَادَةَ ، عَنْ الْحَسَنِ عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ ، عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فِي الْبَيْتِ الْمَعْمُورِ .

नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया, ''मैं एक बार बैतुल्लाह के क़रीब नींद और बेदारी की दरमियानी हालत में था फिर आप (सल्ल०) ने दो आदमियों के बीच लेटे हुए एक तीसरे आदमी का ज़िक्र फ़रमाया। उसके बाद मेरे पास सोने का एक थाल लाया गया जो हिकमत और ईमान से भरपूर था। मेरे सीने को पेट के आख़िरी हिस्से तक चाक किया गया। फिर मेरा पेट ज़मज़म के पानी से धोया गया और उसे हिकमत और ईमान से भर दिया गया। उसके बाद मेरे पास एक सवारी लाई गई। सफ़ेद ख़च्चर से छोटी और गधे से बड़ी यानी बुर्राक़ मैं इस पर सवार हो कर जिब्राईल (अलैहि०) के साथ चला। जब हम आसमाने-दुनिया पर पहुँचे, तो पूछा गया कि ये कौन साहिब हैं? उन्होंने कहा कि जिब्राईल। पूछा गया कि आप के साथ और कौन साहिब आए हैं? उन्होंने बताया कि मुहम्मद (सल्ल०) पूछा गया कि क्या उन्हें बुलाने के लिये आप को भेजा गया था? उन्होंने कहा कि हाँ इस पर जवाब आया कि अच्छी कुशादा जगह आने वाले किया ही मुबारक हैं फिर मैं आदम (अलैहि०) की ख़िदमत में हाज़िर हुआ। और उन्हें सलाम किया। उन्होंने फ़रमाया आओ प्यारे बेटे और अच्छे नबी। उसके बाद हम दूसरे आसमान पर पहुँचे, यहाँ भी वही सवाल हुआ। कौन साहिब हैं? कहा जिब्राईल सवाल हुआ आप के साथ कोई और साहिब भी आए हैं? कहा कि मुहम्मद (सल्ल०) सवाल हुआ उन्हें बुलाने के लिये आप को भेजा गया था? कहा कि हाँ। अब इधर से जवाब आया अच्छी कुशादा जगह आए हैं आने वाले किया ही मुबारक हैं। उसके बाद में ईसा और यहया (अलैहि०) से मिला उन हज़रात ने भी स्वागत किया और कहा अपने भाई और नबी को। फिर हम तीसरे आसमान पर आए यहाँ भी सवाल हुआ कौन साहिब हैं? जवाब मिला जिब्राईल सवाल हुआ आप के साथ भी कोई है? कहा कि मुहम्मद (सल्ल०) सवाल हुआ उन्हें बुलाने के लिये आप को भेजा गया था? उन्होंने बताया कि हाँ अब आवाज़ आई अच्छी कुशादा जगह आए आने वाले किया ही सालेह हैं यहाँ यूसुफ़ (अलैहि०) से मैं मिला और उन्हें सलाम किया उन्होंने फ़रमाया अच्छी कुशादा जगह आए हो मेरे भाई और नबी यहाँ से हम चौथे आसमान पर आए इस पर भी यही सवाल हुआ कौन साहिब जवाब दिया कि जिब्राईल सवाल हुआ आप के साथ और कौन साहिब हैं? कहा कि मुहम्मद (सल्ल०) हैं। पूछा : क्या उन्हें लाने के लिये आप को भेजा गया था जवाब दिया कि हाँ फिर आवाज़ आई अच्छी कुशादा जगह आए किया ही अच्छे आने वाले हैं। यहाँ मैं इदरीस (अलैहि०) से मिला और सलाम किया उन्होंने फ़रमाया मरहबा भाई और नबी। यहाँ से हम पाँचवीं आसमान पर आए। यहाँ भी सवाल हुआ कि कौन साहिब? जवाब दिया कि जिब्राईल पूछा गया और आप के साथ और कौन साहिब आए हैं? जवाब दिया कि मुहम्मद (सल्ल०) पूछा गया उन्हें बुलाने के लिये भेजा गया था? कहा कि हाँ आवाज़ आई अच्छी कुशादा जगह आए हैं। आने वाले किया ही अच्छे हैं। यहाँ हम हारून (अलैहि०) से मिले और मैंने उन्हें सलाम किया। उन्होंने फ़रमाया मुबारक मेरे भाई और नबी तुम अच्छी कुशादा जगह आए यहाँ से हम छ्टे आसमान पर आए यहाँ भी सवाल हुआ कौन साहिब? जवाब दिया कि जिब्राईल पूछा गया आप के साथ और भी कोई हैं? कहा कि हाँ मुहम्मद (सल्ल०) हैं। पूछा गया कि उन्हें बुलाया गया था कहा हाँ कहा अच्छी कुशादा जगह आए हैं अच्छे आने वाले हैं। यहाँ मैं मूसा (अलैहि०) से मिला और उन्हें सलाम किया। उन्होंने फ़रमाया मेरे भाई और नबी अच्छी कुशादा जगह आए जब मैं वहाँ से आगे बढ़ने लगा तो वो रोने लगे किसी ने पूछा बुज़ुर्गवार आप क्यों रो रहे हैं? उन्होंने फ़रमाया कि ऐ अल्लाह! ये नौजवान जिसे मेरे बाद नुबूवत दी गई उसकी उम्मत में से जन्नत में दाख़िल होने वाले मेरी उम्मत के जन्नत में दाख़िल होने वाले लोगों से ज़्यादा होंगे। उसके बाद हम सातवें आसमान पर आए यहाँ भी सवाल हुआ कि कौन साहिब हैं? जवाब दिया कि जिब्राईल सवाल हुआ कि कोई साहिब आप के साथ भी हैं? जवाब दिया कि मुहम्मद (सल्ल०) पूछा उन्हें बुलाने के लिये आप को भेजा गया था? मरहबा अच्छे आने वाले। यहाँ मैं इब्राहीम (अलैहि०) से मिला और उन्हें सलाम किया। उन्होंने फ़रमाया मेरे बेटे और नबी मुबारक अच्छी कुशादा जगह आए हो उसके बाद मुझे घर अल-मअमूर दिखाया गया। मैंने जिब्राईल (अलैहि०) से उसके बारे में पूछा तो उन्होंने बतलाया कि ये बैतुल-मअमूर है। उसमें सत्तर हज़ार फ़रिश्ते रोज़ाना नमाज़ पढ़ते हैं। और एक मर्तबा पढ़ कर जो उस से निकल जाता है तो फिर कभी दाख़िल नहीं होता। और मुझे सिदरतुल-मुन्तहा भी दिखाया गया उसके फल ऐसे थे जैसे मक़ामे-हिज्र के मटके होते हैं और पत्ते ऐसे थे जैसे हाथी के कान उसकी जड़ से चार नहरें निकलती थीं दो नहरें तो अन्दर का थीं और दो ज़ाहिरी मैंने जिब्राईल (अलैहि०) से पूछा तो उन्होंने बताया कि जो दो अन्दर का नहरें हैं वो तो जन्नत में हैं और दो ज़ाहिरी नहरें दुनिया में नील और फ़रात हैं उसके बाद मुझ पर पचास वक़्त की नमाज़ें फ़र्ज़ की गईं। मैं जब वापस हुआ और मूसा (अलैहि०) से मिला तो उन्होंने पूछा कि क्या करके आए हो? मैंने कहा कि पचास नमाज़ें मुझ पर फ़र्ज़ की गई हैं। उन्होंने फ़रमाया कि इन्सानों को मैं तुमसे ज़्यादा जानता हूँ बनी-इसराईल का मुझे बुरा तजरिबा हो चुका है। तुम्हारी उम्मत भी इतनी नमाज़ों की ताक़त नहीं रखती इसलिये अपने रब की बारगाह में दोबारा हाज़िरी दो और कुछ कमी की दरख़ास्त करो मैं वापस हुआ तो अल्लाह तआला ने नमाज़ें चालीस वक़्त की कर दीं। फिर भी मूसा (अलैहि०) अपनी बात (यानी कमी कराने) पर इसरार करते रहे। इस मर्तबा तीस वक़्त की रह गईं। फिर उन्होंने वही फ़रमाया और इस मर्तबा बारगाह रब इज़्ज़त में मेरी दरख़ास्त की पेशी पर अल्लाह तआला ने उन्हें दस कर दिया। मैं जब मूसा (अलैहि०) के पास आया। तो अब भी उन्होंने कम कराने के लिये अपना इसरार जारी रखा। और इस मर्तबा अल्लाह तआला ने पाँच वक़्त की कर दीं। अब मूसा (अलैहि०) से मिला तो उन्होंने फिर पूछा कि क्या हुआ? मैंने कहा कि अल्लाह तआला ने पाँच कर दी हैं। इस मर्तबा भी उन्होंने कम कराने का इसरार किया। मैंने कहा कि अब तो मैं अल्लाह के सिपुर्द कर चुका। फिर आवाज़ आई। मैंने अपना फ़रीज़ा (पाँच नमाज़ों का) जारी कर दिया। अपने बन्दों पर कमी कर चुका और मैं एक नेकी का बदला दस गुना देता हूँ। और हम्माम ने कहा, उनसे क़तादा ने कहा, उन से हसन ने उन से अबू-हुरैरा (रज़ि०) ने नबी करीम (सल्ल०) से बैतुल-मअमूर के बारे में अलग रिवायत की है।
Urdu 
نبی کریم ﷺ نے فرمایا ” میں ایک دفعہ بیت اللہ کے قریب نیند اور بیداری کی درمیانی حالت میں تھا ، پھر آنحضرت ﷺ نے دو آدمیوں کے درمیان لیٹے ہوئے ایک تیسرے آدمی کا ذکر فرمایا ۔ اس کے بعد میرے پاس سونے کا ایک طشت لایا گیا ، جو حکمت اور ایمان سے بھرپور تھا ۔ میرے سینے کو پیٹ کے آخری حصے تک چاک کیا گیا ۔ پھر میرا پیٹ زمزم کے پانی سے دھویا گیا اور اسے حکمت اور ایمان سے بھر دیا گیا ۔ اس کے بعد میرے پاس ایک سواری لائی گئی ۔ سفید ، خچر سے چھوٹی اور گدھے سے بڑی یعنی براق ، میں اس پر سوار ہو کر جبریل علیہ السلام کے ساتھ چلا ۔ جب ہم آسمان دنیا پر پہنچے تو پوچھا گیا کہ یہ کون صاحب ہیں ؟ انہوں نے کہا کہ جبریل ۔ پوچھا گیا کہ آپ کے ساتھ اور کون صاحب آئے ہیں ؟ انہوں نے بتایا کہ محمد ( ﷺ ) پوچھا گیا کہ کیا انہیں بلانے کے لیے آپ کو بھیجا گیا تھا ؟ انہوں نے کہا کہ ہاں ، اس پر جواب آیا کہ اچھی کشادہ جگہ آنے والے کیا ہی مبارک ہیں ، پھر میں آدم علیہ السلام کی خدمت میں حاضر ہوا ۔ اور انہیں سلام کیا ۔ انہوں نے فرمایا ، آؤ پیارے بیٹے اور اچھے نبی ۔ اس کے بعد ہم دوسرے آسمان پر پہنچے یہاں بھی وہی سوال ہوا ۔ کون صاحب ہیں ؟ کہا کہ جبریل ، سوال ہوا ، آپ کے ساتھ کوئی اور صاحب بھی آئے ہیں ؟ کہا کہ محمد ﷺ ، سوال ہوا ، انہیں بلانے کے لیے آپ کو بھیجا گیا تھا ؟ کہا کہ ہاں ۔ اب ادھر سے جواب آیا ، اچھی کشادہ جگہ آئے ہیں ، آنے والے کیا ہی مبارک ہیں ۔ اس کے بعد میں عیسیٰ اور یحیی علیہما السلام سے ملا ، ان حضرات نے بھی خوش آمدید ، مرحبا کہا اپنے بھائی اور نبی کو ۔ پھر ہم تیسرے آسمان پر آئے یہاں بھی سوال ہوا کون صاحب ہیں ؟ جواب ملا جبریل ، سوال ہوا ، آپ کے ساتھ بھی کوئی ہے ؟ کہا کہ محمد ﷺ ، سوال ہوا ، انہیں بلانے کے لیے آپ کو بھیجا گیا تھا ؟ انہوں نے بتایا کہ ہاں ، اب آواز آئی اچھی کشادہ جگہ آئے آنے والے کیا ہی صالح ہیں ، یہاں یوسف علیہ السلام سے میں ملا اور انہیں سلام کیا ، انہوں نے فرمایا ، اچھی کشادہ جگہ آئے ہو میرے بھائی اور نبی ، یہاں سے ہم چوتھے آسمان پر آئے اس پر بھی یہی سوال ہوا ، کون صاحب ، جواب دیا کہ جبریل ، سوال ہوا ، آپ کے ساتھ اور کون صاحب ہیں ؟ کہا کہ محمد ﷺ ہیں ۔ پوچھا کیا انہیں لانے کے لیے آپ کو بھیجا گیا تھا ، جواب دیا کہ ہاں ، پھر آواز آئی ، اچھی کشادہ جگہ آئے کیا ہی اچھے آنے والے ہیں ۔ یہاں میں ادریس علیہ السلام سے ملا اور سلام کیا ، انہوں نے فرمایا ، مرحبا ، بھائی اور نبی ۔ یہاں سے ہم پانچویں آسمان پر آئے ۔ یہاں بھی سوال ہوا کہ کون صاحب ؟ جواب دیا کہ جبریل ، پوچھا گیا اور آپ کے ساتھ اور کون صاحب آئے ہیں ؟ جواب دیا کہ محمد ﷺ ، پوچھا گیا ، انہیں بلانے کے لیے بھیجا گیا تھا ؟ کہا کہ ہاں ، آواز آئی ، اچھی کشادہ جگہ آئے ہیں ۔ آنے والے کیا ہی اچھے ہیں ۔ یہاں ہم ہارون علیہ السلام سے ملے اور میں نے انہیں سلام کیا ۔ انہوں نے فرمایا ، مبارک ، میرے بھائی اور نبی ، تم اچھی کشادہ جگہ آئے ، یہاں سے ہم چھٹے آسمان پر آئے ، یہاں بھی سوال ہوا ، کون صاحب ؟ جواب دیا کہ جبریل ، پوچھا گیا ، آپ کے ساتھ اور بھی کوئی ہیں ؟ کہا کہ ’’ ہاں محمد ﷺ ہیں ‘‘ پوچھا گیا ، کیا انہیں بلایا گیا تھا کہا ہاں ، کہا اچھی کشادہ جگہ آئے ہیں ، اچھے آنے والے ہیں ۔ یہاں میں موسیٰ علیہ السلام سے ملا اور انہیں سلام کیا ۔ انہوں نے فرمایا ، میرے بھائی اور نبی اچھی کشادہ جگہ آئے ، جب میں وہاں سے آگے بڑھنے لگا تو وہ رونے لگے کسی نے پوچھا ، بزرگوار آپ کیوں رو رہے ہیں ؟ انہوں نے فرمایا کہ اے اللہ ! یہ نوجوان جسے میرے بعد نبوت دی گئی ، اس کی امت میں سے جنت میں داخل ہونے والے ، میری امت کے جنت میں داخل ہونے والے لوگوں سے زیادہ ہوں گے ۔ اس کے بعد ہم ساتویں آسمان پر آئے ، یہاں بھی سوال ہوا کہ کون صاحب ہیں ؟ جواب دیا کہ جبریل ، سوال ہوا کہ کوئی صاحب آپ کے ساتھ بھی ہیں ؟ جواب دیا کہ محمد ﷺ پوچھا ، انہیں بلانے کے لیے آپ کو بھیجا گیا تھا ؟ مرحبا ، اچھے آنے والے ۔ یہاں میں ابراہیم علیہ السلام سے ملا اور انہیں سلام کیا ۔ انہوں نے فرمایا ، میرے بیٹے اور نبی ، مبارک ، اچھی کشادہ جگہ آئے ہو ، اس کے بعد مجھے بیت المعمور دکھایا گیا ۔ میں نے جبریل علیہ السلام سے اس کے بارے میں پوچھا ، تو انہوں نے بتلایا کہ یہ بیت المعمور ہے ۔ اس میں ستر ہزار فرشتے روزانہ نماز پڑھتے ہیں ۔ اور ایک مرتبہ پڑھ کر جو اس سے نکل جاتا ہے تو پھر کبھی داخل نہیں ہوتا ۔ اور مجھے سدرۃ المنتہیٰ بھی دکھایا گیا ، اس کے پھل ایسے تھے جیسے مقام ہجر کے مٹکے ہوتے ہیں اور پتے ایسے تھے جیسے ہاتھی کے کان ، اس کی جڑ سے چار نہریں نکلتی تھیں ، دو نہریں تو باطنی تھیں اور دو ظاہری ، میں نے جبریل علیہ السلام سے پوچھا تو انہوں نے بتایا کہ جو دو باطنی نہریں ہیں وہ تو جنت میں ہیں اور دو ظاہری نہریں دنیا میں نیل اور فرات ہیں ، اس کے بعد مجھ پر پچاس وقت کی نمازیں فرض کی گئیں ۔ میں جب واپس ہوا اور موسیٰ علیہ السلام سے ملا تو انہوں نے پوچھا کہ کیا کر کے آئے ہو ؟ میں نے عرض کیا کہ پچاس نمازیں مجھ پر فرض کی گئی ہیں ۔ انہوں نے فرمایا کہ انسانوں کو میں تم سے زیادہ جانتا ہوں ، بنی اسرائیل کا مجھے بڑا تجربہ ہو چکا ہے ۔ تمہاری امت بھی اتنی نمازوں کی طاقت نہیں رکھتی ، اس لیے اپنے رب کی بارگاہ میں دوبارہ حاضری دو ، اور کچھ تخفیف کی درخواست کرو ، میں واپس ہوا تو اللہ تعالیٰ نے نمازیں چالیس وقت کی کر دیں ۔ پھر بھی موسیٰ علیہ السلام اپنی بات ( یعنی تخفیف کرانے ) پر مصر رہے ۔ اس مرتبہ تیس وقت کی رہ گئیں ۔ پھر انہوں نے وہی فرمایا تو اب بیس وقت کی اللہ تعالیٰ نے کر دیں ۔ پھر موسیٰ علیہ السلام نے وہی فرمایا اور اس مرتبہ بارگاہ رب العزت میں میری درخواست کی پیشی پر اللہ تعالیٰ نے انہیں دس کر دیا ۔ میں جب موسیٰ علیہ السلام کے پاس آیا تو اب بھی انہوں نے کم کرانے کے لیے اپنا اصرار جاری رکھا ۔ اور اس مرتبہ اللہ تعالیٰ نے پانچ وقت کی کر دیں ۔ اب موسیٰ علیہ السلام سے ملا ، تو انہوں نے پھر دریافت فرمایا کہ کیا ہوا ؟ میں نے کہا کہ اللہ تعالیٰ نے پانچ کر دی ہیں ۔ اس مرتبہ بھی انہوں نے کم کرانے کا اصرار کیا ۔ میں نے کہا کہ اب تو میں اللہ تعالیٰ کے سپرد کر چکا ۔ پھر آواز آئی ۔ میں نے اپنا فریضہ ( پانچ نمازوں کا ) جاری کر دیا ۔ اپنے بندوں پر تخفیف کر چکا اور میں ایک نیکی کا بدلہ دس گنا دیتا ہوں ۔ اور ہمام نے کہا ، ان سے قتادہ نے کہا ، ان سے حسن نے ، ان سے ابوہریرہ رضی اللہ عنہ نے نبی کریم ﷺ سے بیت المعمور کے بارے میں الگ روایت کی ہے ۔
सहीह मुस्लिम (162)
Hindi:-सहीह मुस्लिम (162 नंबर पर भी है और 411 में भी है सही मुस्लिम में है )
इस हदीस में मिराज की पूरी घटना का जिक्र है, जिसमें जिब्रईल (अलै.) पैग़ंबर (ﷺ) को ले गए और आपको जन्नत, जहन्नम और विभिन्न नबियों से मिलवाया गया।
Arabic :-
حَدَّثَنَا شَيْبَانُ بْنُ فَرُّوخَ، حَدَّثَنَا حَمَّادُ بْنُ سَلَمَةَ، حَدَّثَنَا ثَابِتٌ الْبُنَانِيُّ، عَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ، أَنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: «أُتِيتُ بِالْبُرَاقِ، وَهُوَ دَابَّةٌ أَبْيَضُ طَوِيلٌ فَوْقَ الْحِمَارِ، وَدُونَ الْبَغْلِ، يَضَعُ حَافِرَهُ عِنْدَ مُنْتَهَى طَرْفِهِ»، قَالَ: «فَرَكِبْتُهُ حَتَّى أَتَيْتُ بَيْتَ الْمَقْدِسِ»، قَالَ: «فَرَبَطْتُهُ بِالْحَلْقَةِ الَّتِي يَرْبِطُ بِهِ الْأَنْبِيَاءُ»، قَالَ ثُمَّ دَخَلْتُ الْمَسْجِدَ، فَصَلَّيْتُ فِيهِ رَكْعَتَيْنِ، ثُمَّ خَرَجْتُ فَجَاءَنِي جِبْرِيلُ عَلَيْهِ السَّلَامُ بِإِنَاءٍ مِنْ خَمْرٍ، وَإِنَاءٍ مِنْ لَبَنٍ، فَاخْتَرْتُ اللَّبَنَ، فَقَالَ جِبْرِيلُ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: اخْتَرْتَ الْفِطْرَةَ، ثُمَّ عُرِجَ بِنَا إِلَى السَّمَاءِ [ص:146]، فَاسْتَفْتَحَ جِبْرِيلُ، فَقِيلَ: مَنَ أَنْتَ؟ قَالَ: جِبْرِيلُ، قِيلَ: وَمَنْ مَعَكَ؟ قَالَ: مُحَمَّدٌ، قِيلَ: وَقَدْ بُعِثَ إِلَيْهِ؟ قَالَ: َ قَدْ بُعِثَ إِلَيْهِ، فَفُتِحَ لَنَا، فَإِذَا أَنَا بِآدَمَ، فَرَحَّبَ بِي، وَدَعَا لِي بِخَيْرٍ، ثُمَّ عُرِجَ بِنَا إِلَى السَّمَاءِ الثَّانِيَةِ، فَاسْتَفْتَحَ جِبْرِيلُ عَلَيْهِ السَّلَامُ، فَقِيلَ: مَنَ أَنْتَ؟ قَالَ: جِبْرِيلُ، قِيلَ: وَمَنْ مَعَكَ؟ قَالَ: مُحَمَّدٌ، قِيلَ: وَقَدْ بُعِثَ إِلَيْهِ؟ قَالَ: قَدْ بُعِثَ إِلَيْهِ، فَفُتِحَ لَنَا، فَإِذَا أَنَا بِابْنَيْ الْخَالَةِ عِيسَى ابْنِ مَرْيَمَ، وَيَحْيَى بْنِ زَكَرِيَّاءَ، صَلَوَاتُ اللهِ عَلَيْهِمَا، فَرَحَّبَا وَدَعَوَا لِي بِخَيْرٍ، ثُمَّ عَرَجَ بِي إِلَى السَّمَاءِ الثَّالِثَةِ، فَاسْتَفْتَحَ جِبْرِيلُ، فَقِيلَ: مَنَ أَنْتَ؟ قَالَ: جِبْرِيلُ، قِيلَ: وَمَنْ مَعَكَ؟ قَالَ: مُحَمَّدٌ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، قِيلَ: وَقَدْ بُعِثَ إِلَيْهِ؟ قَالَ: قَدْ بُعِثَ إِلَيْهِ، فَفُتِحَ لَنَا، فَإِذَا أَنَا بِيُوسُفَ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، إِذَا هُوَ قَدِ اُعْطِيَ شَطْرَ الْحُسْنِ، فَرَحَّبَ وَدَعَا لِي بِخَيْرٍ، ثُمَّ عُرِجَ بِنَا إِلَى السَّمَاءِ الرَّابِعَةِ، فَاسْتَفْتَحَ جِبْرِيلُ عَلَيْهِ السَّلَامُ، قِيلَ: مَنْ هَذَا؟ قَالَ: جِبْرِيلُ، قِيلَ: وَمَنْ مَعَكَ؟ قَالَ: مُحَمَّدٌ، قَالَ: وَقَدْ بُعِثَ إِلَيْهِ؟ قَالَ: قَدْ بُعِثَ إِلَيْهِ، فَفُتِحَ لَنَا فَإِذَا أَنَا بِإِدْرِيسَ، فَرَحَّبَ وَدَعَا لِي بِخَيْرٍ، قَالَ اللهُ عَزَّ وَجَلَّ: {وَرَفَعْنَاهُ مَكَانًا عَلِيًّا} [مريم: 57]، ثُمَّ عُرِجَ بِنَا إِلَى السَّمَاءِ الْخَامِسَةِ، فَاسْتَفْتَحَ جِبْرِيلُ، قِيلَ: مَنْ هَذَا؟ فَقَالَ: جِبْرِيلُ، قِيلَ: وَمَنْ مَعَكَ؟ قَالَ: مُحَمَّدٌ، قِيلَ: وَقَدْ بُعِثَ إِلَيْهِ؟ قَالَ: قَدْ بُعِثَ إِلَيْهِ، فَفُتِحَ لَنَا فَإِذَا أَنَا بِهَارُونَ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَرَحَّبَ، وَدَعَا لِي بِخَيْرٍ، ثُمَّ عُرِجَ بِنَا إِلَى السَّمَاءِ السَّادِسَةِ، فَاسْتَفْتَحَ جِبْرِيلُ عَلَيْهِ السَّلَامُ، قِيلَ: مَنْ هَذَا؟ قَالَ: جِبْرِيلُ، قِيلَ: وَمَنْ مَعَكَ؟ قَالَ: مُحَمَّدٌ، قِيلَ: وَقَدْ بُعِثَ إِلَيْهِ؟ قَالَ: قَدْ بُعِثَ إِلَيْهِ، فَفُتِحَ لَنَا، فَإِذَا أَنَا بِمُوسَى صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَرَحَّبَ وَدَعَا لِي بِخَيْرٍ، ثُمَّ عُرِجَ بِنَا إِلَى السَّمَاءِ السَّابِعَةِ، فَاسْتَفْتَحَ جِبْرِيلُ، فَقِيلَ: مَنْ هَذَا؟ قَالَ: جِبْرِيلُ، قِيلَ: وَمَنْ مَعَكَ؟ قَالَ: مُحَمَّدٌ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، قِيلَ: وَقَدْ بُعِثَ إِلَيْهِ؟ قَالَ: قَدْ بُعِثَ إِلَيْهِ، فَفُتِحَ لَنَا فَإِذَا أَنَا بِإِبْرَاهِيمَ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ مُسْنِدًا ظَهْرَهُ إِلَى الْبَيْتِ الْمَعْمُورِ، وَإِذَا هُوَ يَدْخُلُهُ كُلَّ يَوْمٍ سَبْعُونَ أَلْفَ مَلَكٍ لَا يَعُودُونَ إِلَيْهِ، ثُمَّ ذَهَبَ بِي إِلَى السِّدْرَةِ الْمُنْتَهَى، وَإِذَا وَرَقُهَا كَآذَانِ الْفِيَلَةِ، وَإِذَا ثَمَرُهَا كَالْقِلَالِ ، قَالَ: فَلَمَّا غَشِيَهَا مِنْ أَمْرِ اللهِ مَا غَشِيَ تَغَيَّرَتْ، فَمَا أَحَدٌ مِنْ خَلْقِ اللهِ يَسْتَطِيعُ أَنْ يَنْعَتَهَا مِنْ حُسْنِهَا، فَأَوْحَى اللهُ إِلَيَّ مَا أَوْحَى، فَفَرَضَ عَلَيَّ خَمْسِينَ صَلَاةً فِي كُلِّ يَوْمٍ وَلَيْلَةٍ، فَنَزَلْتُ إِلَى مُوسَى صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَقَالَ: مَا فَرَضَ رَبُّكَ عَلَى أُمَّتِكَ؟ قُلْتُ: خَمْسِينَ صَلَاةً، قَالَ: ارْجِعْ إِلَى رَبِّكَ فَاسْأَلْهُ التَّخْفِيفَ، فَإِنَّ أُمَّتَكَ لَا يُطِيقُونَ ذَلِكَ، فَإِنِّي قَدْ بَلَوْتُ بَنِي إِسْرَائِيلَ وَخَبَرْتُهُمْ ، قَالَ: فَرَجَعْتُ إِلَى رَبِّي، فَقُلْتُ: يَا رَبِّ، خَفِّفْ عَلَى أُمَّتِي، فَحَطَّ عَنِّي خَمْسًا، فَرَجَعْتُ إِلَى مُوسَى، فَقُلْتُ: حَطَّ عَنِّي خَمْسًا، قَالَ: إِنَّ أُمَّتَكَ لَا يُطِيقُونَ ذَلِكَ، فَارْجِعْ إِلَى رَبِّكَ فَاسْأَلْهُ التَّخْفِيفَ ، قَالَ: فَلَمْ أَزَلْ أَرْجِعُ بَيْنَ رَبِّي تَبَارَكَ وَتَعَالَى، وَبَيْنَ مُوسَى عَلَيْهِ السَّلَامُ حَتَّى قَالَ: يَا مُحَمَّدُ، إِنَّهُنَّ خَمْسُ صَلَوَاتٍ كُلَّ يَوْمٍ وَلَيْلَةٍ، لِكُلِّ صَلَاةٍ عَشْرٌ، فَذَلِكَ خَمْسُونَ صَلَاةً، وَمَنْ هَمَّ بِحَسَنَةٍ فَلَمْ يَعْمَلْهَا كُتِبَتْ لَهُ حَسَنَةً، فَإِنْ عَمِلَهَا كُتِبَتْ لَهُ عَشْرًا، وَمَنْ هَمَّ بِسَيِّئَةٍ فَلَمْ يَعْمَلْهَا لَمْ تُكْتَبْ شَيْئًا، فَإِنْ عَمِلَهَا كُتِبَتْ سَيِّئَةً وَاحِدَةً ، قَالَ: فَنَزَلْتُ حَتَّى انْتَهَيْتُ إِلَى مُوسَى صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَأَخْبَرْتُهُ، فَقَالَ: ارْجِعْ إِلَى رَبِّكَ فَاسْأَلْهُ التَّخْفِيفَ ، فَقَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: فَقُلْتُ: قَدْ رَجَعْتُ إِلَى رَبِّي حَتَّى اسْتَحْيَيْتُ مِنْهُ
Hindi:-सहीह मुस्लिम (162 नंबर पर भी है और 411 में भी है सही मुस्लिम में है )
सैयदना अनस-बिन-मालिक (रज़ी०) अल्लाह عنہ से रिवायत है। ، रसूल अल्लाह (सल्ल०) अल्लाह علیہ وسلم ने फ़रमाया : "मेरे सामने बुर्राक़ लाया गया और वो एक जानवर है सफ़ेद रंग का, गधे से ऊँचा और ख़च्चर से छोटा। अपने सुम वहाँ रखता है। ، जहाँ तक इस की निगाह पहुँचती है। (तो एक लम्हे में आसमान तक जा सकता है) मैं उस पर सवार हुआ और बैतुल-मक़दिस तक आया। वहाँ इस जानवर को हलक़े से बाँध दिया, जिस से और पैग़म्बर अपने अपने जानवरों को बाँधा करते थे। (ये हलक़ा मस्जिद के दरवाज़े पर है और बाँध देने से मालूम हुआ कि इन्सान को अपनी चीज़ों की एहतियात और हिफ़ाज़त ज़रूरी है। और ये तवक्कुल के ख़िलाफ़ नहीं) फिर में मस्जिद के अन्दर गया और दो रकअतें नमाज़ पढ़ीं। उसके बाद बाहर निकला तो जिब्राईल (अलैहि०) दो बर्तन लेकर आए एक में शराब थी और एक में दूध। मैंने दूध पसन्द किया। जिब्राईल (अलैहि०) हमारे साथ आसमान पर चढ़े (जब वहाँ पहुँचे) तो फ़रिश्तों से दरवाज़ा खोलने के लिये कहा। उन्होंने पूछा कौन है? जिब्राईल (अलैहि०) ने कहा : जिब्रील है। उन्होंने कहा : तुम्हारे साथ दूसरा कौन है? जिब्राईल (अलैहि०) ने कहा : मुहम्मद (सल्ल०) हैं। फ़रिश्तों ने पूछा : क्या बुलाए गए थे? जिब्राईल (अलैहि०) ने कहा : हाँ बुलाए गए हैं। फिर दरवाज़ा खोला गया हमारे लिये और हमने आदम (अलैहि०) को देखा ، उन्होंने मरहबा कहा और मेरे लिये बेहतरी की दुआ की। फिर जिब्रील (अलैहि०) हमारे साथ चढ़े। दूसरे आसमान पर और दरवाज़ा खुलवाया। फ़रिश्तों ने पूछा : कौन है? उन्होंने कहा : जिब्राईल। फ़रिश्तों ने पूछा : तुम्हारे साथ दूसरा कौन शख़्स है? उन्होंने कहा : मुहम्मद (सल्ल०) हैं। फ़रिश्तों ने कहा : क्या उनको हुक्म हुआ था बुलाने का। जिब्राईल (अलैहि०) ने कहा : हाँ उनको हुक्म हुआ है। फिर दरवाज़ा खुला तो मैंने दोनों ख़ाला-ज़ाद भाइयों को देखा यानी ईसा-बिन-मरयम और यहया-बिन-ज़करिया (अलैहि०) को। उन दोनों ने मरहबा कहा और मेरे लिये बेहतरी की दुआ की। फिर जिब्राईल (अलैहि०) हमारे साथ तीसरे आसमान पर चढ़े और दरवाज़ा खुलवाया। फ़रिश्तों ने कहा : कौन है? जिब्राईल (अलैहि०) ने कहा : जिब्राईल। फ़रिश्तों ने कहा : दूसरा तुम्हारे साथ कौन है? जिब्राईल (अलैहि०) ने कहा : मुहम्मद (सल्ल०) हैं। फ़रिश्तों ने कहा : क्या उनको पैग़ाम दिया गया था। बुलाने