Shakil Ansari

Monday, 9 December 2024

खुदा की तारीफ

**इस कायनात की मलिका यानी खुदाई पाक की नेमतों का जिक्र**  


एहतराम के साथ अर्ज़ है कि यह कायनात, जो अपने हुस्न, वुसअत और रंगीनियों का मिसाल है, अल्लाह पाक की वो अज़ीम शाहकार है, जिसके हर गोशे में उसकी नेमतों का बेपनाह इजहार मिलता है।  

**"जमीं उसकी, फलक उसका, ये कायनात उसकी,  
हर जर्रा पुकारे कि खुदाई बात उसकी।"**

अल्लाह पाक ने हमें वो नेमतें अता की हैं, जिनका कोई हिसाब नहीं। सूरज की रोशनी, चाँद की ठंडक, हवाओं का चलना, दरिया का बहना—यह सब उसकी रहमतें हैं। ये दरख्त जो सायादार हैं, ये परिंदे जो नग़्मा सराई करते हैं, सब उसकी तारीफ में मसरूफ हैं।  

**"कभी सूरज की किरन में, कभी बारिश की बूंद में,  
हर नक्श में झलकती है, खुदाई पाक की सूरत।"**

खुदा की दी हुई ज़िंदगी का हर लम्हा उसकी शुकरगुज़ारी का तलबगार है। इंसान के लिए उसने हर ज़रूरत को पूरा किया, हमारे जिस्म को सेहत दी, हमारी रूह को तस्कीन दी, और ईमान की दौलत से नवाज़ा।  

**"बंदा क्या गिनाए नेमतें उसकी,  
हर सांस है गवाही रहमतें उसकी।"**

अल्लाह पाक ने क़ुरआन को नाज़िल फरमाया, ताकि इंसान हिदायत पा सके। उसने हमें इल्म का नूर बख़्शा और सही राह दिखाने के लिए अपने नबियों को भेजा। ये नेमतें हमारे लिए उसकी बेपनाह मोहब्बत का सबूत हैं।  

**"सजदा भी कम है, शुक्र भी कम है,  
ऐ मालिक! तेरी नेमतों का क्या हक अदा हो।"**

खुदा की नेमतों का तसव्वुर करते हुए, हमारी ज़ुबान पर बस यही अल्फ़ाज़ आते हैं:  
**"अल्हम्दुलिल्लाह रब्बिल आलमीन।"**  

दुआ है कि हम अल्लाह पाक की इन नेमतों का सही इस्तेमाल करें और हमेशा उसकी रज़ा के मुताबिक़ ज़िंदगी गुजारें।  

**"जो बंदगी का हक अदा न कर सके,  
वो बंदा बनकर क्या खुदाई का शुक्र करेगा।"**  

जज़ाकल्लाह खैर।  


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**खुदा की नेमतों का बयान**  

ऐ क़ायनात के मालिक, ऐ रहमतों के दरिया,  
तेरी नेमतें बेशुमार, तेरी रहमतें बेपनाह।  
हर जर्रा तेरा सजदा करे, हर हवा तेरा वसीला,  
तेरे करम से है महकता, ये ज़मीं का हर सिलसिला।  

तूने बख्शा हमें आसमान का ये नीला चमन,  
चांद-तारों की रोशनी, सूरज की जलवा-ए-किरण।  
बरसात का मीठा झोंका, सर्द हवाओं का सहारा,  
हर मौसम में तेरा करम, हर लम्हा तेरा नजारा।  

गुर्बत में भी तूने दिए, चावल और गेहूं के दाने,  
भूखे पेटों की तुझसे है हर उम्मीद के बहाने।  
खेतों में तूने बिखेरी, हरियाली की मखमली चादर,  
तेरी रहमत से भरा है, पानी का मीठा समंदर।  

आंखों की रोशनी, हाथों की ताकत,  
दिल की धड़कन, और सांसों की बरकत।  
जुबां की मिठास, बातों की नरमी,  
ये सब हैं तेरे करम, ऐ मालिक-ए-आलम।  

खुदा के बंदे, न हो कभी गाफिल,  
उसकी नेमतों का करो हमेशा तसव्वुर।  
शुकर गुज़ार रहो, उसकी हर इक इनायत का,  
क्योंकि यही है रास्ता, उसकी रज़ा की रहमत का।  

दुनिया में हर खुशी, हर सकून का मालिक वही,  
जितनी नेमतें गिनूं, फिर भी अधूरी मेरी ये बयांगी।  
तेरा करम, तेरी रहमतें, ऐ रब्ब-उल-आलमीन,  
तेरे इश्क में बस जिये जाएं, तेरे करम के हर पल के लिए। 


ऐ रहमतों के मालिक, ऐ रब्बुल इज्जत,  
तेरे करम से सजी है, ये पूरी कायनात।  
शकील तेरा एक बंदा, झुका रहा है सिर,  
तेरी नेमतों का ग़ुलाम, तुझसे करता है जिक्र।  

चमकते हुए चांद-सितारे, तेरी रहमत की निशानी,  
तेरी बनाई हर शै, है अनमोल कहानी।  
शकील की जुबां पर, बस तेरा ही तराना,  
हर लम्हा तेरा शुक्र, हर सांस तेरा अफसाना।  

दिल की धड़कनों में, तेरा ही बसेरा,  
तेरी इश्क़ में डूबा, ये दिल मेरा।  
तेरे करम से है, हर सुकून का सहारा,  
तेरे करम की बारिश, हर दर्द का सहारा।  

खेतों की हरियाली, और पानी का हर कतरा,  
शकील तुझसे मांगता है, तेरा करम और तेरा फज़्ला।  
रोटी, कपड़ा, मकान, सब तेरी ही तो दुआ है,  
शकील का दिल बस तुझसे, हमेशा रहनुमा है।  

ऐ रब्बुल इज्जत, शकील की ये गुज़ारिश,  
हर नेमत का शुकर, तुझसे मिले खुशामद।  
तेरा इश्क ही मकसद, तेरी रहमत का आसरा,  
तेरे करम के हर पल में, मिले बस तेरा ही रास्ता।  

शकील तेरी नेमतों से, हर पल हो मशहूर,  
तेरे इश्क़ में जिये जाए, ये दिल तुझसे जरूर।  
क्योंकि तू ही तो है, हर खुशी का सबब,  
शकील तेरा बंदा, तुझसे करता है अदब।   




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