के लिये? जिब्राईल (अलैहि०) ने कहा : हाँ उनको पैग़ाम दिया गया था। फिर दरवाज़ा खुला तो मैंने यूसुफ़ (अलैहि०) को देखा। अल्लाह ने हुस्न (ख़ूबसूरती) का आधा हिस्सा उनको दिया था। उन्होंने मुझे मरहबा कहा और नेक दुआ की। फिर जिब्राईल (अलैहि०) हमको ले कर चौथे आसमान पर चढ़े और दरवाज़ा खुलवाया फ़रिश्तों ने पूछा : कौन है? कहा : जिब्राईल। पूछा : तुम्हारे साथ दूसरा कौन है? कहा : मुहम्मद (सल्ल०) हैं फ़रिश्तों ने कहा : क्या बुलवाए गए हैं? जिब्राईल ने कहा : हाँ बुलवाए गए हैं ، फिर दरवाज़ा खुला तो मैंने इदरीस (अलैहि०) को देखा। उन्होंने मरहबा कहा और मुझे अच्छी दुआ दी। अल्लाह ने फ़रमाया : हमने उठा लिया इदरीस को ऊँची जगह पर (तो ऊँची जगह से यही चौथा आसमान मुराद है) फिर जिब्रील (अलैहि०) हमारे साथ पाँचवें आसमान पर चढ़े। उन्होंने दरवाज़ा खुलवाया। फ़रिश्तों ने पूछा : कौन? कहा जिब्राईल। पूछा तुम्हारे साथ कौन है? कहा : मुहम्मद (सल्ल०) हैं। फ़रिश्तों ने कहा : क्या बुलाए गए हैं। जिब्रील (अलैहि०) ने कहा हाँ बुलवाए गए हैं, फिर दरवाज़ा खुला तो मैंने हारून (अलैहि०) को देखा। उन्होंने मरहबा कहा और मुझे नेक दुआ दी। फिर जिब्रील (अलैहि०) हमारे साथ छ्टे आसमान पर पहुँचे और दरवाज़ा खुलवाया। फ़रिश्तों ने पूछा कौन है? कहा : जिब्राईल। पूछा और कौन है तुम्हारे साथ? उन्होंने कहा : मुहम्मद (सल्ल०) हैं। फ़रिश्तों ने कहा : क्या अल्लाह ने उनको पैग़ाम भेजा है मिलने के लिये? जिब्राईल (अलैहि०) ने कहा : हाँ भेजा, है।  फिर दरवाज़ा खुला तो मैंने मूसा (अलैहि०) को देखा। उन्होंने कहा : मरहबा और अच्छी दुआ दी मुझ को। फिर जिब्रील (अलैहि०) हमारे साथ सातवें आसमान पर चढ़े और दरवाज़ा खुलवाया। फ़रिश्तों ने पूछा : कौन है? कहा : जिब्राईल। पूछा : तुम्हारे साथ और कौन है? कहा : मुहम्मद (सल्ल०) हैं। फ़रिश्तों ने पूछा : क्या वो बुलवाए गए हैं? उन्होंने कहा : हाँ बुलवाए गए हैं। फिर दरवाज़ा खुला तो मैंने इब्राहीम (अलैहि०) को देखा वो तकिया लगाए हुए थे अपनी पीठ का बैतूल-मामूर की तरफ़ (इस से ये मालूम हुआ कि क़िबले की तरफ़ पीठ कर के बैठना सही है) और इस में हर दिन सत्तर हज़ार फ़रिश्ते जाते हैं जो फिर कभी नहीं आते। फिर जिब्रील (अलैहि०) मुझ को (सिदरतुल-मुन्तहा) के पास ले गए। उस के पत्ते इतने बड़े थे जैसे हाथी के कान और उस के बेर जैसे क़िला (एक बड़ा घड़ा जिस में दो कस्तूरी या ज़्यादा पानी आता है) फिर जब इस पेड़ को अल्लाह के हकम ने ढाँका तो उसका हाल ऐसा हो गया कि कोई मख़लूक़ इस की ख़ूबसूरती बयान नहीं कर सकती फिर अल्लाह ने डाला मेरे दिल में जो कुछ डाला और पचास नमाज़ें हर रात और दिन में मुझ पर फ़र्ज़ कीं जब में उतरा और मूसा (अलैहि०) तक पहुँचा तो उन्होंने पूछा : तुम्हारे परवरदिगार ने क्या फ़र्ज़ किया तुम्हारी उम्मत पर? मैंने कहा : पचास नमाज़ें फ़र्ज़ कीं। उन्होंने कहा : फिर लौट जाओ अपने परवरदिगार के पास और कमी चाहो। क्योंकि तुम्हारी उम्मत को इतनी ताक़त नहीं होगी और मैंने बनी इसराईल को आज़माया है। और उनका इम्तिहान लिया है। मैं लौट गया अपने परवरदिगार के पास और कहा : ऐ परवरदिगार! कमी कर मेरी उम्मत पर। अल्लाह ने पाँच नमाज़ें घटा दीं। मैं लौट कर मूसा (अलैहि०) के पास आया और कहा कि पाँच नमाज़ें अल्लाह ने मुझे माफ़ कर दीं। उन्होंने कहा : तुम्हारी उम्मत को इतनी ताक़त नहीं होगी आप फिर जाओ अपने रब के पास और कमी कराओ। आप (सल्ल०) ने फ़रमाया : मैं इस तरह बराबर अपने परवरदिगार और मूसा (अलैहि०) के बीच आता-जाता रहा यहाँ तक कि अल्लाह ने फ़रमाया : ऐ मुहम्मद ! वो पाँच नमाज़ें हैं हर दिन और हर रात में और हर एक नमाज़ में दस नमाज़ का सवाब है, तो वही पचास नमाज़ें हुईं। और जो कोई नीयत करे नेक काम करने की, फिर उसको न करे तो उसको एक नेकी का सवाब मिलेगा और अगर उस नेकी को कर गुज़रे तो दस नेकियों का। और जो बुराई की नीयत करे फिर उस को न करे तो कुछ नहीं लिखा जाएगा और अगर कर बैठे तो एक ही बुराई लिखी जाएगी। आप (सल्ल०) ने फ़रमाया : फिर मैं उतरा और मूसा (अलैहि०) के पास आया। उन्होंने कहा : फिर जाओ अपने परवरदिगार के पास और कमी चाहो रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फ़रमाया मैं अपने परवरदिगार के पास बार-बार गया यहाँ तक कि मैं शर्मा गया उस से।
Urdu 
شیبان بن فروخ نے ہمیں حدیث سنائی ، کہا ہمیں حماد بن سلمہ نے حدیث سنائی ، کہا : ہمیں ثابت بنانی نے حضرت انس بن مالک رضی اللہ عنہ سے روایت کی کہ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا :” میرے پاس براق لایا گیا ۔ وہ ایک سفید رنگ کا لمبا چوپایہ ہے ، گدھے سے بڑا اور خچر سے چھوٹا اپنا سم وہاں رکھتا ہے ، جہاں اس کی نظر کی آخری حد ہے فرمایا : میں اس پر سوار ہوا حتی کہ بیت المقدس آیا ۔ فرمایا میں نے اس کو اسی حلقے ( کنڈے ) سے باندھ دیا جس کے ساتھ انبیاء علیہم السلام اپنی سواریاں باندھتے تھے ۔ فرمایا : پھر میں مسجد میں داخل ہوا اور اس میں دو رکعتیں پڑھیں پھر ( وہاں سے ) نکلا تو جبریل علیہ السلام میرے پاس ایک برتن شراب کا اور ایک دودھ کا لے آئے ۔ میں نے دودھ کا انتخاب کیا تو جبریل علیہ السلام نے کہا : آپ نے فطرت کو اختیار کیا ہے ، پھر وہ ہمیں لے کر آسمان کی طرف بلند ہوئے جبریل علیہ السلام نے ( دروازہ ) کھولنے کو کہا تو پوچھا گیا : آپ کون ہیں ؟ کہا : جبریل ہوں ۔ پوچھا گیا : آپ کے ساتھ کون ہے ؟ کہا : محمد ﷺ ہیں ۔ کہا گیا : اور ( کیا ) انھیں بلوایا گیا تھا ؟ کہا : بلوایا گیا تھا ۔ اس پر ہمارے لیے ( دروازہ ) کھول دیا گیا تو میں اچانک آدم علیہ السلام کے سامنے تھا ، انھوں نے مجھے مرحبا کہا اور میرے لیے خیر کی دعا کی ، پھر وہ ہمیں اوپر دوسرے آسمان کی طرف لے گئے ، جبریل علیہ السلام نے دروازہ کھلوایا تو پوچھا گیا : آپ کون ہیں ؟ کہا : جبریل ہوں ۔ کہا گیا : آپ کے ساتھ کون ہیں ؟ کہا : محمد ﷺ ہیں ۔ کہا گیا : کیا انھیں بلوایا گیا تھا ؟ کہا : بلوایا گیا تھا ۔ تو ہمارے لیے دروازہ کھول دیا گیا ، اب میں دو خالہ زاد بھائیوں ، عیسیٰ ابن مریم اور یحیی بن ، زکریا کے سامنے تھا (اللہ ان دونوں پر رحمت اور سلامتی بھیجے ) دونوں نے مجھے مرحبا کہا اور دعائے خیر کی ، پھر جبریل علیہ السلام ہمیں اوپر تیسرے آسمان تک لے گئے ، جبریل نے دروازہ کھلوایا تو کہا گیا : آپ کون ہیں ؟ کہا جبریل ہوں کہا گیا : آپ کے ساتھ کون ہے ؟ کہا : محمد ﷺ ہیں ۔ کہا گیا : کیا ان کے پاس پیغام بھیجا گیا تھا ۔ کہا : ( ہاں ) بھیجا گیا تھا ۔ اس پر ہمارے لیے دروازہ کھول دیا گیا تو میں نے یوسف علیہ السلام کو دیکھا ، وہ ایسے تھے کہ ( انسانوں کا ) آدھا حسن انھیں عطا کیا گیا تھا ، انھوں نے مجھے خوش آمدید کہا اور دعائے خیر کی ، پھر ہمیں اوپر چوتھے آسمان کی طرف لے جایا گیا ، جبریل علیہ السلام نے دروازہ کھولنے کے لیے کہا تو کہا گیا : یہ کون ہیں ؟ کہا : جبریل ہوں ۔ کہا گیا : اور آپ کے ساتھ کون ہیں ؟ کہا محمد ﷺ ہیں ۔ کہا گیا : ان کے پاس پیغام بھیجا گیا تھا ؟ کہا : ہاں ، بھیجا گیا تھا ۔ تو ہمارے لیے دروازہ کھول دیا گیا ، تب میرے سامنے ادریس علیہ السلام تھے ۔ انھوں نے مجھے مرحبا کہا اور میرے لیے دعائے خیر کی ۔ اللہ تعالی کا فرمان ہے :’’ ہم نے اسے ( ادریس علیہ السلام کو ) بلند مقام تک رفعت عطا کی :‘‘ پھر ہمیں اوپر پانچویں آسمان پر لے جایا گیا تو جبریل نے دروازہ کھلوایا ، کہا گیا : یہ کون ہیں ؟ کہا : جبریل ہوں ۔ کہا گیا : اور آپ کے ساتھ کون ہیں ؟ کہا : محمد ﷺ ہیں ۔ پوچھا گیا : ان کے لیے پیغام بھیجا گیا تھا ؟ کہا : ہاں بھیجا گیا تھا ، چنانچہ ہمارے لیے دروازہ کھول دیا گیا ۔ تب میری ملاقات ہارون علیہ السلام سے ہوئی ، انھوں نے مجھے خوش آمدید کہا اور میرے لیے خیر کی دعا کی ، پھر ہمیں چھٹے آسمان پر لے جایا گیا ، جبریل علیہ السلام نے دروازہ کھلوایا تو کہا گیا : یہ کون ہیں ؟ کہا : جبریل ۔ کہا گیا : آپ کے ساتھ کون ہیں ؟ کہا : محمد ﷺ ہیں ۔ پوچھا گیا : کیا انھیں پیغام بھیجا گیا تھا ؟ کہا : ہاں ، بھیجا گیا تھا ۔ تو ہمارے لیے دروازہ کھول دیا گیا ۔ تب میری ملاقات موسیٰ علیہ السلام سے ہوئی ، انھوں نے مجھے خوش آمدید کہا اور دعائے خیر کی ، پھر ہمیں اوپر ساتویں آسمان پر لے جایا گیا ، جبریل نے دروازہ کھلوایا ۔ کہا گیا : یہ کون ہیں ؟ کہا : جبریل ۔ کہا گیا : آپ کے ساتھ کون ہیں ؟ کہا : محمد ﷺ ہیں ۔ کہا گیا : کیا ان کی طرف پیغام بھیجا گیا تھا ؟ کہا : ( ہاں ) بھیجا گیا تھا ۔ اس پر ہمارے لیے دروازہ کھول دیا گیا تو میں حضرت ابراہیم علیہ السلام کے سامنے تھا ۔ انھوں نے بیت معمور سے ٹیک لگائی ہوئی تھی ۔ اس ( بیت معمور ) میں ہر روز ستر ہزار فرشتے ( عبادت کے لیے ) داخل ہوتے ہیں ، پھر کبھی دوبارہ اس میں واپس ( آ کر داخل ) نہیں ہو سکتے ، پھر جبریل مجھے سدرۃ المنتھیٰ ( آخری سرحد پر واقع بیری کے درخت ) کے پاس لے گئے ، اس کے پتے ہاتھیوں کے کانوں اور اس کے بیر مٹکوں کی طرح ہیں ، جب اللہ کے حکم سے جس چیز نے اسے ڈھانپنا تھا ڈھانپ لیا ، تو وہ بدل گئی ، اللہ تعالیٰ کی کوئی ایسی مخلوق نہیں جو اس کے حسن کا وصف بیان کر سکے ، پھر اللہ تعالیٰ نے میری طرف وحی کی جو کی ، اور مجھ پر ہر دن رات میں پچاس نمازیں فرض کیں ، میں اتر کر موسیٰ علیہ السلام کے پاس آیا تو انھوں نے کہا : آپ کے رب نے آپ کی امت پر کیا فرض کیا ہے ؟ میں نے کہا : پچاس نمازیں ۔ موسیٰ علیہ السلام نے کہا : اپنے رب کے پاس واپس جائیں اور اس سے تخفیف کی درخواست کریں کیونکہ آپ کی امت ( کے لوگوں ) کے پاس اس کی طاقت نہ ہو گی ، میں بنی اسرائیل کو آزما چکا ہوں ۔ آپ نے فرمایا : تو میں واپس اپنے رب کے پاس گیا اور عرض کی : اے میرے رب ! میری امت پر تخفیف فرما ۔ اللہ تعالیٰ نے مجھ سے پانچ نمازیں کم کر دیں ۔ میں واپس موسیٰ علیہ السلام کی طرف آیا اور کہا : اللہ تعالی نے مجھ سے پانچ نمازیں گھٹا دیں ۔ انھوں نے کہا : آپ کی امت کے پاس ( اتنی نمازیں پڑھنے کی ) طاقت نہ ہو گی ۔ اپنے رب کی طرف لوٹ جایئے اور اس سے تخفیف کا سوال کیجیے ۔ آپ نے فرمایا : تو میں اپنے رب تبارک و تعالیٰ اور موسیٰ علیہ السلام کے درمیان آتا جاتا رہا یہاں تک کہ اللہ تعالیٰ نے فرمایا : اے محمد ! ہر دن اور رات میں پانچ نمازیں ہیں اور ( اجر میں ) ہر نماز کے لیے دس ہیں ، ( اس طرح ) یہ پچاس نمازیں ہیں اور جو کوئی ایک نیکی کا ارادہ کرے گا لیکن عمل نہ کرے گا ، اس کے لیے ایک نیکی لکھ دی جائے گی اور اگر وہ ( اس ارادے پر ) عمل کرے گا تو اس کے لیے دس نیکیاں لکھی جائیں گی ۔ اور جو کوئی ایک برائی کا ارادہ کرے گا اور ( وہ برائی ) کرے گا نہیں تو کچھ نہیں لکھا جائے گا اور اگر اسے کر لے گا تو ایک برائی لکھی جائے گی ۔ آپ نے فرمایا : میں اترا اور موسیٰ علیہ السلام کے پاس پہنچا تو انھیں خبر دی ، انھوں نے کہا : اپنے رب کے پاس واپس جائیں اور اس سے ( مزید ) تخفیف کی درخواست کریں تو رسول اللہ ﷺ نے فرمایا :’’ میں نے کہا : میں اپنے رب کے پاس ( بار بار ) واپس گیا ہوں حتی کہ میں اس سے شرمندہ ہو گیا ہوں ۔‘‘

शबे मेराज के बारे में मुकम्मल जानकारी

शबे मेराज (इसरा व मेराज) इस्लाम का एक अहम और बेहद खास वाकिया है। यह वाकिया हज़रत मोहम्मद (स.अ.व.) के साथ हुआ और इसे कुरान और सहिह हदीसों में बयान किया गया है।

कब हुई शबे मेराज?
शबे मेराज का वाकिया किस महीने और किस तारीख को हुआ, इस पर इस्लामी उलमा के बीच अलग-अलग राय पाई जाती है। हालांकि, आमतौर पर माना जाता है कि यह वाकिया 27 रजब की रात हुआ। लेकिन इस तारीख के बारे में कोई सहिह हदीस मौजूद नहीं है।

यह बात कुरान या सहिह हदीस में कहीं नहीं आती कि यह वाकिया 27 रजब को हुआ था। इसलिए इसे "मुस्तहब" समझा जाता है, लेकिन इसे "फर्ज" या "वाजिब" की तरह मनाना सही नहीं है। 

शबे मेराज के मुख्य हादसे:
मस्जिद-ए-हराम से मस्जिद-ए-अक्सा की यात्रा (इसरा):
यह सफर अल्लाह के हुक्म से बुराक (एक विशेष सवारी) पर हुआ।

मस्जिद-ए-अक्सा में नबियों की इमामत:
वहां हज़रत मोहम्मद (स.अ.व.) ने सभी नबियों को नमाज पढ़ाई।

आसमानों की यात्रा (मेराज):

पहले आसमान पर हज़रत आदम (अ.स.) से मुलाकात।
दूसरे पर हज़रत ईसा (अ.स.) और हज़रत यह्या (अ.स.)।
तीसरे पर हज़रत यूसुफ (अ.स.)।
चौथे पर हज़रत इदरिस (अ.स.)।
पांचवें पर हज़रत हारून (अ.स.)।
छठे पर हज़रत मूसा (अ.स.)।
सातवें पर हज़रत इब्राहिम (अ.स.)।
सिदरतुल-मुन्तहा तक पहुंच:
यह जगह जन्नत और जहन्नम के बीच है, जहां से आगे कोई नहीं जा सकता।

पांच वक्त की नमाज का हुक्म:
शुरू में 50 नमाजें थीं, लेकिन हज़रत मूसा (अ.स.) के मशवरे पर यह घटाकर 5 कर दी गईं।

शबे मेराज के हादसे
शबे मेराज दो हिस्सों पर मबनी है:

इसरा: मस्जिद-ए-हराम (मक्का) से मस्जिद-ए-अक्सा (यरूशलम) तक का सफर।
मेराज: मस्जिद-ए-अक्सा से सात आसमानों और सिदरतुल-मुन्तहा तक का सफर।



सिदरतुल-मुन्तहा तक पहुंच
सिदरतुल-मुन्तहा वह जगह है जहां से आगे कोई नहीं जा सकता। हज़रत मोहम्मद (स.अ.व.) को यहां ले जाया गया और उन्हें जन्नत और जहन्नम के नज़ारे दिखाए गए।

. पांच वक्त की नमाज का हुक्म
शबे मेराज का सबसे बड़ा तोहफा पांच वक्त की नमाज है। शुरू में 50 नमाजें थीं, लेकिन हज़रत मूसा (अ.स.) के मशवरे पर इसे घटाकर 5 कर दिया गया।

हदीस की दलील:

सहीह बुखारी, हदीस नंबर 349:
"अल्लाह ने मेरी उम्मत पर 50 नमाजें फर्ज कीं, लेकिन हज़रत मूसा (अ.स.) के मशवरे पर यह घटाकर 5 कर दी गईं।"


हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-अब्बास (रज़ि०) ने फ़रमाया कि हमसे अबू-सुफ़ियान-बिन-हर्ब ने बयान किया, हदीस हिरक़्ल के सिलसिले में कहा कि वो यानी नबी करीम (सल्ल०) हमें नमाज़ पढ़ने सच्चाई इख़्तियार करने और हराम से बचे रहने का हुक्म देते हैं।
नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया कि मेरे घर की छत खोल दी गई उस वक़्त मैं मक्का में था। फिर जिब्राईल (अलैहि०) उतरे और उन्होंने मेरा सीना चाक किया। फिर उसे ज़मज़म के पानी से धोया। फिर एक सोने का थाल लाए जो हिकमत और ईमान से भरा हुआ था। उसको मेरे सीने मैं रख दिया फिर सीने को जोड़ दिया फिर मेरा हाथ पकड़ा और मुझे आसमान की तरफ़ ले कर चले। जब मैं पहले आसमान पर पहुँचा तो जिब्राईल (अलैहि०) ने आसमान के दरोग़ा से कहा खोलो। उसने पूछा आप कौन हैं? जवाब दिया कि जिब्राईल! फिर उन्होंने पूछा: क्या आप के साथ कोई और भी है? जवाब दिया हाँ मेरे साथ मुहम्मद (सल्ल०) हैं। उन्होंने पूछा कि क्या उनके बुलाने के लिये आप को भेजा गया था? कहा जी हाँ! फिर जब उन्होंने दरवाज़ा खोला तो हम पहले आसमान पर चढ़ गए वहाँ हमने एक शख़्स को बैठे हुए देखा। उन के दाहिनी तरफ़ कुछ लोगों के झुण्ड थे और कुछ झुण्ड बाईं तरफ़ थे। जब वो अपनी दाहिनी तरफ़ देखते तो मुस्कुरा देते और जब बाईं तरफ़ नज़र करते तो रोते। उन्होंने मुझे देख कर फ़रमाया आओ अच्छे आए हो। सालेह नबी और सालेह बेटे! मैंने जिब्राईल (अलैहि०) से पूछा ये कौन हैं? उन्होंने कहा कि ये आदम (अलैहि०) हैं और उन के दाएँ-बाएँ जो झुण्ड हैं ये उन के बेटों की रूहें हैं। जो झुण्ड दाईं तरफ़ हैं वो जन्नती हैं और बाईं तरफ़ के झुण्ड दोज़ख़ी रूहें हैं। इसलिये जब वो अपने दाएँ तरफ़ देखते हैं तो ख़ुशी से मुस्कुराते हैं और जब बाएँ तरफ़ देखते हैं तो (रंज से) रोते हैं। फिर जिब्राईल मुझे ले कर दूसरे आसमान तक पहुँचे, और उसके दरोग़ा से कहा कि खोलो। इस आसमान के दरोग़ा ने भी पहले की तरह पूछा फिर खोल दिया। अनस ने कहा कि अबू-ज़र ने ज़िक्र किया कि आप (सल्ल०) यानी नबी करीम (सल्ल०) ने आसमान पर आदम, इदरीस, मूसा, ईसा और इब्राहीम (अलैहि०) को मौजूद पाया। और अबू-ज़र (रज़ि०) ने हर एक का ठिकाना नहीं बयान किया। अलबत्ता इतना बयान किया कि नबी करीम (सल्ल०) ने आदम को पहले आसमान पर पाया और इब्राहीम (अलैहि०) को छ्टे आसमान पर। अनस ने बयान किया कि जब जिब्राईल (अलैहि०) नबी करीम (सल्ल०) के साथ इदरीस (अलैहि०) पर गुज़रे तो उन्होंने फ़रमाया कि आओ अच्छे आए हो सालेह नबी और सालेह भाई। मैंने पूछा ये कौन हैं? जवाब दिया कि ये इदरीस (अलैहि०) हैं। फिर मूसा (अलैहि०) तक पहुँचा तो उन्होंने फ़रमाया आओ अच्छे आए हो सालेह नबी और सालेह भाई। मैंने पूछा ये कौन हैं? जिब्राईल (अलैहि०) ने बताया कि मूसा (अलैहि०) हैं। फिर मैं ईसा (अलैहि०) तक पहुँचा उन्होंने कहा, आओ अच्छे आए हो सालेह नबी और सालेह भाई। मैंने पूछा ये कौन हैं? जिब्राईल (अलैहि०) ने बताया कि ये ईसा (अलैहि०) हैं। फिर मैं इब्राहीम (अलैहि०) तक पहुँचा। उन्होंने फ़रमाया आओ अच्छे आए हो सालेह नबी और सालेह बेटे। मैंने पूछा ये कौन हैं? जिब्राईल (अलैहि०) ने बताया कि ये इब्राहीम (अलैहि०) हैं। इब्ने-शहाब ने कहा कि मुझे अबू-बक्र-बिन-हज़म ने ख़बर दी कि अब्दुल्लाह-बिन-अब्बास और अबू-हबता अंसारी (रज़ि०) कहा करते थे कि नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया, फिर मुझे जिब्राईल (अलैहि०) ले कर चढ़े अब मैं उस बुलन्द मक़ाम तक पहुँच गया जहाँ मैंने क़लम की आवाज़ सुनी (जो लिखने वाले फ़रिश्तों की क़लमों की आवाज़ थी) इब्ने- हज़म ने (अपने शैख़ से) और अनस-बिन-मालिक ने अबू-ज़र (रज़ि०) से नक़ल किया कि नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया। इसलिये अल्लाह तआला ने मेरी उम्मत पर पचास वक़्त की नमाज़ें फ़र्ज़ कीं। मैं ये हुक्म ले कर वापस लौटा। जब मूसा (अलैहि०) तक पहुँचा तो उन्होंने पूछा कि आपकी उम्मत पर अल्लाह ने क्या फ़र्ज़ किया है? मैंने कहा कि पचास वक़्त की नमाज़ें फ़र्ज़ की हैं। उन्होंने फ़रमाया आप वापस अपने रब की बारगाह में जाइये। क्योंकि आपकी उम्मत इतनी नमाज़ों को अदा करने की ताक़त नहीं रखती है। मैं वापस बारगाहे-रब्बुल-इज़्ज़त मैं गया तो अल्लाह ने उसमें से एक हिस्सा कम कर दिया फिर मूसा (अलैहि०) के पास आया। और कहा कि एक हिस्सा कम कर दिया गया है उन्होंने कहा कि दोबारा जाइये क्योंकि आपकी उम्मत में उसके बर्दाश्त की भी ताक़त नहीं है। फिर में बारगाहे-रब्बुल-इज़्ज़त में हाज़िर हुआ। फिर एक हिस्सा कम हुआ। जब मूसा (अलैहि०) के पास पहुँचा तो उन्होंने फ़रमाया कि अपने रब की बारगाह में फिर जाइये क्योंकि आपकी उम्मत उसको भी बर्दाश्त न कर सकेगी फिर मैं बार-बार आया गया इसलिये अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि ये नमाज़ें (अमल में) पाँच हैं और (सवाब में) पचास (के बराबर) हैं। मेरी बात बदली नहीं जाती। अब मैं मूसा (अलैहि०) के पास आया। तो उन्होंने फिर कहा कि अपने रब के पास जाइये। लेकिन मैंने कहा मुझे अब अपने रब से शर्म आती है। फिर जिब्राईल मुझे सिदरतुल-मुन्तहा तक ले गए जिसे कई तरह के रंगों ने ढाँक रखा था। जिनके मुताल्लिक़ मुझे मालूम नहीं हुआ कि वो क्या हैं। उसके बाद मुझे जन्नत में ले जाया गया मैंने देखा कि उसमें मोतियों के हार हैं और उसकी मिट्टी मुश्क की है।


रजब के महीने में शबे मेराज मनाने की दलील
जैसा कि पहले बताया गया, शबे मेराज की तारीख के बारे में कोई सहिह दलील मौजूद नहीं है। रजब के 27वें दिन इसे मनाने की परंपरा बाद में शुरू हुई।

शबे मेराज को मनाना:

इसे इबादत की रात मानकर, नमाज और दुआओं में मशगूल रहना जाइज़ है।
लेकिन इसे खास तरीके से मनाने की कोई कुरान या सहिह हदीस से दलील नहीं मिलती।



सही हदीस:
यह हदीस सही है और इस बात की तस्दीख करती है कि रजब अल्लाह के चार हराम महीनों में से एक है।

हज़रत अबू बकरा (रज़ि.) से रिवायत है कि नबी-ए-करीम ﷺ ने फरमाया:
"साल बारह महीनों का है, जिनमें से चार हराम (अत्यधिक मुबारक और इज़्ज़त वाले) हैं: ज़ुल-क़ादा, ज़ुल-हिज्जा, मुहर्रम और रजब।"
(सहीह अल-बुख़ारी: हदीस नंबर 3197, सहीह मुस्लिम: हदीस नंबर 1679)


नतीजा
शबे मेराज के वाकिये: कुरान और सहिह हदीस से साबित हैं।
27 रजब की तारीख: इसकी कोई ठोस दलील कुरान या सहिह हदीस में नहीं मिलती।
मुसलमानों को इस रात को इबादत में गुजारने पर ध्यान देना चाहिए, लेकिन इसे एक खास त्योहार की तरह मनाना सही नहीं है।

No comments:

Post a Comment